हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और हज़रत याक़ूब या यूसुफ अलैहिस्सलाम के बीच 400 साल फासला है,आपके और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के दर्मियान 700 साल का फासला है
📕 जलालैन,हाशिया 5,सफह 138
📕 तफसीरे सावी,जिल्द 1,सफह 28
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम, हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम से 1975 साल पहले तशरीफ लाये और हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम की विलादत पर मशहूर क़ौल 20 अप्रैल 571 ईस्वी है इस हिसाब से 1975+571 यानि हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम से तकरीबन 2546 साल पहले हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम दुनिया में तशरीफ लाये
📕 जलालैन,हाशिया 33,सफह 51
📕 तफसीरे सावी,जिल्द 1,सफह 41
📕 सीरतुल मुस्तफा,सफह 56
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के दर्मियान 4000 अम्बिया-ए किराम तशरीफ लाये और सबके सब दीने मूसवी पर ही क़ायम थे,एक दूसरी रिवायत के मुताबिक़ 70000 अम्बिया तशरीफ लाये
📕 खज़ाएनुल इरफान,पारा 1,रुकू 11
📕 जलालैन,हाशिया 31,सफह 13
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का नाम मूसा फिरऔन की बीवी हज़रते आसिया रज़ियल्लाहु तआला अन्हा ने उस वक़्त रखा जबकि वो फिरऔन के साथ दरिया के किनारे टहल रही थीं कि अचानक पानी में बहता हुआ एक सन्दूक दिखाई दिया,जब उसे खोला गया तो उसमे एक चांद सा हसीनों जमील बच्चा निकला तो फिरऔन ने हज़रते आसिया से उसका नाम रखने को कहा तो आपने उनका नाम मूसा रखा इस बिना पर कि वो आपको पानी और लकड़ियों के दर्मियान बहते हुए मिले थे क्योंकि क़ुबती ज़बान में पानी को "मू" और लकड़ी को "सा" कहते हैं लिहाज़ा आपका नाम मूसा पड़ा
📕 रुहुल बयान,जिल्द 1,सफह 91
📕 अलइतकान,जिल्द 2,सफह 177
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के वालिद का नाम इमरान है जो कि हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम के बेटे थे आपका सिलसिल-ए नस्ब इस तरह है मूसा बिन इमरान बिन फाहिस बिन लादी बिन याक़ूब अलैहिस्सलाम
📕 खज़ाएनुल इरफान,पारा 3,रुकु 12
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की वालिदा के नाम में बहुत इख्तिलाफ है मरयम, लोखा, यूखानज़, नौहानिज़, इयारख्त, आइज़, यूखा मगर रुहुल बयान में यारखा लिखा है और इसी को सही क़ौल माना गया है
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 265
हज़रत हारून अलैहिस्सलाम आपके बड़े भाई हैं जो कि आपसे 3 या 4 साल बड़े हैं
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 265
📕 तफसीरे जुमल,जिल्द 3,सफह 67
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को दरिया में कब डाला गया इसमें 3 क़ौल हैं 40 दिन,3 महीना,4 महीना मगर 4 महीने की रिवायत ज़्यादा सही है क्योंकि आप 4 महीने बाद रोये थे तो पड़ोसियों के खतरे के पेशे नज़र आपको दरिया में डालने का हुक्म मौला तआला ने दिया
📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 412
📕 खज़ाएनुल इरफान,पारा 20,रुकू 4
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 268
जिस तरह रोम का बादशाहों का लक़ब कैसर,फारस के बादशाहों का किसरा,यमन के बादशाहों का तबअ,तुर्क के बादशाहों का खाक़ान,हब्शा के बादशाहों का लक़ब नजाशी था उसी तरह मिस्र के तमाम बादशाहों का लक़ब फिरऔन हुआ,मगर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने का फिरऔन सबसे ज़्यादा ज़ालिम और बद खल्क़ था इसका नाम वलीद इब्ने मुसअब या मुसअब बिन रय्यान था बाज़ ने उसका नाम क़ाबूस भी लिखा है
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 266
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश से पहले बनी इस्राईल की हालत बहुत ज़्यादा खराब थी वो लोग फिरऔनिओं के गुलाम थे,फिरऔनियों ने उन्हें अलग अलग कामों में लगा रखा था कोई तामीरी काम में लगा होता तो कोई खेती बाड़ी में किसी से हल चलाने का काम लिया जाता तो किसी से फसल की बुआई कटाई करायी जाती यहां तक कि बैतुल खला की सफाई व नाले की कीचड़ तक उठवाने का ज़िम्मा उन्हीं का था,उनके घर की औरतें भी कनीज़ों की तरह उनके यहां रहती और घर का चूल्हा चौका सूत की कताई सिलाई वगैरह का काम अंजाम देती,उनमें से जो भी काम करने लायक ना रहता तो उन पर जुज़िया मुक़र्रर कर दिया जाता जिसे हर दिन सूरज डूबने से पहले अदा करना होता था वरना उनके हाथों को उनकी गर्दनों से बांध दिया जाता थे और ये सज़ा एक महीने तक चलती थी
📕 तज़किरातुल अंबिया,सफह 266
फिरऔन यानि वलीद इब्ने मुसअब शहरे अस्फहान का एक अत्तार था जिस पर बहुत ज़्यादा क़र्ज़ हो गया तो ये वहां से भाग कर मुल्के शाम आ पहुंचा,यहां इसने देखा कि तरबूज़ गांव में सस्ते हैं और शहर में बहुत मंहगे हैं तो इसने सोचा कि ये तिज़ारत तो बहुत फायदेमंद है लिहाज़ा इसने बहुत सारे तरबूज़ लिए और शहर की तरफ चला मगर सिपाहियों ने जगह जगह इससे चुंगी वसूल की जिससे कि शहर पहुंचते पहुंचते सिर्फ 1 तरबूज़ बचा तब इसने सोचा कि इस शहर में तो कोई शाही इंतेज़ाम है ही नहीं जो चाहे हाकिम बनकर माल वसूल कर ले,उस वक़्त शाम में एक वबा फैली हुई थी जिससे कि लोग बहुत मर रहे थे तो ये जाकर क़ब्रिस्तान में बैठ गया और हर आने वाले जनाज़े वालो से 5 दरहम ये कहकर लेने लगा कि ये बादशाह की तरफ से टैक्स है इस तरह उसने कुछ ही दिनों में काफी माल जमा कर लिया,फिर एक दिन किसी रईस का जनाज़ा आया जब इसने टैक्स मांगा तो उन लोगों ने सिपाहियों को बुला लिया और इसे बादशाह के सामने पेश किया तो इसने सारा जमा किया हुआ माल वहीं उंडेल दिया और कहा कि ये सब तो मैंने आपसे मिलने के लिए ही किया था ताकि आपको खबर दूं कि आपके मुल्क में कोई इंतेज़ाम नहीं है खुद मैंने चंद दिनों में इतना माल इकठ्ठा कर लिया,फिर बोला अगर आप चाहें तो मैं आपके मुल्क का निज़ाम दुरुस्त कर सकता हूं बादशाह ने खुश होकर एक छोटा मोटा ओहदा दे दिया और इसने चालाकी से बादशाह और रियाया दोनों को खुश रखा और धीरे धीरे पहले अफसर फिर वज़ीर और बादशाह के मरने पर रियाया ने उसे बादशाह बना दिया,बादशाह बनते ही इसने सबसे पहले रियाया पर अपने आपको सज्दा करने का हुक्म नाफिज़ कर दिया सबसे पहले इसके वज़ीर हाम्मान ने इसे सज्दा किया फिर अमीरों ने फिर क़ौम के सरदारों ने फिर तमाम क़ुब्तियों ने इसे सज्दा किया और जो लोग दूर की वजह से नहीं आ सकते थे उनके पास अपना बुत बनवाकर भेजा जिसे वो लोग सजदा करें मआज़ अल्लाह,मगर बनी इस्राईल ने सज्दा करने से इंकार कर दिया तब फिरऔन ने बड़ी बड़ी देगों में ज़ैतून का तेल और गंधक खौला कर उसमे बनी इस्राईलियों को डलवाने लगा जब बहुत सारे लोग मारे जा चुके तब उसके वज़ीर हाम्मान ने उसे रोका और समझाया कि इस तरह ये सब खत्म हो जायेंगे लिहाज़ा इन्हें मारने की बजाये जेल में रख और ज़िल्लत दे तो हो सकता है कि ये टूट जायें
📕 क्या आप जानते हैं,सफह 133
उन्हीं दिनों फिरऔन ने एक ख्वाब देखा कि बैतुल मुक़द्दस की जानिब से एक आग ज़ाहिर हुई है जिसने पूरे मिस्र को घेर लिया है और तमाम क़ुब्तियों को जला डाला है मगर उसी आग ने बनी इस्राईल को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाया और एक बड़ा अज़्दहा बनी इस्राईल के महल से ज़ाहिर हुआ जिसने उसको तख्त से नीचे गिरा दिया,इस ख्वाब से फिरऔन बहुत परेशान हो गया और अपने माहिरीन से इसकी ताबीर पूछी तो उन्होंने कहा कि इसकी ताबीर ये है कि बनी इस्राईल में एक बच्चा पैदा होगा जिससे ज़रिये तू हलाक़ होगा और तेरी बादशाहत मिट जायेगी,फिरऔन ने जब ये सुना तो फौरन कोतवाल को बुलाकर 1000 हथियार बन्द सिपाही और 1000 दाईयां इस काम पर रवाना करने का हुक्म दिया कि कोई भी बच्चा बनी इस्राईल में पैदा हो तो फौरन उसे मार डाले और जो औरतें हमल से हों उनका हमल गिरा दिया जाये,चंद ही सालों में बनी इस्राईल के 12000 बच्चे मार दिये गये और एक रिवायत में 70000 बच्चे आया है और 90000 हमल गिराये गये उधर मशिय्यते इलाही से उनके बूढ़े भी जल्दी जल्दी मरने लगे तो रईस क़ुबती घबराकर फिरऔन के पास पहुंचे और कहने लगे कि बूढ़े मर रहे हैं और बच्चे आप मार रहे हैं अगर यही हाल रहा तो हमें ग़ुलाम से कहां से मिलेंगे तब फिरऔन ने ये हुक्म लगाया कि एक साल बच्चे क़त्ल किये जायें और दूसरे साल ज़िंदा रखे जायें,रब की शान कि छोड़ने वाले साल हज़रत हारून अलैहिस्सलाम पैदा हुये और क़त्ल वाले साल हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की विलादत हुई
📕 खज़ाईनुल इरफान,पारा 20,रुकू 4
*कंज़ुल ईमान* - और हमने मूसा की मां को इल्हाम फरमाया कि इसे दूध पिला,फिर जब तुझे इससे अंदेशा हो तो इसे दरिया में डाल दे और ना डर और ना ग़म कर,बेशक हम उसे तेरी तरफ फेर लायेंगे और उसे रसूल बनायेंगे
📕 पारा 19,सूरह क़सस,आयत 7
आप अलैहिस्सलाम की पैदाइश से पहले ही मौला तआला ने आपकी मां के दिल में ये बात डालकर यक़ीन दिला दिया था कि तुम इसे दूध पिलाती रहो और जब फिरऔन का खतरा बढ़ जाये तो इसे दरिया में डाल देना हम इसकी हिफाज़त करेंगे और तुम्हें वापस लौटा देंगे,फिर जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पैदा हुए तो मशहूर क़ौल के मुताबिक आप 4 महीना अपनी मां के पास ही रहे फिर एक दिन एक दाई आपके घर आई और आपकी गोद में बच्चे को देखा मगर जैसे ही उसने आपके चेहरे मुबारक पर नज़र डाली तो वो आप से मुहब्बत करने लगी और बोली कि मैं तो इसे क़त्ल करने के इरादे से आई थी मगर अब इसकी मुहब्बत मेरे दिल में घर कर गयी है बाहर सिपाही घूम रहे हैं लिहाज़ा तुम इसे महफूज़ कर दो,चुंकि दाई को दाखिल हुए काफी वक़्त गुज़र चुका था तो सिपाही भी अंदर आ गए और हड़बड़ाहट में आपकी मां ने पास ही जलते हुए तन्नूर में आपको डाल दिया सिपाहियों ने इधर उधर देखा और वापस लौट गए,अब जब मां को इतमिनान हुआ तो अपनी बेटी मरियम से पूछती हैं कि बच्चा कहां है तो वो कहती हैं कि आपने तो उसे तन्नूर में डाल दिया अब जब वो तन्नूर की तरफ गईं तो देखती क्या हैं कि आग गुलज़ार हो चुकी है और बच्चा उसमें आराम से खेल रहा है,मगर इस वाक़िये के बाद उन्हें हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की फिक्र हुई और उन्होंने उनको दरिया में डालने का इरादा कर लिया जिसके लिए मुहल्ले के ही एक बढ़ई जिसका नाम सानूम था उसको संदूक़ बनाने के लिए बुलवाया
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 268
इधर फिरऔन को उसके नुजूमियों के ज़रिये ये पता चल चुका था कि वो बच्चा पैदा हो चुका है लिहाज़ा उसकी तलाश में और जद्दो जहद शुरू कर दी और उसको ढूंढने या पता बताने वालों को कसीर माल इनआम में देने का ऐलान करवा दिया,जब ये खबर बढ़ई को हुई तो वो समझ गया कि हो ना हो ये बच्चा वही है सो ये इरादा करके वो उन सिपाहियों को उनका पता बताने को निकला बाज़ रिवायतों में आता है कि जैसे ही घर के दरवाज़े पर पहुंचता है फौरन ज़मीन में धंस जाता है और हातिफे ग़ैबी से आवाज़ आती है कि खबरदार जो इस राज़ को फाश किया,और बाज़ रिवायतों में आता है कि जैसे ही सिपाहियों के सामने पहुंचता है तो फौरन गूंगा हो जाता है और जब वापस लौटता है तो फिर उसकी ज़बान सही हो जाती है इस तरह वो तीन मर्तबा करता है और तीसरी बार में गूंगे के साथ साथ अंधा भी हो जाता है अबकी बार उसने दिल से तौबा की और ऐसा ना करने का अहद किया,फिर वो घर गया जैसे ही बच्चे को देखा फौरन उनके क़दमों पर अपनी आंखें मली और आप पर ईमान लाया,आपके ऐलाने नुबूवत से पहले ये पहला शख्स था जो आप पर ईमान लाया और तन्नूर का वाकिया आपका पहला मोज्ज़ा था,फिर आपकी मां ने आपको गुस्ल दिया खुशबु लगाई और आपको संदूक़ में लिटाकर आपको दरियाये नील के हवाले कर दिया जिस शाम को आपने उन्हें दरिया में बहाया उसी सुबह को वो संदूक़ एक नहर जिसका नाम ऐनुश शम्श है उसके ज़रिये फिरऔन के महल में पहुंच गया
📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 413
📕 खज़ाईनुल इरफान,पारा 20,रुकू 4
जिस फिरऔनी ने वो संदूक़ पानी से निकाला उसका नाम तायूस था
📕 अलइतकान,जिल्द 2,सफह 188
फिरऔन की एक बेटी थी जिससे वो बहुत प्यार करता था मगर वो बर्स की बीमारी में मुब्तिला थी,उसके काहिनो और तबीबों ने ये उसे बता रखा था कि जब तक पानी से कोई ऐसा इंसान ना मिले जिसका लोआब इसके बर्स के मक़ाम पर ना मला जायेगा तब तक ये ठीक नहीं होगी और वो इंसान कब मिलेगा उसका दिन तारीख और मक़ाम सब बता रखा था,ये वही दिन था जिस दिन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम संदूक़ में बहते हुए फिरऔन के महल में दाखिल हुए फिरऔन अपनी बीवी आसिया अपनी बेटी और दीगर गुलामो के साथ पहले से ही दरिया पर इंतेज़ार में था कि अचानक उसे एक संदूक पास आता हुआ दिखाई दिया गुलामो ने वो संदूक़ पानी से निकाला लेकिन उसे खोलने में नाकाम रहे,जब किसी से वो संदूक़ ना खुला तो हज़रते आसिया ने उसे खोला तो उसके अंदर एक रौशन नूर वाला बच्चा मिला अल्लाह ने फिरऔन के दिल में उनकी मुहब्बत डाल दी और उसने उनका लोआब लेकर अपनी बेटी के जिस्म पर मला जिससे कि वो फौरन ठीक हो गयी,इधर आसिया और फिरऔन उन्हें प्यार करने लगे मगर कुछ काहिनो ने खबर दी कि हो सकता है कि ये वही बच्चा हो जो आपकी हलाकत का सबब बने उनकी बात सुनकर फिरऔन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के क़त्ल पर आमादा हुआ मगर हज़रते आसिया ने ये कहकर उसे रोक दिया कि तुझे इस शहर के बच्चे से खतरा है और ये बच्चा पता नहीं किस शहर का है और कहां से बहता हुआ आया है और हमारे कोई बच्चा भी नहीं है लिहाज़ा हम इसे ही अपना बेटा बना लेते हैं,फिरऔन हज़रत आसिया की ये बात मान गया और इस तरह हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम फिरऔन के घर में दाखिल हुए मगर आप किसी भी औरत का दूध नहीं पी रहे थे लिहाज़ा फिरऔन ने आपके लिए कई सारी दाया को बुलाया मगर आपने किसी का भी दूध नहीं पिया फिरऔन आपकी भूख और प्यास के सबब परेशान था,जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को उनकी मां ने संदूक में रखकर दरिया में डाला था तो साथ ही अपनी बेटी को ये कहकर संदूक़ के पीछे भेजा कि देखो ये किसको मिलता है जब ये संदूक़ फिरऔन के महल में दाखिल हुआ तो वो आकर अपनी मां को बताती हैं अब उनकी मां और सख्त परेशान हुई कि वो तो मेरे बच्चे को हलाक़ कर देगा और अपनी बेटी को उनके पीछे महल भेजा,जब फिरऔन उनके लिए दाया की तलाश में था तभी महफिल में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की बहन हज़रत मरियम फरमाती हैं कि मै एक दाया को जानती हूं जो इस बच्चे की बेहतरीन परवरिश कर सकती है जब उसने इजाज़त दी तो वो अपनी मां को लेकर महल गई जैसे ही हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम अपनी मां के गोद में आये तो खुश व खुर्रम नज़र आने लगे और दूध भी पिया इस तरह मौला तआला ने अपना वादा पूरा किया और मूसा अलैहिस्सलाम को फिर से आपकी मां के सुपुर्द कर दिया मगर फिरऔन के महल में रहते हुये
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 270
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की ज़बान में लुकनत थी इसकी वजह ये थी कि बचपन में एक मर्तबा फिरऔन आपको गोद में लिए हुए था कि अचानक आपने उसकी दाढ़ी खींचकर उसके मुंह पर ऐसा तमांचा मारा कि उसके जिस्म का पूरा जोड़ जोड़ हिल गया,लोगों के कहने पर कि शायद ये वही बच्चा हो जिससे आपको खतरा हो तब उसने फिर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के क़त्ल का इरादा किया मगर इस बार भी हज़रते आसिया ने ये कहकर उसे रोक दिया कि ये नादान बच्चा है तुझे इत्मिनान नहीं तो खुद आज़माईश कर ले तब फिरऔन ने 2 तश्त मंगवाया एक में दहकते हुए अंगारे रखे और दूसरे में फूल,जब ये तश्त हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के सामने रखा गया तो आपने फूल की तरफ हाथ बढ़ाया मगर फरिश्ते ने आपका हाथ अंगारे में डालकर कुछ अंगारे आपके मुंह में डाल दिये जिससे कि आपकी ज़बान जल गयी और फिरऔन इससे बाज़ आया
📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 414
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम 30 साल तक फिरऔन के घर पर रहे इस दौरान आप उसका लिबास पहनते उसकी सवारियों पर सवार होते यहां तक कि आप उसके फरज़न्द हैं यही मशहूर रहा
📕 खज़ाईनुल इर्फान,सफह 437
मगर चुंकि आप बचपन से ही अपनी वालिदा के आगोश में आ चुके थे लिहाज़ा उनकी बातें सुनने और समझने का काफी मौका आपको मिला जिससे कि आप सारी सूरते हाल से वाकिफ थे नीज़ आपको आपके आबा व अजदाद की नुबूवत की आगाही भी थी,आप हमेशा फिरऔन को गलत काम से रोका करते थे और धीरे धीरे उसका और तमाम फिरऔनियों का रद्द करना शुरू कर दिया उधर बनी इस्राइल आपकी बात सुनते और मानते,जब फिरऔन ने खुदाई दावा किया तो आपने सख्ती से उसका रद्द किया जिसकी बिना पर आपको मुजरिम और बाग़ी समझा जाने लगा और आपके खिलाफ साजिशें होने लगी तब आपने शहर छोड़ने का फैसला किया और उन सबसे रूपोश हो गए और जब कभी आपको शहर आना होता तो बहुत खूफिया तौर से आप शहर में दाखिल होते,एक बार जब आप किसी काम से शहर आये तो 2 आदमियों को लड़ते हुए देखा जिसमे से एक बनी इस्राईली था और दूसरा फिरऔनी,फिरऔनी दूसरे पर ज़ुल्म कर रहा था जिसकी बिना पर उसने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को देखकर मदद के लिए पुकारा आप उसकी मदद को पहुंचे पहले तो आपने फिरऔनी को ज़ुल्म ना करने से रोका मगर जब वो नहीं माना तो आपने एक घूंसा उसको मारा नबी के मार की ताब वो ना ला सका और वहीं ढेर हो गया,हालांकि आपका इरादा उसके क़त्ल का हरगिज़ ना था मगर रब की मर्ज़ी कि वो मर गया पूरे शहर में कोहराम मच गया कि किसी ने फिरऔनी को क़त्ल कर दिया जब फिरऔन को इत्तेला हुई तो उसने क़ातिल और गवाह दोनों को तलाश करने का हुक्म दिया,इधर इत्तेफाक़ से दूसरे रोज़ फिर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को शहर आना पड़ा आज भी उसी बनी इस्राईली को किसी फिरऔनी से लड़ते हुए देखा तो आपने फरमाया कि तू ही गुमराह है जो रोज़ाना दूसरों से लड़ता रहता है खुद भी मुसीबत में पड़ता है और अपने मददगारों को भी मुसीबत में डालता है,मगर उसको डांटने के बाद आपने सोचा की फिरऔनी हैं तो बड़े ज़ालिम चलो उसकी मदद कर ही दी जाये ये सोचकर आप उसकी तरफ बढ़े कि उसको बचायें मगर उसने गलत फहमी में ये समझा कि आज मुझको मारने के लिए आ रहे हैं लिहाज़ा वो चिल्लाया कि ऐ मूसा अलैहिस्सलाम क्या आज मुझको क़त्ल करना चाहते हो जैसे कल एक फिरऔनी का क़त्ल किया था,अब जब ये खबर मशहूर हुई तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के क़त्ल का फरमान जारी हो गया और आपकी तलाश होने लगी,एक मुखबिर जो कि था तो फिरऔनी मगर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर ईमान लाया था और अपना ईमान छिपाये हुए था उसने आपको आपके क़त्ल के फरमान की खबर दी और आपको मदयन की तरफ जाने का मशवरा दिया
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 272-274
*ⓩ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम बहुत ही ज़्यादा जलाली थे आपके जलाल को समझने के चन्द रिवायतें मुलाहज़ा फरमायें फिर आगे बढ़ते हैं*
हज़रत हारून अलैहिस्सलाम नबी हैं और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के बड़े भाई मगर जलाले मूसा की ताब में वो भी आ गये कि जब आप तूर से वापस आये और अपनी क़ौम को बुतपरस्ती करते देखा तो अपना होश खो बैठे और जलाल में उनकी दाढ़ी पकड़कर खींचने लगे जबकि नबी की ताज़ीम फर्ज़ है इसी तरह शबे मेअराज हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सुना कि कोई शख्स तेज़ आवाज़ में रब से बातें कर रहा है तो आपने जिब्रील अलैहिस्सलाम से फरमाया कि ये कौन है जो रब पर तेज़ी करता है तो हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि ये मूसा अलैहिस्सलाम हैं मौला जानता है कि उनके मिज़ाज में तेज़ी है
📕 अलमलफूज़,हिस्सा 3,सफह 6
जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की क़ज़ा का वक़्त आया तो हज़रत इस्राईल अलैहिस्सलाम आपकी रूह क़ब्ज़ करने को आयें,आपने जब सुना तो जलाल में आकर उनके मुंह पर ऐसा तमांचा मारा कि उनकी 1 आंख ही फूट गई,इससे पहले हज़रत मलकुल मौत इसी तरह खुले आम रूह क़ब्ज़ करने को आया करते थे मगर इस वाक़िये के बाद पोशीदा तौर पर आने लगे खैर वो वापस खुदा की बारगाह में पहुंचे और अर्ज़ की कि ऐ मौला ये तेरा ऐसा बंदा है जो मरना ही नहीं चाहता और देख कि उसने मेरा क्या हाल किया है तब मौला उनकी आंख को पहले की तरह दुरुस्त कर देता है और फरमाता है कि जाओ और एक बैल साथ लेते जाओ और मेरे बन्दे से कहो कि इस पर हाथ रख दें जितने बाल उनके हाथ के नीचे आयेंगे उतने साल की ज़िन्दगी और बढ़ जायेगी,हज़रत इस्राईल अलैहिस्सलाम गये और इसी तरह बयान कर दिया तब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि फिर उसके बाद तो मलकुल मौत कहते हैं कि उसके बाद फिर मैं आऊंगा और आपको ले जाऊंगा तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि जब ले ही जाना है तो अभी ले चलो
📕 मिश्कात,सफह 466
📕 शराहुस्सुदूर,सफह 20
*ⓩ ये रिवायतें पढ़कर आपने जान लिया होगा कि मौला तआला ने अपने नबियों को कैसी कैसी ताक़त व क़ुदरत अता फरमाई है कि एक बन्दा जो ख्याल में भी नहीं ला सकता ये वो नुफ़ूसे क़ुदसिया कर गुजऱते हैं,आपके जलाल का ये आलम था कि आपके सर की टोपी या अमामा शरीफ अक्सर बेश्तर जल जाया करता था,खैर वाक़िये की तरफ चलते हैं*
जब आपको ये खबर हुई कि फिरऔन ने आपके क़त्ल का हुक्म जारी कर दिया है तो आप मदयन की तरफ निकल गये,मदयन से मुराद वो शहर है जहां हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम तशरीफ फरमा थे,ये मिस्र से 8 दिन की मुसाफत पर था और वहां फिरऔन की हुक्मरानी नहीं थी,आप इससे पहले मदयन ना तो कभी गए थे और न आपको उसका रास्ता ही पता था इसलिये मौला तआला ने हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम को आपके पास भेजा जो रास्ते की निशान देही करते,जब आप मदयन की सरहद में दाखिल हुए तो देखा कि एक कुंअे पर बहुत सारे आदमी जमा हैं और अपने जानवरों को पानी पिला रहे हैं वहीं दूर पर 2 औरतें भी अपने जानवरो को लिए खड़ी हैं,आप उनके पास गए और दूर खड़ी रहने का मामला दरयाफ्त किया तो वो अर्ज़ करती हैं कि हमारे बाप बूढ़े हैं और हम खुद अपने जानवरों को पानी पिलाने के लिए लाती हैं मगर हम मर्दों के साथ मिलकर खड़ी नहीं होना चाहती और ना हमारे अंदर उनकी जैसी ताक़त है कि 10 आदमियों से खींचा जाने वाला डोल हम खुद खींच सके इसलिए हम यहां दूर खड़ी हैं कि जब वो लोग अपने जानवरों को पानी पिलाकर चले जायेंगे तो जो पानी हौज़ में बच जायेगा वो हम अपने जानवरों को पिला देंगे
📕 खज़ाईनुल इर्फान,सफह 461
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 275
जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उन दोनों की बातें सुनी तो आप कुंअे पर गए और उनके साथ नर्मी बरतने को कहा तो वो लोग कहने लगे कि तुम्हें उनकी इतनी ही फिक्र है तो तुम खुद क्यों नहीं उनके जानवरों को पानी पिला देते और ये कहकर 10 आदमियों ने कुंअे को पत्थर से ढक दिया,जब वो चले गए तो आपने तन्हा उस पत्थर को हटा दिया और अकेले ही पानी का डोल खींचकर उनके जानवरों को सैराब कर दिया,जब वो लोग अपने जानवरों को लेकर चली गईं तो आप एक पेड़ के साये में बैठ गए और मौला से खाने के लिए दुआ की क्योंकि आप पिछले 7 दिनों से पत्ते ही खा रहे थे
*ⓩ सुब्हान अल्लाह एक तरफ नबी की बेटियों का किरदार मुलाहज़ा कीजिये कि मर्दों के बीच जाना उन्हें हरगिज़ मंज़ूर ना था इसलिए उनसे दूर खड़ी रहीं और दूसरी तरफ एक नबी की जिस्मानी ताक़त का अंदाजा लगाईये कि 7 दिन के भूखे है मगर अब भी 10 आदमियों से ज़्यादा ताक़त रखते हैं सुब्हान अल्लाह*
जब हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम की बेटियां रोज़ाना की तरह वक़्त से पहले अपने जानवरों को लेकर आ गईं तो आपने इतनी जल्दी आने का सबब पूछा तो वो कहती हैं कि आज हमें लोगों के बचे हुए पानी का इंतेज़ार नहीं करना पड़ा क्योंकि एक नेक और बहादुर शख्स ने हमारे साथ मेहरबानी की और हमारे जानवरों को पानी पिला दिया,तब हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम उनको फिर वापस भेजते हैं कि जाकर उस शख्स को बुला लायें वो जाती हैं और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम अलैहिस्सलाम से अर्ज़ करती हैं कि आपको हमारे बाप बुलाते हैं इसलिए कि आपको बदला दें तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम उनके साथ उनके घर की तरफ चल देते हैं
*ⓩ यहां एक ऐतराज़ दफअ करता चलुं कि अपनी जवान बेटियों को एक ग़ेर महरम को बुलाने के लिए भेजना क्या एक नबी की शान थी तो इसका जवाब ये है कि आपको वही के ज़रिये ये खबर हो चुकी थी कि अगर चे मेरी बेटियां तक़वा और तहारत गुज़ार हैं तो आने वाला भी अल्लाह का नबी है जो आगे चलकर ऐलाने नुबूवत करेगा और जो मेरा होने वाला दामाद भी है*
जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम उनके घर पहुंचते हैं तो सलाम कलाम के बाद आपके लिए खाना पेश किया जाता है जिस पर आप अल्लाह की पनाह चाहते हुए उसको खाने से इंकार करते हैं तो हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम इसकी वजह पूछते हैं तो आप कहते हैं कि हमारे खानदान में दीन को दुनिया के बदले नहीं बेचते मतलब ये कि हम किसी की मदद के बदले उजरत नहीं लेते क्योंकि आप यहां एक नबी की ज़ियारत को आये थे ना कि उजरत लेने तो हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ये उजरत नहीं बल्कि हमारे घर कोई भी आता है तो हम मेहमान को खाना खिलाये बगैर नहीं भेजते तब आपके इसरार पर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम खाने को तैयार होते हैं,और पूछने पर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम अपना पूरा वाकिया उनसे बयान कर देते हैं तब हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम कहते हैं कि खौफ न रखो यहां तुम्हे निजात है,ये भी खुदा की कुदरत थी कि इतनी बड़ी फौज रखने वाला फिरऔन खुद 8 दिन की मुसाफत पर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को ना पा सका,इधर खाने के बाद हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम की बेटियां जिन्होंने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की बहादुरी के साथ साथ आपका तक़वा भी मुलाहज़ा किया था कि बात करने में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की निगाह उठी तक ना थी और उनके साथ घर आने में भी आप आगे आगे चल रहे थे कि उन पर निगाह ना पड़ने पाये तो इसलिए उन्होंने अपने बाप को मशवरा दिया कि आप इनको नौकर रख लें
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 276-277
चुंकि उनके यहां नौकर रखने का रिवाज नहीं था बल्कि ये मश्वरा इसलिए भी था कि उनकी शरीयत के मुताबिक़ किसी को लड़की के मेहर के बदले अपने यहां रखकर उससे काम लेना होता था,लिहाज़ा ये उन लड़कियों का इंतेखाब भी था मगर अर्ज़ अपने बाप से ही किया
*ⓩ इससे आजकल की लड़कियां सबक हासिल करें जो अपने वालिदैन के खिलाफ और उनको ज़िन्दगी भर का रोग लगाकर एक सब्ज़ बाग़ दिखाने वाले लड़कों के साथ चली जाती हैं लेकिन ऐसी लड़कियां सौ फीसदी नाकाम ही रहती हैं और उन्हें उम्र भर सिवाये ज़िल्लत के कुछ हासिल नहीं होता,लिहाज़ा औलाद को अपने वालिदैन की मर्ज़ी अपने ऊपर हमेशा लाजिम रखनी चाहिये*
* हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम के कोई बेटा नहीं था इसलिए भी आप उन्हें अपने पास रखने को तैयार हो गए और आपने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से युं कहा जिसको क़ुर्आन में मौला तआला युं इरशाद फरमाता है
*कंज़ुल ईमान* - कहा मैं चाहता हूं कि अपनी दोनों बेटियों में से एक तुम्हे बियाह दूं इस महर पर कि तुम 8 बरस मेरी मुलाज़िमत करो,फिर अगर 10 बरस कर लो तो ये तुम्हारी तरफ से है,और मैं तुम्हे मशक़्क़त में डालना नहीं चाहता,क़रीब है इन शा अल्लाह तुम मुझे नेकों में पाओगे. मूसा ने कहा ये मेरे और आपके दर्मियान इक़रार हो चुका,मैं इन दोनों में से जो मियाद पूरी कर लूं तो मुझ पर कोई मुतालबा नहीं,और हमारे इस कहे पर अल्लाह का ज़िम्मा है
📕 पारा 19,सूरह क़सस,आयत 27-28
तब आपका निकाह हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम की एक बेटी से हो गया और महर के तौर पर आपने वहां रहकर उनकी खिदमत करनी शुरू कर दी मगर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की बीवी के नाम में काफी इख्तिलाफ है बअज़ ने सफूरा लिखा तो बअज़ ने सफुरिया बअज़ ने सफीरा और बअज़ ने सुफरा कहा है
📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 415
📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 188
📕 जलालैन,हाशिया 5,सफह 329
आपके ज़िम्मे पर उनकी बकरियों को चराना था जिनकी तादाद 12000 थी
📕 जलालैन,हाशिया 1,सफह 329
उन बकरियों को हकाने के लिए आपने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को एक असा दिया जो कि सागवान की लकड़ी का था ये असा हज़रत आदम अलैहिस्सलाम जन्नत से लाये थे और ये मुन्तक़िल होता हुआ हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम तक पहुंचा था जिसे आपने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को दे दिया बाद में यही असा आपका मोजज़ा बना,हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम 10 साल तक वहां रहें क्योंकि 8 साल तो आप पर वाजिब थे और 2 साल मुस्तहब और अल्लाह के नबी ने मुस्तहब पर अमल किया,जब 10 साल गुज़र गये तो आप हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम से इजाज़त लेकर अपनी अहलिया के साथ मिस्र की तरफ रवाना हुये ताकि अपनी वालिदा और अपने भाई से मुलाकात कर सकें,कुछ सामान और बकरियां लेकर खतरे के सबब आपने आम रास्ता छोड़कर जंगल का रास्ता इख़्तियार किया मगर हिकमते खुदावन्दी कि आप रास्ता भटक गए सारी बकरियां इधर उधर भाग गई और साज़ो सामान भी बिखर गया यहां तक कि पानी भी खत्म हो गया,सर्दियों का मौसम था और ये जुमा की रात थी और आपकी बीवी हामिला थीं और वहीं एक बेटे को जन्म दिया,आपको तूर की जानिब से कुछ रौशनी नज़र आई तो आप उनको वहीं ठहराकर उसकी तरफ गये कि कहीं से आग मिले तो लाऊं कि कुछ ठण्ड कम हो,जैसे जैसे आप उस रौशनी की जानिब बढ़े तो देखा कि एक आग आहिस्ता आहिस्ता जल रही है मगर जैसे ही पास पहुंचे तो उस आग ने शिद्दत इख़्तियार कर ली और सबसे अजीब मंज़र ये था कि आग पेड़ से निकल रही थी मगर उसके पत्ते हरे कि हरे ही थे
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 278-279
ⓩ आग की 4 किसमें होती है:
1. पहली वो जो खाती है पीती नहीं ये दुनिया की आग है
2. दूसरी वो जो खाती पीती दोनों है ये पेट की आग है
3. तीसरी वो जो ना खाती है ना पीती है ये वो आग है जिसे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने देखा
4. चौथी वो जो पीती है पर खाती नहीं और जिसका ज़िक्र क़ुर्आन मुक़द्दस में मौला तआला युं फरमाता है कि
*कंज़ुल ईमान* - जिसने तुम्हारे लिए हरे पेड़ में आग पैदा की जभी तुम उससे सुलगाते हो
📕 पारा 23,सूरह यासीन,आयत 80
अरब के इलाको में 2 दरख़्त पाये जाते हैं एक का नाम मर्ख और दूसरे का नाम अफार है जब उन दोनों की शाखों को तोड़कर रगड़ा जाये तो उसमे से आग निकलती है हालांकि ये तर रहती हैं यहां तक कि पानी टपकता रहता है,इसमें मौला तआला की क़ुदरत की अज़ीम निशानी है कि आग और पानी को एक ही जगह इकठ्ठा कर दिया है
ⓩ एक और लिहाज़ से भी आग की 4 किसमें बताई गयी है:
1. एक वो आग जिसमे रौशनी तो थी मगर जलाने की तासीर नहीं थी ये वो आग थी जिसे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने देखा
2. दूसरी वो जिसमे जलाने की ताक़त तो होगी मगर उसमे रौशनी नहीं ये जहन्नम की आग है
3. तीसरी वो जिसमे रौशनी भी है और जलाने की ताक़त भी ये दुनिया की आग है
4. चौथी वो कि जिसमे ना तो रौशनी है और ना जलाने की ताक़त ये उस पेड़ की आग है जो उसमें मौजूद तो है मगर जब तक उनको आपस में ना रगड़ा जाये ज़ाहिर नहीं होती
*ⓩ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम जितना उस दरख़्त के पास जाते वो उतना ही दूर हो जाता और जब रुक जाते तो वो भी क़रीब हो जाता आप उसको देखकर खयालों में गुम ही थे कि अचानक उस दरख़्त से आवाज़ आई जिसको क़ुर्आन में युं फरमाया गया*
*कंज़ुल ईमान* - फिर जब आग के पास ज़ाहिर हुआ निदा की गई मैदान के दाहिने किनारे से बरकत वाले मक़ाम में पेड़ से कि ऐ मूसा बेशक मैं ही हूं अल्लाह,रब सारे जहां का.और ये कि डाल दे अपना असा फिर जब मूसा ने उसे देखा लहराता हुआ गोया सांप है पीठ फेरकर चला और मुड़कर ना देखा,ऐ मूसा सामने आ और डर नहीं बेशक तुझे अमान है.अपना हाथ गिरेहबान में डाल निकलेगा सफेद चमकता बे ऐब,और अपना हाथ अपने सीने पर रखले खौफ दूर करने को तो ये 2 छतें हैं तेरे रब की तरफ फिरऔन और उसके दरबारियों की तरफ बे शक वो बे हुक्म हैं
📕 पारा 20,सूरह क़सस,आयत 30-32
*कंज़ुल ईमान* - फिर जब आग के पास आया निदा फरमाई गयी कि ऐ मूसा.बेशक मैं तेरा रब हूं तो तू अपने जूते उतार डाल,बेशक तू पाक जंगल तुवा में है.और मैंने तुझे पसंद किया अब कान लगाकर सुन जो तुझे वही होती है
📕 पारा 16,सूरह ताहा,आयत 11-13
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने आवाज़ सुनते ही पहचान लिया कि ये कलाम किसी मख्लूक़ का नहीं हो सकता हालांकि आवाज़ पेड़ से आ रही थी फिर भी आपने जान लिया कि ये मेरे रब की आवाज़ है ये आपका मोजज़ा था,आवाज़ के साथ साथ आपने फरिश्तों की तस्बीहात सुनी और आसमान तक नूर की झड़ी देखी तो अपनी आंखों पर हाथ रखकर बन्द का लिया और अर्ज़ की ऐ मेरे रब मैं तेरी खिदमत में हाज़िर हूं तब मौला तआला फरमाता है कि आप इस वक़्त पाक जंगल में हैं इसलिए अपने जूते उतार दें,फुक़्हा जूते उतारने की 3 वजह बयान करते हैं
1. पहली तो आयत से ज़ाहिर है कि आप पाक मक़ाम में थे रब की तजल्लियत का ज़हूर हो रहा था और आप अपने रब से हम कलाम थे लिहाज़ा ये अदब के खिलाफ था इसलिए हुक्म हुआ
2. दूसरा ये कि चुंकि मक़ाम बरकत वाला था इसलिये हुक्म दिया कि अपने जूते उतार दो ताकि तुम्हारे पैरों को इसकी बरकत हासिल हो जाये
3. तीसरी ये कि ख्वाब में जूता देखना औरत और औलाद से ताबीर रखता है मतलब ये हुआ कि आप अभी भी अपनी बीवी और बच्चे के ख्याल में हैं लिहाज़ा उसको तर्क करें और पूरी तरह से मेरी तरफ मुतवज्जह हो जायें
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 280-281
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने मौला तआला से 124000 बातें की और आपने उन्हें अपने पूरे जिस्म से समाअत किया गोया कि आपका पूरा जिस्म कान बन गया,उस वक़्त हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम भी वहीं हाज़िर थे मगर उन्होंने कुछ ना सुना
📕 नुज़हतुल मजालिस,6,सफह 93/117
मौला तआला ने सबसे पहले अपनी वहदानियत का ऐलान किया फिर नमाज़ का हुक्म दिया फिर क़यामत का ज़िक्र फरमाया और उसे छुपाने का हुक्म दिया फिर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से पूछा कि ये तुम्हारे दायें हाथ में क्या है तो आप अलैहिस्सलाम अर्ज़ करते हैं कि ये मेरा असा है हालांकि जवाब काफी था मगर आपने अपने रब से गुफ्तुगू को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मैं इससे सहारा लेता हूं और दरख्तों से पत्ते झाड़कर अपने जानवरों को खिलाता हूं और भी काम इससे लिया करता हूं,रब के पूछने में हिकमत ये थी कि अभी जब ये असा अज़दहा बनेगा तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को खौफ लाहिक़ ना हो कि उन्हें याद रहे कि ये अज़्दहा वही असा है जिसको अभी उन्होंने फेंका,फिर जब मौला तआला ने असा फेंकने का हुक्म दिया तो वो असा एक अज़दहा यानि बाहर बड़ा सांप बन गया और जब उसे पकड़ा तो वो फिर से असा बन गया ये वो मोजज़ा था जो आपको अता किया गया,इस असे में और भी बहुत सारी खूबियां थी मसलन
1. जब आप सफर में होते तो ये असा आपसे बातें करता चलता ताकि आपको तन्हाई का एहसास ना हो
2. जब कभी आपको भूख और प्यास लगती और खाना पानी पास ना होता तो ज़मीन पर असा मारने से एक दिन का खाना निकल आता और पानी भी
3. जब कभी कुंअे से पानी निकालने की ज़रूरत पड़ती तो यही असा इतना लम्बा हो जाता कि कुंअे की तह में जाकर और खुद डोल बनकर पानी निकाल लाता हालांकि उसकी लम्बाई आपके कद के बराबर यानि 10 हाथ थी
4. जब कभी आपको फल खाने की हाजत होती तो आप इसे ज़मीन में गाड़ देते तो पलक झपकते ही ये दरख़्त बन जाता जिसमें फल और फूल सब खिल जाते
5. रात की अंधेरी में इससे रोशनी फूट पड़ती
6. अगर कोई दुश्मन आ जाता तो यही असा उससे लड़ने लग जाता और ग़ालिब आता
📕 जलालैन,हाशिया 20,सफह 261
दूसरा मोजज़ा आपको मौला तआला ने ये अता किया कि आप अपना बायां हाथ बगल में दबाकर जब बाहर निकालते तो वो हाथ खूब चमकदार हो जाता जिससे रौशनी निकलती,फिर मौला तआला ने उनको फिरऔन के पास जाने और उसे तब्लीग़ करने का हुक्म दिया जिस पर आप अर्ज़ करते हैं कि मेरा सीना खोल दे और मेरा काम आसान कर और मेरी ज़बान की गिरह खोल ताकि वो मेरी बात को समझे और मेरे भाई को मेरा वज़ीर कर दे,मौला तआला ने आपकी सारी दुआयें क़ुबूल फरमाई और ज़बान की लुक़नत को दूर करके हज़रत हारून अलैहिस्सलाम को आपका वज़ीर यानि साथी बना दिया और आपको हुक्म दिया कि फिरऔन से नर्म बात करना ताकि वो तुम्हारी बात को समझे और ये ताक़ीद इसलिए की क्योंकि मौला तआला को आपके जलाल का इल्म था,फिर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम वहां से अपने घर लौट आये सबसे मुलाकात की और हज़रत हारून अलैहिस्सलाम को साथ लेकर फिरऔन के पास पहुंचे और उसे उसके खुदाई दावे से बाज़ आने और एक अल्लाह पर ईमान लाने को कहा जिस पर वो चौंका और बोला कि "क्या मेरा भी कोई रब है नहीं बल्कि मैं ही सब मिस्रियों का रब हूं मेरा कोई रब नहीं हो सकता ज़रा अपने रब की हक़ीक़त तो बताओ तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने वो जवाब दिया कि आपने समंदर को कूज़े में बन्द कर दिया,फरमाया
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 284-287
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि मेरा परवरदिगार वो है जिसने कायनात की हर चीज़ को इस तरह पैदा किया है कि वो अपना वज़ीफये हयात और मक़सदे तखलीक़ बहुस्नो खूबी अदा कर सके फिर उसे इतनी सूझ बूझ भी अता कर दी कि वो सही तौर पर अपनी क़ुव्वतो से काम ले सके,परिंदों को पर बख्शे और फिर उन्हें उड़ने का सलीका भी खुद ही सिखाया,मछली को ऐसा जिस्म दिया कि वो गहरे दरियाओं और खतरनाक समन्दरों में आसानी से तैर सके,गोश्त खोर दरिन्दो के पंजे और दांत ऐसे बनाये कि वो अपना शिकार पकड़ सकें,ऊँट की कामत को बुलंद किया तो उसकी गर्दन भी इतनी लम्बी बनाई ताकि वो ऊंचे दरख्तों से पत्ते भी खा सके और ज़मीन का पानी भी पी सके,सहरा में जहां पानी नहीं मिलता वहां ऐसे दरख़्त उगाये जिनकी जड़ें इतनी लम्बी कर दी कि वो ज़मीन के नीचे के पानी से अपनी खुराक हासिल कर सकें,ज़मीन के हर हिस्से में पैदा होने वाले तमाम हैवानात को वहां के मौसम के हिसाब से लिबास भी दिया और रिज़्क़ भी,और फिर इंसान को दी हुई सलाहियतों का क्या कहना गर्ज़ कि हर चीज़ को ऐसी शक्लो सूरत बख्शी कि फायदे को हासिल करना और क़ुव्वतों से काम लेना सब कुछ सिखा दिया,मशरिक़ से सूरज का निकलना मग़रिब में ग़ुरूब होना,हर मौसम का अपने वक़्त पर आना बारिश का बरसना हवाओं का चलना ये सब उसके क़ब्ज़ये क़ुदरत में है और वही अल्लाह ज़मीनों आसमान के दर्मियान जो कुछ है सबका खालिक़ व मालिक है,जब फिरऔन ने आपकी ये दलील सुनी तो लाजवाब होकर रह गया और आप पर ताना देते हुए बोला कि क्या मैंने तुम्हे बचपन में नहीं पाला और तुमने कई बरस हमारे यहां नहीं गुज़ारे और क्या तुम ना शुक्रे नहीं हो मआज़ अल्लाह,इस पर आप अलैहिस्सलाम फरमाते है कि तब मुझे खबर ना थी और जब खबर हुई तो मैंने तेरा घर छोड़ दिया और किस बात का एहसान मुझ पर जतला रहा है जबकि तूने खुद ही तमाम बनी इस्राईलियों को क़ैद करके गुलाम बना रखा है और तूने वही माल मुझ पर खर्च किया जो तूने जबरन मेरी क़ौम से छीना और अगर कुछ एहसान होता भी तो भी तेरे ज़ुल्मों ने तेरे सारे ऐहसान को तबाहो बर्बाद कर दिया होता,अब जब फिरऔन ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से खरी खरी सुनी तो कहने लगा कि अगर तुमने मेरे सिवा किसी और को खुदा ठहराया तो मैं तुम्हे क़ैद कर दूंगा इस पर आप अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि मैं खुदा की तरफ से तेरे लिए निशानी लाया हूं अगर तू कहे तो मैं अपना मोजज़ा ज़ाहिर करूं उसके हां कहने पर आपने अपना असा ज़मीन पर डाल दिया देखते ही देखते वो एक बड़ा अज़्दहा बन गया और अपनी दुम पर खड़ा हो गया जिसकी बुलंदी 1 मील तक हो गई अपने जबड़े को खोल दिया उसके दोनों जबड़ों के दर्मियान 120 फिट का फासला था नीचे वाले हिस्से को ज़मीन पर रखा और ऊपर वाले को महल की दीवार और छत तक पहुंचा दिया यानि पूरे महल को अपने जबड़े में ले लिया जब फिरऔन ने ये देखा तो मारे डरके वहां से हवा छोड़ता हुआ भागा और उसी भगदड़ में उसके 25000 आदमी दबकर मर गये,फिरऔन बोला कि इसे पकड़ो मैं तुम पर ईमान ले आऊंगा जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे पकड़ा तो वो वापस आपका असा बन गया,तब फिरऔन और उसके दरबारी बोले कि ये तो जादू है तो अब इनका मुक़ाबला अपने बड़े जादूगरों से कराना होगा आप अलैहिस्सलाम इस पर भी राज़ी हो गये
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 287-290
* ये मुक़ाबला शहर अस्कंदारिया में हुआ और ये दिन सनीचर मुहर्रम की दसवीं थी
📕 खज़ाईनुल इरफान,सफह
* कितने जादूगर आपसे मुक़ाबले में आये थे उसमे काफी इख्तिलाफ है मगर मशहूर 80000 है
📕 तफसीरे सावी,जिल्द 3,सफह 79
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और वो तमाम जादूगर एक बड़े मैदान में जमा हो गए और चारों तरफ से खलक़त उन्हें देखने के लिए इकठ्ठा हो गयी,पहले तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उनको तब्लीग की वो इससे बाज़ रहे मगर जब वो ना माने तो मुकाबला शुरू हुआ,जादूगर अपने साथ 300 ऊंटो पर रस्सियां और लाठियां लादकर लाये थे वो सब मैदान में लाई गयी तो जादुगरों ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से कहा कि पहले आप असा डालेंगे या हम अपनी लाठियां और रस्सियां डालें तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने पहले उनको ऐसा करने की इजाज़त दी,उन लोगों ने जब अपनी रस्सियां और लाठियां मैदान में छोड़ी तो सब के सब सांप बन गए और पूरा मैदान सांपों से भर गया लोग डर के मारे बद हवास हो गए तब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अपना असा ज़मीन पर डाल दिया जो एक बड़ा अज़्दहा बन गया और देखते ही देखते सारे सांपों को एक पल में निगल गया और जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे पकड़ा वो पहले की तरह ही एक लाठी यानि असा बन गया,जादूगर हैरान रह गए और फौरन समझ गये कि ये जादू नहीं था बल्कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम जो कुछ कह रहे हैं वो हक़ है और सबके सब अल्लाह पर ईमान ले आये और वहीं सज्दे में झुक गये,उल्माये किराम फरमाते हैं कि जादूगर आये तो थे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से लड़ने के लिए मगर वो ताज़ीम और अदब वाले थे जैसा कि उन्होंने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से पहले इजाज़त मांगी और तब मुक़ाबले में आये एक नबी का यही अदब करना मौला तआला को पसंद आया और उन सबको ईमान जैसी नेअमत से नवाज़ दिया,इधर जब फिरऔन ने ये मंज़र देखा तो मारे गज़ब के उन सबको धमकी देते हुए बोला कि अगर तुम लोग इससे बाज़ नहीं आये तो मैं तुम्हारे हाथ पैर कटवाकर तुमको सूली पर चढ़वा दूंगा,मगर उसकी धमकी का भी उन नव मुस्लिमो पर कोई असर ना हुआ और वो बोले कि हम अपने ईमान से फिरने वाले नहीं हैं तुझे जो करना है करले तो फिरऔन मलऊन ने उन सबको शहीद करवा दिया,मगर डर के मारे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को कुछ ना कहा और उन्हें जाने दिया कि कहीं उनका असा अज़्दहा बनकर उसको ना निगल जाये पर जब उसके दरबारियों ने शिकायत की तो वो बनी इस्राईल पर ज़ुल्म ढाने लगा और उनके बच्चो और मर्दो को क़त्ल करने लगा और औरतों को छोड़ देता ताकि उसकी सल्तनत को खतरा ना रहे,जब उसका ज़ुल्म हद्द से आगे बढ़ गया तो बनी इस्राईलियों ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से दुआ के लिए कहा कि उनको निजात मिले तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम फिरऔन के ज़ुल्म से बचने के लिए उस पर अज़ाब की दुआ फरमाते हैं जो कि क़ुबूल होती है
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 291-306
*कंज़ुल ईमान* - तो भेजा हमने उन पर तूफान और टिड्डी और घुन (किलनी,जूंवे) और मेंढक और खून जुदा जुदा निशानियां तो उन्होंने तकब्बुर किया और वो मुजरिम कौम थी
📕 पारा 8,सूरह ऐराफ,आयत 133
तूफान: फिरऔनियों पर पहला अज़ाब ये आया कि अब्र छा गया चारों तरह अंधेरा ही अंधेरा हो गया इस क़दर कसरत से बारिश हुई कि तमाम फिरऔनियों की गर्दनो तक पानी पहुंच गया,जो उसमे बैठता डूब जाता हत्ता कि कुछ ना कर सकता था युंही 7 दिन गुज़र गया और खुदा की क़ुदरत देखिये कि अगल बगल जो मकान बनी इस्राइलियों के होते उनमे पानी का नामो निशान तक ना था,जब 7 दिन गुज़र गए तो सब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे और इससे निजात के लिए सिफारिश की और कहा कि ये मुसीबत टल जायेगी तो ज़रूर हम आप पर ईमान ले आयेंगे तब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उनके लिए दुआ फरमाई और बारिश रुक गयी,बारिश के सबब ज़मीन सर सब्ज़ हो गयी खेतियां अच्छी हुई पेड़ों में खूब फल लग गये तो फिरऔनी कहने लगे कि ये पानी अज़ाब नहीं बल्कि नेअमत था लिहाज़ा हमको हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास जाने की कोई ज़रूरत नहीं,इसी तरह खैरियत से एक महीना गुज़रा फिर दूसरा अज़ाब आया
टिड्डी: उन पर दूसरा अज़ाब ये आया कि अनगिनत टिड्डियों का झुण्ड आसमान से उतरा और फिरऔनियों की खेती दरख़्त फल सब्ज़ी घरों के दरवाज़े छतें सब खा गई,फिरऔनी फिर भागते हुए हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे और इस अज़ाब के टल जाने की इल्तिजा करने लगे और कहा कि हम ईमान ले आयेंगे,आपने दुआ फरमाई अज़ाब तो टल गया मगर फिरऔनी अपने हद पर क़ायम ना रहे और ईमान ना लाये
जूं और घुन: फिर एक महीना आराम से गुज़रा अबकी बार उनके सरो में इस क़दर जूं पड़ गई कि उनके कपड़ो में घुसकर जिस्म तक को काटने लगी और इतनी तादाद में थी कि बाल पलक भंव यहां तक कि जिस्म को भी काटकर दाग के जैसा कर दिया और ऊपर से घुन का अज़ाब ये कि अगर कोई फिरऔनी 10 बोरी गेहूं पिसाने के लिए जाता तो मुश्किल से 3 किलो ही आटा ला पाता,जब फिरऔनियों से बर्दाश्त ना हुआ तो फिर से हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे और वही सब कहा आपने फिर से उनके लिए दुआ की मगर इस बार भी हाल वही का वही रहा,फिर महीना गुज़रा और फिर अज़ाब आया
मेंढक: इस बार मेंढक का अज़ाब आया कि फिरऔनी जहां बैठते वहां मेंढक उनको घेर लेते उनकी गोद में चढ़ जाते,बात करने के लिए मुंह खोलते तो मुंह में घुस जाते,चूल्हा हांड़ी प्लेट यहां तक कि कोई ऐसा बर्तन नहीं था जिसमे मेंढक ना घुसे हों जब बिस्तर पर सोने जाते तो मेंढक ऊपर सवार होते,फिर सब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे और रोते हुए अर्ज़ की हज़रत ने दुआ फरमाई अज़ाब टल गया मगर फिरऔनी नहीं माने
खून: अबकी बार तमाम कुंओ का पानी नदी नहर झील चश्मा यहां तक कि दरियाये नील तक का पानी खून हो गया,जब प्यास से परेशान हुए तो बनी इस्राईल के बर्तनों में पानी पीना चाहा तो जब तक बनी इस्राईल के हाथ में रहता तो पानी रहता और जैसे ही फिरऔनी के हाथ में आता खून हो जाता,जब ये तरकीब न चली तो अब फिरऔनियों ने बनी इस्राईलियों से कहा कि तुम पानी मुंह में लेकर हमारे मुंह में कुल्ली कर दो खुदा की शान कि पानी जब तक बनी इस्राइलियों के मुंह में रहता तो पानी रहता और जैसे ही फिरऔनियों के मुंह में जाता तो खून बन जाता,फिर ये सोचा कि पेड़ की टहनियां चूस कर प्यास बुझाई जाये तो जो टहनी तोड़ते उसमे से खून निकलता जब हालात बद से बदतर हो गए तो फिर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे और इससे निजात की दरख्वास्त की,हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने दुआ फरमाई अज़ाब दूर हो गया मगर बद बख़्तो की समझ में कुछ ना आया और वो उसी पर अड़े रहे
📕 रुहुल बयान,जिल्द 1,सफह 768
ⓩ जब पहली बार मैंने ये रिवायत पढ़ी तो मुझे बहुत तअज्जुब हुआ कि किस क़दर बद बख्त लोग थे कि आंख से देखने के बाद भी ईमान नहीं लाते थे और अपने कुफ़्र पर क़ायम रहे मगर आज जब कुछ बातिल फिरकों को देखता हूं जो दाढ़ी टोपी झुब्बा पहने नाम निहाद मुसलमान बने फिर रहे हैं और अंदर से काफिर से बदतर हैं तो मुझे उन कमबख़्तो की भी मेंटालिटी समझ में आ गई,ये रिवायत मौला तआला के बेपनाह रहम का भी एक नमूना है कि बार बार नाफरमानी करने पर भी बन्दों को मौक़ा देता रहता है कि अब तौबा कर लें अब तौबा कर लें और जब बन्दे किसी तरह नहीं मानते तब उनकी गिरफ़्त फरमाता है,खैर जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने जान लिया कि ये किसी भी तरह ईमान नहीं लायेंगे तो उनकी हलाक़त की दुआ फरमा दी,जिसे मौला तआला ने युं इरशाद फरमाया*
*कंज़ुल ईमान* - और मूसा ने अर्ज़ की ..... ऐ रब हमारे उनके माल बर्बाद करदे और उनके दिल सख्त करदे कि ईमान ना लायें जब तक दर्दनाक अज़ाब ना देख लें
📕 पारा 11,सूरह यूनुस,आयत 88
जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उनकी हलाकत की दुआ फरमा दी तो मौला तआला का हुक्म आया कि ऐ नबी रात ही रात अपने चाहने वालो को लेकर यहां से निकल पड़ो क्योंकि अब फिरऔनियों पर अज़ाब आने वाला है,चुनांचे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने तमाम बनी इस्राइलियों को इकठ्ठा किया जिनमे मर्द औरतें बूढ़े जवान बच्चे सब ही थे और उनकी तादाद 6 लाख थी ये सब वहां से निकल गए,मगर अजीब इत्तेफाक ये हुआ कि वो लोग रास्ता भटक गए तब एक बनी इस्राईली बोला कि इसकी वजह ये है कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का जस्दे मुबारक जिस ताबूत में है वो यहीं मिस्र में है और उनकी वसीयत थी कि जब भी तुम मिस्र से निकलो तो मेरा ताबूत लेते जाना,हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उनके ताबूत का पता पूछा तो कहने लगा कि उसका पता तो सिर्फ एक बूढी औरत को है और वही बता सकती है जब उसको लाया गया तो उसने पता बताने की एक शर्त रखी आप अलैहिस्सलाम ने शर्त पूछी तो कहने लगी कि मैं जन्नत में आपके साथ रहना चाहती हूं,आप सोच में ही थे कि वही का नुज़ूल हुआ और मौला तआला फरमाता है कि इसकी बात मान लो तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने हां फरमाया और उसने ताबूत का पता बता दिया जिसे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने खुद निकाला और खुद ही लेकर चले जिसकी बदौलत रात की तारीकी रौशनी में बदल गयी और उन्हें रास्ता भी मिल गया
उधर सुबह होने पर जब फिरऔन को उनके ना होने का इल्म हुआ तो उसने तमाम फिरऔनिओं को जमा किया और उनके पीछे दरिया-ए कुलज़ुम पर पहुंच गया,जब बनी इस्राईलियों ने देखा तो वो डर गए और अपने मारे जाने का ग़ुमान किया तब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने दरिया पर अपना असा मारा जिसे क़ुर्आन ने युं फरमाया
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 310
*कंज़ुल ईमान* - तो हमने मूसा को वही फरमाई कि दरिया पर अपना असा मार,तो जब ही दरिया फट गया तो हर हिस्सा हो गया जैसे पहाड़
📕 पारा 19,सूरह शोअरा,आयत 63
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का दरिया में असा मारते ही 12 रास्ते बन गए क्योंकि बनी इस्राईल 12 क़बीले थे और हर कबीला दूसरे के साथ सफर नहीं करता था,उन 12 रास्तों के बीच पानी दीवार बनकर खड़ा हो गया और फौरन ही सूरज ने ज़मीन को खुश्क कर दिया,जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने लोगों को रास्ते पर चलने को कहा तो लोग डरे कि कहीं डूब न जायें तो सबसे पहले हज़रत यूशअ अलैहिस्सलाम ने पानी में अपना घोड़ा डाला उसके पीछे हज़रत हारून अलैहिस्सलाम फिर तमाम बनी इस्राईली और सबसे आखिर में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम दाखिल हुये,कुछ दूर चलने के बाद लोगों ने कहा कि क्या पता कि हमारे भाई ज़िंदा भी हैं या डूब गए तो मौला ने पानी की दीवारों में खिड़कियां बना दी जिससे कि वो एक दूसरे को देखते और बातें करते चलते
📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 420-421
पूरी रूये ज़मीन पर यही ऐसा हिस्सा है जहां कभी सूरज की रोशनी नहीं पहुंची सिवाये एक बार के यानि जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने दरिया पर असा मारा तो ज़मीन खुल गयी और सूरज की किरण पहुंची उसके बाद पानी मिल गया और दरिया पहले की तरह हो गया
📕 हयातुल हैवान,जिल्द 2,सफह 649
*ⓩ जब फिरऔन ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और उनके मानने वालों को दरिया के बीच बने रास्ते से गुज़रते हुए देखा तो खुद भी अपनी फौज लेकर उनके पीछे उसी रास्ते पर चल पड़ा बनी इस्राइल तो पार हो गए और पानी पहले की तरह मिल गया जिसमें फिरऔन और उसका पूरा लश्कर डूब कर मर गया,मरने से पहले उसने 3 मर्तबा कहा कि मैं ईमान लाया मगर उसका ईमान क़ुबूल ना हुआ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुर्आन मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है*
*कंज़ुल ईमान* - और हम बनी इस्राईल को दरिया पार ले गए तो फिरऔन और उसके लश्करों ने उनका पीछा किया सरकशी और ज़ुल्म से यहां तक कि जब उसे डूबने ने आ लिया,बोला मैं ईमान लाया कि कोई सच्चा मअबूद नहीं सिवाये उसके जिस पर बनी इस्राईल ईमान लाये और मैं मुसलमान हूं.क्या अब,और पहले तो नाफरमान रहा और तू फसादी था.आज हम तेरी लाश को उतरा देंगे ताकि तू अपने पिछलों के लिए निशानी हो
📕 पारा 11,सूरह यूनुस,आयत 90-92
* एक मर्तबा हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम फिरऔन के पास इन्सानी सूरत में पहुंचे और उससे पूछा कि तेरा क्या कहना है उस शख्स के बारे में जो अपने मालिक का दिया खाता हो उसका दिया पहनता हो उसके दिए रिज़्क़ पर ज़िंदा हो मगर उससे नाफरमानी करे और खुद मालिक बन बैठे तो फिरऔन बोला कि ऐसे शख्स को तो दरिया में डुबो कर मार देना चाहिये,चुनांचे जब फिरऔन गर्क होने लगा तो हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम उसका फतवा लेकर उसके पास पहुंचे और दिखाया जिसे उसने पहचान लिया
📕 खज़ाईनुल इरफान,सफह 311
*ⓩ और जैसा कि मौला तआला ने फरमाया कि वो फिरऔन की लाश को उतरा देगा तो दुनिया ने देखा कि फिरऔन की लाश सालों बाद पानी से बाहर आई और आज भी मिस्र के अजायब घर में मौजूद है और बाद वालों के लिए इबरत है,यहां पर दो बातें हैं जिनका ज़िक्र करता चलूं पहला ये कि जब फिरऔन ने कल्मा पढ़ा तो उसका ईमान क्यों ना क़ुबूल हुआ और दूसरा ये कि उसने खुदाई का दावा किया तो काफिर हुआ मगर ऐसे ही कुछ कलिमात बअज़ बुज़ुर्गाने दीन से भी मन्क़ूल है जबकि उन्हें अल्लाह का वली ही माना जाता है ऐसा क्यों,दोनों के जवाब हाज़िर हैं*
*जवाब* - पहला ये कि मरते वक़्त यानि हालते नज़आ में काफिर की तौबा इसलिए क़ुबूल नहीं होती क्योंकि वो अज़ाब को देख लेता है और देखकर ईमान लाना मोअतबर नहीं हां अगर हालते नज़आ से पहले कोई काफिर ईमान लाता है तो बिला शुबह मुसलमान कहलायेगा और इन शा अल्लाह बख्शा जायेगा,तो यहां फिरऔन ने भी अज़ाब को देख लिया था और तब उसने मुसलमान होने का ऐलान किया लिहाज़ा उसका ईमान लाना काम ना आया और वो कुफ्र पर ही मरा,जबकि एक मुसलमान जो कि ज़िन्दगी भर गुनाहों में मुब्तिला रहा और आखिरी वक़्त में भी अगर तौबा करता है तो यकीनन उसकी तौबा क़ुबूल होगी इन शा अल्लाह और ये खुसूसियत उसकी नहीं बल्कि ये हमारे नबी का सदक़ा है,एक मसअले की और वज़ाहत करता चलूं कि मआज़ अल्लाह अगर हालते नज़आ में किसी मुसलमान से कलिमये कुफ्र निकल जाये तो क्या हुक्म लगेगा तो इसके जवाब में हुज़ूर ताजुश्शरिया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मुत्तफिक़ यही है कि मुसलमान से अगर वक़्ते नज़आ कोई कलिमये कुफ्र निकल जाए तो वो क़ाबिले दर गुज़र है क्योंकि उस वक़्त उसकी अक़्ल ज़ायल हो चुकी होती है लिहाज़ा उस पर मोमिन के ही एहकाम नाफिज़ होंगे
📕 फतावा ताजुश्शरिया,सफह 98
*ⓩ अल्लाह ना करे कि किसी मुसलमान के साथ ऐसा हो इसीलिए उल्मा मरते हुए आदमी से कल्मा पढ़ने के लिए कहने को मना करते हैं क्योंकि मुमकिन है कि वो हालते नज़आ में हो और उसकी बात का इन्कार कर बैठे जो कि बुरा होगा इसकी बजाये उल्मा ये हुक्म देते हैं कि उसके पास बैठकर खुद बा आवाज़े बुलंद कल्मा पढ़ना शुरू करदे ताकि सुन कर वो भी पढ़ सके और ना पढ़ सकेगा तो ये उसकी बद अमली है मगर इंकार करने से तो बचा रहेगा*
*जवाब* - दूसरा ये कि हज़रत मन्सूर हल्लाज व हज़रत बायज़ीद बुस्तामी और भी औलिया गुज़रे हैं जिनकी ज़बान से कुछ ऐसे कलिमात सादिर हुए हैं जो आम इंसान कहे तो हुक्मे कुफ्र लगेगा मगर उन पर नहीं लगा उसकी वजह ये है कि वो अपनी अना को यानि अपनी ज़ात को पूरी तरह से लिल्लाहियत में गुम कर चुके थे,सरकारे आलाहज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि काफिरों ने खुद कहा और वलियों ने खुद ना कहा उसने कहा जो खुद ये कहने के लायक़ है और आवाज़ उन्ही से मसमूअ हुई जैसा कि हज़रात मूसा अलैहिस्सलाम ने पेड़ से सुना कि मैं तेरा रब हूं तो क्या दरख़्त ने कहा था नहीं नहीं बल्कि अल्लाह ने कहा युंही वो हज़रात भी उस वक़्त महज़ शजरे मूसा थे और कुछ नहीं
📕 अहकामे शरीयत,हिस्सा 2,सफह 159
बनी इस्राईल की नाशुक्री : होना तो ये चाहिये था की जिस अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उन्हें इनआमो इकराम से नवाज़ा और फिरऔन जैसे ज़ालिम बादशाह से निजात दी उसका शुक्र अदा करते बजाये इसके वो जब दरिया के पार हुए तो एक क़ौम को देखा जो गाय की पूजा कर रही थी तो कहने लगे कि ऐ मूसा अलैहिस्सलाम हमें भी एक ऐसा ही खुदा बना दो मआज़ अल्लाह,हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को जलाल आया और बोले कि तुम तो जाहिल लोग हो इबादत तो आला दर्जे की तअज़ीम का नाम है और ये उसी की हो सकती है जिसकी सबसे बड़ी शान हो और ऐसा सिर्फ अल्लाह है उसके सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं,उस वक़्त तो वो खामोश रहे मगर बुतपरस्ती की तरफ उनका झुकाव देखकर उन्हीं की कौम का एक बदकार शख्स सामरी ने मौक़ा पाकर उनको बुत्परस्ती में लगा दिया
कोहे तूर: हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने बनी इस्राईल को पहले ही बता दिया था कि पार हो जाने के बाद मैं तुम्हारे लिए एक किताब लाऊंगा जिसमे हलाल व हराम का ज़िक्र होगा,आप उनसे 30 दिन का वादा करके गए और अपने पीछे अपने बड़े भाई हज़रत हारून अलैहिस्सलाम को अपना जांनशीन मुंतखिब कर गये,आप जब उस जंगल में पहुंचे तो मौला ने आपको ज़ी क़ादा के 30 रोज़े रखने को कहा आपने वो रखे मगर 30 दिनों के बाद आपने ये सोचा कि मेरे मुंह से शायद बू आने लगी होगी इस वजह से आपने मिस्वाक करली तो मौला तआला फरमाता है कि ऐ मूसा मेरे नज़दीक रोज़ेदार के मुंह की बू मुश्क से भी ज़्यादा बेहतर है लिहाज़ा अब 10 रोज़े और रखो उन्होंने ज़िल हज के 10 रोज़े और रखे,उसके बाद आपने तहारत हासिल की पाकीज़ा लिबास पहना और कोहे तूर पर हाज़िर हुए,मौला तआला ने एक बादल नाज़िल फरमाया जिसने पहाड़ को हर तरफ से घेर लिया चरिंदो परिन्द की तो क्या बात आपके साथ रहने वाले फरिश्ते भी वहां से हटा दिए गए और शैतानों को भी दूर कर दिया गया,आपके लिए आसमान को खोल दिया गया आपने तमाम फरिश्तो को मुशाहिदा किया अर्शे मुअल्ला देखा लौहे महफूज़ देखा और रब तआला ने आपसे कलाम फरमाया अगर चे हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम उस वक़्त आपके साथ थे मगर वो कुछ भी सुन ना सके,हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को रब के कलाम से ऐसी लज़्ज़त हुई कि आपने मौला से फरमाया कि ऐ मौला मैं तुझे देखना चाहता हूं तो मौला तआला फरमाता है कि ऐ मूसा तुम मुझे नहीं देख सकते मगर फरमाया कि उस पहाड़ को देखते रहो अगर वो मेरे जलाल की ताब ला सका तो ज़रूर मुझे देख सकोगे और मौला ने पहाड़ पर अपनी तजल्ली नाज़िल फरमाई और पहाड़ रेज़ा रेज़ा हो गया और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम बेहोश हो गये
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 311-313
*फर्क़ मतलूबो तालिब का देखे कोई*
*किस्सये तूरो मेअराज समझे कोई*
*कोई बेहोश जलवों में ग़ुम है कोई*
*किसको देखा ये मूसा से पूछे कोई*
*आंख वालों की हिम्मत पे लाखों सलाम*
*फुक़्हा* - मौला तआला ने कोहे तूर पर अपनी जो तजल्ली डाली थी वो सूई के नाके का करोड़वा हिस्सा था और पहाड़ उसकी भी ताब ना ला सका और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम भी बेहोश हो गए,मगर अब आईये अपने आक़ा व मौला जनाब मुस्तफा जाने रहमत सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में आपने सफरे मेअराज में अपने रब की तजल्ली ही ना देखी बल्कि वो ज़ात ही देख ली जिसे आपके सिवा दुनिया में कोई ना देख सका
📕 जामेउस सिफ्फात,सफह 90
*ⓩ और उस देखने को मौला तआला क़ुर्आन मुक़द्दस में युं बयान फरमाता है कि*
*कंज़ुल ईमान* - (मुझे देखने में) आंख ना किसी तरफ फिरी और ना हद से बढ़ी
📕 पारा 27,सूरह नज्म,आयत 17
*सामरी* - इसके नाम में इख्तिलाफ है बअज़ ने मूसा बिन ज़फर लिखा बअज़ ने मीहा तो बअज़ ने हारुन बताया,इसकी पैदाईश ज़िना से हुई थी जब इसके पैदा होने का वक़्त आया तो इसकी मां पहाड़ की खोह में इसे जनकर वहां से चली आई,मौला तआला ने हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम को भेजा कि इसकी परवरिश करें आप इसको अपनी 3 उंगलियां चटाते थे एक से दूध आता दूसरी से शहद और तीसरी से घी,बड़ा होकर ये एक सुनार बना और इसमें इसको काफी महारत हासिल थी वैसे तो ये बनी इस्राइलियों के साथ था मगर मुनाफिक़ था,जब बनी इस्राईल दरिया के पार जाने को चले थे तो इसने एक घुड़सवार को देखा कि जहां उसके घोड़े की टाप पड़ती थी वहीं फौरन सब्ज़ा उग जाता था ये घुड़सवार हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम थे इसने उनके घोड़े की टाप की मिटटी वहां से उठा ली थी,चुंकि ये बनी इस्राइलियों का नफ़्स जान चुका था कि उनको बुत परस्ती पसंद आ गयी है लिहाज़ा इसने उनके सारे ज़ेवरात मांग लिये ताकि उसका एक सोने का बुत बना सके,और इधर उसको एक अच्छा मौक़ा भी मिल गया क्योंकि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम अपनी क़ौम से 30 दिन का वादा करके गए थे मगर मौला तआला ने उन्हें 10 दिन और रुकने को कहा तो जब 30 दिनों के बाद आप नहीं आये तो सामरी ने कौम को बरगलाना शरू किया और बोला कि वो भी तुम्हारी ही तरह एक इंसान हैं तो मैं तुम्हारे लिए वो करता हूं जो तुम चाहते हो यानि तुम्हारे लिए एक बुत बना देता हूं जिसकी तुम पूजा करना और उसने एक सोने का बछड़ा बना दिया जिसमें हीरे मोती जड़ दिए और उसके मुंह में वो ख़ाक डाल दी जिससे कि वो जुम्बिश करने लगा,बनी इस्राईल के 6 लाख लोगों में से सिर्फ 12000 ही ऐसे थे जिन्होंने बछड़े की पूजा नहीं की वरना सबके सब बुत परस्ती में लग गये
📕 जलालैन,हाशिया 19,सफह 265
📕 तफ़्सीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 429
जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम तौरैत शरीफ लेकर वापस आये तो अपनी क़ौम को बुत परस्ती करते देख मारे जलाल के अपने भाई हज़रत हारुन अलैहिस्सलाम पर सख्त गुस्सा हुए और उनकी दाढ़ी पकड़ कर खींचने लगे और इसी असना में तौरैत शरीफ जिन तख्तियों में था वो गिर गयी और सब गायब हो गयी,जब हज़रत हारून अलैहिस्सलाम ने अपनी बराअत ज़ाहिर की तब आप सामरी की तरफ मुखातिब हुए और उसे बद्दुआ दी कि अब तू दुनिया में किसी से भी मिल नहीं सकेगा और जिससे भी मिलेगा तो दोनों को शदीद बुखार चढ़ जायेगा उसके बाद अगर कोई भी सामरी को छू लेता या मुसाफा कर लेता तो दोनों बुखार में मुब्तिला हो जाते उसका असर ये हुआ कि लोगों ने उससे मिलना जुलना छोड़ दिया उसे बस्ती से भी दूर कर दिया और वो जानवरों की तरह जंगल जंगल भटकता फिरता,फिर उसके बाद आप अपनी क़ौम की तरफ पलटे और उनसे तौबा का मुतालबा किया इस तरह कि हर शख्स एक दूसरे को तलवार से क़त्ल करे उधर क़ौम भी अपने किये पर शर्मिंदा थी लिहाज़ा उसने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का हुक्म माना और पूरी क़ौम ने एक दूसरे के सामने खड़े होकर अपनी तौबा की मौला तआला ने उन सबकी तौबा क़ुबूल की और क़ातिल व मक़तूल दोनों को शहादत का दर्जा मिला,उसके बाद हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उस बछड़े को ज़बह करके जला दिया और उसकी राख को पानी में बहा दिया ये हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम की उस खाक़ की तासीर थी कि सोने को बछड़े को भी हड्डी और गोश्त में बदल कर जानदार बना दिया था
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 315-316
जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम दोबारा तौरैत शरीफ लेने के लिए तूर की तरफ जाने लगे तो आपकी कौम के कुछ अफ़राद बोले कि आप हमें भी अपने साथ लेते चले ताकि हम भी अल्लाह का कलाम सुन सके और हमारी बख्शिश हो चुकी है ये भी मालूम हो जाए तो आपने 70 आदमी को साथ ले लिया,जब आप तूर पर पहुंचे तो मौला तआला ने दोबारा आपसे कलाम फरमाया और तौरैत शरीफ अता की मगर जो लोग साथ थे उन्होंने कुछ ना सुना तो वो बोले कि हम इस बात को नहीं मानेंगे कि आपने अल्लाह से कलाम किया है,तो मौला तआला ने उन सबकी रूह क़ब्ज़ करवा ली और ये सब मर गए जब ये लोग मर गए तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने रब की बारगाह में दुआ की कि ऐ मौला मैं अपनी क़ौम से कुछ लोग मुंतखिब करके लाया था अगर ये लोग वापस नहीं गए तो मेरी क़ौम मुझसे बरहम हो जायेगी तो आपकी दुआ पर मौला तआला ने उन सबको फिर से ज़िंदा फरमा दिया,जब आप तौरैत शरीफ लाये तो उसके बाज़ अहकाम उन पर भारी थे मगर इतना नहीं कि वो अमल ना कर सकते थे फिर भी उन्होंने सरकशी की जिसकी बिना पर मौला तआला ने हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि ये पहाड़ उनके सरो पर उठा रखो तो उन्होंने तौबा की
उधर मुल्के शाम पर अब क़ौमे अमालका क़ाबिज़ हो चुकी थी तो मौला तआला ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि क़ौमे अमालका से जिहाद करके अपना मुल्क वापस हासिल करो,इसके लिए हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम से 12 सरदार मुल्के शाम भेजा जो वहां के हालात का जायज़ा ले सकें वो लोग 40 दिन रूककर जब वापस आये तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उनसे फरमाया कि क़ौम के सामने कोई ऐसी बात ना कहना कि जिससे उनका हौसला पस्त हो मगर 12 में से 10 सरदार उनकी कुव्वत ताक़त उनका कद उनकी जसमत का ऐसा नक्शा खींचा कि क़ौम हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से बोली कि पहले आप और आपका ख़ुदा जाकर क़ौमे अमालका से हमारा मुल्क हासिल करे फिर बाद में हम वहां जायेंगे जबकि 2 सरदार यानि हज़रत यूशअ बिन नून अलैहिस्सलाम और कालिब ने उन लोगों को बहुत समझाया कि बुज़दिल ना बनो तुम उन पर हम्ला करके तो देखो कि अल्लाह कैसे हमारी मदद फरमाता है मगर वो नहीं माने और अपने घरों की तरफ लौट पड़े,मौला तआला ने उन लोगों को इस तरह सज़ा दी कि वो सबके सब वादिये तीह में फंस गए और वहीं हैरान व परेशान घूमते रहे
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 318-319
* वादिये तीह मिस्र और शाम के दरमियान वाक़ेय है और इसकी लम्बाई और चौड़ाई तकरीबन 45 किलोमीटर थी,जब क़ौम हर तरह से हार चुकी तो रब की बारगाह में तौबा करने लगी तो मौला तआला ने उनकी तौबा क़ुबूल की और उनके खाने के लिए मन व सल्वा नाज़िल फरमाया जो कि 40 सालों तक उतरता रहा
📕 तफ़्सीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 454
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