हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ।। Biography of Hazrat Yusuf Alaihissalam
हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम जब पैदा हुए तो आपके वालिद हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम की उम्र 40 बरस थी,आपकी वालिदा का नाम राहील है
📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 358
हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बीच 1005 साल का फासला है
📕 तफसीरे सावी,जिल्द 2,सफह 27
हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि करीम बिन करीम बिन करीम बिन करीम यूसुफ बिन याक़ूब बिन इस्हाक़ बिन इब्राहीम अलैहिस्सलातो वत्तस्लीम हैं,हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने ख्वाब देखा कि 11 सितारे और चांद सूरज उनको सज्दा कर रहे हैं 11 सितारों से मुराद आपके 11 भाई और चांद सूरज से मुराद आपके वालिदैन हैं,यहां सज्दे से मुराद सज्दये ताज़ीमी है जो कि पहले की उम्मतों में जायज़ था मगर हमारी शरीयत में हराम है,जिन 11 सितारों को आपने ख्वाब में देखा उनके नाम ये हैं जिरबान,तारिक,ज़ियाल,कालबिस,उमूदान,फीलक़,फज़अ,विसाब,ज़ुलकफतैन,ज़रूज,मिस्बाह जब आपने ये ख्वाब अपने वालिद को बताया तो उन्होने मना किया के ख्वाब हरगिज़ अपने भाईयों को ना बतायें कि वो हसद की आग में और जल जायेंगे,ये ख्वाब आपने 12 साल की उम्र में देखा
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 122
ये ख्वाब आपने शबे क़द्र में देखा जो कि शबे जुमा भी थी
📕 खज़ाएनुल इरफान,पारा 12,रुकू 11
इस ख्वाब की ताबीर 80 साल के बाद पूरी हुई (तफसील बाद में आयेगी)
📕 जलालैन,हाशिया 13,सफह 198
ⓩ ख्वाब में सूरज का देखना कभी बादशाहत दौलत या खूबसूरत औरत की ताबीर होती है तो कभी फसाद की भी ताबीर ली जाती है ये सब ख्वाब देखने वाले के हालात वक़्त ज़माने के हिसाब से तय होते हैं,बहरहाल ये एक मुश्किल काम है कि किसी के ख्वाब की सटीक ताबीर बताई जाए बस इतना याद रखें कि जब भी कोई ऐसा ख्वाब देखें जो दिल को भला मालूम हो या सराहतन भी अच्छा ही हो तो ये खुदा की तरफ से इलक़ा होता है तो उसकी हम्दो सना करे अगर किसी से बयान करना चाहे तो कर सकता है,और जब कोई ऐसा ख्वाब देखें जिससे दिल में डर पैदा हो या ग़मगीन हो जायें तो ये शैतान की तरफ से है जब आंख खुले तो बाईं तरफ 3 मर्तबा थूकें और आऊज़ो बिल्लाहे मिनश शैतानिर रजीम व शर्रिर रोया पढ़ें और किसी से बयान ना करें हरगिज़ उसे कोई भी नुक्सान ना पहुंचेगा,सुबह उठकर सदक़ा करें कि सदक़ा हर मुश्किल को आसान करता है
मुहब्बत खुदा की तरफ से होती है और नफरत शैतान की तरफ से और मुहब्बत दिल का काम है जिस पर इंसान क़ादिर नहीं इसी लिए हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम अपनी तमाम बीवियों में अदलो इन्साफ करने के बावजूद यूं दुआ फरमाते थे कि "ऐ मौला मैं जिसका मालिक हूं उस पर तो मैंने अमल कर दिया मगर जो चीज़ मेरे क़ुदरत से बाहर है उसके लिए मुझसे मुअख्ज़ा ना फरमा" यानि दिली मुहब्बत किसी से कम किसी से ज़्यादा हो सकती है इसमें इंसान का कोई कुसूर नहीं,लिहाज़ा एक ऐतराज़ जो कि हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम पर किया जाता है कि माज़ अल्लाह आप अपने तमाम बेटों से एक बराबर मुहब्बत नहीं करते थे उसका रद्द हो गया कि वो उनके इख्तियार में नहीं बल्कि खुदा के इख्तियार में था
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 123
जब भाईयों ने देखा कि उनके बाप हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को ही बहुत चाहते हैं तो उन लोगों ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को क़त्ल करने का मंसूबा बनाया मगर सबसे बड़े भाई यहूदा ने मना किया कि ये जुर्मे अज़ीम होगा सो उसे क़त्ल ना करके जंगल में किसी कुंवे में डाल आयें,फिर सारे भाई हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे और उनसे हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को अपने साथ खेलने के लिए ले जाने की ज़िद करने लगे,हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम को ख्वाब में दिखाया गया था कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम पर भेड़िये ने हमला किया है मगर शायद आपने ख्वाब को हू बहू वैसा ही समझा हो और ग़ौर ना किया हो कि ये सिर्फ इशारा है बहरहाल सारे भाई मिलकर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को लेकर जंगल की तरफ निकल पड़े और जैसे ही वो वहां पहुंचे उन्होंने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को सख्त ईज़ा देनी शुरू कर दी और आखिर में आपको एक कुंवे में फेंक दिया
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 123
एक मर्तबा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम से पूछा कि ऐ जिब्रील क्या तुम्हे कभी ज़मीन पर आने के लिए मशक़्क़त भी उठानी पड़ी है इस पर वो फरमाते हैं कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम बेशक 4 मर्तबा मुझे ज़मीन पर आने के लिए बहुत जल्दी करनी पड़ी है
1. पहला जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को आग में डाला जा रहा था तो मौला का हुक्म हुआ कि ऐ जिब्रील मेरे खलील के आग में पहुंचने से पहले तुम उनके पास पहुंचे तो मैंने सिदरह छोड़ा और इससे पहले कि वो आग तक पहुंचते मैं पहुंच गया
2. दूसरा जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने हज़रत इस्माईल के गले पर छुरी चलाने का कसद किया तो मौला ने फरमाया कि ऐ जिब्रील इससे पहले कि इस्माईल के गले पर छुरी चले फौरन जन्नत से एक दुम्बा लेकर इस्माईल के लिए फिदिया बनाओ तो मैं सिदरह से जन्नत गया वहां से दुम्बा लिया फिर ज़मीन पर आकर इस्माईल को हटाकर वो दुम्बा लिटा दिया और वो ज़बह हो गया
3. तीसरा जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को उनके भाइयों ने कुंअे में फेंक दिया और वो पानी की तरफ बढ़ रहे थे तो मौला ने मुझे हुक्म दिया तो इससे पहले कि वो पानी तक पहुंचते मैं एक तख्त लेकर पहुंच गया और उनको बा आसानी उस पर बिठाया
4. चौथा जब आपका दनदाने मुबारक शहीद हुआ और खून की बूंदें ज़मीन की तरफ बढ़ रही थी तो मुझे हुक्म मिला कि आपका खून ज़मीन पर गिरने से पहले अपने हाथों में ले लूं तो मैं सिदरह से ज़मीन पर आया हालांकि आपका खून जिस्म से जुदा होकर ज़मीन की तरफ बढ़ रहा था मगर उसके ज़मीन तक पहुंचने से पहले मैं पहुंचा और उसको अपने हाथों में ले लिया
📕 रूहुल बयान,जिल्द 3,सफह 411
सिदरतुल मुंतहा ज़मीन से 50000 साल की दूरी पर है,सोचिये कि 50000 साल की दूरी हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम आन की आन में तय कर रहे हैं और ये ताक़त मेरे आक़ा के एक ग़ुलाम की है तो अंदाजा लगाइये कि जब एक ग़ुलाम की ताक़त का ये हाल है तो नबियों के नबी जनाब सय्यदुल अम्बिया सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की ताक़त का क्या हाल होगा
📕 अलमलफूज़,जिल्द 4,सफह 7
हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने आपके हाथ पांव खोल दिए और गले में जो कमीज़ तावीज़ की शक्ल में पड़ी थी जिसे घर से निकलते वक़्त हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम ने आपके गले में डाल दी थी ये वही जन्नती कमीज़ थी जिसे आग में डालते वक़्त हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने जन्नत से लाकर पहनाया था ये पुश्त दर पुश्त हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम तक पहुंची थी उसी कमीज़ को हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को पहना दिया,उस कमीज़ के पहनते ही अंधेरे कुंवे में रौशनी जगमगा उठी,और जो पानी खारा था वो मीठा हो गया और उसमे गिज़ाइयत आ गई
📕 जलालैन,हाशिया 4,सफह 198
ये कुंआ शहरे कुंआन से 3 मील के फासले पर अर्दिन में वाक़ेय है,ये कुंवा शद्दाद ने उस वक़्त खुदवाया था जब वो अर्दिन के शहरों को आबाद कर रहा था,इसकी गहराई 70 गज़ से ज़्यादा थी और इसका मुंह ऊपर से तंग और अंदर से चौड़ा था
📕 खज़ाएनुल इरफान,पारा 12,रुकू 12
📕 जलालैन,हाशिया 36,सफह 190
हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम 3 दिन और रात इस कुंवे में रहे
📕 अलकामिल फित्तारीख,जिल्द 1,सफह 55
इस दौरान हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम आपको जन्नती खाना पानी पेश करते रहे
📕 जलालैन,हाशिया 39,सफह 190
जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को उनके भाईयों ने कुंवे में डाल दिया तो घर लौटते हुए एक हिरन का शिकार किया और उसका खून हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की कमीज़ पर लगाकर घर पहुंचे और रो रोकर अपने बाप से कहने लगे कि हाय अफसोस हमारे भाई को भेड़ियों ने मार डाला,भेड़ियों का हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम पर हमला करने वाली ख्वाब की बात चुंकि हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम उनसे कह चुके थे जब कि वो हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को जंगल में खेलने के लिए ले जाते थे तो वही बात उन्होंने लौटकर अपने बाप को सुना दी
हज़रते उमर फारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि कभी भी कोई शख्स किसी के सामने अपने ऐसा कलाम ना करे जिससे कि उसे झूठ बोलने का मौक़ा मिले जैसा कि हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम ने अपने बेटों के सामने ख्वाब की बात बताई कि मैंने देखा है भेड़िये ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम पर हमला किया है हालांकि उनके बेटों को ये इल्म नहीं था कि भेड़िया भी इंसान पर हमला कर सकता है मगर चुंकि उन्होंने अपने बाप से सुन लिया तो उन्होंने वही बात बना दी
हज़रते आमश रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम के बेटों का झूठा रोने के बाद किसी के रोने को भी सच्चा नहीं समझा जा सकता,जैसा कि क़ाज़ी शुरई के पास एक औरत अपना मुक़दमा लेकर हाज़िर हुई और रो रोकर फरियाद करती रही मगर आप उस पर ध्यान ना देते तब लोगों ने कहा कि ऐ अबू उमैय्या क्या आप इसका रोना नहीं देखते तो क़ाज़ी शुरई फरमाते हैं कि हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम के बेटे भी इससे ज़्यादा रोते हुए अपने बाप के पास पहुंचे थे मगर वो ज़ालिम और झूठे थे लिहाज़ा किसी को भी ये हक़ नहीं पहुंचता कि सिर्फ किसी का रोना देखकर फैसला करें बल्कि तहक़ीक़ करें
यहां पर एक सवाल उठता है कि हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम को तो पहले ही पता था कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को नुबूवत मिलनी है फिर क्यों आपने अपने बेटों की बात पर यक़ीन कर लिया कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को भेड़ियों ने मार डाला और क्यों नहीं हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की तलाश की तो इसका जवाब ये है कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को कुछ नहीं हुआ है ये तो आपने उसी वक़्त अपने बेटों से फरमा दिया था कि मैं जानता हूं कि यूसुफ ज़िंदा हैं क्योंकि मैंने आज तक इतना हकीम भेडिया नहीं देखा जो इंसान को तो खा ले मगर उसकी कमीज़ को ना फाड़े लिहाज़ा तुम्हारे कहे पर मैं अल्लाह से ही मदद चाहता हूं,क्योंकि अल्लाह ने आपको यही हुक्म दिया था,और रोना हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की जुदाई में था बे खबरी में नहीं और इस बात पर भी था कि एक नबी के बेटों का ये हाल है कि हसद में अपने ही भाई को ज़ाया कर आयें
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 126
हज़रत यूसुफ के कुंवे से निकलने का वाक़िया युं है कि एक काफिला मदयन से मिस्र की जानिब रवाना हुआ मगर रास्ता भटक कर उसी जंगल में पहुंच गया जहां ये कुंआ था,काफिले के सरदार ने एक शख्स जिसका नाम मालिक बिन ज़अर खज़ाई था उसको कुंवे से पानी निकालने के लिए भेजा जब इसने कुंवे में डोल लटकाई तो हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम उसे पकड़कर ऊपर आ गए,जब आप बाहर आये तो कुंवे की दरों दीवार आपके हुस्न और बरकत की महरूमी पर रो पड़े
📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 187
📕 खज़ाएनुल इर्फान,पारा 12,रुकू 12
जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम कुंवे में थे तो हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने कुंवे में मुनादी करदी कि कोई भी मूज़ी जानवर अपने बिल से बाहर ना निकले ये सुनकर तमाम कीड़े मकोड़े सब अपने बिलों में छिप गए मगर एक सांप शक़ावत में हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की तरफ बढ़ा कि आपको काटे तो हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने एक चीख मारी तो वो सांप बहरा हो गया और उसकी इसी हरकत की वजह से क़यामत तक के लिए तमाम सांपो को बहरा कर दिया गया
📕 क्या आप जानते हैं,सफह 93
हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम बहुत ही खूबसूरत थे,आपके बाल घुंघराले,बड़ी बड़ी आंखें,सफ़ेद रंग सुर्खी माइल,कलाइंया और पिंडलियां मोटी,पेट छोटा गर्ज़ कि तमाम आज़ा में अजीब किस्म का एतेदाल पाया जाता था,आप जब बात करते तो नूर आपके दांतों से निकलता नज़र आता,गोया कि आपका हुस्न ऐसा था जैसे दिन की रौशनी,जब उन काफिले वालों ने आपको देखा तो बहुत खुश हुए और आपको कीमती सरमाया समझकर अपने साथ ले चले कि मिस्र के बाज़ार में आपको अच्छी कीमत पर बेच देंगे,उधर कई दिन बीत जाने के बाद उनके भाइयों ने सोचा कि चलकर देखा जाए कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का क्या हाल है जब वो लोग कुंवे पर पहुंचे तो अंदर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को ना पाया कुछ दूर एक काफिला जाता दिखाई दिया सब उसी तरफ लपके और काफिले को पा लिया,जब उन्होंने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को काफिले के साथ जाते देखा तो काफिले वालों से कहा कि ये हमारा गुलाम है जो भागकर आ गया है अगर तुम लोग खरीदना चाहो तो 20 दरहम में खरीद सकते हो,उन्होंने 20 दरहम दे दिए और हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को लेकर चले आप रोते रहे मगर अपने भाइयों के लिए दुआ ही करते रहे,चुंकि काफिले वालों को अब ये मालूम था कि आप भागकर आये हैं तो उन्होंने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को बेड़ियां पहनाकर सवार कर दिया जब आप कुंआन के कब्रिस्तान से गुज़रे तो अपनी मां की कब्र देखकर रो पड़े और सवारी से उतरकर अपनी मां की क़ब्र से लिपट गए और रो रोकर अपना हाल सुनाने लगे,इधर जब एक गुलाम ने आपको सवारी पर न पाया तो आपको ढूंढ़ता हुआ आपके पास पहुंचा और आपको एक थप्पड़ मार दिया जिससे आप गिरकर बेहोश हो गए,आपकी ये हालत देखकर आसमान के फरिश्ते भी चिल्ला उठे और सब अल्लाह के हुज़ूर हाज़िर होकर फरियाद करने लगे तो मौला ने हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम को भेजा कि जाकर मेरे बन्दे की इमदाद करो,हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए और आपको चुप कराया कि आपने तो आसमान के फरिश्तों को भी रुला दिया और एक पर मारा तो सूरज अंधेरे में छिप गया और ऐसी शदीद आंधी चली कि पूरा काफिला तहस नहस हो गया,काफिले के सरदार ने कहा कि मैं कई बरस से इस रास्ते से गुज़रता रहा हूं मगर आज तक ऐसा तूफान नहीं देखा ये ज़रूर हमारे किसी गुनाह की सज़ा है तो गुलाम ने कहा कि हुज़ूर मुझसे एक गलती हुई है कि मैंने उस लड़के को एक थप्पड़ मार दिया था,तो सरदार बोला कि ज़रूर ज़रूर ये उसी की सज़ा है और सब लोग हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के पास हाज़िर हुए और आपसे माफी चाही तो आपने उसको माफ कर दिया,आपके माफ करते ही मौसम फिर से पहले जैसा खुशगवार हो गया
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 129
जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को मिस्र के बाज़ार में लाया गया तो हर तरफ आपके हुस्न का शोहरा हो ही चुका था तो पूरा मिस्र उसी बाज़ार में जमा हो गया और हर एक आपको खरीदना चाहता था हत्ता कि कीमत बढ़ते बढ़ते यहां तक पहुंच गई कि आपके वज़न के बराबर सोना उतनी ही चांदी उतना ही मुश्क और उतना ही हरीर दिया जायेगा,अब ये कीमत दे पाना हर एक के बस में नहीं था लिहाज़ा ये भारी कीमत देकर आपको क़तफीर जिनका लक़ब अज़ीज़े मिश्र था उन्होंने खरीद लिया
📕 खज़ाएनुल इरफान,पारा 12,रुकू 12
जब तक हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम मिस्र पहुंचते उससे पहले ही आपके आने की खबर मिस्र पहुंच चुकी थी लिहाज़ा पर्दा नशीन औरतें बूढ़े बच्चे जवान गोशा नशीन सब ही आपकी ज़ियारत के लिए सालारे क़ाफिला के घर पर जमा हो चुके थे,जब सरदार ने ये देखा तो आपकी ज़ियारत के बदले 1 अशर्फी मुंह दिखायी तय कर दी और आपको मकान के सहन के बीचो बीच एक कुर्सी पर बिठा दिया,जो आता वो अशर्फी देता और आपके हुस्न का दीदार करता इस तरह 2 दिन में ही हज़ारों अशर्फियां सरदार के पास जमा हो गई,मिस्र की एक बहुत रईस ज़ादी जिसका नाम फारेगा था कई खच्चरों पर सोना चांदी लेकर आपको खरीदने की गर्ज़ से आयी थी मगर जैसे ही हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के चेहरे पर नज़र पड़ी तो फौरन बेखुद होकर गिर पड़ी,जब इफाक़ा हुआ तो कहने लगी कि आप कौन हैं मैं जितना माल आपको खरीदने के लिए लेकर आई थी यक़ीन जानिये वो आपके पैर की भी कीमत नहीं बन सकती,उसकी आंखें चौंधिया रही थी बोली कि आपको किसने बनाया है,तब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि मैं उस खुदा का बंदा हूं जिसने ये तमाम ज़मीनों आसमान चांद सूरज सितारे कहकशां दुनिया जहान की तमाम नेमतों को पैदा किया है,इतना सुनते ही वो औरत कहती है कि मैं ऐसी ज़ात पर ईमान लाती हूं जिसने आप जैसे हसीन को पैदा किया और जिसकी मख्लूक़ इतनी हसीन है तो वो खुद कितना हसीनों जमील होगा ये कहकर अपना सारा माल राहे खुदा में लुटा दिया और इबादते इलाही में मशगूल हो गई
📕 सीरतुस सालेहीन,सफह 146/248
उस वक़्त मिस्र का बादशाह अल-रियान बिन वलीद था ये बाद में हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम पर ईमान भी लाये और उनको बादशाह भी बनाया,अज़ीज़े मिस्र वज़ीर का लक़ब था जब अज़ीज़े मिश्र ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को खरीदा तो आप 17 साल के थे और 13 साल आप वहीं रहे,30 साल की उम्र में बादशाह ने अज़ीज़े मिश्र को माज़ूल करके हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को अज़ीज़े मिश्र बनाया और 3 साल बाद ही मिस्र की बादशाहत भी आपको मिल गई,दुनिया में 3 मुहतरम हज़रात ऐसे हुए हैं जिन्होंने बहुत ही अज़ीम फिरासत से काम लिया है पहला तो अज़ीज़े मिश्र जिन्होंने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को देखते ही उनकी पेशानी पर स'आदत की निशानी देख ली और बड़ी मुहब्बत से आपको घर लेकर आये दूसरी हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम की बेटी जिन्होंने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को देखकर अपने बाप से कहा कि इन्हें अपने घर में नौकर रख लीजिये कि ये ताक़तवर के साथ साथ अमानतदार भी हैं और तीसरे हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु जिन्होंने अपनी फिरासत से ही हज़रते उमर को खलीफा मुंतखिब किया
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 131
ज़ुलेखा अज़ीज़े मिस्र की बीवी थीं जो बहुत ही खूबसूरत थीं और अज़ीज़े मिश्र से इनका निकाह करना भी बहुत ही अजीब था,वाक़िया ये हुआ कि इन्होने ख्वाब में लगातार 3 रातों तक हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को देखा तीसरी शब में आपने ख्वाब में ही हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से पूछा कि आप कौन हैं तो आप फरमाते हैं कि मैं अज़ीज़े मिश्र हूं,आप मग़रिब के बादशाह शाहे तैमूस की बेटी थीं और बड़े बड़े बादशाहों का पैगाम आपके लिए आता मगर आप इनकार करती रहीं क्योंकि आपके दिल पर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का नक्श जम चुका था और उनकी मुहब्बत में वारफता हो चुकी थीं,जब अज़ीज़े मिश्र का पैगाम आपके लिए आया तो आपने फौरन हां कर दिया मगर जब आपने अज़ीज़े मिश्र को देखा तो आप हैरान रह गईं कि ये तो वो सूरत नहीं है,अज़ीज़े मिश्र ना-मर्द थे जब तक हज़रते ज़ुलेखा आपके निकाह में रहीं बाकेरा ही रहीं और ये भी याद रहे कि अज़ीज़े मिस्र से निकाह उन्होंने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम समझ कर किया था उन्हें हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से मुहब्बत थी लिहाज़ा उन पर बदकारी का इलज़ाम लगाना भी दुरुस्त नहीं,जब अज़ीज़े मिश्र ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को खरीदा और उन्हें लेकर घर आये और ज़ुलेखा ने उन्हें देखा तो पहचान गईं कि ये तो वही हैं और इसी वारफतगी को वो जज़्ब ना कर पाईं और गुनाह का इरादा कर बैठीं
📕 रुहुल बयान,पारा 12,सफह 157
बेशक औरत ने उसका इरादा किया और वो भी औरत का इरादा करता अगर अपने रब की दलील ना देख लेता
📕 पारा 12,सूरह यूसुफ,आयत 24
वाक़िया ये हुआ कि जब ज़ुलेखा ने अपने महल में हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को देखा तो उसने एक और खूबसूरत महल बनवाया जिसके अंदर 7 कमरे थे एक के अन्दर दूसरा दूसरे के अंदर तीसरा इस तरह 7 कमरे थे,फिर एक दिन मौका पाकर ज़ुलेखा हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को लेकर उसी महल में पहुंची और हर कमरे में दाखिल होते हुए हर कमरे का दरवाज़ा बंद करती गयीं,इस तरह जब सातवें कमरे में पहुंची तो हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से अपने गुनाह का इरादा ज़ाहिर किया आप सुनकर हैरान रह गए और फरमाया कि अल्लाह से डर मगर वो आपके पीछे पड़ी रहीं आपने देखा कि आपके बाप हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम अपनी उंगलियों को अपने मुंह में दबाए हुए इशारा फरमा रहे हैं कि बेटा कभी इस कबाहत में ना पड़ना,जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को बचने की कोई सूरत ना दिखी तो आप दरवाज़े की तरफ भागे जैसे ही दरवाज़े के करीब पहुंचे दरवाज़ा खुद बखुद खुल गया इस तरह आप हर दरवाज़े की तरफ भागने लगे और ज़ुलेखा आपके पीछे पीछे दौड़ती रहीं,इसी अशना में ज़ुलेखा ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का कुर्ता पकड़ा मगर आपके भागने के सबब वो फट गया जैसे ही वो आखरी दरवाज़े से बाहर निकले सामने ही अज़ीज़े मिस्र खड़े हुए मिले,अब जब ज़ुलेखा ने अपने शौहर को सामने देखा तो फौरन अपनी बराअत ज़ाहिर करते हुए बोलीं कि जो तेरी बीवी से बुराई का इरादा रखता हो उसकी क्या सज़ा है या तो इसे क़ैद कर दो या फिर सज़ा दो,चुंकि ज़ुलेखा को हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से मुहब्बत थी इसलिए अगर चे अपने को बचाने के लिए इलज़ाम उन पर लगाया था मगर फिर भी रिआयत रखी कि पहले क़ैदखाने का ज़िक्र किया वो भी किसी जुर्मे अज़ीम के लिए नहीं बल्कि यही कहा कि जो तेरी बीवी से बुराई का इरादा रखता हो ना कि ये कि इसने मेरे साथ दस्त दराज़ी की,जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने उसकी बात सुनी तो बोले कि नहीं इसने खुद मुझको माईल करना चाहा अज़ीज़े मिश्र खुद हैरान थे कि किसकी बात को सच्चा जानूं फिर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से बोले कि क्या तुम अपनी बराअत ज़ाहिर कर सकते हो तो आप फरमाते हैं कि बेशक इस बच्चे से पूछ लो,उस वक़्त वहीं पर ज़ुलेखा के मामू का लड़का पालने में मौजूद था जो कि सिर्फ 3 महीने का था जब अज़ीज़े मिश्र ने ये सुना तो हैरान होकर बोला कि क्या ये 3 महीने का बच्चा गवाही दे सकता है तो आप फरमाते हैं कि बेशक खुदा जो चाहे कर सकता है तुम पूछो जब वो बच्चे से मुखातिब हुए तो 3 महीने का बच्चा फसीह ज़बान में बोला और कहा कि यूसुफ का कुर्ता देखा जाए अगर उनका कुर्ता आगे से फटा होगा तो ज़ुलेखा सच्ची है और अगर कुर्ता पीछे से फटा होगा तो यूसुफ सच्चे हैं मतलब ये था कि अगर कुर्ता आगे से फटा होता तो औरत बचने की कोशिश करती जिसमे आगे से कुर्ता फटता और अगर पीछे से फटा है तो यक़ीनन वो खुद बचना चाह रहे होंगे और उन्हें पकड़ने में कुर्ता पीछे से फटा होगा,एक 3 महीने के बच्चे का बोलना ही हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की पाकदामनी के लिए काफी था फिर उसकी हकीमाना दलील सुनकर अज़ीज़े मिश्र को इल्म हो गया कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ही सच्चे हैं तो वो कहते हैं कि आप ग़म ना करें और ज़ुलेखा से कहते हैं कि ये तुम्हारा मक्र है बेशक तुम अपने गुनाह की माफी मांगो
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 136
📕 रुहुल बयान,जिल्द 12,सफह 157
यहां पर कुछ बातें जान लेना ज़रूरी है पहली तो ये कि बेशक खुदा सब कुछ कर सकता है मगर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को कैसे पता चला कि यह बच्चा बोलेगा हालांकि 3 महीने के बच्चे का बोलना नामुमकिन है मगर आपने उससे पूछने को कहा कि जो बोल नहीं सकता मतलब कि आपको पता था कि ये बच्चा मेरी गवाही देगा,ये ग़ैब भी है और आपका इख्तियार भी कि एक ना बोलने वाले बच्चे से अपनी गवाही दिलवाई दूसरा ये कि आप मिस्र में थे आपके बाप हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम आपसे सैकड़ों मील दूर थे सो उनको कैसे पता चला कि मेरा बेटा सख्त इम्तिहान में है और आकर उनको तम्बीह की तो मानना पड़ेगा कि आपको भी ग़ैब था और सिर्फ ग़ैब ही नहीं था बल्कि सैकड़ों मील दूर से ही अपने बेटे की इम्दाद को चले आने की ताकत भी थी,और हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम या हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम ही नहीं बल्कि जितने भी अम्बिया गुज़रे हैं सबके सब ग़ैब दां थे क्योंकि नबी का माना ही होते हैं छिपी हुई बातों को जानने वाला,अब रही ये बात कि कोई कहे कि अगर अम्बिया ग़ैब दां भी थे और इख्तियार वाले भी तो क्यों इतनी मुश्किलों में पड़े रहे तो इसका सीधा सा जवाब ये है कि बेशक वो सब जानते थे मगर खुदा की रज़ा पर राज़ी थे वरना उन्हें इख्तियार तो इतना था कि उंगली का एक इशारा कर दें तो चांद को भी चीर के रख दें
इतना सब कुछ होने के बाद भी ज़ुलेखा की वारफ्तगी में कमी ना आई और वो हर वक़्त हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के ख्याल में ही गुम रहतीं अब ये खबर महल से निकलकर सरे आम होने लगी थी कि वज़ीर की बीवी अपने गुलाम पर मर मिटी हैं,जब ये काना फूसी ज़ुलेखा तक पहुंची तो आपने एक दावत का इंतेज़ाम किया और उसमे उन सारी औरतों का बुलवा भेजा जो आप पर इल्ज़ाम तराशी करती थीं,जब सब ही आ गईं तो उनके सामने फलों को लगा दिया गया और हाथ में छुरी दे दी गयी कि इसे काट लें और पहले से ही आपने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को ये समझा रखा था कि जब मैं इशारा करूं तो आप पर्दे से बाहर आ जायें,जब ज़ुलेखा ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को बाहर आने का इशारा किया और आप बाहर आये जब औरतों की नज़र हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के चेहरे पर पड़ी तो आपके चेहरे पर नुबूवतो रिसालत के अनवार तवाज़ो इंकिसार के आसार व शाहाना हैबतो इक़्तेदार को देखकर आपके हुस्नो जमाल में ऐसा गुम हुईं कि किसी को भी होश ना रहा और बजाये फल काटने के सब ने ही अपनी उंगलियों को काट लिया और उन्हें इसकी खबर तक न हुई,और सब इक ज़बान में ये बोलीं कि लिल्लाह ये कोई इंसान नहीं इसका हुस्न तो फरिश्तों से भी बढ़कर है तब ज़ुलेखा बोलीं कि तुम लोग एक आन का जमाल बर्दाश्त ना कर सकी और मैं तो हर वक़्त उनके हुस्नो जमाल का दीदार करती हूं फिर ज़रा सोचो कि मैं कैसे अपने होश में रहूं
📕 खज़ाएनुल इर्फान,पारा 12,सफह 248
*हुस्ने यूसुफ पे कटी मिस्र में अंगुश्ते ज़नां*
*सर कटाते हैं तेरे नाम पे मर्दाने अरब*
आलाहज़रत अज़ीमुल बरकत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का ये शेर उसी वाक़िये की तरफ इशारा है मगर वाह रे मेरे आलाहज़रत 1 ही शेर के दोनों मिस्रो में एक एक लफ्ज़ ऐसे तक़ाबुल से लिखा कि सुनने वाला बिना दाद दिये रह नहीं पायेगा,मुलाहज़ा फरमायें
1. वहां हुस्न है यहां नाम है,यानि किसी का हुस्न देखकर उसमें महव हो जाना ये और बात है मगर यहां तो हाल ये है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का हुस्न लाखों करोड़ो अरबों ने नहीं देखा फक़त आपके नाम पर जान दे रहे हैं
2. वहां कटना है यहां कटाना है,कटना अदमे क़स्द कहलाता है यानि गलती से कट गयी और कटाना क़स्दो इरादा ज़ाहिर करता है कि पता है कि कट जाना है फिर भी रण में घुसे जा रहे हैं जान की भी फिक्र नहीं
3. वहां मिस्र है यहां अरब है,अरब भी मिस्र से अफ्ज़लो आला है और अरब की सरकशी ज़मानये जाहिलियत में बहुत मशहूर थी फिर ऐसे में अरब के मर्दों का इस्लाम के लिए सर कटाना ये और भी हैरत अंगेज़ बात हुई
4. वहां उंगली है यहां सर है,ज़ाहिर सी बात है सर भी उंगली से कहीं आला है कि उंगली कटने से जान को कोई खतरा नहीं होता मगर गर्दन कट जाए तो फौरन रूह परवाज़ कर जायेगी
5. वहां औरत हैं यहां मर्द हैं,मर्द भी औरत से अफज़ल है
📕 हदायके बख्शिश,सफह 28
ज़ुलेखा ने उसी महफिल में भी सबके सामने कह दिया कि अगर इसने मेरी बात नहीं मानी तो इसे क़ैदखाने जाना होगा,अब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के सामने चन्द मुश्किलात थी पहली ये कि ज़ुलेखा हद दर्जे की खूबसूरत थीं दूसरी ये कि वो मालो दौलत वाली थीं कि ज़रूरत पड़ने पर अपना पूरा माल लुटाने को तैयार थीं तीसरी ये कि महफिल की सारी औरतें भी आपको रगबत दिला रहीं थीं चुंकि वो सब खुद भी आप पर आशिक हो चुकी थीं और सब ही ने आपसे मुलाक़ात का इरादा ज़ाहिर कर दिया था और चौथा ये कि ज़ुलेखा की दीवानगी आपके सामने थी ऐतराज़ करने पर हो सकता था कि वो आपको क़त्ल करने की साजिश करतीं,इन सबको देखते हुए आपने क़ैदखाने जाने का फैसला किया,ख्याल रहे कि ये मुश्किल रास्ता आपने रब की मर्ज़ी पर किया था वरना वो चाहते तो आफियत का सवाल करते मगर आपने ऐसा नहीं किया,तिर्मिज़ी में हज़रत मअज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि एक शख्श युं दुआ कर रहा था कि "ऐ अल्लाह मुझे मुसीबत पर सब्र करने की ताक़त अता फरमा" तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उसको मना फरमाया कि तूने खुद अपने लिए मुसीबत मांग ली बल्कि तुझे युं दुआ करनी चाहिए कि "ऐ अल्लाह मुझे परशानियों से आफियत अता फरमा" यहां एक बात ये भी ज़हन में रहे कि जब अज़ीज़े मिश्र खुद जानते थे कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम पाक बाज़ हैं तो फिर उन्हें क़ैदखाने क्यों भेजा तो इसका जवाब ये है कि बेशक वो जानते थे कि आप नेक है मगर ज़ाहिरी मस्लेहत के तहत आपको क़ैद किया वरना आप बाहर रहते तो रोज़ बरोज़ आपको इन फितनों का सामना करना पड़ता
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 140
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