हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ।। Biography of Hazrat Yusuf Alaihissalam


हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम जब पैदा हुए तो आपके वालिद हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम की उम्र 40 बरस थी,आपकी वालिदा का नाम राहील है 

📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 358

हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बीच 1005 साल का फासला है 

📕 तफसीरे सावी,जिल्द 2,सफह 27

हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि करीम बिन करीम बिन करीम बिन करीम यूसुफ बिन याक़ूब बिन इस्हाक़ बिन इब्राहीम अलैहिस्सलातो वत्तस्लीम हैं,हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने ख्वाब देखा कि 11 सितारे और चांद सूरज उनको सज्दा कर रहे हैं 11 सितारों से मुराद आपके 11 भाई और चांद सूरज से मुराद आपके वालिदैन हैं,यहां सज्दे से मुराद सज्दये ताज़ीमी है जो कि पहले की उम्मतों में जायज़ था मगर हमारी शरीयत में हराम है,जिन 11 सितारों को आपने ख्वाब में देखा उनके नाम ये हैं जिरबान,तारिक,ज़ियाल,कालबिस,उमूदान,फीलक़,फज़अ,विसाब,ज़ुलकफतैन,ज़रूज,मिस्बाह जब आपने ये ख्वाब अपने वालिद को बताया तो उन्होने मना किया के ख्वाब हरगिज़ अपने भाईयों को ना बतायें कि वो हसद की आग में और जल जायेंगे,ये ख्वाब आपने 12 साल की उम्र में देखा 

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 122

ये ख्वाब आपने शबे क़द्र में देखा जो कि शबे जुमा भी थी 

📕 खज़ाएनुल इरफान,पारा 12,रुकू 11

इस ख्वाब की ताबीर 80 साल के बाद पूरी हुई (तफसील बाद में आयेगी) 

📕 जलालैन,हाशिया 13,सफह 198

ⓩ ख्वाब में सूरज का देखना कभी बादशाहत दौलत या खूबसूरत औरत की ताबीर होती है तो कभी फसाद की भी ताबीर ली जाती है ये सब ख्वाब देखने वाले के हालात वक़्त ज़माने के हिसाब से तय होते हैं,बहरहाल ये एक मुश्किल काम है कि किसी के ख्वाब की सटीक ताबीर बताई जाए बस इतना याद रखें कि जब भी कोई ऐसा ख्वाब देखें जो दिल को भला मालूम हो या सराहतन भी अच्छा ही हो तो ये खुदा की तरफ से इलक़ा होता है तो उसकी हम्दो सना करे अगर किसी से बयान करना चाहे तो कर सकता है,और जब कोई ऐसा ख्वाब देखें जिससे दिल में डर पैदा हो या ग़मगीन हो जायें तो ये शैतान की तरफ से है जब आंख खुले तो बाईं तरफ 3 मर्तबा थूकें और आऊज़ो बिल्लाहे मिनश शैतानिर रजीम व शर्रिर रोया पढ़ें और किसी से बयान ना करें हरगिज़ उसे कोई भी नुक्सान ना पहुंचेगा,सुबह उठकर सदक़ा करें कि सदक़ा हर मुश्किल को आसान करता है

मुहब्बत खुदा की तरफ से होती है और नफरत शैतान की तरफ से और मुहब्बत दिल का काम है जिस पर इंसान क़ादिर नहीं इसी लिए हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम अपनी तमाम बीवियों में अदलो इन्साफ करने के बावजूद यूं दुआ फरमाते थे कि "ऐ मौला मैं जिसका मालिक हूं उस पर तो मैंने अमल कर दिया मगर जो चीज़ मेरे क़ुदरत से बाहर है उसके लिए मुझसे मुअख्ज़ा ना फरमा" यानि दिली मुहब्बत किसी से कम किसी से ज़्यादा हो सकती है इसमें इंसान का कोई कुसूर नहीं,लिहाज़ा एक ऐतराज़ जो कि हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम पर किया जाता है कि माज़ अल्लाह आप अपने तमाम बेटों से एक बराबर मुहब्बत नहीं करते थे उसका रद्द हो गया कि वो उनके इख्तियार में नहीं बल्कि खुदा के इख्तियार में था

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 123

जब भाईयों ने देखा कि उनके बाप हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को ही बहुत चाहते हैं तो उन लोगों ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को क़त्ल करने का मंसूबा बनाया मगर सबसे बड़े भाई यहूदा ने मना किया कि ये जुर्मे अज़ीम होगा सो उसे क़त्ल ना करके जंगल में किसी कुंवे में डाल आयें,फिर सारे भाई हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे और उनसे हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को अपने साथ खेलने के लिए ले जाने की ज़िद करने लगे,हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम को ख्वाब में दिखाया गया था कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम पर भेड़िये ने हमला किया है मगर शायद आपने ख्वाब को हू बहू वैसा ही समझा हो और ग़ौर ना किया हो कि ये सिर्फ इशारा है बहरहाल सारे भाई मिलकर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को लेकर जंगल की तरफ निकल पड़े और जैसे ही वो वहां पहुंचे उन्होंने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को सख्त ईज़ा देनी शुरू कर दी और आखिर में आपको एक कुंवे में फेंक दिया 

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 123

एक मर्तबा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम से पूछा कि ऐ जिब्रील क्या तुम्हे कभी ज़मीन पर आने के लिए मशक़्क़त भी उठानी पड़ी है इस पर वो फरमाते हैं कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम बेशक 4 मर्तबा मुझे ज़मीन पर आने के लिए बहुत जल्दी करनी पड़ी है

1. पहला जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को आग में डाला जा रहा था तो मौला का हुक्म हुआ कि ऐ जिब्रील मेरे खलील के आग में पहुंचने से पहले तुम उनके पास पहुंचे तो मैंने सिदरह छोड़ा और इससे पहले कि वो आग तक पहुंचते मैं पहुंच गया

2. दूसरा जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने हज़रत इस्माईल के गले पर छुरी चलाने का कसद किया तो मौला ने फरमाया कि ऐ जिब्रील इससे पहले कि इस्माईल के गले पर छुरी चले फौरन जन्नत से एक दुम्बा लेकर इस्माईल के लिए फिदिया बनाओ तो मैं सिदरह से जन्नत गया वहां से दुम्बा लिया फिर ज़मीन पर आकर इस्माईल को हटाकर वो दुम्बा लिटा दिया और वो ज़बह हो गया

3. तीसरा जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को उनके भाइयों ने कुंअे में फेंक दिया और वो पानी की तरफ बढ़ रहे थे तो मौला ने मुझे हुक्म दिया तो इससे पहले कि वो पानी तक पहुंचते मैं एक तख्त लेकर पहुंच गया और उनको बा आसानी उस पर बिठाया

4. चौथा जब आपका दनदाने मुबारक शहीद हुआ और खून की बूंदें ज़मीन की तरफ बढ़ रही थी तो मुझे हुक्म मिला कि आपका खून ज़मीन पर गिरने से पहले अपने हाथों में ले लूं तो मैं सिदरह से ज़मीन पर आया हालांकि आपका खून जिस्म से जुदा होकर ज़मीन की तरफ बढ़ रहा था  मगर उसके ज़मीन तक पहुंचने से पहले मैं पहुंचा और उसको अपने हाथों में ले लिया 

📕 रूहुल बयान,जिल्द 3,सफह 411

सिदरतुल मुंतहा ज़मीन से 50000 साल की दूरी पर है,सोचिये कि 50000 साल की दूरी हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम आन की आन में तय कर रहे हैं और ये ताक़त मेरे आक़ा के एक ग़ुलाम की है तो अंदाजा लगाइये कि जब एक ग़ुलाम की ताक़त का ये हाल है तो नबियों के नबी जनाब सय्यदुल अम्बिया सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की ताक़त का क्या हाल होगा 

📕 अलमलफूज़,जिल्द 4,सफह 7

हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने आपके हाथ पांव खोल दिए और गले में जो कमीज़ तावीज़ की शक्ल में पड़ी थी जिसे घर से निकलते वक़्त हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम ने आपके गले में डाल दी थी ये वही जन्नती कमीज़ थी जिसे आग में डालते वक़्त हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने जन्नत से लाकर पहनाया था ये पुश्त दर पुश्त हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम तक पहुंची थी उसी कमीज़ को हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को पहना दिया,उस कमीज़ के पहनते ही अंधेरे कुंवे में रौशनी जगमगा उठी,और जो पानी खारा था वो मीठा हो गया और उसमे गिज़ाइयत आ गई 

📕 जलालैन,हाशिया 4,सफह 198

ये कुंआ शहरे कुंआन से 3 मील के फासले पर अर्दिन में वाक़ेय है,ये कुंवा शद्दाद ने उस वक़्त खुदवाया था जब वो अर्दिन के शहरों को आबाद कर रहा था,इसकी गहराई 70 गज़ से ज़्यादा थी और इसका मुंह ऊपर से तंग और अंदर से चौड़ा था 

📕 खज़ाएनुल इरफान,पारा 12,रुकू 12 

📕 जलालैन,हाशिया 36,सफह 190

हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम 3 दिन और रात इस कुंवे में रहे 

📕 अलकामिल फित्तारीख,जिल्द 1,सफह 55

इस दौरान हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम आपको जन्नती खाना पानी पेश करते रहे 

📕 जलालैन,हाशिया 39,सफह 190

जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को उनके भाईयों ने कुंवे में डाल दिया तो घर लौटते हुए एक हिरन का शिकार किया और उसका खून हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की कमीज़ पर लगाकर घर पहुंचे और रो रोकर अपने बाप से कहने लगे कि हाय अफसोस हमारे भाई को भेड़ियों ने मार डाला,भेड़ियों का हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम पर हमला करने वाली ख्वाब की बात चुंकि हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम उनसे कह चुके थे जब कि वो हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को जंगल में खेलने के लिए ले जाते थे तो वही बात उन्होंने लौटकर अपने बाप को सुना दी

हज़रते उमर फारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि कभी भी कोई शख्स किसी के सामने अपने ऐसा कलाम ना करे जिससे कि उसे झूठ बोलने का मौक़ा मिले जैसा कि हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम ने अपने बेटों के सामने ख्वाब की बात बताई कि मैंने देखा है भेड़िये ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम पर हमला किया है हालांकि उनके बेटों को ये इल्म नहीं था कि भेड़िया भी इंसान पर हमला कर सकता है मगर चुंकि उन्होंने अपने बाप से सुन लिया तो उन्होंने वही बात बना दी 

हज़रते आमश रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम के बेटों का झूठा रोने के बाद किसी के रोने को भी सच्चा नहीं समझा जा सकता,जैसा कि क़ाज़ी शुरई के पास एक औरत अपना मुक़दमा लेकर हाज़िर हुई और रो रोकर फरियाद करती रही मगर आप उस पर ध्यान ना देते तब लोगों ने कहा कि ऐ अबू उमैय्या क्या आप इसका रोना नहीं देखते तो क़ाज़ी शुरई फरमाते हैं कि हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम के बेटे भी इससे ज़्यादा रोते हुए अपने बाप के पास पहुंचे थे मगर वो ज़ालिम और झूठे थे लिहाज़ा किसी को भी ये हक़ नहीं पहुंचता कि सिर्फ किसी का रोना देखकर फैसला करें बल्कि तहक़ीक़ करें

यहां पर एक सवाल उठता है कि हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम को तो पहले ही पता था कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को नुबूवत मिलनी है फिर क्यों आपने अपने बेटों की बात पर यक़ीन कर लिया कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को भेड़ियों ने मार डाला और क्यों नहीं हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की तलाश की तो इसका जवाब ये है कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को कुछ नहीं हुआ है ये तो आपने उसी वक़्त अपने बेटों से फरमा दिया था कि मैं जानता हूं कि यूसुफ ज़िंदा हैं क्योंकि मैंने आज तक इतना हकीम भेडिया नहीं देखा जो इंसान को तो खा ले मगर उसकी कमीज़ को ना फाड़े लिहाज़ा तुम्हारे कहे पर मैं अल्लाह से ही मदद चाहता हूं,क्योंकि अल्लाह ने आपको यही हुक्म दिया था,और रोना हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की जुदाई में था बे खबरी में नहीं और इस बात पर भी था कि एक नबी के बेटों का ये हाल है कि हसद में अपने ही भाई को ज़ाया कर आयें

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 126

हज़रत यूसुफ के कुंवे से निकलने का वाक़िया युं है कि एक काफिला मदयन से मिस्र की जानिब रवाना हुआ मगर रास्ता भटक कर उसी जंगल में पहुंच गया जहां ये कुंआ था,काफिले के सरदार ने एक शख्स जिसका नाम मालिक बिन ज़अर खज़ाई था उसको कुंवे से पानी निकालने के लिए भेजा जब इसने कुंवे में डोल लटकाई तो हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम उसे पकड़कर ऊपर आ गए,जब आप बाहर आये तो कुंवे की दरों दीवार आपके हुस्न और बरकत की महरूमी पर रो पड़े 

📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 187 

📕 खज़ाएनुल इर्फान,पारा 12,रुकू 12

जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम कुंवे में थे तो हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने कुंवे में मुनादी करदी कि कोई भी मूज़ी जानवर अपने बिल से बाहर ना निकले ये सुनकर तमाम कीड़े मकोड़े सब अपने बिलों में छिप गए मगर एक सांप शक़ावत में हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की तरफ बढ़ा कि आपको काटे तो हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने एक चीख मारी तो वो सांप बहरा हो गया और उसकी इसी हरकत की वजह से क़यामत तक के लिए तमाम सांपो को बहरा कर दिया गया 

📕 क्या आप जानते हैं,सफह 93

हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम बहुत ही खूबसूरत थे,आपके बाल घुंघराले,बड़ी बड़ी आंखें,सफ़ेद रंग सुर्खी माइल,कलाइंया और पिंडलियां मोटी,पेट छोटा गर्ज़ कि तमाम आज़ा में अजीब किस्म का एतेदाल पाया जाता था,आप जब बात करते तो नूर आपके दांतों से निकलता नज़र आता,गोया कि आपका हुस्न ऐसा था जैसे दिन की रौशनी,जब उन काफिले वालों ने आपको देखा तो बहुत खुश हुए और आपको कीमती सरमाया समझकर अपने साथ ले चले कि मिस्र के बाज़ार में आपको अच्छी कीमत पर बेच देंगे,उधर कई दिन बीत जाने के बाद उनके भाइयों ने सोचा कि चलकर देखा जाए कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का क्या हाल है जब वो लोग कुंवे पर पहुंचे तो अंदर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को ना पाया कुछ दूर एक काफिला जाता दिखाई दिया सब उसी तरफ लपके और काफिले को पा लिया,जब उन्होंने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को काफिले के साथ जाते देखा तो काफिले वालों से कहा कि ये हमारा गुलाम है जो भागकर आ गया है अगर तुम लोग खरीदना चाहो तो 20 दरहम में खरीद सकते हो,उन्होंने 20 दरहम दे दिए और हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को लेकर चले आप रोते रहे मगर अपने भाइयों के लिए दुआ ही करते रहे,चुंकि काफिले वालों को अब ये मालूम था कि आप भागकर आये हैं तो उन्होंने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को बेड़ियां पहनाकर सवार कर दिया जब आप कुंआन के कब्रिस्तान से गुज़रे तो अपनी मां की कब्र देखकर रो पड़े और सवारी से उतरकर अपनी मां की क़ब्र से लिपट गए और रो रोकर अपना हाल सुनाने लगे,इधर जब एक गुलाम ने आपको सवारी पर न पाया तो आपको ढूंढ़ता हुआ आपके पास पहुंचा और आपको एक थप्पड़ मार दिया जिससे आप गिरकर बेहोश हो गए,आपकी ये हालत देखकर आसमान के फरिश्ते भी चिल्ला उठे और सब अल्लाह के हुज़ूर हाज़िर होकर फरियाद करने लगे तो मौला ने हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम को भेजा कि जाकर मेरे बन्दे की इमदाद करो,हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए और आपको चुप कराया कि आपने तो आसमान के फरिश्तों को भी रुला दिया और एक पर मारा तो सूरज अंधेरे में छिप गया और ऐसी शदीद आंधी चली कि पूरा काफिला तहस नहस हो गया,काफिले के सरदार ने कहा कि मैं कई बरस से इस रास्ते से गुज़रता रहा हूं मगर आज तक ऐसा तूफान नहीं देखा ये ज़रूर हमारे किसी गुनाह की सज़ा है तो गुलाम ने कहा कि हुज़ूर मुझसे एक गलती हुई है कि मैंने उस लड़के को एक थप्पड़ मार दिया था,तो सरदार बोला कि ज़रूर ज़रूर ये उसी की सज़ा है और सब लोग हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के पास हाज़िर हुए और आपसे माफी चाही तो आपने उसको माफ कर दिया,आपके माफ करते ही मौसम फिर से पहले जैसा खुशगवार हो गया 

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 129

जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को मिस्र के बाज़ार में लाया गया तो हर तरफ आपके हुस्न का शोहरा हो ही चुका था तो पूरा मिस्र उसी बाज़ार में जमा हो गया और हर एक आपको खरीदना चाहता था हत्ता कि कीमत बढ़ते बढ़ते यहां तक पहुंच गई कि आपके वज़न के बराबर सोना उतनी ही चांदी उतना ही मुश्क और उतना ही हरीर दिया जायेगा,अब ये कीमत दे पाना हर एक के बस में नहीं था लिहाज़ा ये भारी कीमत देकर आपको क़तफीर जिनका लक़ब अज़ीज़े मिश्र था उन्होंने खरीद लिया 

📕 खज़ाएनुल इरफान,पारा 12,रुकू 12

जब तक हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम मिस्र पहुंचते उससे पहले ही आपके आने की खबर मिस्र पहुंच चुकी थी लिहाज़ा पर्दा नशीन औरतें बूढ़े बच्चे जवान गोशा नशीन सब ही आपकी ज़ियारत के लिए सालारे क़ाफिला के घर पर जमा हो चुके थे,जब सरदार ने ये देखा तो आपकी ज़ियारत के बदले 1 अशर्फी मुंह दिखायी तय कर दी और आपको मकान के सहन के बीचो बीच एक कुर्सी पर बिठा दिया,जो आता वो अशर्फी देता और आपके हुस्न का दीदार करता इस तरह 2 दिन में ही हज़ारों अशर्फियां सरदार के पास जमा हो गई,मिस्र की एक बहुत रईस ज़ादी जिसका नाम फारेगा था कई खच्चरों पर सोना चांदी लेकर आपको खरीदने की गर्ज़ से आयी थी मगर जैसे ही हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के चेहरे पर नज़र पड़ी तो फौरन बेखुद होकर गिर पड़ी,जब इफाक़ा हुआ तो कहने लगी कि आप कौन हैं मैं जितना माल आपको खरीदने के लिए लेकर आई थी यक़ीन जानिये वो आपके पैर की भी कीमत नहीं बन सकती,उसकी आंखें चौंधिया रही थी बोली कि आपको किसने बनाया है,तब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि मैं उस खुदा का बंदा हूं जिसने ये तमाम ज़मीनों आसमान चांद सूरज सितारे कहकशां दुनिया जहान की तमाम नेमतों को पैदा किया है,इतना सुनते ही वो औरत कहती है कि मैं ऐसी ज़ात पर ईमान लाती हूं जिसने आप जैसे हसीन को पैदा किया और जिसकी मख्लूक़ इतनी हसीन है तो वो खुद कितना हसीनों जमील होगा ये कहकर अपना सारा माल राहे खुदा में लुटा दिया और इबादते इलाही में मशगूल हो गई 

📕 सीरतुस सालेहीन,सफह 146/248

उस वक़्त मिस्र का बादशाह अल-रियान बिन वलीद था ये बाद में हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम पर ईमान भी लाये और उनको बादशाह भी बनाया,अज़ीज़े मिस्र वज़ीर का लक़ब था जब अज़ीज़े मिश्र ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को खरीदा तो आप 17 साल के थे और 13 साल आप वहीं रहे,30 साल की उम्र में बादशाह ने अज़ीज़े मिश्र को माज़ूल करके हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को अज़ीज़े मिश्र बनाया और 3 साल बाद ही मिस्र की बादशाहत भी आपको मिल गई,दुनिया में 3 मुहतरम हज़रात ऐसे हुए हैं जिन्होंने बहुत ही अज़ीम फिरासत से काम लिया है पहला तो अज़ीज़े मिश्र जिन्होंने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को देखते ही उनकी पेशानी पर स'आदत की निशानी देख ली और बड़ी मुहब्बत से आपको घर लेकर आये दूसरी हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम की बेटी जिन्होंने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को देखकर अपने बाप से कहा कि इन्हें अपने घर में नौकर रख लीजिये कि ये ताक़तवर के साथ साथ अमानतदार भी हैं और तीसरे हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु जिन्होंने अपनी फिरासत से ही हज़रते उमर को खलीफा मुंतखिब किया

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 131

ज़ुलेखा अज़ीज़े मिस्र की बीवी थीं जो बहुत ही खूबसूरत थीं और अज़ीज़े मिश्र से इनका निकाह करना भी बहुत ही अजीब था,वाक़िया ये हुआ कि इन्होने ख्वाब में लगातार 3 रातों तक हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को देखा तीसरी शब में आपने ख्वाब में ही हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से पूछा कि आप कौन हैं तो आप फरमाते हैं कि मैं अज़ीज़े मिश्र हूं,आप मग़रिब के बादशाह शाहे तैमूस की बेटी थीं और बड़े बड़े बादशाहों का पैगाम आपके लिए आता मगर आप इनकार करती रहीं क्योंकि आपके दिल पर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का नक्श जम चुका था और उनकी मुहब्बत में वारफता हो चुकी थीं,जब अज़ीज़े मिश्र का पैगाम आपके लिए आया तो आपने फौरन हां कर दिया मगर जब आपने अज़ीज़े मिश्र को देखा तो आप हैरान रह गईं कि ये तो वो सूरत नहीं है,अज़ीज़े मिश्र ना-मर्द थे जब तक हज़रते ज़ुलेखा आपके निकाह में रहीं बाकेरा ही रहीं और ये भी याद रहे कि अज़ीज़े मिस्र से निकाह उन्होंने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम समझ कर किया था उन्हें हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से मुहब्बत थी लिहाज़ा उन पर बदकारी का इलज़ाम लगाना भी दुरुस्त नहीं,जब अज़ीज़े मिश्र ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को खरीदा और उन्हें लेकर घर आये और ज़ुलेखा ने उन्हें देखा तो पहचान गईं कि ये तो वही हैं और इसी वारफतगी को वो जज़्ब ना कर पाईं और गुनाह का इरादा कर बैठीं

📕 रुहुल बयान,पारा 12,सफह 157

बेशक औरत ने उसका इरादा किया और वो भी औरत का इरादा करता अगर अपने रब की दलील ना देख लेता 

📕 पारा 12,सूरह यूसुफ,आयत 24

वाक़िया ये हुआ कि जब ज़ुलेखा ने अपने महल में हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को देखा तो उसने एक और खूबसूरत महल बनवाया जिसके अंदर 7 कमरे थे एक के अन्दर दूसरा दूसरे के अंदर तीसरा इस तरह 7 कमरे थे,फिर एक दिन मौका पाकर ज़ुलेखा हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को लेकर उसी महल में पहुंची और हर कमरे में दाखिल होते हुए हर कमरे का दरवाज़ा बंद करती गयीं,इस तरह जब सातवें कमरे में पहुंची तो हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से अपने गुनाह का इरादा ज़ाहिर किया आप सुनकर हैरान रह गए और फरमाया कि अल्लाह से डर मगर वो आपके पीछे पड़ी रहीं आपने देखा कि आपके बाप हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम अपनी उंगलियों को अपने मुंह में दबाए हुए इशारा फरमा रहे हैं कि बेटा कभी इस कबाहत में ना पड़ना,जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को बचने की कोई सूरत ना दिखी तो आप दरवाज़े की तरफ भागे जैसे ही दरवाज़े के करीब पहुंचे दरवाज़ा खुद बखुद खुल गया इस तरह आप हर दरवाज़े की तरफ भागने लगे और ज़ुलेखा आपके पीछे पीछे दौड़ती रहीं,इसी अशना में ज़ुलेखा ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का कुर्ता पकड़ा मगर आपके भागने के सबब वो फट गया जैसे ही वो आखरी दरवाज़े से बाहर निकले सामने ही अज़ीज़े मिस्र खड़े हुए मिले,अब जब ज़ुलेखा ने अपने शौहर को सामने देखा तो फौरन अपनी बराअत ज़ाहिर करते हुए बोलीं कि जो तेरी बीवी से बुराई का इरादा रखता हो उसकी क्या सज़ा है या तो इसे क़ैद कर दो या फिर सज़ा दो,चुंकि ज़ुलेखा को हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से मुहब्बत थी इसलिए अगर चे अपने को बचाने के लिए इलज़ाम उन पर लगाया था मगर फिर भी रिआयत रखी कि पहले क़ैदखाने का ज़िक्र किया वो भी किसी जुर्मे अज़ीम के लिए नहीं बल्कि यही कहा कि जो तेरी बीवी से बुराई का इरादा रखता हो ना कि ये कि इसने मेरे साथ दस्त दराज़ी की,जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने उसकी बात सुनी तो बोले कि नहीं इसने खुद मुझको माईल करना चाहा अज़ीज़े मिश्र खुद हैरान थे कि किसकी बात को सच्चा जानूं फिर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से बोले कि क्या तुम अपनी बराअत ज़ाहिर कर सकते हो तो आप फरमाते हैं कि बेशक इस बच्चे से पूछ लो,उस वक़्त वहीं पर ज़ुलेखा के मामू का लड़का पालने में मौजूद था जो कि सिर्फ 3 महीने का था जब अज़ीज़े मिश्र ने ये सुना तो हैरान होकर बोला कि क्या ये 3 महीने का बच्चा गवाही दे सकता है तो आप फरमाते हैं कि बेशक खुदा जो चाहे कर सकता है तुम पूछो जब वो बच्चे से मुखातिब हुए तो 3 महीने का बच्चा फसीह ज़बान में बोला और कहा कि यूसुफ का कुर्ता देखा जाए अगर उनका कुर्ता आगे से फटा होगा तो ज़ुलेखा सच्ची है और अगर कुर्ता पीछे से फटा होगा तो यूसुफ सच्चे हैं मतलब ये था कि अगर कुर्ता आगे से फटा होता तो औरत बचने की कोशिश करती जिसमे आगे से कुर्ता फटता और अगर पीछे से फटा है तो यक़ीनन वो खुद बचना चाह रहे होंगे और उन्हें पकड़ने में कुर्ता पीछे से फटा होगा,एक 3 महीने के बच्चे का बोलना ही हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की पाकदामनी के लिए काफी था फिर उसकी हकीमाना दलील सुनकर अज़ीज़े मिश्र को इल्म हो गया कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ही सच्चे हैं तो वो कहते हैं कि आप ग़म ना करें और ज़ुलेखा से कहते हैं कि ये तुम्हारा मक्र है बेशक तुम अपने गुनाह की माफी मांगो 

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 136 

📕 रुहुल बयान,जिल्द 12,सफह 157

यहां पर कुछ बातें जान लेना ज़रूरी है पहली तो ये कि बेशक खुदा सब कुछ कर सकता है मगर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को कैसे पता चला कि यह बच्चा बोलेगा हालांकि 3 महीने के बच्चे का बोलना नामुमकिन है मगर आपने उससे पूछने को कहा कि जो बोल नहीं सकता मतलब कि आपको पता था कि ये बच्चा मेरी गवाही देगा,ये ग़ैब भी है और आपका इख्तियार भी कि एक ना बोलने वाले बच्चे से अपनी गवाही दिलवाई दूसरा ये कि आप मिस्र में थे आपके बाप हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम आपसे सैकड़ों मील दूर थे सो उनको कैसे पता चला कि मेरा बेटा सख्त इम्तिहान में है और आकर उनको तम्बीह की तो मानना पड़ेगा कि आपको भी ग़ैब था और सिर्फ ग़ैब ही नहीं था बल्कि सैकड़ों मील दूर से ही अपने बेटे की इम्दाद को चले आने की ताकत भी थी,और हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम या हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम ही नहीं बल्कि जितने भी अम्बिया गुज़रे हैं सबके सब ग़ैब दां थे क्योंकि नबी का माना ही होते हैं छिपी हुई बातों को जानने वाला,अब रही ये बात कि कोई कहे कि अगर अम्बिया ग़ैब दां भी थे और इख्तियार वाले भी तो क्यों इतनी मुश्किलों में पड़े रहे तो इसका सीधा सा जवाब ये है कि बेशक वो सब जानते थे मगर खुदा की रज़ा पर राज़ी थे वरना उन्हें इख्तियार तो इतना था कि उंगली का एक इशारा कर दें तो चांद को भी चीर के रख दें

इतना सब कुछ होने के बाद भी ज़ुलेखा की वारफ्तगी में कमी ना आई और वो हर वक़्त हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के ख्याल में ही गुम रहतीं अब ये खबर महल से निकलकर सरे आम होने लगी थी कि वज़ीर की बीवी अपने गुलाम पर मर मिटी हैं,जब ये काना फूसी ज़ुलेखा तक पहुंची तो आपने एक दावत का इंतेज़ाम किया और उसमे उन सारी औरतों का बुलवा भेजा जो आप पर इल्ज़ाम तराशी करती थीं,जब सब ही आ गईं तो उनके सामने फलों को लगा दिया गया और हाथ में छुरी दे दी गयी कि इसे काट लें और पहले से ही आपने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को ये समझा रखा था कि जब मैं इशारा करूं तो आप पर्दे से बाहर आ जायें,जब ज़ुलेखा ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को बाहर आने का इशारा किया और आप बाहर आये जब औरतों की नज़र हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के चेहरे पर पड़ी तो आपके चेहरे पर नुबूवतो रिसालत के अनवार तवाज़ो इंकिसार के आसार व शाहाना हैबतो इक़्तेदार को देखकर आपके हुस्नो जमाल में ऐसा गुम हुईं कि किसी को भी होश ना रहा और बजाये फल काटने के सब ने ही अपनी उंगलियों को काट लिया और उन्हें इसकी खबर तक न हुई,और सब इक ज़बान में ये बोलीं कि लिल्लाह ये कोई इंसान नहीं इसका हुस्न तो फरिश्तों से भी बढ़कर है तब ज़ुलेखा बोलीं कि तुम लोग एक आन का जमाल बर्दाश्त ना कर सकी और मैं तो हर वक़्त उनके हुस्नो जमाल का दीदार करती हूं फिर ज़रा सोचो कि मैं कैसे अपने होश में रहूं

📕 खज़ाएनुल इर्फान,पारा 12,सफह 248 

*हुस्ने यूसुफ पे कटी मिस्र में अंगुश्ते ज़नां* 

*सर कटाते हैं तेरे नाम पे मर्दाने अरब*

आलाहज़रत अज़ीमुल बरकत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का ये शेर उसी वाक़िये की तरफ इशारा है मगर वाह रे मेरे आलाहज़रत 1 ही शेर के दोनों मिस्रो में एक एक लफ्ज़ ऐसे तक़ाबुल से लिखा कि सुनने वाला बिना दाद दिये रह नहीं पायेगा,मुलाहज़ा फरमायें

1. वहां हुस्न है यहां नाम है,यानि किसी का हुस्न देखकर उसमें महव हो जाना ये और बात है मगर यहां तो हाल ये है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का हुस्न लाखों करोड़ो अरबों ने नहीं देखा फक़त आपके नाम पर जान दे रहे हैं

2. वहां कटना है यहां कटाना है,कटना अदमे क़स्द कहलाता है यानि गलती से कट गयी और कटाना क़स्दो इरादा ज़ाहिर करता है कि पता है कि कट जाना है फिर भी रण में घुसे जा रहे हैं जान की भी फिक्र नहीं

3. वहां मिस्र है यहां अरब है,अरब भी मिस्र से अफ्ज़लो आला है और अरब की सरकशी ज़मानये जाहिलियत में बहुत मशहूर थी फिर ऐसे में अरब के मर्दों का इस्लाम के लिए सर कटाना ये और भी हैरत अंगेज़ बात हुई

4. वहां उंगली है यहां सर है,ज़ाहिर सी बात है सर भी उंगली से कहीं आला है कि उंगली कटने से जान को कोई खतरा नहीं होता मगर गर्दन कट जाए तो फौरन रूह परवाज़ कर जायेगी 

5. वहां औरत हैं यहां मर्द हैं,मर्द भी औरत से अफज़ल है

📕 हदायके बख्शिश,सफह 28

ज़ुलेखा ने उसी महफिल में भी सबके सामने कह दिया कि अगर इसने मेरी बात नहीं मानी तो इसे क़ैदखाने जाना होगा,अब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के सामने चन्द मुश्किलात थी पहली ये कि ज़ुलेखा हद दर्जे की खूबसूरत थीं दूसरी ये कि वो मालो दौलत वाली थीं कि ज़रूरत पड़ने पर अपना पूरा माल लुटाने को तैयार थीं तीसरी ये कि महफिल की सारी औरतें भी आपको रगबत दिला रहीं थीं चुंकि वो सब खुद भी आप पर आशिक हो चुकी थीं और सब ही ने आपसे मुलाक़ात का इरादा ज़ाहिर कर दिया था और चौथा ये कि ज़ुलेखा की दीवानगी आपके सामने थी ऐतराज़ करने पर हो सकता था कि वो आपको क़त्ल करने की साजिश करतीं,इन सबको देखते हुए आपने क़ैदखाने जाने का फैसला किया,ख्याल रहे कि ये मुश्किल रास्ता आपने रब की मर्ज़ी पर किया था वरना वो चाहते तो आफियत का सवाल करते मगर आपने ऐसा नहीं किया,तिर्मिज़ी में हज़रत मअज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि एक शख्श युं दुआ कर रहा था कि "ऐ अल्लाह मुझे मुसीबत पर सब्र करने की ताक़त अता फरमा" तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उसको मना फरमाया कि तूने खुद अपने लिए मुसीबत मांग ली बल्कि तुझे युं दुआ करनी चाहिए कि "ऐ अल्लाह मुझे परशानियों से आफियत अता फरमा" यहां एक बात ये भी ज़हन में रहे कि जब अज़ीज़े मिश्र खुद जानते थे कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम पाक बाज़ हैं तो फिर उन्हें क़ैदखाने क्यों भेजा तो इसका जवाब ये है कि बेशक वो जानते थे कि आप नेक है मगर ज़ाहिरी मस्लेहत के तहत आपको क़ैद किया वरना आप बाहर रहते तो रोज़ बरोज़ आपको इन फितनों का सामना करना पड़ता 

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 140

जिस दिन हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम क़ैदखाने में गए उसी दिन दो और कैदी भी दाखिल हुए,ये दोनों बादशाह रियान बिन वलीद के ग़ुलाम थे एक उनका साक़ी था जिसका नाम अबरुहा या यूना था और दूसरा नानबाई जिसका नाम ग़ालिब या मखलीब था,इन दोनों पर इलज़ाम था कि दोनों ने बादशाह को मारने की कोशिश की है जिसकी सज़ा में ये जेल में डाले गए,जेल में भी हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम नमाज़ रोज़ा पाबन्दी से करते और जो भी क़ैदी ख्वाब वगैरह देखते तो आप उनको ताबीर बताते जो कि सच होती,जब इन दोनों ने ये सब देखा तो आपको आज़माने की गर्ज़ से दोनों झूठा ख्वाब बता कर ताबीर पूछने के लिए हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे,साकी ने कहा कि मैंने ख्वाब में देखा कि अंगूर की बेलों से शराब निचोड़ रहा हूं और नानबाई ने कहा मैंने देखा कि रोटी की टोकरियां मेरे सर पर हैं और उसे परिन्दे खा रहे हैं,हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि साक़ी को बहाल किया जायेगा उसकी सज़ा माफ होगी और नानबाई को सूली पर चढ़ाया जायेगा और उसका सर परिन्दे खाएंगे ये सुनकर दोनों हंसने लगे और कहा कि हम लोगों ने ख्वाब तो कुछ देखा ही नहीं बल्कि हम तो आपसे मज़ाक कर रहे थे तो हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि अब तुम लोगों ने ख्वाब देखा हो या नहीं मगर होगा वही जो मैंने कह दिया,और बिल आखिर साक़ी पर इलज़ाम ना साबित हो सका और वो फिर से बहाल किया गया और नानबाई को सूली पर चढ़ाया गया,ये वाकिया आपके क़ैद खाने में जाने के 5 साल बाद हुआ और इसके बाद भी आप 7 साल और क़ैद में रहे यानि 12 साल आपने क़ैदखाने में गुज़ारे 

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 141

जब 12 साल गुज़र गए तो एक दिन बादशाह ने एक ख्वाब देखा कि 7 दुबली गाये 7 मोटी गायों को खा गयी और 7 सूखी बेलें 7 सब्ज़ बेलों पर ग़ालिब आ गयीं,ये ख्वाब देखकर वो परेशान हुआ और अपने दरबार के काहिनो नुजूमियों से पता किया मगर कोई उसका जवाब ना दे सका आखिर कार वो साक़ी बोला कि हुज़ूर जेल में एक कैदी है जो ख्वाब की एक दम सही ताबीर बयान करता है,तो जेल में ही बादशाह ने किसी को भेजा तो आपने ये ताबीर बयान की कि तुम लोग अगले 7 साल खूब खेती करो और गल्ला इकठ्ठा करो क्योंकि इसके बाद के 7 सालों तक सूखा पड़ेगा जिसमे ये गल्ला तुम्हारे काम आएगा,जब ये ताबीर बादशाह को बताई गयी तो वो मुतमईन हो गए और हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से मिलने की ख्वाहिश ज़ाहिर की जब उनको लेने के लिए क़ासिद पहुंचे तो आप फरमाते हैं कि पहले मेरा मुआमला बादशाह सही करें कि मुझे बिला वजह अब तक क़ैद में रखा गया है,जब बादशाह ने तहक़ीक़ की तो सारी औरतें और खुद ज़ुलेखा ने भी आपकी बराअत ज़ाहिर की,ये सुनकर बादशाह ने आपको इज़्ज़तो एहतेराम के साथ क़ैद से आज़ाद कर दिया और आपकी ज़बानी पूरी ताबीर सुनी फिर बोला कि आखिर ये सब इंतज़ाम होगा कैसे तो आप फरमाते हैं कि अपने खज़ाने मेरे हवाले करदो बादशाह ने कहा कि बेशक अब आप ही मुस्तहिक़ हो और अज़ीज़े मिश्र को बर्खास्त करके आपको अज़ीज़े मिश्र बना दिया फिर उसके एक साल बाद ही आपकी ताज पोशी करके आपको बादशाह मुंतखिब कर दिया और बादशाह खुद रियाया में शामिल हो गया

📕 खज़ाएनुल इरफान,सफह 342

हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने अगले 7 सालों तक गल्लों का ज़खीरा करने के लिए बड़े बड़े स्टोर रूम बनवाये और उन सबको अनाज से भर दिया,जब कहत का साल शुरू हुआ तो आपने ऐलान करवा दिया कि अब बादशाह हो या खादिम सब एक वक़्त ही खाना खायेंगे और आप खुद भी भूखे रहते,कुछ महीनो तक तो सबके पास गल्ला रहा मगर जैसे जैसे साल गुज़रने लगा तो लोगों के पास अनाज खत्म होने लगा और लोग दरहमो दीनार से गल्ला खरीदने लगे इस तरह पहले साल हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के पास तमाम अहले मिस्र का माल जमा हो गया,दूसरे साल लोगों ने अपने ज़ेवरात सोने चांदी के बदले अनाज खरीदा तीसरे साल अपना जानवर देकर गल्ला खरीदा यहां तक कि किसी के पास एक बकरी का बच्चा तक नहीं बचा सबके सब आप अलैहिस्सलाम के पास आ गया,फिर तीसरे साल अपने गुलामों को बेचकर गल्ला लिया चौथे साल अपनी ज़मीन जायदाद जागीरें बेचकर गल्ला खरीदा छठे साल जब लोगों के पास कुछ नहीं बचा तो अपनी औलाद को हज़रत के पास गुलाम बनाकर अनाज ले गए और सातवें साल अपने आपको भी हज़रत का गुलाम बना दिया और अनाज हासिल किया,अब मिस्र में कोई ऐसा न था जो कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का गुलाम ना हो और मौला ने ये सब सिर्फ इसलिए किया कि कोई ये ना कह सके कि मेरा नबी किसी का खरीदा हुआ गुलाम था नहीं बल्कि पूरा मुल्क ही मेरे नबी का गुलाम है,उसके बाद हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने बादशाह रियान के सामने खुदा को गवाह बनाकर सबको आज़ाद कर दिया और जो जिसका था सबको वापस लौटा दिया 

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 147

उधर अज़ीज़े मिस्र मअज़ूल होने के बाद कुछ ही दिन ज़िंदा रहे उनके मरने के बाद ज़ुलेखा भी महल छोड़कर जंगल को चली गयीं और वहीं रहने लगीं,कई साल गुज़र चुके थे अब उनका वो हुस्न भी बाकी ना रहा और फिराक़े यूसुफ में रो रोकर अपनी आंखों की रौशनी भी गंवा बैठी थीं,जब कहत का ज़माना गुज़र गया तो एक दिन हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम अपने लश्कर के साथ उसी जंगल से गुज़रे जब ज़ुलेखा ने ये सुना तो वो लश्कर तक पहुंच गयीं हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने अपने खादिम से कहा कि इनकी हाजत पूरी करो तो वो बोलीं कि मेरी हाजत तो हज़रत युसूफ अलैहिस्सलाम ही पूरी करेंगे,जब आपने ज़ुलेखा को देखा तो पहचान लिया और फरमाया कि तुम्हारा हुस्नो शबाब क्या हुआ तो वो रोने लगीं तो आप फरमाते हैं कि ग़म ना करो और कहो कि क्या चाहती हो तो वो बोलीं कि मेरी 3 हाजतें हैं पहली ये कि मैं आपके ग़म में रो रोकर अंधी हो चुकी हूं तो मुझे मेरी आंखें वापस कर दीजिए दूसरी ये कि मेरी जवानी भी ढल चुकी है तो मैं चाहती हूं कि मुझे मेरा हुस्न फिर से वापस मिल जाए हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने ज्यों ही दुआ फरमाई ज़ुलेखा फिर से पहले जैसी हो गयीं फिर आपने पूछा कि अब तीसरी हाजत बताओ तो कहने लगीं कि आप मुझसे निकाह कर लें,हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ये सुनकर खामोश हो गए तभी हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए और कहा कि आपका रब कहता है कि आप इनसे निकाह फरमा लीजिये तो हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने ज़ुलेखा से निकाह कर लिया,आपसे दो बेटे हुए एक का नाम इफराईम और दूसरे का नाम मईशा था 

📕 रुहुल बयान,जिल्द 2,सफह 182

उधर कुंआन भी कहत की ज़द में था लिहाज़ा हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के सारे भाई सिवाये बिन्यामीन के गल्ला लेने के लिए मिस्र पहुंचे,चुंकि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम हर आदमी को एक आदमी का ही गला दिया करते थे लिहाज़ा सब ही गए और गल्ला बाटने के वक़्त आप खुद मौजूद रहा करते थे,जैसे ही उनके भाई उनके सामने आये तो हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने उनको पहचान लिया मगर वो सब उन्हें ना पहचान सके आपने अपने जज़्बात को काबू में रखते हुए उनके घर का सारा हाल लिया जिसमे उन्होंने ये भी बताया कि हमारा एक भाई और भी है हम उसे नहीं लाये क्योंकि हमारे बाप बहुत ज़ईफ हो चुके हैं लिहाज़ा हमें उनका भी गल्ला दिया जाये,हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि ठीक है इस बार तो हम तुम्हें उनका गल्ला दिए देते हैं मगर अगली बार अपने उस भाई को भी लाना होगा वरना हम गल्ला नहीं देंगे इसमें उनका मकसद सिर्फ अपने उस भाई मुलाक़ात करनी थी जो कि आपका सगा भाई था,जब वो गल्ला लेकर जाने लगे तो आपने उनकी दी हुई कीमत भी उनके गल्ले में चुपके से रखवा दी जब वो वापस पहुंचे और गल्ला खोलकर देखा तो उनकी कीमत भी उन्हें वापस मिल गयी,मगर आईन्दा आने की शर्त भी उन्होंने अपने बाप हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम को बताई कि अबकी बार बिन्यामीन को भी लेकर जाना होगा वरना बादशाह ने गल्ला देने से मना किया है,पहले तो वो नहीं माने क्योंकि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की जुदाई वो अब तक बर्दाश्त कर रहे थे मगर फिर भी हुक्मे खुदावन्दी थी लिहाज़ा अगली बार बिन्यामीन को भी उनके साथ भेज दिया मगर किसी की नज़रे बद उन्हें ना लगे इसलिए एक तदबीर ये बताई कि तुम सब अलग अलग दरवाज़ों से शहर में जाना एक साथ मत जाना क्योंकि वो सब सेहत के लिहाज़ से हट्टे कट्टे थे और तादाद में भी 11 थे *नज़रे बद के तअल्लुक़ से आगे बयान करता हूं* अब जब वो मिस्र पहुंचे तो हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम उन सबको देखकर बहुत खुश हुए मगर किसी को अब भी बताया नहीं कि मैं तुम्हारा भाई हूं,आपने एक दावत का इंतज़ाम किया जिसमे सबको इस तरह बिठाया कि सब 2,2 करके बैठ गए और बिन्यामीन अकेले रह गए इस पर वो रोने लगे तो आपने कहा कि क्यों रोते हो तो वो बोले कि अगर आज मेरा भाई यूसुफ होता तो ज़रूर मेरे साथ बैठता,ये सुनकर आपसे ना रहा गया और आप फरमाते हैं कि अच्छा तो मुझे ही अपना भाई समझ लो अब मैं तुम्हारे साथ बैठ जाता हूं इस तरह आप उनके साथ बैठे और सोने के लिए भी यही हीला इस्तेमाल करके आपने बिन्यामीन को अपने कमरे में रोक लिया,आपकी दरिया दिली देखकर बिन्यामीन रोने लगे और रो रोकर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को याद करने लगे अब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से ज़ब्त ना हो सका और आप भी रोने लगे और उसको गले लगाकर फरमाया कि मैं ही तुम्हारा भाई यूसुफ हूं और शुरू से अब तक की सारी कहानी कह डाली 

📕 खज़ाएनुल इरफान,सफह 344

नज़रे बद का लगना हक़ है और उसके लिए दुआ तावीज़ कराना जायज़ है जैसा कि हदीसे पाक में है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि 

*तुम नज़रे बद के लिए दुआ तावीज़ कराओ* 

📕 बुखारी,जिल्द 3,सफह 290

*और खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम हज़रत इमाम हसन व हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को दम करते और उनके गले में तावीज़ डालकर युं फरमाते थे कि "मैं तुम दोनों को अल्लाह तआला के कामिल कलिमात के साथ हर शैतान और ज़हरीले जानवर के शर से और हर शरीर आंख से अल्लाह की पनाह में देता हूं* 

📕 हुलियतुल औलिया,जिल्द 5,पेज 56 
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 152

*हां ग़ैर शरई अल्फाज़ के साथ दम करना या तावीज़ बांधना और जादू करना हराम है बल्कि इसे शिर्क तक फरमाया गया है,इससे बचना बहुत बहुत ज़रूरी है* 

📕 अलमुअज्जमुल कबीर,जिल्द 10,पेज 262

दूसरे दिन जब सारे भाई घर वापस जाने को तैयार हुए तो बिन्यामीन वापस ना जाने की ज़िद पर अड़ गए कि मैं यही रहूंगा तो आप उनको युंही तो रोक नहीं सकते थे लिहाज़ा आपने उन्हें रोकने के लिए ये हीला बनाया कि एक प्याला जो कि जवाहरात से सजा हुआ था आपने उसे बिन्यामीन के झोले में रख दिया कि जब तलाशी होगी तो ये तुम्हारे गल्ले से मिलेगा तो मैं इस जुर्म के बदले तुम्हें यहां गुलाम बनाकर रोक लूंगा सो ऐसा ही किया गया,जब वो चलने लगे तो शोर मच गया कि एक प्याला चोरी हो गया है लिहाज़ा सबकी तलाशी होगी अब जब सबकी तलाशी हुई तो बिन्यामीन के पास वो प्याला बरामद हुआ तो उनके बड़े भाई यहूदा ने गुस्से में कहा कि इसने चोरी कर ली है कि इसके भाई यूसुफ ने भी एक मर्तबा चोरी की थी माज़ अल्लाह,चुंकि इंसान जब ज़्यादा गुस्से में या ज़्यादा खुशी में होता है तो उसका कलाम एतेदाल पर नहीं होता यही वजह थी यहूदा के कलाम की क्योंकि अगर चे वो सब हसद में अपनी भाई को अपने से दूर कर चुके थे मगर चोरी करना या हराम का माल खाना या फसाद करना उनके किरदार में शामिल नहीं था तो फिर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम पर चोरी का इलज़ाम क्यों लगाया,वाक़िया ये हुआ था कि हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम की बड़ी बेटी जो कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की फूफी लगीं उन्होंने बचपन से ही हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को पाला था और आप उनसे बहुत मुहब्बत करती थीं जब आपके वालिद हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम ने अपनी बड़ी बहन से हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का मुतालबा किया तो आप परेशान हो गयीं आपने ये तरकीब निकाली कि अपने बाप का एक हार हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के कपड़ो में छिपा दिया जब उनके भाई अपने बेटे को लेने के लिए आये तो उन्होंने कहा कि मेरा हार खो गया है उसकी तलाशी जारी है,और जब वो हार हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के पास से मिला तो आप फरमाती हैं कि तुम्हारे बेटे ने मेरे बाप का हार लिया है लिहाज़ा इसे अब सारी ज़िन्दगी मेरे पास रहना होगा और इस तरह वो हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को अपने पास रखने में कामयाब हो गईं हालांकि हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम उनका हीला समझ गए थे मगर आपने उनको इनकार ना किया,यहूदा के कलाम की यही वजह थी पर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने अब भी अपने आपको ज़ाहिर ना किया और खामोश ही रहे उसके बाद सबने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से माफी भी मांगी कि उनके भाई को छोड़ दिया जाए अगर चाहें तो हममें से किसी एक को गुलाम बना लिया जाए मगर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम इस पर नहीं माने तो यहूदा को और भी जलाल आ गया और उसके जलाल की ये हैबत थी कि उसके जिस्म के सारे बाल खड़े हो जाते थे और अगर वो उस हालत में चीख मार देता था तो औरतों के हमल गिर जाते थे और तब तक उसका गुस्सा ठंडा नहीं होता था जब तक कि हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम की औलाद में से कोई उसको उसको हाथ ना लगा देता जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने उसको गुस्से की हालत में देखा तो आप बिन्यामीन को चुपके से फरमाते हैं कि इसके जिस्म को हाथ लगाओ वरना ये ऐसे ही जलाल में ठहरा रहेगा तो बिन्यामीन ने ऐसा ही किया तो वो खामोश हुआ,जब हर तरह से हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ना माने तो उन्होंने ये मशवरा किया कि हम पहले ही अपने बाप को हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का ग़म दे चुके हैं अब दोबारा ऐसी खबर ले जाना मुनासिब नहीं लिहाज़ा मैं यहीं ठहरता हूं और तुम सब वापस जाकर उनको पूरे वाक़िये से आगाह करो और मैं यहां से बगैर बिन्यामीन के ना जाऊंगा चाहे मुझे मौत ही क्यों ना आ जाए,उधर जब ये खबर हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम को दी गयी तो आप पहले से ज़्यादा ग़मज़दा हो गए और बोले कि यूसुफ पर अफसोस है आपके कहने का ये मतलब था कि वो खुद तो मुझसे जुदा है और आज यहूदा और बिन्यामीन को भी मुझसे जुदा करने का सबब बन गए,हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के ग़म में रो रोकर अपनी आंखें तो वो पहले ही खो चुके थे और अब तो एकदम खामोश रहने लगे कि किसी से बात तक ना करते थे 

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 159

एक सवाल यहां उठता है कि एक नबी यानि हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम का अपने बेटे की मुहब्बत में इस तरह वराफ्ता हो जाना कि उनके ग़म में रो रोकर अपनी आंखें खो देना उनकी शायाने शान मालूम नहीं होता तो इसका जवाब ये है कि हुस्ने यूसुफ जमाले इलाही का आईना था जिसको देखकर आप तजल्लियते इलाहिया का मुशाहिदा फरमाते थे जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम आपकी नज़रों से दूर हुए तो अनवारे खुदा की लज़्ज़तो से महरूमी की बिना पर ये रोना था,इधर जब उनके बेटों ने उनको बहुत ज़्यादा रोते देखा तो कहा कि आप इतना ग़म ना करें कि आप मरीज़ हो जायें या उसी ग़म में आपका विसाल हो जाए तो हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि मैं अपना ग़म अपने रब से बयान करता हूं और जो कुछ मैं जानता हूं वो तुम नहीं जानते,हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम क्या जानते थे क़ुर्आन से सुनिये मौला तआला फरमाता है कि याक़ूब ने कहा

ऐ बेटों जाओ यूसुफ और उसके भाई का सुराग लगाओ और अल्लाह की रहमत से मायूस ना हो,बेशक अल्लाह की रहमत से ना उम्मीद नहीं होते मगर काफिर लोग

📕 सूरह यूसुफ,आयत 87 

अव्वल तो आपका यही फरमा देना आपके ग़ैब दां होने के लिए काफी था कि मैं जो जानता हूं वो तुम नहीं जानते फिर उस पर आपका ये फरमाना कि जाओ यूसुफ का सुराग लगाओ इस बात की तरफ इशारा है कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ज़िंदा हैं और अब मुलाक़ात का वक़्त करीब आ चुका है वरना जो पिछले इतने बरस में नहीं कहा आज क्यों कहा मतलब आपको मालूम था कि अज़ीज़े मिस्र और कोई नहीं बल्कि आपका ही बेटा हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम हैं,खैर आगे बढ़ते हैं हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम ने अपने बेटों को एक खत दिया जिसमे आपने अपने खानदान का तज़किरा किया था जब ये खत बेटों ने मिस्र ले जाकर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को दिया तो आप पर रिक़्क़त तारी हो गयी और आप रोने लगे और आप उनसे फरमाते हैं कि तुम्हें याद है कि तुमने नादानी में अपने भाई यूसुफ के साथ क्या किया था जब आपकी ज़बान से उन लोगों ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का तज़किरा सुना तो आपके अंदाज़े बयान पर वो बोले कि कहीं आप यूसुफ तो नहीं तो आप फरमाते हैं कि बेशक मैं यूसुफ ही हूं और बेशक हम पर अल्लाह का एहसान है तो उनके भाईयों ने खूब माज़रत की और हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने सबको माफ कर दिया,रिवायत में आता है कि जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फतह मक्का के दिन काबे शरीफ के दरवाज़े पर खड़े होकर क़ुरैश से ये एलान फरमाया था कि आज तुम्हारा मेरे मुताल्लिक़ क्या ख्याल है कि आज मैं तुम्हारे साथ क्या सुलूक करूंगा तो तमाम अहले क़ुरैश ने बा आवाज़ बुलन्द यही कहा था कि हम आपसे भलाई का ही गुमान करते हैं क्योंकि आप करीम हैं और करीम भाई के बेटे हैं तो मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि बेशक आज मैं वही ऐलान दोहरा रहा हूं जो मेरे भाई यूसुफ ने अपने भाईयों से कहा था कि "आज तुम पर कोई मलामत नहीं मैने सबको माफ कर दिया" उधर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने अपने भाईयों को वापस लौटते हुए वही जन्नती कमीज़ दी जो हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम ने आपके गले में तावीज़ की शक्ल में डाला था और फरमाया कि इसे ले जाकर मेरे बाप के मुंह पर डालो इससे उनकी आंखों की रौशनी वापस आ जायेगी और मेरे पूरे घर वालों को लेकर यहां आओ 

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 164

याद रहे कि हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम की औलाद को ही बनी इस्राईल कहते हैं,जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने अपने भाईयों से पूरे घर वालों को लाने को कहा तो उस वक़्त उनके घर में 72 या 96 लोग थे कुछ और भी तादाद बताई गयी है जो इसी के बीच में है पर मशहूर 72 ही है और जब यही बनी इस्राईल हज़रत मूसा अलैहिस्सलामन के साथ निकले तो उस वक़्त सिर्फ मर्दों की तादाद 6 लाख थी,बनी इस्राईल के सबसे पहले नबी हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम और आखिरी नबी हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम हैं 

📕 तफसीरे अज़ीज़ी,सूरह बक़र,सफह 176
📕 तफसीरे सावी,जिल्द 1,सफह 139
📕 तफसीरे खाज़िन,जिल्द 1,सफह 294
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 165

भाईयों में यहूदा ही वो था जिसने बचपन में हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की कमीज़ पर खून लगाकर अपने बाप से कहा था कि यूसुफ को भेड़िया खा गया लिहाज़ा आज वो ही हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की कमीज़ को लेकर मिस्र से रवाना हुए,उधर हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि मैं यूसुफ की खुशबु पा रहा हूं तो घर वालों ने समझा कि आप पर अभी भी बेखुदी तारी है,जब यहूदा घर पहुंचे और हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की कमीज़ अपने बाप के मुंह पर डाली तो उनकी आंखें पहले की तरह रौशन हो गई *जो लोग बुज़ुर्गों के तबर्रुकात पर लअन तअन करते हैं और उसको बे बरकत और बे फायदा समझते हैं उनको चाहिये कि क़ुर्आन की ये आयत आंख खोलकर पढ़ लें* फिर यहूदा और तमाम बेटों ने हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम से अपने किये की माफी मांगी और उन्होंने भी उन सबको माफ कर दिया और रब से उनकी बख्शिश चाही,जब वो सब मिस्र के लिए रवाना हुए तो हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम उनके इस्तेकबाल के लिए 4000 से ज़्यादा सवारों के साथ मैदान में रेशमी परचमों के साथ मौजूद थे,जब हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम ने लश्करों की गरज सुनी तो फरमाते हैं कि क्या ये फिरऔने मिस्र का लश्कर है (फिरऔन मिस्र के कई बादशाहों का लक़ब हुआ) तो आपके फरज़न्द फरमाते हैं कि नहीं बल्कि ये आपके बेटे हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का लश्कर है फिर जब मुद्दतों के बाप-बेटे एक दूसरे के सामने हुए तो रोते हुए एक दूसरे से लिपट गए,सलाम करने के लिए हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम ने रोक रखा था तो आपके बाप हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम ने पहले सलाम किया उसकी वजह ये थी कि रब के हुज़ूर हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की बनिस्बत हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम ज़यादा मुअज़्ज़ज़ व मुकर्रम हैं,फिर बाप ने अपने बेटे को गले से लगाया उनको चूमा तब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने अपने मां-बाप को तख्त पर बिठाया और फिर आपका वो ख्वाब सच्चा हुआ जिसे आपने बचपन में देखा था कि चांद-सूरज और ग्यारह सितारे आपको सजदा कर रहे हैं वो इस तरह कि आपके मां-बाप और तमाम 11 भाईयों ने हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को सज्दा किया 

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 171

ⓩ दो बातें ख्याल में रहे पहली ये कि आपकी वालिदा का इंतेक़ाल बचपन में ही हो गया था तो क़ुर्आन में मौला तआला ने मां-बाप का लफ्ज़ क्यों इरशाद फरमाया वो इसलिये कि आपकी वालिदा को दोबारा ज़िंदा किया गया ताकि वो भी आपको सज्दा कर सकें और दूसरी ये कि सज्दे की 2 किस्म है एक सज्दये इबादत जो कि हर नबी की शरीयत में कुफ्र ही था और दूसरा सज्दये ताज़ीमी ये बाज़ अम्बिया की उम्मत में जायज़ था जैसे कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को सज्दये ताज़ीमी किया गया और हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को भी फरिश्तों ने सज्दये ताज़ीमी ही किया मगर शरीयते मुस्तफा में सज्दये ताज़ीमी भी हराम है

जैसा कि कहा गया कि हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम मरतबे में हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से अफज़ल हैं तो फिर बाप ने बेटे को सज्दा क्यों किया हक़ तो ये था कि बेटा बाप को सज्दा करता,तो उल्मा ने इसकी 3 शरहें की पहली ये कि ये सज्दा दर असल खुदा को ही था उसके शुक्राने के तौर पर वो इस तरह कि अगर ये सज्दा हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को था तो चाहिए था कि फौरन मिलते ही सज्दा करते जबकि ऐसा नहीं हुआ बल्कि जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम तख्त पर बैठ गए तब सज्दा किया गया दूसरा ये कि ये सज्दा था तो हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को ही मगर इसलिए था कि बाप अगर बेटों को हुक्म देता कि अपने भाई को सज्दा करें तो शायद इसमें उनको कुछ मलाल रहता इसलिए सबसे पहले आप ही झुक गए तो अब किसी के पास कोई चारा ना था तो सब सज्दे में चले गए तीसरी और सबसे आला तफसीर ये है कि जिस तरह हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को फरिश्तों से सज्दा करवाने में हज़ारों हिकमतें थी वो यहां भी हो सकती है जिसका बेहतर जानने वाला अल्लाह तबारक व तआला ही है 

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 171

हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम 72 ज़बानें जानते थे 

📕 औराक़े ग़म,सफह 45

मिस्र में हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम 24 साल मुक़ीम रहे और वहीं उनका विसाल हुआ,हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम के बारे में मुख्तसर मालूमात उन्ही की नाम से पोस्ट बनी है वहीं से पढ़ ली जाए,उनके विसाल के बाद हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम 23 साल ज़ाहिरी हयात में रहे और जब आपका विसाल हुआ तो मिस्री क़बीलों में आपके जस्दे मुबारक को अपनी ही बस्ती में दफनाने को लेकर काफी खलफिशार मच गया और मुमकिन था कि जंग छिड़ जाती तो कुछ लोगों ने मिलकर ये तदबीर निकाली कि आपके जस्द को दरियाये नील में दफन कर दिया जाए ताकि पूरे नील का पानी ही आपकी बरकतों से पुर हो जायेगा और हर कोई उससे फायदा उठा सकेगा और इस तरह आपको दरियाये नील में दफ्न कर दिया गया,आप पूरे 400 साल वहीं आराम फरमाते रहे फिर 400 साल के बाद जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम बनी इस्राईल को लेकर मिस्र से निकले तो आपके जस्द मुबारक को भी साथ लेते गए और आपको आपके आबा व अजदाद के पहलू में दफन किया 

📕 खज़ाएनुल इरफान,सफह 351

ⓩ सुब्हान अल्लाह सुब्हान अल्लाह कैसे मुबारक अक़ीदे थे उन लोगों के जिनको ये मालूम था कि नबी का फैज़ सिर्फ ज़ाहिरी हयात तक ही महदूद नहीं रहता बल्कि उनके विसाल के बाद भी उनकी बरक़तें ज़ाहिर रहती हैं और रिवायतों से साफ ज़ाहिर है कि जब तक आपका जस्द मुबारक दरियाये नील में मौजूद रहा दोनों किनारों के इलाक़े सर सब्ज़ व खुशहाल रहे,और एक आज के बदबख्त बद अक़ीदा हैं जिनको मेरे आक़ा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से ही फुयूज़ो बरकात लेने में शिकवा शिकायत लगी रहती है*

हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के 2 बेटे थे जिनका नाम अफ्राईम और मीशा था और आपकी एक बेटी भी थीं जिनका नाम रहमा था जो कि हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम के निकाह में आईं,अफ्राईम के बेटे का नाम नून और नून के बेटे का नाम हज़रत यूशअ अलैहिस्सलाम था ये वही यूशअ हैं जिनको साथ लेकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम हज़रते खिज़्र अलैहिस्सलाम से मिलने गए थे जिनका तज़किरा सूरह कहफ में मौजूद है,हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के विसाल के बाद मिस्र की हुकूमत क़ौमे अमालक़ा के हाथ आ गयी और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम तक वो बनी इस्राईल पर क़ाबिज़ रहे और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ही बनी इस्राईल को निजात दिलाई,इन सब का तफसीली ज़िक्र हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की पोस्ट में आएगा इन शा अल्लाह

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 173 

हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की उम्र 120 साल हुई 

📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 76

No comments