हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम ।। Biography of Hazrat Yunus Alaihissalam


हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम Hazrat Yunus Alaihissalam:

*कंज़ुल ईमान* - और ज़ुन्नुन को याद करो जब चला गुस्से में भरा तो गुमान किया कि हम उस पर तंगी ना करेंगे तो अन्धेरियों में पुकारा कोई मअबूद नहीं सिवाये तेरे पाकी है तुझको बेशक मुझसे बेजा हुआ 

📕 पारा 17,सूरह अम्बिया,आयत 87

हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम का लक़ब ज़ुन्नुन और साहिबल हूत है क्योंकि आप मछली के पेट में चले गए थे इसलिए आपको ज़ुन्नुन कहा गया और आप बचपन में ही इंतेकाल फरमा गए थे मगर 14 दिन के बाद हज़रत इल्यास अलैहिस्सलाम की दुआ से आप फिर ज़िंदा हुये

📕 तफसीरे सावी,जिल्द 3,सफह 73

ईराक़ के नेनवाह जिसे मौसुल भी कहा जाता है उसकी तरफ आप नबी बनाकर भेजे गए,आपने अपनी क़ौम जो क कुफ्रो शिर्क में मुब्तिला थी उसे समझाया कि ये सब छोड़कर एक अल्लाह की इबादत करो पर वो नहीं माने तब आपने फरमाया कि अगर तुम लोगों ने अपना ये तरीक़ा नहीं छोड़ा तो 40 दिन के बाद अल्लाह का अज़ाब आ जायेगा,हालांकि उन लोगों को मालूम था कि आप जो बोलते हैं वो हक़ ही होता है मगर फिर भी इसकी तरफ तवज्जोह नहीं की जब 35 दिन गुज़र गए तो आसमान पर काले बादल छा गए जिनसे बहुत ज़्यादा धुआं निकलने लगा जिसने पूरे शहर को अपनी आगोश में ले लिया,जब हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम ने देखा तो समझ गए कि अब अज़ाब आने वाला है और आप बस्ती छोड़कर बाहर निकल गए ये दिन जुमा मुहर्रम की दसवीं थी,उधर जब क़ौम को ये एहसास हो गया कि हम पर खुदा का अज़ाब आने वाला है तो वो अपने आलिम के पास पहुंचे और सारी बात बताई तो उन्होंने कहा कि अब तौबा करने का वक़्त आ गया है तो पूरी क़ौम रो रोकर खुदा की बारगाह में अपने गुनाह भी माफी चाहने लगी,अपने सारे मज़ालिम जो उन्होंने एक दूसरे पर किये थे माफ कराये सब का छीना हुआ हक़ वापस किया यहां तक कि किसी का पत्थर भी अगर उसके मकान की बुनियाद में लगा था तो खोदकर उसका पत्थर तक वापस किया गया और बहुत दर्दनाक आवाज़ में बच्चे बूढ़े जवान औरतें सब रो रहे थे और यही कहते जाते थे कि ऐ अल्लाह हम तुझ पर और तेरे नबी पर ईमान लाये तो मौला तआला को उन पर रहम आ गया और उन पर से अज़ाब को टाल दिया

यहां पर एक सवाल उठता है कि क़ौमे यूनुस ने तौबा की तो उनकी तौबा क़ुबूल की गई और जब फिरऔन ने तौबा की तो उसकी तौबा क़ुबूल न हुई ऐसा क्यों जबकि अज़ाब दोनों पर ही आ पड़ा था,तो इसका जवाब ये है कि फिरऔन ने ज़ाहिरन अज़ाब देख लिया था और अज़ाब देखकर तौबा करना क़ुबूल नहीं जबकि क़ौमे यूनुस ने अज़ाब नहीं देखा था बल्कि सिर्फ अलामते अज़ाब देखा था और यही अलामत देखकर वो तौबा करने लगे तो तौबा उनकी सच्ची थी लिहाज़ा क़ुबूल हुई

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 198

उधर हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम बस्ती से बाहर निकल चुके थे ये सोचकर कि अब उनकी क़ौम पर अज़ाब तो आ ही चुका है सो मेरा यहां क्या काम मगर वो सब तो माफ हो चुके थे,आप कश्ती में बैठकर सफर को निकले जब कश्ती बीच दरिया में पहुंची तो चारों तरफ से मौजों ने कश्ती को घेर लिया उस वक़्त उनके माअमूल के मुताबिक अगर कोई ग़ुलाम अपने मालिक से दूर जा रहा होता था तो ही ऐसा होता था और उससे बचने का तरीका ये था कि उसे दरिया में फेंक दिया जाए तो सब बच जाते थे,अब उस शख्स के बारे में जानने के लिए कि कौन यहां ऐसा है क़ुरआ निकाला गया और तीनों ही बार हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम का नाम आया तो आप खुद ही दरिया में कूद पड़े,मौला ने फौरन एक मछली को हुक्म दिया कि मेरे नबी को अपने पेट में जगह दे मगर ख्याल रहे कि वो तेरा लुक़्मा नहीं है इसलिए उन्हें तकलीफ ना हो चुनांचे एक मछली आपको निगल गई और आपको लिए इसी तरह इधर उधर समंदर में फिरती रही,आप मछली के पेट में 3 दिन से लेकर 40 दिन तक ठहरने के क़ौल हैं फिर वहीँ से आपने ये दुआ पढ़ी तो मौला ने आपकी दुआ सुन ली और आपको मछली के पेट से निजात मिली इस तरह कि वो आपको साहिल पर छोड़कर चली गयी वहां पर मौला ने एक कद्दू यानि लौकी का दरख्त उगाया जिसके साये में आप आराम फरमाते थे,कद्दू का पेड़ उगाने में हिकमत ये थी कि आप जब मछली के पेट से बाहर आये तो एक नव मौलूद बच्चे की तरह थे कि आपकी खाल बहुत नर्म थी जिस पर मक्खियां बैठती तो आपको परेशानी होती और आप काफी कमज़ोर भी हो चुके थे लिहाज़ा मौला ने कद्दू का पेड़ उगाया कि उस पर मक्खियां नहीं बैठती और उसके पत्ते बड़े बड़े होते हैं जो आपको ढककर रखते और एक बकरी रोज़ाना आकर आपको दूध पिला जाती थी इस तरह आप पहले जैसे सेहतमंद हो गए

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 199-201

📕 अलइतकान,जिल्द 2,सफह 178

📕 खाज़िन,जिल्द 4,सफह 258

ⓩ ये पूरा वाक़िया आपने पढ़ लिया अब कुछ वो बातें बताता हूं जिसमे लोगों ने खयानत से काम लिया,सबसे बड़ी बात तो ये कि जो आयत मैंने शुरू में पेश की उस आयत का तर्जुमा करने में बहुतों ने गलतियां की मसलन किसी ने हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम का मौला के बारे में क़ौल युं लिखा कि हम उन पर काबू ना पा सकेंगे या उस पर गिरफ्त ना कर सकेंगे या हम उसे पकड़ ना सकेंगे मआज़ अल्लाह ये सारे तर्जुमे गलत और सरासर बातिल हैं,ये मुमकिन ही नहीं एक नबी खुदा के बारे में ऐसा अक़ीदा रखे कि उसका खुदा उसे पकड़ नहीं सकता जबकि एक जाहिल से जाहिल मुसलमान भी ये खूब अच्छी तरह जानता है कि उसका खुदा उसे कहीं भी गिरफ्त में ले सकता है,मगर कुछ लोगों ने तो इस आयत के तर्जुमे से खुदा को भी मआज़ अल्लाह आजिज़ क़रार दे दिया हालांकि ये खुला हुआ कुफ्र है

एक मर्तबा हज़रते अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हज़रते इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मुलाक़ात की और कहा कि कल सारी रात मैं क़ुर्आन में गर्क रहा मगर मुझे खलासी ना मिली आप बतायें क्या अल्लाह का नबी ये गुमान कर सकता है कि अल्लाह उसे पकड़ नहीं सकेगा इस पर हज़रते इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि ये लफ्ज़ क़द्र से लिया हुआ है कुदरत से नहीं इसका मायने तंगी ना करना है क़ुदरत ना रखना नहीं जैसा कि क़ुर्आन में कई जगह आया है कि अल्लाह जिसके लिए चाहे रिज़्क़ कुशादा करता है और जिस पर चाहे तंग करता है तो यहां भी वही मायने मुराद है

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 199

ⓩ एक तर्जुमा ये किया गया जिसमे हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम को ज़ालिम कहा गया मआज़ अल्लाह याद रखें कि महबूब और मुहिब यानि रब और उसके महबूब बन्दे आपस में जो बात करे और जैसी बात करें किसी को कोई हक़ नहीं पहुंचता कि वो उस बात को दलील बनाये मसलन आलाहज़रत फरमाते हैं कि

हज़रते हारून अलैहिस्सलाम नबी हैं और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के बड़े भाई मगर जलाले मूसा की ताब में वो भी आ गये कि जब आप तूर से वापस आये और अपनी क़ौम को बुतपरस्ती करते देखा तो अपना होश खो बैठे और जलाल में उनकी दाढ़ी पकड़कर खींचने लगे जबकि नबी की ताज़ीम फर्ज़ है खैर चलिये छोड़िये वो तो उनके भाई ही थे शबे मेराज हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सुना कि कोई शख्स तेज़ आवाज़ में रब से बातें कर रहा है तो आपने जिब्रील अलैहिस्सलाम से फरमाया कि ये कौन है जो रब पर तेज़ी करता है तो हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि ये मूसा अलैहिस्सलाम हैं मौला जानता है कि उनके मिज़ाज में तेज़ी है चलिये इसे भी जाने दीजिये वो जो उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा अपने रब से फरमाती हैं कि ये सब तेरे ही फितने हैं यहां क्या कहियेगा,जो अलफाज़ ये नुफूसे क़ुदसिया जलाल में कह गये अगर दूसरा कहे तो गर्दन मारी जाये मगर अन्धो ने तो शाने अब्दियत ही देखी शाने महबूबियत देखने से तो उनकी आंखें फूट गई 

📕 अलमलफूज़,हिस्सा 3,सफह 6

और साहिबे बहारे शरीयत फरमाते हैं कि "अम्बिया-ए किराम से जो लग्ज़िशें हुई उनका ज़िक्र सिवाये तिलावते क़ुर्आन और रिवायते हदीस के कहीं और करना हराम और सख्त हराम है दूसरों को उन पर लब कुशाई करने की क्या मजाल,मौला उनका मालिक है जिस तरह चाहे ताबीर करे और वो मौला के प्यारे बन्दे हैं अपने आपको जिस तरह चाहें उसके सामने तवाज़े करें तो जो उसको सनद बनायेगा वो मरदूदे बारगाह होगा,फिर जिसको लग़्ज़िश समझा जाता है उसमे भी हज़ार हिकमतें छिपी होती हैं एक लग्ज़िशें आदम को ही देखिये अगर वो ना होती जन्नत से ना उतरते दुनिया आबाद ना होती किताबें ना उतरती रसूल ना आते जिहाद ना होते गर्ज़ कि लाखों करोड़ो नेकियों के दरवाज़े हमेशा के लिए बन्द ही रहते इसिलिये फुक़्हा फरमाते हैं कि अम्बिया की लग्ज़िशें सिद्दीक़ीन की नेकियों से भी अफज़ल है 

📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 23

ⓩ फिर दूसरी जगह तर्जुमा करने वालो ने लिखा कि वो भाग गये माज़ अल्लाह,ये भी एक नबी की शान के लायक़ नहीं कि वो अपनी उम्मत को छोड़कर भाग जायें जबकि मेरे आलाहज़रत ने लिखा कि "बेशक युनुस पैगम्बरों से हैं जबकि वो भरी कश्ती की तरफ निकल गया" यानि हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम ने अपने इज्तिहाद से फैसला किया कि अब तो अज़ाब आ ही गया है अब यहां रूककर क्या फायदा और यही सोचकर आपने बस्ती छोड़ दी और ये ख्याल किया कि मौला मुझसे उनके तअल्लुक़ से बाज़ पुर्स ना करेगा हालांकि उनको अज़ाब आने तक ठहरना चाहिये था क्योंकि मौला ने उनको लाखों से ज़्यादा आदमी की तरफ नबी बनाकर भेजा था,फिर किसी ने तर्जुमा किया गया कि उन पर ये अज़ाब आया कि मछली ने उन्हें निगल लिया जबकि आलाहज़रत फरमाते हैं कि "और हमने उसे लाख आदमियों बल्कि ज़्यादा की तरफ भेजा तो वो ईमान ले आये और हमने उन्हें एक वक़्त तक बरतने दिया" यानि ये अज़ाब नहीं था बल्कि एक यार का यार को इताब था और इताब सज़ा को नहीं कहते बल्कि हिस्से को कहते हैं और ये रब के मुताबिक इसलिये था कि ऐ मेरे प्यारे हमने आपको लाखों का नबी बनाया और आप हमारा अज़ाब आने तक ना रुके और युंही चल दिये हो सकता था कि वो ईमान ले आते और जैसा कि हुआ भी

*कंज़ुल ईमान* - फिर उसे मछली ने निगल लिया और वो अपने आपको मलामत करता था.तो अगर वो तस्बीह करने वाला ना होता.ज़रूर उसके पेट में रहता जिस दिन तक लोग उठाये जायेंगे 

📕 पारा 23,सूरह साफ्फात,आयत 142-144

आयते करीमा: لااله الا انت سبحانك اني كنت من الظالمين यही वो तस्बीह थी जिसे हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम ने मछली के पेट में पढ़ी और मौला ने आपको हर ग़म से आज़ाद कर दिया जबकि फरमाता है कि अगर ये तस्बीह ना पढ़ते तो क़यामत तक वहीं रहते लिहाज़ा अब कोई मुसलमान कितनी भी बड़ी मुसीबत में गिरफ्तार हो या कैसी भी परेशानी हो तो सच्चे दिल से तायब होकर उसकी बारगाह में इसी आयत का कसरत से विर्द करे तो मौला तआला उसकी तमाम मुश्किलें ज़रूर ज़रूर आसान फरमा देगा,इन शा अल्लाह

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 200

जो बीमारी की हालत में 40 मर्तबा आयते करीमा पढ़े पर अगर मौला ने उसे हयात ना बख्शी और मर गया तो उसे शहादत का दर्जा मिलेगा 

📕 क्या आप जानते हैं,सफह 572 

हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम की मज़ार मक़ामे निनेवाह में है 

📕 आईनये तारीख,सफह 123 


*KANZUL IMAAN* - Aur zunnoon ko yaad karo jab chala gusse me bhara to gumaan kiya ki hum uspar tangi na karenge to andherion me pukaara koi maboob nahin siwaye tere paaki hai tujhko beshak mujhse beja hua

📕 Paara 17,surah ambiya,aayat 87

Hazrat yunus alaihissalam ka laqab zunnoon aur saahibal hoot hai kyunki aap machhli ke peit me chale gaye the isliye aapko zunnoon kaha gaya aur aap bachpan me hi inteqal farma gaye the magar 14 din ke baad hazrat ilyaas alaihissalam ki dua se aap phir zinda hue

📕 Tafseere saavi,jild 3,safah 73

Iraq ke ninevah jise mosul bhi kaha jaata hai uski taraf aap nabi banakar bheje gaye,aapne apni qaum jo ki kufro shirk me mubtela thi use samjhaya ki ye sab chhodkar ek ALLAH ki ibaadat karo par wo nahin maane tab aapne farmaya ki agar tum logon ne apna ye tariqa nahin chhoda to 40 din ke baad ALLAH ka azaab aa jayega,halaanki un logon ko maloom tha ki aap jo bolte hain wo haq hi hota hai magar phir bhi iski taraf tawajjoh nahin ki jab 35 din guzar gaye to aasman par kaale baadal chha gaye jinse bahut zyada dhuwan nikalne laga jisne poore shahar ko apni aagosh me le liya,jab hazrat yunus alaihissalam ne dekha to samajh gaye ki ab azaab aane waala hai aur aap basti chhodkar baahar nikal gaye ye din muharram ki daswi thi,udhar jab qaum ko ye ehsaas ho gaya ki hum par khuda ka azaab aane waala hai to wo apne aalim ke paas pahunche aur saari baat batayi to unhone kaha ki ab tauba karne ka waqt aa gaya hai to poori qaum ro rokar khuda ki baargah me apne gunaah mi maafi chahne lagi,apne saare mazalim jo unhone ek doosre par kiye the maaf karaye sab ka chheena hua haq waapas kiya yahan tak ki kisi ka patthar bhi agar uske makaan ki buniyaad me laga tha to khodkar uska patthar tak wapas kiya gaya aur wo dardnaak aawaz me bachche boodhe jawaan aurtein ro rahe the aur yahi kahte jaate the ki hum tujhpar aur tere nabi par imaan laaye to maula ko unpar raham aa gaya aur un par se azaab ko taal diya

Yahan par ek sawal uthta hai ki qaume yunus ne tauba ki to unki tauba qubool ki gayi aur jab fir'aun ne tauba ki to uski tauba qubool na huyi aisa kyun jabki azaab dono par hi aa pada tha,to iska jawab ye hai ki fir'aun ne azaab dekh liya tha aur azaab dekhkar tauba karna qubool nahin jabki qaume yunus ne azaab nahin dekha tha balki sirf alaamate azaab dekha tha aur yahi alaamat dekhkar tauba karne lage to tauba unki sachchi thi lihaza qubool huyi

📕 Tazkiratul ambiya,safah 198

Udhar hazrat yunus alaihissalam basti se baahar nikal chuke the ye sochkar ki ab unki qaum par azaab to aahi chuka hai so mera yahan kya kaam magar wo sab to maaf ho chukr the,aap kashti me baithkar safar ko nikle jab kashti beech dariya me aayi to charon taraf se maujo ne kashti ko gher liya us waqt unke maamool ke mutabiq agar koi ghulam apne maalik se door ja raha hota tha to hi aisa hota tha aur usse bachne ka tariqa ye tha ki use dariya me phenk diya jaaye to sab bach jaate the,ab us shakhs ke baare me jaanne ke liye ki kaun yahan aisa hai qur'aa nikaala gaya aur teeno hi baar hazrat yunus alaihissalam ka naam aaya to aap khud hi dariya me kood pade,maula ne fauran ek machhli ko hukm diya ki mere nabi ko apne peit me jagah de magar khayal rahe ki wo tera luqma nahin hai isliye unhein taqleef na ho chunanche ek machhli aapko nigal gayi aur aapkjo liye isi tarah idhar udhar samandar me phirti rahi,aap machhli ke peit me 3 din se lekar 40 din tak thaharne ke qaul hain phir wahin se aapne ye dua padhi to maula ne aapki dua sun li aur aapko machhli ke peit se nijaat mili is tarah ki wo aapko saahil par chhodkar chali gayi wahan par maula ne ek kaddu yaani lauki ka darakht ugaya jiske saaye me aap aaraam farmate the,kaddu ka peid ugaane me hikmat ye thi ki aap jab machhli ke peit se baahar aaye to ek nau maulood bachche ki tarah the ki aapki khaal bahut narm thi jispar makkhiyan baithti to aapko pareshani hoti aur aap kaafi kamzor bhi ho chuke the lihaza maula ne kaddu ka peid ugaaya ki uspar makkhiyan nahin baithti uske patte bade bade hote hain jo aapko dhakkar rakhte aur ek bakri rozana aakar aapko doodh pila jaati thi is tarah aap pahle jaise sehatmand ho gaye

📕 Tazkiratul ambiya,safah 199-201

📕 Alitqaan,jild 2,safah 178

📕 Khaazin,jild 4,safah 258


ⓩ Ye poora waqiya aapne padh liya ab kuchh wo baatein batata hoon jisme logon ne khyanat se kaam liya,sabse badi baat to ye ki jo aayat maine shuru me pesh ki us aayat ka tarjuma karne me bahuto ne galtiyan ki maslan kisi ne hazrat yunus alaihissalam ka maula ke baare me qaul yun likha ki hum unpar qaabu na pa sakenge ya uspar giraft na kar sakenge ya hum use pakad na sakenge maaz ALLAH ye saare tarjume galat aur sarasar baatil hain,ye mumkin hi nahin ek nabi khuda ke baare me aisa aqeeda rakhe ki uska khuda use pakad nahin sakta jabki ek jaahil se jaahil musalman bhi ye khoob achchhi tarah jaanta hai ki uska khuda use kahin bhi giraft me le sakta hai,magar kuchh logon ne to is aayat ke tarjume se khuda ko bhi maaz ALLAH aajiz qaraar de diya halaanki ye khula hua kufr hai*

Ek martaba hazrate ameer muaviya raziyallahu taala anhu hazrate ibne abbas raziyallahu taala anhu se mulaakat ki aur kaha ki kal raat main quran me gark raha magar mujhe khalaasi na mili aap batayein kya ALLAH ka nabi ye gumaan kar sakta hai ki ALLAH use pakad nahin sakega ispar hazrate ibne abbas raziyallahu taala anhu farmate hain ki ye lafz qadr se liya hua hai qudrat se nahin iska maane tangi na karna hai qudrat na rakhna nahin jaisa ki quran me kayi jagah aaya hai ki ALLAH jiske liye chahe rizq kushaada karta hai aur jispar chahe tang karta hai to yahan bhi wahi maane muraad hai

📕 Tazkiratul ambiya,safah 199

ⓩ Ek tarjuma ye kiya gaya jisme hazrat yunus alaihissalam ko zaalim kaha gaya maaz ALLAH,yaad rakhen ki mahboob aur muhib yaani Rub aur uske mahboob bande aapas me jo baat kare aur jaisi baat karen kisi ko koi haq nahin pahunchta ki wo us baat ko daleel banaye maslan Aalahazrat farmate hain ki

Hazrate haroon alaihissalam nabi hain aur hazrat moosa alaihissalam ke bade bhai magar jalale moosa ki taab me wo bhi aa gaye ki jab aap toor se waapas aaye aur apni qaum ko butparasti karte dekha to apna hosh kho baithe aur jalaal me unki daadhi pakadkar kheenchne lage jabki nabi ki tazeem farz hai khair chaliye chhodiye wo to unke bhai hi the shabe meraj huzoor sallallaho taala alaihi wasallam ne suna ko koi shakhs tez aawaz me rub se baatein kar raha hai to aapne jibreel alaihissalam se farmaya ki ye kaun hai jo rub par tezi karta hai to hazrat jibreel alaihissalam farmate hain ki ye moosa alaihissalam hain maula jaanta hai ki unke mizaaj me tezi hai chaliye ise bhi jaane dijiye wo jo ummul momeneen sayyadna aaisha siddiqa raziyallahu taala anha apne rub se farmati hain ki ye sab tere hi fitne hain yahan kya kahiyega,jo alfaaz ye nufuse qudsiya jalaal me kah gaye agar doosra kahe to gardan maari jaaye magar andho ne to shaane abdiyat hi dekhi shaane mahbubiyat dekhne se to unki aankhen phoot gayi

📕 Almalfooz,hissa 3,safah 6

Aur saahibe bahare shariyat farmate hain ki "ambiyaye kiraam se jo lagzishen huyi unka zikr siwaye tilawate quran aur riwayte hadees ke kahin aur karna haraam aur sakht haraam hai dooro ko unpar lab kushayi karne ki kya majaal,maula unka maalik hai jis tarah chahe tabeer kare aur wo maula ke pyare bande hain apne aapko jis tarah chahen uske saamne tawaze karen to jo usko sanad banayega wo mardude baargah hoga,phir jisko lagzish samjha jaata hai usme bhi hazaar hikmatein chhipi hoti hain ek lagzishe aadam ko dekhiye agar wo na hoti jannat se na utarte duniya aabad na hoti kitabein na utarti rasool na aate jihaad na hote garz ki laakhon croro nekiyon ke darwaze hamesha ke liye bund hi rahte isiliye fuqha farmate hain ki ambiya ki lagzishen siddiqeen ki nekiyon se bhi afzal hai

📕 Bahare shariyat,hissa 1,safah 23

ⓩ Phir doosri jagah tarjuma karne waalo ne likha ki wo bhaag gaye maaz ALLAH ye bhi ek nabi ki shaan ke laayaq nahin ki wo apni ummat ko chhodkar bhaag jaayein jabki mere Aalahazrat ne likha ki "beshak yunus paigambaro se hain jabki wo bhari kashti ki taraf nikal gaya" yaani hazrat yunus alaihissalam ne apne ijtihaad se faisla kiya ki ab to azaab aa hi gaya hai ab yahan rukkar kya faaydah aur yahi sochkar aapne basti chhod di aur ye khayal kiya ki maula mujhse unke talluq se baaz purs na karega halaanki unko azaab aane tak thaharna chahiye tha kyunki maula ne unko laakhon se zyada aadmi ki taraf nabi banakar bheja tha,phir kisi ne tarjuma kiya gaya ki unpar ye azaab aaya ki machhli ne unhein nigal liya jabki Aalahazrat farmate hain ki "Aur humne use laakh aadmiyon balki zyada ki taraf bheja to wo imaan le aaye aur humne unhein ek waqt tak baratne diya" yaani ye azaab nahin tha balki ek yaar ka yaar ko itaab tha aur itaab saza ko nahin kahte balki hisse ko kahte hain aur ye rub ke mutabik isliye tha ki ai mere pyaare humne aapko laakhon ka nabi banaya aur aap hamara azaab aane tak na ruke aur yunhi chal diye ho sakta tha ki wo imaan le aate aur jaisa ki hua bhi

*KANZUL IMAAN* - Phir use machhli ne nigal liya aur wo apne aapko malamat karta tha.to agar wo tasbeeh karne waala na hota.zaroor uske peit me rahta jis din tak log uthaye jayenge

📕 Paara 23,surah saffaat,aayat 142-144

AAYTE KAREEMA: لااله الا انت سبحانك اني كنت من الظالمين Yahi wo tasbeeh thi jise hazrat yunus alaihissalam ne machhli ki peit me padhi aur maula ne aapko har ghum se aazad kar diya warna farmata hai ki agar ye tasbeeh na padhte to qayamat tak wahin rahte lihaza ab koi musalman kitni bhi badi musibat me giraftar ho ya kaisi bhi pareshani ho to sachche dil se taayab hokar uski baargah me isi aayat ka kasrat se wird kare to maula taala uski mushkilen zaroor zaroor aasan farma dega,in sha ALLAH

📕 Tazkiratul ambiya,safah 200

Jo bimari ki haalat me 40 martaba aayte kareema padhe par agar maula ne use hayaat na bakhshi aur mar gaya to use shahadat ka darja milega

📕 Kya aap jaante hain,safah 572

hazrat yunus alaihissalam ki mazaar Qabr makaame ninevah me hai

📕 Aayinaye tareekh,safah 123


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