हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम ।। Biography of Hazrat Khizr Alaihissalam
Hazrat Khizr Alaihissalam हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम:
रिवायतें तो आपके बारे में बेशुमार हैं मगर आपकी विलादत और हालात पर ज़्यादा मालूमात किताबों में दर्ज नहीं है,एक रिवायत के मुताबिक आपका नाम बलिया इब्ने मल्कान कुन्नियत अबुल अब्बास और लक़ब खिज़्र है,हज़रत ज़ुलकरनैन साम बिन नूह अलैहिस्सलाम की औलाद हैं और आप हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर ईमान लायें यानि ताईद की,आपका लक़ब खिज़्र होने की वजह ये बताई जाती है कि आप जहां बैठ जाते वहां सब्ज़ा उग जाता इसलिए आपको खिज़्र यानि सब्ज़ कहा जाने लगा,आपके अंगूठे में हड्डी नहीं है और उनका अंगूठा मिस्ल बाकी उंगलियों के बराबर है और मशहूर है कि एक मुसलमान से उसकी पूरी ज़िन्दगी में आप एक मर्तबा मुसाफा ज़रूर करते हैं,आपने अपने बाद के तक़रीबन हर नबी व ज़्यादातर औलिया से मुलाक़ात की है
📕 रिजालुल ग़ैब,सफह 134-141
आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि चार नबी अब भी ज़िंदा हैं हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ये दोनों हज़रात आसमान पर हैं और हज़रत इल्यास अलैहिस्सलाम खुश्की में भटक जाने वालों को राह दिखाने के काम में और हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम पानी में भटक जाने वालों को राह दिखाने की खिदमत से मुअल्लक़ हैं,हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से आपकी मुलाकात साबित है
📕 अलमलफूज़,हिस्सा 4,सफह 40
ⓩ आपका नाम तो क़ुर्आन में ज़ाहिरन नहीं लिखा है मगर आपके मुताल्लिक़ इशारा ज़रूर है,सूरह कहफ आयत 65 के बाद आपके 2 सफर का तज़किरा है पहला तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से मुलाकात और दूसरा हज़रत ज़ुलकरनैन के साथ आबे हयात का सफर करना और उसे पीकर हमेशा की ज़िन्दगी पा लेना,तो चलिये इसी सफर से शुरुआत करते हैं
अब तक 4 ऐसे बादशाह गुज़रे हैं जिन्होंने पूरी दुनिया पर हुक़ूमत की है दो मोमिन हज़रत सिकंदर ज़ुलरनैकन और हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम और दो काफिर नमरूद और बख्ते नस्र,और अनक़रीब पांचवे बादशाह हज़रत इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु होंगे जो पूरी दुनिया पर हुक़ूमत करेंगे,जिस सिकन्दर का किस्सा हम लोगों ने दुनियावी इतिहास की किताबों मे पढ़ा है वो सिकन्दर युनानी था जो कि काफिरो मुशरिक था मगर सिकन्दर ज़ुलरनैकन दूसरे हैं आप सालेह मोमिन थे
📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 178
हज़रत सिकंदर ज़ुलकरनैन हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के ज़माने के थे और आप हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर ईमान लाये और उनके साथ तवाफे काबा भी किया,चुंकि हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम भी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की बारगाह में हाज़िरी देते थे जहां ज़ुलकरनैन की हज़रते खिज़्र अलैहिस्सलाम से मुलाकात हुई और उनकी शख्सियत इल्मो अखलाक़ को देखकर हज़रते ज़ुलकरनैन ने उन्हें अपना खास और वज़ीर बना लिया,हज़रत सिकन्दर ज़ुलरनैकन ने किताबों में पढ़ा कि औलादे साम में से एक शख्स आबे हयात तक पहुंचेगा और उसे पा लेगा जिससे कि उसे मौत ना आयेगी,,ये पढ़कर आपने एक अज़ीम लश्कर तैयार किया जो कि मग़रिबो शिमाल की जानिब रवाना हुआ आपके साथ आपके वज़ीर हज़रते ख़िज़्र अलैहिस्सलाम भी चले,पानी का सफर खत्म होते होते वो एक ऐसी जगह पहुंचे जहां दलदल के सिवा कुछ ना था कश्तियां भी ना चल सकती थी मगर अज़्म के मज़बूत हज़रत ज़ुलकरनैन ने उन कीचड़ों पर भी कश्तियां चलवा दी,वहां एक जगह उन्हें सूरज कीचड में डूबता हुआ मालूम हुआ वहां से निकलकर वो एक ऐसी वादी में पहुंचे जहां एक क़ौम आबाद थी मगर वहां के लोग तहज़ीब और तमद्दुन से बिल्कुल खाली थे,जो जानवरों का कच्चा गोश्त खाते उन्ही के खालों का कपड़ा पहनते उनका ना तो कोई दीन था और ना मज़हब,आपने उन लोगों को दीने इस्लाम की दावत पेश की जिसे उन लोगों ने क़ुबूल फरमाया और फिर उन लोगों ने याजूज माजूज की शिकायत पेश की,कि पहाड़ के पीछे से एक क़ौम हमला करती है जो हमारा सब कुछ बर्बाद कर देती है आप हमें उस ज़ालिम क़ौम से बचायें,तब हज़रत ज़ुलकरनैन ने दो पहाड़ों के दरमियान एक दीवार क़ायम फरमाई वो दीवार तक़रीबन 160 किलोमीटर लम्बी 150 फिट चौड़ी और 600 फिट ऊंची है,इसको सिद्दे सिकंदरी कहा जाता है इसको इस तरह बनाया गया कि पहले पानी की तह तक बुनियाद खोदी गई और तह में पत्थर पिघलाये हुए तांबे में जमाये गये,फिर लोहे की तख्ती चारों तरफ लगाकर उसके अन्दर लकड़ी और कोयला भरा गया नीचे आग लगाकर ऊपर से पिघला हुआ तांबा उसके ज़र्रे ज़र्रे में पहुंचाया गया इस तरह हज़रत ज़ुलकरनैन सिद्दे सिकंदरी बनाकर आबे हयात की तलाश में फिर निकल पड़ते हैं (याजूज माजूज की पूरी तफ्सील आसारे क़यामत की पोस्ट में आयेगी) और अब उनके लश्कर का रुख वादिये ज़ुलमात की तरफ हो गया वादिये ज़ुलमात को पार करके उस जगह पहुंचे जहां सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा था,उन अंधेरों में ये काफिला कई दिनों तक भटकता रहा और सारा लश्कर तितर बितर हो गया,हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम को एक जगह प्यास लगी तो आप एक चश्मे पर पहुंचे वहीं गुस्ल किया वुज़ू किया खूब सैराब होकर पानी पिया यही चश्मा आबे हयात था,जिसे खिज़्र अलैहिस्सलाम ने तो पा लिया मगर किसी और के मुक़द्दर में ना था सब वहां से मायूस लौटे और आखिर में हज़रत ज़ुलकरनैन को शहरे बाबुल में क़ज़ा आई
📕 पारा 16,सूरह कहफ,आयत 83-99
📕 पारा 17,सूरह अम्बिया,आयत 96
📕 तफसीरे खज़ाएनुल इरफान,सफह 362
📕 रिजालुल ग़ैब,सफह 148--153
📕 क्या आप जानते हैं,सफह 188
📕 तफसीरे खाज़िन,जिल्द 4,सफह 204
📕 ज़लज़लातुस साअत,सफह 12
ⓩ अब हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम का दूसरा वाक़िया सुनिये इसका भी ज़िक्र क़ुर्आन में मौजूद है
हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि एक मर्तबा बनी इस्राईल ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से पूछा कि इस वक़्त रूए ज़मीन पर सबसे बड़ा आलिम कौन है तो आपने फरमाया कि मैं हूं,आपकी इस बात में थोड़ा सा ग़ुरूर का पहलु था लिहाज़ा रब ने इताब फरमाते हुए उनसे कहा कि ऐ मूसा तुमसे बड़ा आलिम भी इस ज़मीन पर मौजूद है यानि कि हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम,उनका ज़िक्र मौला तआला क़ुर्आन मुक़द्दस में कुछ युं इरशाद फरमाता है
*कंज़ुल ईमान* - तो हमारे बन्दों में से एक बन्दा पाया जिसे हमने अपने पास से रहमत दी और उसे अपना इल्मे लदुन्नी अता किया
अब जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने सुना तो अपने कहे पर नादिम हुए और उस शख्स से मिलने की इल्तिजा की,रब ने उन्हें अपने साथ एक भुनी हुई मछली लेकर सफर करने को कहा और फरमाया कि जहां पर दो समन्दर यानि बहरे फारस और बहरे रूम मिलेंगे यानि मजमउल बहरैन तो वहीं पर तुम्हारी ये मछली पानी में गुम हो जायेगी और तुम उनको पा सकोगे,हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम अपने होने वाले वली-अहद हज़रत यूशअ बिन नून अलैहिस्सलाम के साथ एक मछली को लेकर दो समन्दरों के मिलने की जगह को ढूंढ़ने निकल पड़े,दोनों हज़रात ने पानी का सफर शुरू किया एक जगह हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को नींद आ गयी और वो भुनी हुई मछली जिंदा होकर पानी में कूद गयी और एक कोह सा रास्ता बनाते हुए निकल गयी हज़रत यूशअ अलैहिस्सलाम ने देखा तो मगर उन्हें हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को बताना याद ना रहा और सफर जारी रखा,कुछ देर बाद जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की आंख खुली तो आपने खाने के लिए वही मछली मांगी तब हज़रत यूशअ अलैहिस्सलाम को ख्याल आया और उन्होंने सारी बात हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम बताई,तब दोनों हज़रात वापस लौटे और वहीं पहुंचे तो देखा कि पानी ठहरा हुआ है और उसमे मेहराब की तरह रास्ता बना हुआ है दोनों उसी रास्ते पर चल दिए कुछ दूर आगे बढे तो एक चट्टान के करीब एक शख्स चादर ओढ़े लेटा हुआ था यही हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम थे,दोनों हज़रात उनके पास पहुंचे सलाम किया जवाब मिला तब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उन्हें अपने आने का मक़सद बताया कि उन्हें भी कुछ इल्म हासिल करना है लिहाज़ा उन्हें अपने साथ रखें,मगर हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम ने मना किया कि तुम हमारे साथ हरगिज़ ना रह सकोगे क्योंकि हमारे काम पर तुमसे सब्र ना हो सकेगा इस पर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि बेशक मैं सब्र करूंगा तो हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम ने इस शर्त पर कि आप उनसे कोई सवाल नहीं करेंगे उन्हें अपने साथ रहने की इजाज़त दे दी
अब वो तीनो एक साहिल पर पहुंचे बहुत कोशिश की कि कोई नाव वाला उन्हें दरिया के उस पार छोड़ दे मगर उनके पास दरहमो दीनार ना थे लिहाज़ा कीमत ना मिलने की वजह से किसी ने भी उन्हें उस पार नहीं पहुंचाया, आखिरकार एक नेक कश्ती वाले ने बिना कीमत के आप लोगों को उस पार छोड़ने के लिए कश्ती में बिठा लिया मगर जब कश्ती बीच रास्ते में पहुंची तो हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम ने उसकी कश्ती तोड़ डाली और उसमे छेद कर दिया,ये देखकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से सब्र ना हुआ और आपने उनसे कह दिया कि एक तो कोई हमें इस पर छोड़ने को तैयार ना था एक अल्लाह के बन्दे ने हम पर एहसान किया और आपने उसकी कश्ती तोड़ दी,इस पर हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम बोले कि मैंने पहले ही कहा था कि तुम हमारे साथ नहीं रह सकोगे फौरन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने माफी मांगी और आगे से ऐसा ना करने का वादा किया,फिर तीनो हज़रात आगे बढ़े
एक जगह कुछ लड़के खेल रहे थे उसमे एक लड़का जो सब में हसीन था जिसका नाम जीसूर या ज़नबतूर था हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम ने उसको क़त्ल कर दिया,अपने सामने एक मज़लूम का क़त्ल होते देख हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से ज़ब्त ना हो सका और आप गुस्से में फिर बोल पड़े कि आपने एक जान को क़त्ल कर डाला,हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम ने उन्हें उनकी बात याद दिलाई तो इस पर उन्होंने माज़रत चाही कि एक और मौक़ा दे दीजिये अगर अबकी बार मैंने कुछ कहा तो फिर मुझे अपने से जुदा कर दीजियेगा,हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम ने उनकी बात मान ली और सभी फिर आगे बढ़ चले
फिर तीनों एक बस्ती में पहुंचे जहां किसी ने भी इनकी मेहमान नवाज़ी नहीं की दिन भर भूखे प्यासे पूरे गांव में चक्कर काटते रहे,थक हारकर शाम को बस्ती से चलने लगे जब गांव के बाहर पहुंचे तो हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम ने देखा कि एक दीवार गिरी जाती है आप फौरन वहां पहुंचे और पूरी मेहनत से गिरती हुई दीवार की मरम्मत की उसे सीधी की और कोई उजरत भी नहीं ली,इस पर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम फिर से बोले कि जिस बस्ती वालों ने हमारे लिए कुछ भी नहीं किया आपने युंही बग़ैर उजरत के उनकी दीवार सही कर दी कम से कम उजरत तो ले लेते,अब हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि तुम्हारा उज़्र पूरा हो चुका अब तुम हमारे साथ नहीं रह सकते मगर जाते जाते उन तीनों के बातिनी हालात भी सुनते जाओ पहली वो जो कश्ती मैंने तोड़ी थी तो वहां का बादशाह बहुत ही ज़ालिम है सभी कश्ती वालों की नई कश्तियां छीन कर अपने खज़ाने में जमा कर लेता है,अगर मैं उस गरीब की कश्ती ना तोड़ता तो उसकी कश्ती भी उससे छिन जाती और उस पर रिज़्क़ की क़िल्लत आ जाती लिहाज़ा जो एहसान उसने हम पर किया था बग़ैर उजरत के दरिया को पार कराने का उसी एहसान का ये बदला था कि कश्ती तो फिर से दुरुस्त कर ही लेगा,दूसरा वो नाबालिग़ बच्चा जिसे मैंने क़त्ल किया उसके मां-बाप मोमिन थे और उसको बड़ा होकर काफिर होना था तो औलाद की मुहब्बत में उसके मां-बाप का ईमान खतरे में पड़ जाता लिहाज़ा उनका ईमान बचाने के लिए मैंने उसे क़त्ल किया और बचपन में चुंकि वो खुद अब तक वो खुद भी काफिर नहीं था लिहाज़ा उस पर भी एहसान किया,और तीसरी ये दीवार जो मैंने दुरुस्त की तो ये घर दो यतीम बच्चों का है इस दीवार के नीचे उन बच्चों के बाप ने जो कि नेक आदमी था उसने इनके लिए कुछ रुपया पैसा छोड़ा है अगर ये दीवार गिर जाती तो वो खज़ाना खुल जाता और बस्ती वाले सब लूटकर ले जाते अब जब बच्चे बड़े हो जायेंगे और अपना घर मरम्मत करायेंगे तो उनका खज़ाना उनको मिल जायेगा,फिर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम वहां से वापस लौट आये
📕 पारा 15,सूरह कहफ,आयत 60----82
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 331
ⓩ वैसे तो ये पूरा वाक़िया ही क़ुर्आन में दर्ज है मगर इसके आखिरी के जुमलों पर कुछ तवज्जोह दिलाना चाहता हूं,रब तआला फरमाता है
*कंज़ुल ईमान* - और उनका बाप नेक आदमी था
📕 पारा 16,सूरह कहफ,आयत 82
तफसीर - उन दोनो बच्चों का नाम अदरम और सुरैन था और उनके बाप का नाम कासिख था और ये शख्स नेक परहेज़गार था,रिवायत में आता है कि अल्लाह तआला अपने बन्दे की नेकी के सबब उसकी औलाद को और उसकी औलाद की औलाद को और उसके कुनबे वालों को और उसके मुहल्ले वालों को अपनी हिफाज़त में रखता है
📕 खज़ाएनुल इरफान,सफह 361
📕 रूहुल बयान,पारा 16,सफह 477
ⓩ एक तरफ तो क़ुर्आन और हदीस में ये लिखा है कि बाप की नेकियां औलाद के काम आती हैं मगर वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों का हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के बारे में ये कहना है कि "हुज़ूर तो अपनी बेटी के भी काम नहीं आ सकते तो वो अपने उम्मतियों को किस तरह बचायेंगे माज़ अल्लाह" तो उन कमज़र्फों से सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि ये बात तुम अपने और अपने बाप दादा के लिए कह सकते हो कि मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम तुम्हारे और तुम्हारे बाप दादा के काम नहीं आयेंगे,और काम नहीं आयेंगे से मुराद ये नहीं कि वो काम नहीं आयेंगे बल्कि ये कि तुम्हारी औकात उनसे मदद लेने की नहीं रहेगी लिहाज़ा वो तुम्हारे किसी काम नहीं आयेंगे,मगर हम तो उनके ग़ुलाम हैं उनके उम्मती हैं उनके बन्दे हैं हमारा तो हर काम उन्ही से बनता है और उन्हीं से बनेगा यहां भी और वहां भी इन शा अल्लाह तआला लिहाज़ा वो हमारे काम आयेंगे आयेंगे आयेंगे
हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम और हज़रत इल्यास अलैहिस्सलाम दोनों हर साल हज के मौक़े पर मिलते हैं हज व उमरा करते हैं आबे ज़म-ज़म शरीफ पीते हैं जो कि उनके लिए साल भर की ग़िज़ा का काम करता है,और बैतुल मुक़द्दस में दोनों हज़रात रमज़ान शरीफ का रोज़ा भी रखा करते हैं
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 108
📕 ज़रक़ानी,जिल्द 5,सफह 354
हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम और हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम* एक मर्तबा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मस्जिदे नब्वी शरीफ में थे कि किसी की आवाज़ सुनी तो आपने हज़रते अनस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को भेजा और कहा कि उनको मेरा सलाम कहो और कहो कि मेरे लिए दुआ करें,जब हज़रत अनस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने उनसे जाकर कहा तो जवाब देने के बाद वो कहने लगे कि मैं क्या उनके लिए दुआ कर सकता हूं उन्हें तो तमाम अम्बिया का सरदार बनाया गया है हम तो खुद उनकी दुआ के मोहताज हैं,हज़रत अनस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु वापस आये और उनका पैगाम सुनाया तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि वो हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम थे
इसी तरह हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के विसाल के दिन एक शख्स सफों को चीरता हुआ आगे पहुंचा और सहाबा को तसल्ली दी और फिर वो गायब हो गया तो हज़रत अबु बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से फरमाते हैं कि ये हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम थे तो आप फरमाते हैं कि बिल्कुल मैं उन्हें पहचानता हूं
इसी तरह एक मर्तबा हज़रते उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु एक नमाज़े जनाज़ा में शिरकत के लिए खड़े हुए तो दूर से एक शख्स ने आवाज़ दी कि रुकिये मैं भी शामिल होता हूं,बाद नमाज़ जब उनको ढूंढा गया तो ना मिले तो हज़रत उमर फारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि ये हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम थे
इसके अलावा और भी सहाबाये किराम से मुलाकात का तज़किरा मिलता है और बहुत से बुज़ुर्गाने दीन से भी आपकी मुलाकात साबित है,सबका ज़िक्र करने के बजाये उन बुज़ुर्गों के नाम पर ही इक़्तिफा करता हूं
*हज़रत दाता गंज बख्श लाहौरी*
*हज़रत मखदूम अशरफ जहांगीर समनानी*
*हज़रत ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंदी*
*हज़रत ख्वाजा अब्दुल खालिक़ गज्दवानी*
*हुज़ूर ग़ौसे पाक*
*हुज़ूर मोहिउद्दीन इब्ने अरबी*
*हज़रत इमाम अहमद बिन हम्बल*
*हज़रत निज़ामी गंजवी*
*हज़रत अहमद बिन अल्वी*
*हज़रत शाह रुक्न आलम मुल्तानी*
*हज़रत अब्दुल क़ाहिर सुहरवर्दी*
*हज़रत बिशर बिन हारिस*
*हज़रत ख्वाजा अब्दुल्लाह अंसारी*
*हज़रत अब्दुल शैख कैलवी*
*हज़रत मौलाना जलालुद्दीन रूम*
*हज़रत शैख सादी*
*हज़रत ख्वाजा सुलेमान तस्वी*
*हज़रत ख्वाजा शम्सुद्दीन सियाल्वी*
*हज़रत इब्ने जौज़ी*
*हज़रत शैख बदरुद्दीन ग़ज़नवी*
*हज़रत अब्दुल वहाब मुत्तक़ी*
*हज़रत जाफर मक्की सरहिंदी*
*हज़रत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी*
*हज़रत मुहम्मद बिन समाक*
*हज़रत अबुल हसन शीराज़ी*
*हज़रत शैक अबु मदयन*
*हज़रत अब्दुर्रहमान छुहरावी*
📕 रिजालुल ग़ैब,सफह 154-198
ⓩ ये कुछ हज़राते मुक़द्दसा के नाम हैं जिनके बारे में तफ्सील से किताब में लिखा है और जिस तरतीब से वाक्यिात दर्ज थे मैंने उसी तरतीब से सबका नाम लिख दिया मर्तबे के लिहाज़ा से नहीं लिखा,लिहाज़ा इसमें ऐतराज़ करने जैसी कोई बात नहीं है कि फलां बुज़ुर्ग पहले के हैं और बड़े हैं तो उनका नाम बाद में और नीचे लिखा है,और ऐसा भी नहीं है कि जिनका नाम लिखा है सिर्फ उन्हीं हज़रात से हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम की मुलाकात हुई है बाकी इसके अलावा किसी से नहीं,नहीं बल्कि और किताबों में और भी बुज़ुर्गाने दीन से मुलाकात के अहवाल लिखे हो सकते हैं बल्कि होंगे ही,उसी तरह एक रिवायत शहर क़ाज़ी इलाहाबाद हज़रत मुफ़्ती शफीक अहमद शरीफी साहब क़िब्ला ये बयान फरमाते हैं कि हज़रत मखदूम अशरफ जहांगीर समनानी रहमतुल्लाह तआला अलैहि अपनी किसी किताब में लिखते हैं कि हज़रते खिज़्र अलैहिस्सलाम हर आधे घंटे में 1 बार हज़रत सय्यद सालार मसऊद गाज़ी रहमतुल्लाह तआला अलैहि के आस्ताने मुबारक बहराईच शरीफ में हाज़िरी देते हैं*
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Riwaytein to aapke baare me beshumar hain magar aapki wiladat aur haalat par zyada malumat kitabon me darj nahin hai,ek riwayat ke mutabik aapka naam baliya ibne malkaan kunniyat abul abbas aur laqab khizr hai,Hazrat zulkarnain saam bin nooh alaihissalam ki aulaad hain aap hazrat ibraheem alaihissalam par imaan laayein yaani unki tayeed ki,aapka laqab khizr hone ki wajah ye batayi jaati hai ki aap jahan baith jaate wahan sabza ug jaata isliye aapko khizr ya sabz kaha jaane laga,aapke anguthe me haddi nahin hai aur unka angutha misl baaki ungliyo ke barabar hai aur mashhoor hai ki ek musalman se uski poori zindagi me aap ek martaba musaafa zaroor karte hain,aapne apne baad ke taqriban har nabi wa zyadatar auliya se mulaqat ki hai
📕 Rijalul gaib,safah 134-141
Aalahazrat azimul barkat raziyallahu taala anhu farmate hain ki chaar nabi ab bhi zinda hain hazrat eesa alaihissalam aur hazrat idrees alaihissalam ye dono hazraat aasman par hain aur hazrat ilyas alaihissalam khushki me bhatak jaane waalo ko raah dikhane ke kaam me aur hazrat khizr alaihissalam paani me bhatak jaane waalo ko raah dikhane ki khidmat me muallaq hain,huzoor sallallaho taala alaihi wasallam se aapki mulaqat saabit hai
📕 Almalfooz,hissa 4,safah 40
ⓩ Aapka naam to quran me zaarihan nahin likha hai magar aapke mutalliq ishaara zaroor hai,surah kahaf aayat 65 ke baad aapke 2 safar ka tazkira hai pahla to hazrat moosa alaihissalam se mulaqat ka aur doosra hazrat zulqarnain ke saath aabe hayaat ka safar karna aur use peekar hamesha ki zindagi pa lena,to chaliye isi safar se shuruaat karte hain*
Ab tak 4 aise baadshah guzre hain jinhone poori duniya par huqumat ki hai 2 momin hazrat sikandar zulqarnain aur hazrat suleman alaihissalam aur 2 kaafir namrood aur bakhte nasr,aur anqareeb paanchwe baadshah hazrat imam menhdi raziyallahu taala anhu honge jo poori duniya par huqumat karenge,jis sikandar ka kissa hum logon ne duniyavi itihaas ki kitabon me padha hai wo sikandar unani tha jo ki kaafiro mushrik tha magar sikandar zulkarnain doosre hain aur aap saaleh momin the
📕 Alitqaan,jild 2,safah 178
Hazrat sikandar zulkarnain hazrat ibraheem alaihissalam ke zamane ke the aur aap hazrat ibraheem alaihissalam par imaan laaye aur unke saath tawafe kaaba bhi kiya,chunki hazrat khizr alaihissalam bhi hazrat ibraheem alaihissalam ki baargah me haaziri dete the jahan zulkarnain se hazrate khizr alaihissalam ki mulakat huyi aur unki sakhshiyat ilmo akhlaaq ko dekhkar hazrate zulkarnain ne unhein apna khaas aur wazeer bana liya,hazrate zulkarnain ne kitabon me padha tha ki aulade saam me se ek shakhs aabe hayaat tak pahunchega aur use pa lega,jab sikandar zulkarnain ne ye padha to ek azeem lashkar taiyar kiya jo ki magribo shimaal ki jaanib rawana hua aur aapke saath aapke wazeer hazrate khizr alaihissalam bhi chale,paani ka safar khatm hote hote wo ek aisi jagah pahunche jahan daldal ke siwa kuchh na tha aur uspar kashtiyan bhi na chal sakti thi magar azm ke mazboot hazrat zulkarnain ne un keechadon par bhi kashtiyan chalwa di,wahan ek jagah unhein keechad me suraj doobta hua maloom hua wahan se nikalkar wo ek aisi waadi me pahunche jahan ek qaum aabad thi magar wahan ke log tahzeeb aur tamaddun se bilkul khaali the,jo jaanwaro ka kachcha gosht khaate unhi ke khaalo ka kapda pahante unka na to koi deen tha aur na koi mazhab,aapne un logon ko deene islam ki daawat pesh ki jise un logon ne qubool kar liya aur phir un logon ne yajooj majooj ki shikayat ki,ki pahaad ke peechhe se ek qaum hum par hamla karti hai jo hamara sab kuchh barbaad kar deti hai aap hamein us zaalim qaum se bachayein,tab hazrat zulkarnain ne do pahaado ke darmiyan ek deewar qaayam farmayi wo deewa takriban 160 kilometer lambi 150 fitt chaudi aur 600 fitt oonchi hai,isko sidde sikandari kaha jaata hai ise is tarah banaya gaya ki pahle paani ki tah tak uski buniyaad khodi gayi aur tah me patthar pighlaye hue taambe me jamaye gaye,phir lohe ki takhti chaaron taraf lagakar uske lakdi aur koyla bhara gaya uske neeche aaga lagakar oopar se pighla hua taamba uske zarre zarre me pahunchaya gaya is tarah sidde sikandari banakar hazrat zulkarnain aabe hayaat ki talaash me phir se nikal padte hain (ye wahi deewar hai jise yajooj majooj roz todte hain yajooj majooj ki poori tafseel aasare qayamat ki post me aayegi in sha ALLAH taala) ab unke lashkar ka rukh waadiye zulmaat ki taraf ho gaya tha waadiye zulmaat ko paar karke poora kaafila us jagah pahuncha jahan sirf andhera hi andhera tha,us andhere me poora kaafila kayi dino tak bhatakta raha aur titar bitar ho gaya,hazrat khizr alaihissalam ko ek jagah pyas lagi aap ek chashme par pahunche wahin gusl kiya wuzu kiya khoob sairab hokar paani piya yahi chashma aabe hayaat tha,jise hazrate khizr alaihissalam ne to pa liya magar kisi aur ke muqaddar me na tha so sab wahan se mayoos laute aur aakhir me hazrat zulkarnain ko shahre babul me qaza aayi
📕 Paara 16,surah kahaf,aayat 83-99
📕 Paara 17,surah ambiya,aayat 96
📕 Tafseer khazayenul irfan,safah 362
📕 Rijabul gaib,safah 148--153
📕 Kya aap jaante hain,safah 188
📕 Tafseere khaazin,jild 4,safah 204
📕 Zalzalatus sa'at,safah 12
ⓩ Ab hazrat khizr alaihissalam ka doosra waqiya suniye iska bhi zikr quran me maujood hai
Huzoor sallallaho taala alaihi wasallam irshaad farmate hain ki ek martaba bani israyil ne hazrat moosa alaihissalam se poochha ki is waqt rooye zameen par sabse bada aalim kaun hai to aapne farmaya ki main hoon aapki is baat me thoda sa guroor ka pahlu tha lihaza rub ne itaab farmate hue unse kaha ki ai moosa tumse bada aalim bhi is zameen par maujood hai yaani ki hazrat khizr alaihissalam,unka zikr maula taala quran muqaddas me kuchh yun irshaad farmata hai
*KANZUL IMAAN* - To hamare bando me se ek banda paaya jise humse apne paas se rahmat di aur use apna ilme ladunni ata kiya
Ab jab hazrat moosa alaihissalam ne suna to apne kahe par naadim hue aur us shakhs se milne ki iltija ki,RUB ne unhein apne saath ek bhuni huyi machhli lekar safar karne ko kaha aur farmaya ki jahan par do samandar yaani bahre faaras aur bahre room milenge yaani majmaul bahrain to wahin par tumhari ye machhli paani me gum ho jayegi aur tum unko pa sakoge,hazrat moosa alaihissalam apne hone waale wali ahad hazrat yoosha bin noon alaihissalam ke saath ek machhli ko lekar do samandaro ke milne ki jagah ko dhoondne nikal pade,dono hazraat ne paani ka safar shuru kiya ek jagah hazrat moosa alaihissalam ko neend aa gayi aur wo bhuni huyi machhli zinda hokar paani me kood gayi aur ek koh sa raasta banate hue nikal gayi hazrat yoosha alaihissalam ne dekha to magar unhein hazrat moosa alaihissalam ko batana yaad na raha aur safar jaari rakha,kuchh deir baad jab hazrat moosa alaihissalam ki aankh khuli to aapne khaane ke liye wahi machhli maangi tab hazrat yoosha alaihissalam ko khayal aaya aur unhone saari baat hazrat moosa alaihissalam batayi,tab dono hazraat waapas laute aur wahin pahunche to dekha ki paani thahra hua hai aur usme mehraab ki tarah raasta bana hua hai dono usi raaste par chal diye kucch door aage badhe to ek chattan ke qareeb ek shakhs chaadar odhe leta hua tha yahi hazrat khizr alaihissalam the,dono hazraat unke paas pahunche salaam kiya jawab mila tab hazrat moosa alaihissalam ne unhein apne aane ka maqsad bataya ki unhein bhi kuchh ilm haasil karna hai lihaza unhein apne saath rakhen,magar hazrat khizr alaihissalam ne mana kiya ki tum hamare saath hargiz na rah sakoge kyunki hamare kaam par tumse sabr na ho sakega ispar hazrat moosa alaihissalam farmate hain ki beshak main sabr karunga to hazrat khizr alaihissalam ne is shart par ki aap unse koi sawal nahin karenge unhein apne saath rahne ki ijazat de di
Ab wo teeno ek saahil par pahunche bahut koshish ki ki koi naav waala unhein dariya ke us paar chhod de magar unke paas darhamo deenar na the lihaza keemat na milne ki wajah se kisi ne bhi unhein us paar nahin pahunchaya,aakhir kaar ek ek neik kashti waale ne bina keemat ke aap logon ko us paar chhodne ke liye kashti me bitha liya magar jab kashti beech raaste me pahunchi hazrat khizr alaihissalam ne uski kashti tod daali aur usme chhed kar diya,ye dekhkar hazrat moosa alaihissalam se sabr na hua aur aapne unse kah diya ki ek to koi hamein is paar chhodne ko taiyar na tha ek ALLAH ke bande ne hum par ehsaan kiya aur aapne uski kashti tod di,is par hazrat khizr alaihissalam bole ki maine pahle hi kaha tha ki tum hamare saath nahin rah sakoge fauran hazrat moosa alaihissalam ne maafi maangi aur aage se aisa na karne ka waada kiya,phir teeno hazraat aage badhe
Ek jagah kuchh ladke khel rahe the usme ek ladka jo sab me haseen tha jiska naam jeesoor ya zanbatoor tha hazrat khizr alaihissalam ne usko qatl kar diya,apne saamne ek mazloom ka qatl hote dekh hazrat moosa alaihissalam se zabt na ho saka aur aap gusse me phir bol pade ki aapne jaan ko qatl kar daala,hazrat khizr alaihissalam une unhein unki baat yaad dilayi to is par unhone maazrat chahi ki ek aur mauqa de dijiye ki agar abki baar maine kuchh kaha to phir mujhe apne se juda kar dijiyega,hazrat khizr alaihissalam ne unki baat maan li aur sabhi phir aage badh chale
Phir teeno ek basti me pahunche jahan kisi ne bhi inki mehman nawazi nahin ki din bhar bhooke pyase poore gaanv me chakkar kaatte rahe,thak haarkar shaam ko basti se chalne lage aur jab gaanv ke baahr pahunche to hazrat khizr alaihissalam ne dekha ki ek makaan ki deewar giri jaati hai,aap fauran wahan pahunche aur poori mehnat se us girti huyi deewar ki marammat ki aur use seedhi kar di aur unse koi ujrat bhi nahin li,ispar hazrat moosa alaihissalam phir se bole ki jis basti waalo ne hamare liye kuchh bhi nahin kiya aapne unhi bagair ujrat liye unki deewar sahi kar di kam se kam ujrat to le lete,ab hazrat khizr alaihissalam bole ki tumhara uzr poora ho chuka hai ab tum hamare saath nahin rah sakte magar jaate jaate un teeno ke baatini haalat bhi sunte jao pahli wo kashti jo maine todi thi to wahan ka baadshah bahut hi zaalim hai sabhi kashti waalo ki nayi kashtiyan chheenkar apne khazane me jama kar leta hai,agar main us gareeb ki kashti na todta to uski kashti bhi usse chhin jaati aur uspar rizq ki killat aa jaati lihaza jo ehsaan usne humpar kiya tha ki bagair ujrat liye dariya ko paar karane ka ye usi ehsaan ka badla tha ki kashti to wo phir se durust kar hi lega,doosra wo nabalig bachcha jise maine qatl kiya uske maa-baap momin the aur usko bada hokar kaafir hona tha to aulaad ki muhabbat me uske maa-baap ka imaan khatre me pad jaata lihaza unka imaan bachane ke liye maine use qatl kiya aur chunki wo bachpan me khud bhi ab tak kaafir na tha lihaza uspar bhi ehsaan kiya,aur teesri ye deewar jo maine durust ki to ye ghar 2 yateem bachchon ka hai is deewar ke neeche inke baap ne jo ki nek aadmi tha inke liye kuchh rupya paisa chhoda hai agar ye deewar gir jaati to wo khazana khul jaata aur gaanv waale sab lootkar le jaate ab bachche jab bade ho jayenge aur apna ghar marammat karayenge to unka khazana unko mil jayega,phir hazrat moosa alaihissalam wahan se wapas laut aaye
📕 Paara 15,surah kahaf,aayat 60-82
📕 Tazkiratul ambiya,safah 331
ⓩ Waise to ye poora waqiya hi quran me darj hai magar iske aakhiri ki jumlo par kuchh tawajjoh dilana chahta hoon,Rub taala farmata hai*
*KANZUL IMAAN* - Aur unka baap neik aadmi tha
📕 Paara 16,surah kahaf,aayat 82
*TAFSEER* - Un do bachcho ka naam adram aur suraim tha aur unke baap ka naam kaasikh tha aur ye shakhs neik parhezgar tha,riwayat me aata hai ki ALLAH taala apne bande ki neki ke sabab uski aulaad ko aur uski aulaad ki aulaad ko aur uske kunbe waalo ko aur uske muhalle waalo ko apni hifazat me rakhta hai
📕 Khazayenul irfan,safah 361
📕 Ruhul bayan,paara 16,safah 477
ⓩ Ek taraf to quran aur hadees me ye likha hai ki baap ki nekiyan aulaad ke kaam aati hain magar wahin doosri taraf kuchh logon ka huzoor sallallaho taala alaihi wasallam ke baare me ye kahna hai ki "huzoor to apni beti ke bhi kaam nahin aa sakte to wo apne ummatiyon ko kis tarah bachayenge maaz ALLAH" to un kamzarfon se sirf itna kahna chahunga ki ye baat tum apne aur apne baap daada ke liye kah sakte ho ki mere aaqa sallallaho taala alaihi wasallam tumhari aur tumhare baap daada ke kaam nahin aayenge,aur kaam nahin aayenge se muraad ye nahin ki wo kaam nahin ayenge balki ye ki tumhari auqaat unse madad lene ki nahin rahegi lihaza wo tumhare kisi kaam nahin aayenge,magar hum to unke ghulam hain unke ummati hain unke bande hain hamara to har kaam unhi se banta hai aur unhi se banega yahan bhi aur wahan bhi in sha ALLAH taala lihaza wo hamare kaam aayenge aayenge aayenge
Hazrat khizr alaihissalam aur hazrat ilyas alaihissalam dono har saal hajj ke mauqe par milte hain hajj wa umra karte hain aabe zam-zam sharif peete hain jo ki unke liye saal bhar ki giza ka kaam karta hai,aur baitul muqaddas me dono hazraat ramzan sharif ka roza bhi rakha karte hain
📕 Fatawa razviyah,jild 9,safah 108
📕 Zarkani,jild 5,safah 354
Huzoor sallallaho taala alaihi wasallam aur hazrat khizr alaihissalam* ek martaba huzoor sallallaho taala alaihi wasallam masjide nabwi sharif me the ki kisi ki aawaz suni to aapne hazrate anas raziyallahu taala anhu ko bheja aur kaha ki unko mera salaam kaho aur kaho ki mere liye dua karen,jab hazrat anas raziyallahu taala anhu ne unse jaakar kaha to jawab dene ke baad wo kahne lage ki main kya unke liye dua kar sakta hoon unhein to tamam ambiya ka sardaar banaya gaya hai hum to khud unki dua ke mohtaj hain,hazrat anas raziyallahu taala anhu waapas aaye aur unka paighaam sunaya to huzoor farmate hain ki wo hazrat khizr alaihissalam the
Isi tarah huzoor sallallaho taala alaihi wasallam ke wisaal ke din ek shakhs safon ko cheerta hua aage pahuncha aur sahaba ko tasalli di aur phir wo gaayab ho gaya to hazrat abu bakr siddiq raziyallahu taala anhu maula ali raziyallahu taala anhu se farmate hain ki ye hazrat khizr alaihissalam the to aap farmate hain ki bilkul main unhein pahchaanta hoon
Isi tarah ek martaba hazrate umar farooq raziyallahu taala anhu ek namaze janaza me shirkat ke liye khade hue to door se ek shakhs ne aawaz di ki rukiye main bhi shaamil hota hoon,baad namaz jab usko dhoondha gaya to na mila to hazrat umar farooqe aazam raziyallahu taala anhu farmate hain ki ye hazrat khizr alaihissalam the
Iske alawa aur bhi sahabaye kiram se mulakaat ka tazkira milta hai aur bahut se buzurgane deen se bhi aapki mulakaat saabit hai,sabka zikr karne ke bajaye un buzurgon ke naam par hi iqtifa karta hoon
*Hazrat daata ganj bakhsh lahauri*
*Hazrat makhdoom ashraf jahangeer samnani*
*Hazrat khwaja bahauddin nakshbandi*
*Hazrat khwaja abdul khaliq gajdwani*
*Huzoor ghause paak*
*Huzoor mohiuddin ibne arbi*
*Hazrat imaam ahmad bin hambal*
*Hazrat nizaami ganjwi*
*Hazrat ahmad bin alwi*
*Hazrat shah rukn alam multani*
*Hazrat abdul qahir suharwardi*
*Hazrat bishar bin haaris*
*Hazrat khwaja abdullah ansari*
*Hazrat abdul shaikh qalwi*
*Hazrat maulana jalaluddin room*
*Hazrat shaikh saadi*
*Hazrat khwaja suleman tansvi*
*Hazrat khwaja shamsuddin siyalvi*
*Hazrat ibne jauzi*
*Hazrat shaikh badruddin gaznavi*
*Hazrat Abdul wahaab muttaqi*
*Hazrat jaafar makki sarhindi*
*Hazrat kutubuddin bakhtiyar kaaki*
*Hazrat Muhammad bin samaak*
*Hazrat abul hasan shaazli*
*Hazrat shaikh abu madyan*
*Hazrat abdurrahman chhuhravi*
📕 Rijalul gaib,safah 154-198
ⓩ Ye un hazraate muqaddasa ke naam hain jinke baare me tafseel se kitab me likha hai aur jis tarteeb se wakyaat darj the maine usi tarteeb se sabka naam likh diya martabe ke lihaza se nahin likha,lihaza isme aitraz karne jaisi koi baat nahin hai ki falan buzurg pahle ke hain aur bade hain to unka naam baad me aur neeche likha hai,aur aisa bhi nahin hai ki jinka naam likha hai sirf unhi hazraat se hazrat khizr alaihissalam ki mulakaat huyi hai baaki iske alawa kisi se nahin,nahin balki aur kitabon me aur bhi buzurgane deen se mulakaat ke ahwaal likhe ho sakte hain balki honge hi,usi tarah shahar qaazi allahabad hazrat mufti shafiq ahmad sharifi sahab qibla farmate hain ki harat makhdoom ashraf jahangeer samnaani rahmatullah taala alaihi apni kisi kitab me likhte hain ki hazrate khizr alaihissalam har aadhe ghante me 1 baar hazrat sayyad saalaar mas'ood gaazi rahmatullah taala alaihi ke aastane mubarak bahraich sharif me haaziri dete hain.
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