हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम ।। Biography of Hazrat Ismail Alaihissalam
Hazrat Ismail Alaihissalam :
हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम का नाम इस्माईल इस लिए पड़ा कि बहुत साल तक हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को औलाद न हुई थी और वो हमेशा दुआ करते रहते थे और अपनी ज़बान में "इसमअ" यानि सुन ले "ईल" इबरानी ज़बान में खुदा का नाम है यानि ऐ खुदा मेरी सुन ले,जब आप पैदा हुए तो इसी दुआ की यादगार में आपने उनका नाम इस्माईल रख दिया
📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 820
जिस वक़्त हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम पैदा हुए उस वक़्त हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की उम्र 106 साल की थी और जब हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम पैदा हुए तब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की उम्र 120 साल थी, यानि हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम, हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम से 14 साल बड़े हैं
📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 176
हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम जब तक पैदा नहीं हुए थे तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम औलाद के लिए दुआ किया करते थे जब उनकी दुआ क़ुबूल हुई तो मौला फरमाता है कि "हमने उसे खुशखबरी सुनाई एक बुर्दबार लड़के की" चुंकि मौला ने उन्हें सब्र वाला फरमाया था सो उसकी मिसाल भी पेश करनी थी और दुनिया को दिखाना भी मक़सूद था,सो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को ज़िल्हज्ज की 8,9,10 तारीख को लगातार ख्वाब में आपके बेटे की क़ुरबानी करने का हुक्म दिया गया,चुंकि ये हुक्म ख्वाब में देखा था तो 8 को पूरा दिन सोचने में गुज़र गया तो इस दिन को यौमुल तरविया यानि सोच विचार का दिन कहा गया फिर 9 को ख्वाब देखा तो पहचान लिया कि ये सच्चा ख्वाब है तो इसे यौमुल अरफा यानि पहचानने का दिन फिर 10 को इरादा कर लिया क़ुरबानी पेश करने का इस लिए इस दिन को यौमुन नहर यानि क़ुरबानी का दिन कहा गया
📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 2,सफह 296
क़ुरबानी के वक़्त हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी इसमें 2 क़ौल है बाज़ ने 7 साल कही और बाज़ ने 13,मगर 13 ही राजेह है,10वीं ज़िल्हज्ज को आप अपने बेटे को लेकर मिना की जानिब निकल पड़े पहले तो शैतान ने दोस्त बनकर उन दोनों को रोकना चाहा मगर जब कामयाब ना हो सका तो उनको रोकने के लिए इतना बड़ा बन गया कि पूरा रास्ता ही बन्द कर दिया,एक फरिश्ता हाज़िर हुआ और आपसे फरमाया कि इसे 7 कंकरियां मारिये ये दफअ होगा आपने उसे मारा तो भाग गया फिर दूसरी जगह आया तो फिर आपने उसे मारकर भगाया फिर तीसरी बार भी आया और मार खाकर भागा,हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को बताया कि वो यहां उन्हें किस लिए लाये हैं और साबिर बेटे ने जवाब दिया कि "आप अपने रब का हुक्म अदा करें इन शा अल्लाह आप मुझे साबिर ही पायेंगे" और अपने बाप को मशवरा दिया कि मुझे रस्सी से बांध दीजिए ताकि मैं तड़पुं नहीं और अपने कपड़ो को भी मेरे खून से बचाइयेगा और मेरी वालिदा को मेरा सलाम कहियेगा,फिर आपने उन्हें पेशानी के बल लिटाया ये भी हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम का मशवरा ही था कि कहीं आप मेरे चेहरे को देखकर मुहब्बते पिदरी में ना आ जाएं और उन्हें लिटाकर उन पर छुरी चला दी,रिवायत में आता है कि आपने 70 मर्तबा छुरी चलाई तो जब 70 मर्तबा भी चलने के बाद रग ना कटी तो आपने जलाल में आकर छुरी फेंक दी और कहा कि तू मेरा हुक्म क्यों नहीं मानती है तो छुरी बा ज़ुबान होकर बोलती है कि हुज़ूर आप गुस्सा ना करें आप काटने को कहते हैं और मेरा रब मुझे मना फरमाता है आप ही बतायें कि मैं क्या करूं तो आपने फरमाया कि तेरा काम काटना है तो तू काट तो छुरी बोलती है कि आग का काम भी तो जलाना होता है फिर क्यों आग ने आपको नहीं जलाया
📕 नुज़हतुल मजालिस,5,सफह 24
अल्लाह के हुक्म से हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम जन्नत से एक मेंढा लाये जो हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम का फिदिया बना और आपकी जगह वो ज़बह हुआ,इसका नाम जरीर था और ये वही मेंढा था जिसे हज़रत हाबील पहले ही राहे खुदा में क़ुर्बान कर चुके थे और ये जन्नत में मज़े से रह रहा था,ये मेंढा रूए ज़मीन का इकलौता ऐसा जानवर है जो अल्लाह के नाम पर 2 बार ज़बह हुआ,आपने इसके गोश्त को परिंदों को खिलाया क्योंकि इस पर आग असर ना करती थी कि पकाया जाता
📕 जलालैन,हाशिया 21,सफह 377
एक मर्तबा हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम, हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम से मिलने के लिए आपके घर पहुंचे उस वक़्त आप घर पर नहीं थे,बहू से मुलाक़ात हुई तो आपने घर का हाल पूछा तो कहने लगी कि गुज़ारा अच्छा नहीं होता है तंगदस्ती है,आप जब जाने लगे तो उससे कहा कि अपने शौहर को मेरा सलाम कहना और कहना कि उसके घर की चौखट अच्छी नहीं है उसे बदल दे,जब हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम वापस आये तो उन्हें अपने बाप की खुशबु मिली पूछा कि अब्बा हुज़ूर कहां हैं तो बीवी ने कहा कि वो तो चले गए आपको सलाम कहा है और कहा है कि अपने घर की चौखट को बदल दें तो आप फरमाते हैं कि वो तुझे तलाक़ देने को कह गए हैं मैं तुझे अभी तलाक़ देता हूं,ये बीवी क़ौमे जहम के सरदार की बेटी अम्माराह बिन्त सअद बिन ओसामा थी बाद में आपने बिन्ते मदाद बिन उमर से निकाह किया
📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 113
हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की उम्र 130 साल हुई
📕 तफसीरे सावी,जिल्द 2,सफह 27
हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलामका मज़ार शरीफ ऐन खानये काबा में मीज़ाबे रहमत के नीचे है
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 2,सफह 453
Hazrat Ismayeel Alaihissalam ka naam ismayeel is liye pada ki bahut saal tak hazrat ibraheem alaihissalam ko aulaad na huyi thi aur wo hamesha dua karte rahte the aur apni zabaan me "isma" yaani sun le "eel" ibraani zabaan me khuda ka naam hai yaani ai khuda meri sun le,jab aap paida hue to isi dua ki yaadgar me aapne unka naam ismayeel rakh diya
📕 Tafseere nayimi,jild 1,safah 820
Ek martaba hazrat ibraheem alaihissalam aapse milne ke liye aapke ghar pahunche us waqt aap ghar par nahin,bahu se mulaqat huyi to aapne ghar ka haal poochha to kahne lagi ki guzara achchha nahin hota hai tangdasti hai,aap jab jaane lage to usse kaha ki apne shauhar ko mera salaam kahna aur kahna ki uske ghar ki chaukhat achchhi nahin hai use badal de,jab hazrat ismayeel alaihissalam wapas aaye to unhein apne baap ki khushbu mili poochha ki abba huzoor kahan hain to biwi ne kaha ki wo to chale gaye aapko salaam kaha hai aur kaha hai ki apne ghar ki chaukhat ko badal dein to aap farmate hain ki wo tujhe talaaq dene ko kah gaye hain main tujhe abhi talaaq deta hoon,ye biwi qaume jarham ke sardaar ki beti ammarah bint sa'ad bin osama thi baad me aapne binte madaad bin umar se nikah kiya
📕 Tazkiratul ambiya,safah 113
Hazrat Ismayeel Alaihissalam ki umr 130 saal huyi
📕 Tafseere saavi,jild 2,safah 27
Hazrat Ismayeel Alaihissalam KI mazaar sharif ain khaanaye kaaba me meezabe rahmat ke neeche hai
📕 Fatawa razviyah,jild 2,safah 453
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