हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ।। Biography of Hazrat Ibraheem Alaihissalam




हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम:

Biography of Hazrat Ibraheem Alaihissalam

आपका नाम इब्राहीम और लक़ब अबुज़्ज़ैफ यानि बहुत बड़े मेहमान नवाज़ और अबुल अम्बिया यानि नबियों के बाप है क्योंकि 8 अम्बिया इकराम यानि हज़रत आदम हज़रत शीश हज़रत इदरीस हज़रत नूह हज़रत हूद हज़रत सालेह हज़रत लूत और हज़रत यूनुस अलैहिस्सलातो वत्तस्लीम के अलावा बाकी सारे नबी आप ही की नस्ल से हुए,आपके 2 साहबज़ादे नबी हुए हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम जो कि हज़रते हाजरा रज़ियल्लाहु तआला अंहा के बेटे हैं और दूसरे हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम जो कि हज़रते सारा रज़ियल्लाहु तआला अंहा के बेटे हैं 

📕 नुज़हतुल कारी,जिल्द 6,सफह 501 

📕 तफसीरे अज़ीज़ी,जिल्द 1,सफह 373

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का नस्ब नामा ये है इब्राहीम बिन तारख बिन नाखूर बिन सारू बिन रऊ बिन तातेय बिन आमिर बिन सालेह बिन रफह बिन साम बिन हज़रत नूह अलैहिस्सलाम,और आज़र आपका चचा जो कि काफिर था कुछ लोग उसे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का बाप कहते हैं ये बे अस्ल है,क्योंकि किसी भी अम्बिया अलैहिस्सलातो वत्तस्लीम के आबा व अजदाद में कोई भी काफिर ना हुआ सब मोहिद मोमिन थे,चुंकि अरब क़ौम में चचा को भी बाप ही कहते हैं इसी लिए क़ुरान ने आज़र को आपका बाप यानि अबियह कहा जैसा कि खुद हदीसे पाक में है कि एक मर्तबा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने युं फरमाया कि "मेरे बाप अब्बास को मुझ पर पेश करो" हालांकि वो आपके बाप नहीं बल्कि चचा हैं,आप तूफाने नूह के 1709 साल बाद और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम से 2300 साल पहले अमवाज़ के इलाक़े मक़ामे सोस में पैदा हुए 

📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 810

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की वालिदा के नाम मे इख्तिलाफ है सानी या नूफा या लेवसा या अमीलिया या बूना बिन्त करबन मज़कूर है

📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 186

📕 अलबिदाया,जिल्द 1,सफह 140

नमरूद बिन कुंआन जाबिर बादशाह था जो कि लोगों से अपनी परशतिश करवाता,उसके दरबार के नुजूमियों ने उसे बताया कि एक बच्चा पैदा होने वाला है जो कि तेरी हलाक़त का बाइस होगा,उसने ये सुनकर फौरन ही जो बच्चे पैदा हुए थे सबको मरवा दिया और जो हमल में थे सबका हमल गिरवा दिया और मियां बीवी को मिलने पर भी पाबंदी लगवा दी,मगर तक़दीरे इलाही को कौन टाल सकता है आपकी वालिदा मोहतरमा हामिला हो गईं मगर उम्र कम थी सो हमल पहचान में ना आता था जब आपकी विलादत का वक़्त करीब आया तो आपके वालिद उन्हें शहर से दूर एक तहखाने में ले गए जो उन्होंने पहले ही खोद रखा था,वहीं आपकी विलादत हुई आपकी वालिदा आपको रोज़ाना उसी तहखाने में दूध पिला आती और आते हुये गार के मुंह को पत्थरों से ढ़क दिया करती,आप एक महीने में इतना बढते थे जितना एक आम बच्चा साल भर में बढ़ता था,आप तहखाने में कितनी मुद्दत रहे इसमें कई क़ौल हैं बाज़ ने 7 बरस बाज़ ने 13 और बाज़ ने 17 भी लिखा है 

📕 खज़ाएनुल इर्फान,पारा 7,रुकू 15

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की तरफ 3 झूठ की निस्बत की जाती है पहली बात आपका ये कहना कि मैं बीमार हूं हालांकि आप बीमार नहीं थे,दूसरा बुतों को तोड़कर इनकार करना,तीसरा अपनी बीवी को बहन कहना,मगर एक नबी हरगिज़ हरगिज़ हरगिज़ झूठ नहीं बोल सकता आईये उसकी पूरी तफसील देखते हैं

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने चचा से कहा कि क्यों इन बुतों की पूजा करते हो जो ना सुन सकते हैं और ना बोल सकते हैं पर वो नहीं माने उधर क़ौम का एक सालाना मेला लगता था जिसे वो ईद कहते थे उन्होंने जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से उस मेले में चलने को कहा तो आपने आसमान की तरफ देखा और फरमाया कि "मैं बीमार होने वाला हूं" इस पर वो समझें कि ये बीमार हैं और आपको छोड़कर मेले में चले गए इधर आपको हालात मुनासिब नज़र आये और आपने उन सब बुतों को तोड़ डाला और वो हथौड़ा एक बड़े बुत के कांधे पर रख दिया और उसे नहीं तोड़ा,उधर क़ौम को जब ये पता चला तो भागती हुई आई और कहा कि किसने हमारे खुदाओं का ये हाल किया इसपर आपका नाम आया कि आप ही उनकी मुखालिफत करते हैं और आज गांव में सिर्फ आप ही मौजूद थे,आपको बुलाकर जब पूछा गया कि इन बुतों को किसने तोडा तो आपने फरमाया "उनके इस बड़े ने किया होगा"

पहला क़ौल ये कि मैं बीमार होने वाला हूँ: आपके कहने का ये मतलब हरगिज़ नहीं था कि मैं कल ही बीमार होने वाला हूं,आखिर ज़िन्दगी में आदमी कभी तो बीमार होगा ही इस कलाम को "तौरियह" कहते हैं यानि कहने वाला अपनी बात की मुराद दूर की ले अगर चे सुनने वाला क़रीब समझे और अगर इसको युं भी कहें कि मैं बीमार ही हूं तब आपके कहने का मतलब ये था कि तुमने एक अल्लाह को छोड़कर ना जाने कितने बातिल माबूद बना रखे हैं इसी वजह से मैं ज़हनी परेशानी में मुब्तेला हूं और मेरा क़ल्ब बीमार है अगर चे लोग इसका माने कुछ भी समझें 

दूसरा क़ौल ये कि इस बड़े ने किया है इसकी 7 शरहें हैं 

1. पहला ये कि आपने ये नहीं फरमाया कि ये काम इस बुत ने ही किया है बल्कि इससे आपने अपनी ज़ात ही मुराद ली इसको युं समझिये जैसे मेरा ये मश्ग आप पढ़ें और फिर मुझसे पूछें कि क्या इसे आपने लिखा है तो मैं कहुं कि नहीं तुमने लिखा है तो यहां ऐतराज़न कहा कि अरे भाई तुमने तो लिखा नहीं तो ज़रूर मैंने ही लिखा होगा इस कलाम को "तारीज़" कहते हैं,मतलब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से क़ौम ने पूछा कि क्या ये सब तुमने किया है तो आपका ये फरमान कि नहीं इस बड़े ने किया है दर असल उनको यही बताना था कि जब ये बोल नहीं सकता सुन नहीं सकता जवाब नहीं दे सकता तो बुतों को क्या खाक तोडेगा ज़ाहिर सी बात है मैंने ही किया है,मगर इस कलाम को वो नहीं समझें 

2. दूसरा ये कि कभी कभी काम करने की निस्बत भी करवाने वाले की तरफ की जाती है मसलन आप क़ुरान पढ़ रहे है अचानक आपका बेटा कमरे में दाखिल हुआ और आकर टी.वी चालू करके बैठ गया आप उठे और दो थप्पड़ रसीद कर दिए जब घर वालो ने पूछा तो आपने टी.वी को ही ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा कि सब इसी ने किया है बस उसी तरह क़ौम के लोग उन बुतों को माबूद समझते और उन्हें खूब सजाते और उस बड़े बुत को कुछ ज़्यादा ही तवज्जोह देते जिसकी वजह से आपको गुस्सा आया और सारे बुतों को तोड़कर उसी की तरफ निस्बत कर दी क्योंकि गुस्सा उसी की वजह से आया था

3. तीसरा ये कि जब क़ौम बुतों को माबूद मानती है तो फिर उसको क़ुदरत भी होनी चाहिए तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का उसकी तरफ निस्बत करना कि इसने ये किया है फिर क़ौम का ये कहना कि ये तो कुछ हरकत नहीं कर सकता दर असल उनको समझाना मुराद था कि जब तुम खुद जानते हो कि वो ऐसा नहीं कर सकता तो क्यों उसको माबूद समझकर पूजा करते हो

4. चौथा ये कि आपका कलाम ये था कि जिसको करना था वो कर चुका अब अगर इसके अंदर बोलने की सलाहियत है तो इसी से पूछ लो कि किसने किया है

5.पांचवा ये कि "कबीरहुम" पर वक़्फ है और फिर कलाम की शुरुआत "हाज़ा" से है मतलब आपका ये कहना कि इनके बड़े ने किया है मतलब आपने बड़े से अपनी ही ज़ात मुराद ली कि मैं ही वो बड़ा हूं क्योंकि बुत कितना भी बड़ा हो पर इंसान से बड़ा नहीं हो सकता

6. फेअल की इज़ाफत बड़े बुत की तरफ मशरूत के तौर पर है मतलब ये कि अगर ये बोलता है तो इसने किया है और नहीं बोलता तो ज़ाहिर है कि नहीं बोलता तो इसने नहीं बल्कि मैंने किया है क्योंकि कलाम में तक़दीम व ताख़ीर है

7. एक क़िरात "फअलहु कबीरहुम" भी आई है मतलब ये कि शायद इनके बड़े ने किया हो

तीसरा क़ौल आपका अपनी बीवी को बहन कहना : जब क़ौम आपकी बात नहीं मानी तो नमरूद के हुक्म से आपको आग में डाला गया आग आप पर गुलज़ार हो गयी,जब आप बाहर आये तो आप क़ौम से बहुत ना उम्मीद हो गए और सब कुछ छोड़कर आप अपने चचा हारान के पास चले गए,आपकी सदाक़त को देखकर आपके चचा ने अपनी बेटी हज़रते सारा का निकाह आपसे करा दिया मगर आपने वहां भी हक़ की सदा बुलंद करनी शुरू करदी जिस पर आपके चचा ने आपको वहां से चले जाने को कहा आप जब शहर फलस्तीन से गुज़रे तो वहां का बादशाह जो कि बहुत ज़ालिम था और हर आदमी की बीवी को अपने कब्ज़े में ले लेता था,जब उसको आपकी और हज़रत सारा के आने की खबर हुई तो दोनों को दरबार में बुलवाया और आपसे पूछा कि ये औरत कौन है चुंकि वो आपके चचा की बेटी थीं सो आपकी बहन भी थीं इसी निस्बत से आपने कहा कि ये मेरी बहन है,मगर उस बादशाह ने फिर भी उनको ना छोड़ा और बुरी नियत से उनकी तरफ बढ़ा तो अल्लाह ने उस पर अज़ाब मुसल्लत कर दिया वो गिड़गिड़ाने लगा और आपसे माफी चाही तो आपने उसे माफ कर दिया तब उस बादशाह ने एक कनीज़ यानि हज़रते हाजरा को दोनों को दिया और रुखसत किया

अलहासिल कलाम आपका तीनो सच्चा था मगर लोगों ने उसके माने अपनी अक़्ल के हिसाब से तय किये और उसे झूठ समझा

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 82--85

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने 4 निकाह किये हज़रते सारा व हज़रते हाजरा इन दोनों के विसाल के बाद कन्तूरा बिन्त यक़तन और उनके इन्तेक़ाल के बाद हिजून बिन्त ज़हीर से,जिस तरह मर्दो में सबसे ज़्यादा हसीन हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम हुए हैं उसी तरह औरतों में सबसे ज़्यादा खूबसूरत हज़रते सारा रज़ियल्लाहु तआला अंहा हुईं हैं बल्कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का हुस्न भी आपकी दादी हज़रते सारा का ही सदक़ा था

📕 अलकामिल फित्तारीख,जिल्द 1,सफह 50

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 99

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जिन बुतों को तोड़ा उनकी तादाद 72 थी 

📕 माअरेजुन नुबूवत,जिल्द 1,सफह 76

जिस वक़्त आपको आग में डाला गया उस वक़्त आपकी उम्र 16 साल थी और आग में आप 7 दिन रहे 

📕 तफसीरे जमल,जिल्द 3,सफह 163

ये आतिशे नमरूद क़रियये कोस में धधकाई गई,ये पत्थर की चार दिवारी 90 फिट लंबी 60 फिट चौड़ी और 45 फिट ऊंची थी जिसमे एक महीने तक लकड़ियां जमा की गयी 

📕 खज़ाएनुल इर्फान,पारा 17,रुकू 5

आग को 7 दिन तक दहकाया गया 

📕 तफसीरे सावी,जिल्द 3,सफह 96

इस आग की बुलन्दी इतनी थी कि इसके शोले अहले शाम को दिखाई देते थे और इसकी आवाज़ 3 दिन की मुसाफत से सुनाई देती थी इसके ऊपर से भी कोई परिंदा उड़कर जा नहीं सकता था 

📕 माअरेजुन नुबूवत,जिल्द 1,सफह 98

जब आग इस कदर भड़क गयी तो अब किसी को उसके पास जाने की हिम्मत ना होती थी तब इब्लीस लईन ने मुंजनीक़ बनाने का मशवरा दिया जिसे हैज़न नामी शख्स अमल में लाया,अल्लाह ने उसको ज़मीन में धंसा दिया और ये क़यामत तक धंसता ही रहेगा 

📕 तफसीरे जमल,जिल्द 3,सफह 163

जिस वक़्त आपको आग में डाला गया तो हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम जन्नत से एक कमीज़ लाये और आपको पहनाया 

📕 खज़ाएनुल इर्फान,पारा 12,रुकू 12

जब आप आग की तरफ जा रहे थे तो हवा और पानी का फरिश्ता हाज़िर हुआ आपसे कहा कि आप कहें तो हम ये आग बुझा सकते हैं आपने उनसे मदद लेने का इंकार किया फिर आपके पास जिब्रील अलैहिस्सलाम आये और कहा कि किसी मदद की ज़रूरत हो तो कहिये इस पर भी आपने कहा कि मुझे रब के सिवा किसी की मदद की ज़रूरत नहीं फिर अर्ज़ किया कि आप कहें तो आपकी बात रब तक पहुंचा दूं तो आपने फरमाया कि वो मेरे कहे बग़ैर भी मेरी सुनता है तो जिब्रील अलैहिस्सलाम वहां से चले गए 

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 90

एक मर्तबा हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम से पूछा कि ऐ जिब्रील क्या तुम्हे कभी ज़मीन पर आने के लिए मशक़्क़त भी उठानी पड़ी है इस पर वो फरमाते हैं कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम बेशक 4 मर्तबा मुझे ज़मीन पर आने के लिए बहुत जल्दी करनी पड़ी है

1. पहला जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को आग में डाला जा रहा था तो मौला का हुक्म हुआ कि ऐ जिब्रील मेरे खलील के आग में पहुंचने से पहले तुम उनके पास पहुंचे तो मैंने सिदरह छोड़ा और इससे पहले कि वो आग तक पहुंचते मैं पहुंच गया

2. दूसरा जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने हज़रत इस्माईल के गले पर छुरी चलाने का कसद किया तो मौला ने फरमाया कि ऐ जिब्रील इससे पहले कि इस्माईल के गले पर छुरी चले फौरन जन्नत से एक दुम्बा लेकर इस्माईल के लिए फिदिया बनाओ तो मैं सिदरह से जन्नत गया वहां से दुम्बा लिया फिर ज़मीन पर आकर इस्माईल को हटाकर वो दुम्बा लिटा दिया और वो ज़बह हो गया

3. तीसरा जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को उनके भाइयों ने कुंअे में फेंक दिया और वो पानी की तरफ बढ़ रहे थे तो मौला ने मुझे हुक्म दिया तो इससे पहले कि वो पानी तक पहुंचते मैं एक तख्त लेकर पहुंच गया और उनको बा आसानी उस पर बिठाया

4. चौथा जब आपका दनदाने मुबारक शहीद हुआ और खून की बूंदें ज़मीन की तरफ बढ़ रही थी तो मुझे हुक्म मिला कि आपका खून ज़मीन पर गिरने से पहले अपने हाथों में ले लूं तो मैं सिदरह से ज़मीन पर आया हालांकि आपका खून जिस्म से जुदा होकर ज़मीन की तरफ बढ़ रहा था  मगर उसके ज़मीन तक पहुंचने से पहले मैं पहुंचा और उसको अपने हाथों में ले लिया 

📕 तफसीर रूहुल बयान,जिल्द 3,सफह 411

सिदरतुल मुंतहा ज़मीन से 50000 साल की दूरी पर है,सोचिये कि 50000 साल की दूरी आन की आन में तय कर रहे हैं और ये ताक़त मेरे आक़ा के एक ग़ुलाम की है तो अंदाजा लगाइये कि जब एक ग़ुलाम की ताक़त का ये हाल है तो नबियों के नबी जनाब सय्यदुल अम्बिया सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की ताक़त का क्या हाल होगा 

📕 अलमलफूज़,जिल्द 4,सफह 7

जब आप आग में गए तो मेंढ़क हाज़िर हुआ और अपने आशिक़े रसूल होने की गवाही इस तरह दी कि अपने मुंह में पानी भरकर लाता और आग में डालकर उसे बुझाने की कोशिश करता,हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने इसे मारने के लिए मना फरमाया है,अगर ख्वाब में मेंढ़क देखे तो ये इबादते इलाही में मसरूफ होने की दलील है और अगर बहुत ज़्यादा मेंढ़क देखे तो ये किसी आने वाली मुसीबत की निशान देही है सदक़ा करे 

📕 हयातुल हैवान,जिल्द 2,सफह 68--86

वहीं छिपकली या गिरगिट वो बदतरीन जानवर है जो नबी अलैहिस्सलाम की आग में फूंक मारकर उसे भड़काने की कोशिश कर रही थी,हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने इसे फासिक कहा है और मुस्लिम शरीफ की रिवायत है कि उसे पहली ही ज़र्ब में मारने पर 100 नेकी और दूसरे में उससे कम फिर उससे कम 

📕 खाज़िन,जिल्द 4,सफह 244 

📕 मुस्लिम,जिल्द 2,सफह 358

जब आप आग में पहुंचे तो रब ने आग से फरमाया कि "ऐ आग ठंडी और सलामती वाली हो जा इब्राहीम पर" तो उस वक़्त ज़मीन पर जितनी भी आग थी सब के सब ठंडी हो गयी और उलेमा फरमाते हैं कि अगर मौला सलामती का लफ्ज़ ना फरमाता तो आग इतनी ठंडी हो जाती कि उसकी ठंडक इंसान को नुकसान पहुंचा देती 

📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 10

सबसे पहले आप पर ईमान लाने वाले हज़रत लूत अलैहिस्सलाम हैं जबकि आप आग से बाहर आये 

📕 जलालैन,हाशिया 8,सफह 337

आपको 80 साल की उम्र में खतना करने का हुक्म दिया गया जिसे आपने अपने हाथों से अंजाम दिया 

📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 810

जिस वक़्त हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम पैदा हुए उस वक़्त आपकी उम्र 106 साल की थी और जब हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम पैदा हुए तब आपकी उम्र 120 साल थी,यानि हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम से 14 साल बड़े हैं

📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 176

आपकी कितनी औलाद है इसमें काफी इख्तेलाफ है,जलालैन में है कि आपके 4 बेटे थे इस्माईल-इस्हाक़-मदयन और मदायन,अलइतक़ान में अल्लाम जलाल उद्दीन सुयूती ने 12 लिखे इस्माईल-इस्हाक़-मान-ज़मरान-सराह-नफ्श-नफ्शान-अमीम-कीसान-सूरा-लूतान-नाफिश,तफसीरे नईमी में 8 का ज़िक्र है इस्माईल-इस्हाक़-मदयन-मदायन-ज़मरान-बक़्शान-यशबक़-नूह

📕 जलालैन,जिल्द 1,सफह 328

📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 185

📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 870

नसारा का एक फिरका है जिसका नाम सायबा है उसी क़बीले के बादशाहों का लक़ब नमरूद है,अब तक 6 ऐसे बादशाह गुज़रे हैं जिनका लक़ब नमरूद हुआ

1. नमरूद बिन कुंआन बिन हाम बिन नूह, यही हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के ज़माने का नमरूद है 

2. नमरूद बिन कोश बिन कुंआन

3. नमरूद बिन संजार बिन ग़रूर बिन कोश बिन कुंआन 

4. नमरूद बिन माश बिन कुंआन

5. नमरूद बिन सारोग़ बिन अरगू बिन मालिख

6. नमरूद बिन कुंआन बिन मसास बिन नुक़्ता 

📕 उम्दतुल क़ारी,जिल्द 1,सफह 93 

📕 हयातुल हैवान,जिल्द 1,सफह 98

अब तक 4 ऐसे बादशाह गुज़रे हैं जिन्होंने पूरी दुनिया पर हुक़ूमत की है 2 मोमिन हज़रत सिकंदर ज़ुलक़रनैन और हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम और 2 काफिर नमरूद और बख्ते नस्र और अनक़रीब पांचवे बादशाह हज़रत इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु होंगे जो पूरी दुनिया पर हुक़ूमत करेंगे

📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 178

नमरूद ने 400 साल हुक़ूमत की,नमरूद के पास कुछ तिलिस्माती चीजें थी जिसकी बिना पर उसने खुदाई का दावा किया

! तांबे का एक बुत था,जब भी कोई चोर या जासूस शहर में दाखिल होता तो उस बुत से आवाज़ आती जिससे वो पकड़ा जाता

! एक नक़्क़ारा था,जब किसी की कोई चीज़ ग़ुम हो जाती तो उस पर चोब मारा जाता तो वो गुमशुदा चीज़ का पता बताती

! एक आईना था,अगर कोई शख्स ग़ुम हो जाता तो उसमे नज़र आ जाता कि इस वक़्त कहां पर है

! एक दरख़्त था,जिसके साए में लोग बैठते और उसका साया बढ़ता जाता यहां तक कि 1 लाख लोग बैठ जाते थे मगर जैसे ही 1 लाख से 1 भी ज़्यादा होता तो साया हट जाता और सब धूप में आ जाते

! एक हौज़ था,जिससे मुकदमे का फैसला होता युं कि मुद्दई और मुद्दआ अलैह दोनों को उस हौज़ में उतारा जाता जो सच्चा होता उसके नाफ से नीचे पानी रहता और झूठा उसमे डुबकी खाता 

📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 677

नमरूद ने शहरे बाबुल में एक इमारत बनवाई जिसकी ऊंचाई 15000 फिट थी,उसने ये इमारत आसमान वालों से लड़ने के लिए बनवाई थी,मौला ने एक ऐसी हवा चलायी कि पूरी इमारत ज़मीन पर आ गयी और उसकी दहशत से लोग 73 ज़बान बोलने लगे उससे पहले तक सिर्फ एक ज़बान सुरयानी ही बोली जाती थी 

📕 तफसीरे खज़ायेनुल इरफान,पारा 14,रुकू 10

नमरूद ने हज़रत इब्राहीम खलीलुल्लाह को आग में डालने के लिए जो आग जलवाई थी उसकी लपटें कई सौ फीट ऊपर तक जाती थी उसी आग की तपिश से एक मच्छर के पर व पैर जल गए,इस मच्छर ने रब की बारगाह में दुआ की तो मौला ने फरमाया कि ग़म ना कर मैं तेरे ज़रिये ही नमरूद को हलाक़ करवाऊंगा,ये मच्छर एक दिन नमरूद की नाक के जरिए उसके दिमाग में घुस गया और अंदर ही अंदर काटना शुरू किया,उस तक़लीफ से मौत हज़ार दर्जे बेहतर थी,जब वो काटता तो नमरूद अपने सर पर चप्पलों से मारा करता,दीवार में सर मारता और इसी तरह तड़प तड़प कर मरा 

📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 3,सफह 68 

📕 मलफूज़ाते निज़ामुद्दीन औलिया,स 162

जब नमरूद ने आग को गुलज़ार होता देखा तो समझ गया की हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का खुदा ही सच्चा खुदा है और उसने उसी वक़्त उसकी बारगाह में क़ुरबानी करने का फैसला किया,जब ये बात हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को पता चली तो आपने फरमाया कि बगैर ईमान लाये तेरा कोई भी अमल क़ुबूल नहीं तो वो बोला कि बादशाहत तो मैं नहीं छोड़ सकता मगर क़ुरबानी की जो नज़्र मैंने मान ली है उसे तो पूरा करूंगा फिर उसने 4000 गाय अल्लाह की राह में कुर्बान की,आपकी सदाक़त को देखकर नमरूद ने आपको दरबार में मुनाज़रे के लिए बुलवाया,और आपसे कहने लगा कि तुम्हारा रब कौन है जिसकी मैं इबादत करूं तो आप बोले कि मेरा रब वो है जो मारता है और जिलाता है,इस बात का नमरूद ने गलत मतलब निकाला और कहने लगा कि ये तो मैं भी करता हूं और तब उसने दो कैदियों को बुलवाया एक को फांसी की सज़ा होने वाली थी और दूसरे को आज ही रिहाई मिलने वाली थी तो जिसको रिहाई मिलने वाली थी उसको सूली दे दी और जिसको मौत की सज़ा थी उसको रिहा कर दिया और बोला देखो मैं भी मारता हूं और जिलाता हूं,उसकी ये अहमकाना दलील सुनकर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा कि मेरा रब वो है जो मशरिक से सूरज निकालता है और मग़रिब में डुबोता है अगर तू खुदा है तो मग़रिब से सूरज को निकालकर दिखा,आपकी ये बात सुनकर वो उसके होश उड़ गए जब उससे इसका जवाब नहीं बन सका तो बोला कि मेरे पास तुम्हारे लिए कोई गल्ला नहीं है तुम उसी से मांगो जिसकी इबादत करते हो,घर लौटते हुए हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम अपने झोले में रेत भरकर ले आये सुबह को जब हज़रते सारा ने झोला खोला तो उसमें खुशबूदार गेंहू मौजूद था जिसे उन्होंने पीसकर रोटियां बनाई,जब आपने पूछा कि रोटी कहा से आयी तो कहने लगीं कि रात आप ही तो गेहूं लाये थे वो समझ गए कि ये मेरा रिज़्क़ है जो मेरे रब ने मुझे दिया है 

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 91--94

सबसे पहले ताज नमरूद ने पहना,रियाया पर ज़ुल्म किया,खुदाई का दावा किया,इसकी उम्र 800 साल हुई 

📕 खाज़िन,जिल्द 2,सफह 124

सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कंघी बनवाई 

📕 आईनये तारीख,सफह 70

सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने बालों में मांग निकाली,मेहमान खाना बनवाया,नालैन पहना,हज के दौरान बाल मुंडवाए,बुतों को तोड़ा,पेशानी पर बोसा दिया 

📕 महाज़िरातुल अवायिल,सफह 37--39

सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने खतना किया आपसे पहले खतने का हुक्म नहीं था,मेहमान नवाज़ी की,सबसे पहले आपके बाल सफेद हुए 

📕 खाज़िन,जिल्द 1,सफह 89 

सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मूये ज़ेरे नाफ मूंडा 

📕 अलबिदाया वननिहाया,जिल्द 1,सफह 175

सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ही पैजामा पहना 

📕 फतावा रज़विया,जिल्द 10,सफह 84

सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ही हिजरत की 

📕 रूहुल बयान,जिल्द 2,सफह 973

सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ही नाखून काटे और मूंछो को हलकी किया 

📕 तफसीरे सावी,जिल्द 1,सफह 53

सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ही जिहाद किया और लश्करों की तरतीब दी,तलवार चलाई,मेंबर पर खुत्बा दिया और मेंहदी का खिज़ाब किया

📕 तफसीरे अज़ीज़ी,जिल्द 1,सफह 373 

सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ही पानी से इस्तिन्जा किया और मिस्वाक की 

📕 माअरेजुन नुबूवत,जिल्द 1,सफह 133

सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मुआनक़ा किया 

📕 फतावा रज़विया,जिल्द 10,सफह 10

सबसे पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को ही क़यामत के दिन लिबास पहनाया जायेगा 

📕 मिश्कात,जिल्द 2,सफह 483

जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मेराज शरीफ पर गए तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने आपके मारेफत आपकी उम्मत को सलाम कहलवाया

📕 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 202

एक दिन आप ने समुन्दर के किनारे एक मरे हुए शख्स को देखा जिसकी लाश को मछलियां खा रही थीं फिर कुछ देर बाद उसी लाश पर कुछ परिंदे भी आ गए और उन्होंने भी उस लाश को खाना शुरू कर दिया फिर कुछ जंगली जानवर आये और उन्होंने भी कुछ खाया,जब आपने ये मंज़र देखा तो आपके दिल में ये शौक़ पैदा हुआ कि मैं अपनी आंख से देखना चाहता हूं कि मौला तआला किस तरह मुर्दो को ज़िन्दा फरमाएगा और आपने बारगाहे खुदावन्दी में अपनी आरज़ू पेश कर दी,ख्याल रहे कि आपको खुदा की कुदरत पर शक नहीं था क्योंकि आपने काफिरो से खुदा की यही सिफत बयान की थी "कि मेरा रब वो है जो मारता है और जिलाता है" अगर आपको इस बात में शक होता तो हरगिज़ आप ऐसा नहीं कहते बल्कि सिर्फ अपनी आंखों से रब की कुदरत का मुशाहद करना चाहते थे,और ये भी ख्याल रहे कि अगर आपको इस बात में शक होता तो यक़ीनन आप पर खुदा का इताब होता मगर हरगिज़ ऐसा नहीं हुआ बल्कि मौला फरमाता है "ऐ खलील तुम 4 परिंदो को मिलाकर अलग अलग पहाड़ो पर रख दो फिर उनको बुलाओ तो वो तुम्हारे पास दौड़ते हुए आयेंगे" हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मोर-कबूतर-मुर्ग-कव्वा इन चारों को कीमा बनाकर सबको एक साथ मिला दिया फिर उन सब में से 4 हिस्से करके 4 अलग अलग पहाड़ियों पर रख दिए और सबका सर अपने पास रख लिया,अब जिस परिन्दे को आप आवाज़ देते तो उसके पूरे अज्ज़ा चारो पहाड़ियों में से उड़ते हुए आते आपकी आंखों के सामने सब इकठ्ठा होता आप उस पर जैसे ही सर का टुकड़ा लगते वो ज़िंदा होकर उड़ जाता 

📕 खज़ाएनुल इरफान,सफह 66

मौला की क़ुदरत की बात चली तो ये रिवायत भी ज़हन में आ गयी पढ़ लीजिए,बुखारी व मुस्लिम शरीफ में है कि एक शख्स बहुत ही गुनाहगार था जब वो मरने लगा तो अपनी औलाद को वसीयत की कि मेरे मरने के बाद मुझे दफ्न ना करना बल्कि जला देना और मेरी राख के 2 हिस्से करना एक हिस्से को हवाओं में उड़ा देना और दूसरे हिस्से को पानी में बहा देना,उसकी औलाद ने ऐसा ही किया मौला ने हवा को हुक्म दिया कि इसके सारे ज़र्रात को मिला दो और पानी को हुक्म दिया कि इसके सारे ज़र्रात को मिला दो तो दोनों ने ऐसा ही किया,जब उसके जिस्म के दो हिस्से बन गए तो मौला ने दोनों के मिलाकर उसमें रूह लौटाई और फरमाया कि तेरी ऐसी वसीयत करने की क्या वजह थी हालांकि वो सब जानता है,तो बन्दा अर्ज़ करता है कि मौला मैं बहुत ही गुनहगार था मुझे यही खौफ था कि अगर मुझे अज़ाब दिया गया तो दुनिया का सबसे ज़्यादा अज़ाब मुझ पर होगा तो तेरे इसी खौफ से मैंने ऐसा फैसला किया तो मौला फरमाता है कि तेरे इसी खौफ ने आज तुझे बचा लिया और वो बख्शा गया क्योंकि खुदा से डरना ही तो सारी इबादत की अस्ल है 

📕 अहवाले बरज़ख,सफह 12

इंसान के रीढ़ की हड्डी में कुछ ऐसे महीन अज्ज़ा यानि कण होते हैं जो किसी दूरबीन से भी नहीं दिखाई देते और ना ही उसे मिट्टी गला सकती है और ना आग उसे जला सकती है,इंसान का पूरा बदन खत्म हो जाता है मगर ये अज्ज़ा क़यामत तक सही सलामत रहते हैं इसको अज्बुज़ ज़ंब कहते हैं,रोज़े क़यामत यही अज्बुज़ ज़ंब अपने पूरे जिस्म को इकठ्ठा करके फिर से उसी सूरतो हैबत पर खड़ा हो जायेगा 

📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 28

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम हिजरत करके अपनी दोनों बीवियों के साथ फिलिस्तीन में बस गए,वहां के लोगों ने आपकी खूब क़द्रो मंज़िलत की जब अल्लाह ने आपको खूब मालो दौलत से नवाज़ दिया तो आपका इम्तिहान लिया और आपकी ज़ौजा हज़रते हाजिरा रज़ियल्लाहु तआला अंहा व मासूम बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को हरम की ज़मीन पर छोड़ने का हुक्म दिया,उस वक़्त वहां पर ना तो काबा था न ज़मज़म न हरियाली और न कोई इंसान,बियाबान रेगिस्तान था जहां कोसो दूर तक कोई नहीं दिखता था,आपने एक थैले में कुछ खजूरें और एक पानी का मशकीज़ा देकर उन्हें छोड़कर जाने लगे तो हज़रत बीबी हाजिरा आपके पीछे पीछे आती रहीं और यही पूछती थीं कि हमें यहां किसके भरोसे छोड़कर जाते हैं जब कोई जवाब नहीं मिला तो आप फरमातीं हैं कि क्या खुदा का यही हुक्म है इस पर आप फरमाते हैं कि हां तो आप वापस लौट जाती हैं,कुछ दिन तक तो वो खजूर और पानी साथ देते हैं फिर वो भी खत्म हो जाते हैं जब हज़रते हाजिरा का दूध बनना भी खत्म हो गया तो बच्चा भूख और प्यास से बिलबिलाने लगा,आप उसकी भूख और प्यास को बर्दाश्त ना कर सकीं तो क़रीब ही दो पहाड़ियां थी सफा और मरवा आप कभी सफा पर दौड़ कर जातीं कि कहीं से पानी दिख जाए जब कहीं कुछ ना दिखता फिर दौड़ कर मरवा पर जातीं कि शायद यहां से कुछ नज़र आ जाये इसी परेशानी के आलम में आपने सफा और मरवा के 7 चक्कर लगा लिए,अल्लाह को आपकी ये अदा इतनी पसंद आ गयी कि क़यामत तक के लिए उसे हाजियों का अरकान बना दिया,इधर जब प्यास से मासूम बच्चे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को परेशानी हुई तो वो अपनी एड़ियों को रगड़ने लगे अल्लाह की ऐसी क़ुदरत की जहां आपने अपनी एड़ियां रगड़ी वहां से पानी का चश्मा उबल पड़ा जब हज़रते हाजिरा वापस आईं तो देखा कि पानी पूरी वादी में फैल रहा है तो आपने अपनी ज़बान में जो कि सुरयानी थी पानी को फरमाया ज़म ज़म यानि ठहर जा तो पानी का निकलना बन्द हो गया,और पानी चश्मे में क़ैद हो गया हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि अल्लाह हज़रत इस्माईल की वालिदा पर रहम करे अगर आप उसे ठहरने का हुक्म ना देतीं तो ज़म ज़म का चश्मा नहर की तरह जारी हो जाता,जब वहां पानी का इंतज़ाम हो गया तो परिंदे भी आने लगे और राह से गुज़रने वाले भी वहां रुकने लगे फिर क़बीले दर क़बीले उसी ज़मीन पर बसना शुरू हो गए,सबसे पहला जो क़बीला वहां बसा उसका नाम जरहम था इसी क़बीले की एक लड़की से हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम का निकाह हुआ 

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 103

हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम जब तक पैदा नहीं हुए थे तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम औलाद के लिए दुआ किया करते थे जब उनकी दुआ क़ुबूल हुई तो मौला फरमाता है कि "हमने उसे खुशखबरी सुनाई एक बुर्दबार लड़के की" चुंकि मौला ने उन्हें सब्र वाला फरमाया था सो उसकी मिसाल भी पेश करनी थी और दुनिया को दिखाना भी मक़सूद था,सो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को ज़िल्हज्ज की 8,9,10 तारीख को लगातार ख्वाब में आपके बेटे की क़ुरबानी करने का हुक्म दिया गया,चुंकि ये हुक्म ख्वाब में देखा था तो 8 को पूरा दिन सोचने में गुज़र गया तो इस दिन को यौमुल तरविया यानि सोच विचार का दिन कहा गया फिर 9 को ख्वाब देखा तो पहचान लिया कि ये सच्चा ख्वाब है तो इसे यौमुल अरफा यानि पहचानने का दिन फिर 10 को इरादा कर लिया क़ुरबानी पेश करने का इस लिए इस दिन को यौमुन नहर यानि क़ुरबानी का दिन कहा गया

📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 2,सफह 296 

क़ुरबानी के वक़्त हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की उम्र कितनी थी इसमें 2 क़ौल है बाज़ ने 7 साल कही और बाज़ ने 13,मगर 13 ही राजेह है,10वीं ज़िल्हज्ज को आप अपने बेटे को लेकर मिना की जानिब निकल पड़े पहले तो शैतान ने दोस्त बनकर उन दोनों को रोकना चाहा मगर जब कामयाब ना हो सका तो उनको रोकने के लिए इतना बड़ा बन गया कि पूरा रास्ता ही बन्द कर दिया,एक फरिश्ता हाज़िर हुआ और आपसे फरमाया कि इसे 7 कंकरियां मारिये ये दफअ होगा आपने उसे मारा तो भाग गया फिर दूसरी जगह आया तो फिर आपने उसे मारकर भगाया फिर तीसरी बार भी आया और मार खाकर भागा,हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को बताया कि वो यहां उन्हें किस लिए लाये हैं और साबिर बेटे ने जवाब दिया कि "आप अपने रब का हुक्म अदा करें इन शा अल्लाह आप मुझे साबिर ही पायेंगे" और अपने बाप को मशवरा दिया कि मुझे रस्सी से बांध दीजिए ताकि मैं तड़पुं नहीं और अपने कपड़ो को भी मेरे खून से बचाइयेगा और मेरी वालिदा को मेरा सलाम कहियेगा,फिर आपने उन्हें पेशानी के बल लिटाया ये भी हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम का मशवरा ही था कि कहीं आप मेरे चेहरे को देखकर मुहब्बते पिदरी में ना आ जाएं और उन्हें लिटाकर उन पर छुरी चला दी,रिवायत में आता है कि आपने 70 मर्तबा छुरी चलाई तो जब 70 मर्तबा भी चलने के बाद रग ना कटी तो आपने जलाल में आकर छुरी फेंक दी और कहा कि तू मेरा हुक्म क्यों नहीं मानती है तो छुरी बा ज़ुबान होकर बोलती है कि हुज़ूर आप गुस्सा ना करें आप काटने को कहते हैं और मेरा रब मुझे मना फरमाता है आप ही बतायें कि मैं क्या करूं तो आपने फरमाया कि तेरा काम काटना है तो तू काट तो छुरी बोलती है कि आग का काम भी तो जलाना होता है फिर क्यों आग ने आपको नहीं जलाया 

📕 नुज़हतुल मजालिस,5,सफह 24

अल्लाह के हुक्म से हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम जन्नत से एक मेंढा लाये जो हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम का फिदिया बना और आपकी जगह वो ज़बह हुआ,इसका नाम जरीर था और ये वही मेंढा था जिसे हज़रत हाबील पहले ही राहे खुदा में क़ुर्बान कर चुके थे और ये जन्नत में मज़े से रह रहा था,ये मेंढा रूए ज़मीन का इकलौता ऐसा जानवर है जो अल्लाह के नाम पर 2 बार ज़बह हुआ,आपने इसके गोश्त को परिंदों को खिलाया क्योंकि इस पर आग असर ना करती थी कि पकाया जाता 

📕 जलालैन,हाशिया 21,सफह 377

जब अरब में कुछ आबादी बस गई तो मौला ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि इस्माईल को साथ लेकर काबा शरीफ की तामीर करें,आपने खुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ काबे की तामीर वहीं की जहां पहले ही काबे की बुनियाद हज़रत आदम अलैहिस्सलाम डाल चुके थे,हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम एक पत्थर पर खड़े होकर काबे की तामीर करते और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम उन्हें पत्थर व गारा लाकर देते,इस पत्थर की खासियत ये थी कि जैसे जैसे काबा ऊंचा होता जाता ये पत्थर भी उठता जाता और इस पर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के क़दमों के निशान पड़ गए यही पत्थर मक़ामे इब्राहीम कहलाता है,जब काबा बनकर मुकम्मल हो गया तो मौला फरमाता है कि ऐ इब्राहीम लोगों को हज के लिए बुलाओ तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मौला यहां तो दूर दूर तक कोई नहीं है मैं किसको आवाज़ दूं और कौन सुनेगा तो मौला फरमाता है कि तुम आवाज़ तो दो बुलाना तुम्हारा काम है सबको सुनाना ये हमारा काम है,फिर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम जबले अबू कबीस पर खड़े होकर आवाज़ लगाते हैं कि "ऐ लोगों खुदा ने तुम्हारे लिए अपना एक घर बनाया है तो आओ उसकी ज़ियारत करने के लिए" आपका ये क़ौल अल्लाह ने तमाम इंसानों को सुना दिया जो बाप की पुश्त में था जो मां के शिकम में था हत्ता कि क़यामत तक पैदा होने वाली तमाम रूहों को जो आलमे अरवाह में थी सबको सुनाया,तो जिस जिसने उस आवाज़ पर लब्बैक कहा उसको हज की सआदत मिलेगी और जो खामोश रहा वो हरगिज़ वहां तक नहीं पहुंच सकता 

📕 खज़ाएनुल इर्फान,सफह 399

यहां एक मसला ये भी हल हुआ कि जब आम मुसलमान की रूहें मां-बाप की पुश्त में रहकर भी और आलमे अरवाह में भी आवाज़ें सुन सकती हैं तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम व उनके महबूबीन अपनी क़ब्रे अनवर से हम गुलामों की आवाज़ें क्यों नहीं सुन सकते,यक़ीनन सुन सकते हैं बल्कि सुनते हैं,

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की उम्र या तो 175 साल हुई या फिर 200 साल 

📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 176

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का मज़ार फिलिस्तीन के शहर हिबरून या जबरून में है 

📕 उम्दतुल क़ारी,जिल्द 7,सफह 345

Aapka naam ibraheem aur laqab abuzzaif yaani bahut bade mehman nawaz aur abul ambiya yaani nabiyon ke baap hai kyunki 8 ambiya ikraam yaani hazrat aadam hazrat sheesh hazrat idrees hazrat nooh hazrat hood hazrat saaleh hazrat loot aur hazrat yunus alaihissalato wattasleem ke alawa baaki saare nabi aap hi ki nasl se hue,aapke 2 saahab zaade nabi hue hazrat ismayeel alaihissalam jo ki hazrate haajra raziyallahu taala anha ke bete hain aur doosre hazrat ishaaq alaihissalam jo ki hazrate saara raziyallahu taala anha ke bete hain

📕 Nuzhatul qaari,jild 6,safah 501

📕 Tafseere azizi,jild 1,safah 373

Aapka nasb naama ye hai ibraheem bin taarakh bin nakhoor bin saaroo bin raoo bin taatey bin aamir bin saaleh bin arfah bin saam bin hazrat nooh alaihissalam,aur aazar aapka chacha jo ki kaafir tha kuchh log use hazrat ibraheem alaihissalam ka baap kahte hain ye be asl hai,kyunki kisi bhi ambiya alaihissalato wattasleem ke aaba wa ajdaad me koi bhi kaafir na hua sab mohid momin the,chunki arab qaum me chacha ko bhi baap hi kahte hain isi liye quran ne aazar ko aapka baap yaani abiyah kaha jaisa ki khud hadise paak me hai ki ek martaba huzoor sallallaho taala alaihi wasallam ne yun farmaya ki "mere baap abbas ko mujhpar pesh karo" halaanki wo aapke baap nahin balki chacha hain,aap toofane nooh ke 1709 saal baad aur hazrat eesa alaihissalam se 2300 saal pahle amwaaz ke ilaaqe maqame sous me paida hue

📕 Tafseere nayimi,jild 1,safah 810

Aapki waalida ke naam me ikhtilaf hai saani ya noofa ya lewsa ya amiliya ya boona bint karban bhi mazkoor hai

📕 Alitqaan,jild 2,safah 186

📕 Albidaya,jild 1,safah 140

Namrood bin kunaan jaabir baadshah tha jo ki logon se apni parashtish karwata,uske darbaar ke nujumiyon ne use bataya ki ek bachcha paida hone waala hai jo ki teri halaqat ka baayis hoga,usne ye sunkar fauran hi jo bachche paida hue the sabko marwa diya aur jo hamal me the sabka hamal girwa diya aur miyan biwi ko milne par bhi pabandi lagwa di,magar taqdeere ilaahi ko kaun taal sakta hai aapki waalida muhtarma haamila ho gayin magar umr kam thi so hamal pahchaan me na aata tha jab aapki wiladat ka waqt qareeb aaya to aapke waalid unhein shahar se door ek tah khaane me le gaye jo unhone pahle hi khod rakha tha,wahin aapki wiladat huyi aapki waalida aapko rozana usi tahkhaane me doodh pila aati aur aate gaar ke munh ko pattharo se dhak diya karti,aap ek mahine me itna badhte the jitna ek aam bachcha saal bhar me badhta tha,aap tahkhaane me kitni muddat rahe isme kayi qaul hain baaz ne 7 baras baaz ne 13 aur baaz ne 17 bhi likha hai

📕 Khazayenul irfan,para 7,ruku 15

hazrat ibraheem alaihissalam ki taraf 3 jhooth ki nisbat ki jaati hai pahli baat aapka ye kahna ki main beemar hoon,Doosra buto ko todkar inkaar karna,Teesra apni biwi ko bahan kahna,magar ek nabi hargiz hargiz hargiz jhooth nahin bol sakta aayiye uski poori tafseel dekhte hain

hazrat ibraheem alaihissalam ne apne chacha se kaha ki kyun in buto ki pooja karte ho jo na sun sakte hain aur na bol sakte hain par wo nahin maane udhar qaum ka ek salaana mela lagta tha jise wo eed kahte the unhone jab hazrat ibraheem alaihissalam se us mele me chalne ko kaha to aapne aasman ki taraf dekha aur farmaya ki "main beemaar hone waala hoon" ispar wo samjhen ki ye beemar hain aur aapko chhodkar mele me chale gaye idhar aapko haalat munasib nazar aaye aur aapne un sab buton ko tod daala aur wo hathauda ek bade but ke kaandhe par rakh diya aur use nahin toda,udhar qaum ko jab ye pata chala to bhaagti huyi aayi aur kaha ki kisne hamare khudaon ka ye haal kiya ispar aapka naam aaya ki aap hi unki mukhalifat karte hain aur aaj gaon me sirf aap hi maujood the,aapko bulakar jab poochha gaya ki in buto ko kisne toda to aapne farmaya "unke is bade ni kiya hoga" 

Pahla qaul ye ki : main beemar hone waala hoon* aapke kahne ka ye matlab hargiz nahin tha ki main kal hi beemar hone waala hoon,aakhir zindagi me aadmi kabhi to beemar hoga hi is maayne ko TAURIYAH kahte hain yaani kahne waala apni baat ki muraad door ki le agar che sunne waala qareeb samjhe aur agar isko yun bhi kahen ki main beemar hi hoon tab aapke kahne ka matlab ye tha ki tumne ek ALLAH ko chhodkar na jaane kitne baatil mabood bana rakhe hain isi wajah se main zahni pareshani me mubtela hoon aur mera qalb beemar hai agar che log iska maane kuchh bhi samjhen

Doosra qaul ye ki is bade ne kiya hai* iski 7 sharahein hain 

1. Pahla ye ki apne ye nahin farmaya ki ye kaam is but ne hi kiya hai balki isse aapne zaat hi muraad li isko yun samajhiye jaise mera ye msg aap padhen aur phir mujhse poochhen ki kya ise aapne likha hai to main kahun ki nahin tumne likha hai to yahan aitrazan kaha ki are bhai tumne to likha nahin to zaroor maine hi likha hoga is kalaam ko TAAREEZ kahte hain,matlab hazrat ibraheem alaihissalam se qaum ne poochha ki kya ye sab tumne kiya hai to aapka ye farmana ki nahin is bade ne kiya hai dar asal unko yahi bataana tha ki jab ye bol nahin sakta sun nahin sakta jawab nahin de sakta to buto ko kya khaak todega zaahir si baat hai maine hi kiya hai,magar is kalaam ko wo nahin samjhen

2. Doosra ye ki kabhi kabhi kaam karne ki nisbat bhi karwane waale ki taraf ki jaati hai maslan aap quran padh rahe hai achanak aapka beta kamre me daakhil hua aur aakar t.v chaalu karke baith gaya aap uthe aur do thappad raseed kar diye jab ghar waalo ne poochha ki aisa kyun kiya to aapne t.v ko hi zimmedaar thahrate hue kaha ki sab isi ne kiya hai bas usi tarah qaum ke log un buton ko mabood samajhte aur unhein khoob sajaate aur us bade but ko kuchh zyada hi tawajjoh dete jiski wajah se aapko gussa aaya aur saare buton ko todkar usi ki taraf nisbat kardi kyunki gussa usi ki wajah se aaya tha

3. Teesra ye ki jab qaum buto ko mabood maanti hai to phir usko qudrat bhi honi chahiye to hazrat ibraheem alaihissalam ka uski taraf nisbat karna ki isne ye kiya hai phir qaum ka ye kahna ki ye to kuchh harqat nahin kar sakta dar asal unko samjhana muraad tha ki jab tum khud jaante ho ki wo aisa nahin kar sakta to kyun usko maabood samajhkar pooja karte ho

4. Chautha ye ki aapka kalaam ye tha ki jisko karna tha wo kar chuka ab agar iske andar bolne ki salahiyat hai to isi se poochh lo ki kisne kiya hai 

5.Paanchva ye ki KABIRAHUM par waqf hai aur phir kalaam ki shuruaat HAAZA se hai matlab aapka ye kahna ki inke bade ne kiya hai matlab aapne bade se apni zaat muraad li ki main hi wo bada hoon kyunki but kitna bhi bada ho par insaan se bada nahin ho sakta

6. fail ki izafat bade but ki taraf MASHROOT ke taur par hai matlab ye ki agar ye bolta hai to isne kiya hai aur nahin bolta to zaahir hai ki nahin bolta to isne nahin balki maine kiya hai kyunki kalaam me taqdeem wa takheer hai

7. Ek qerat FAALAHU KABIRAHUM bhi aayi hai matlab ye ki shayad inke bade ne kiya ho

Teesra aapka apni biwi ko bahan kahna: Jab qaum aapki baat nahin maani to namrood ke hukm se aapko aag me daala gaya aag aap par gulzaar ho gayi,jab aap baahar aaye to to aap qaum se bahut na ummeed ho gaye aur sab kuchh chhodkar aap apne chacha haaran ke paas chale gaye,aapki sadaqat ko dekhkar aapke chacha ne apni beti hazrate saara ka nikah aapse kara diya magar aapne wahan bhi haq ki sada buland karni shuru kardi jis par aapke chacha ne aapko wahan se chale jaane ko kaha aap jab shahre falasteen se guzre to wahan ka baadshah jo ki bahut zaalim tha aur har aadmi ki biwi ko apne qabze me le leta tha,jab usko aapki aur hazrat saara ke aane ki khabar huyi to dono ko darbaar me bulwaya aur aapse poochha ki ye aurat kaun hai chunki wo aapke chacha ki beti thin so aapki bahan bhi huyin isi nisbat se aapne kaha ki ye meri bahan hai,magar us baadshah ne phir bhi unko na chhoda aur buri niyat se unki taraf badha to ALLAH ne us par azaab musallat kar diya wo gidgidane laga aur aapse maafi chahi to aapne use maaf kar diya tab us baadshah ne ek kaneez yaani hazrate haajra ko dono ko diya aur rukhsat kiya

Alhaasil kalaam aapka teeno sachcha tha magar logon ne uske maane apni aql ki hisaab se tai kiye aur use jhooth samjha*

📕 Tazkiratul ambiya,safah 82--85

Aapne 4 nikah kiye hazrate haajira wa hazrate saara in dono ke wisaal ke baad qantura bint yaqtan aur unke inteqaal ke baad hijoon bint zaheer se,magar sabse pahla nikah aapke chacha haaraan ki beti hazrate saara se hua,jis tarah mardo me sabse zyada haseen hazrat yusuf alaihissalam hue hain usi tarah aurton me sabse zyada khoobsurat hazrate saara raziyallahu taala anha huyin hain balki hazrat yusuf alaihissalam ka husn bhi apni daadi hazrate saara ka hi sadqa tha

📕 Alakaamil fittarikh,jild 1,safah 50

📕 Tazkiratul ambiya,safah 99

Aapne jin buto ko toda unki taadad 72 thi

📕 Maarejun nubuwat,jild 1,safah 76

Jis waqt aapko aag me daala gaya us waqt aapki umr 16 saal thi aur aag me aap 7 din rahe

📕 Tafseere jamal,jild 3,safah 163



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