हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ।। Hazrat Saleh Alaihissalam



Hazrat Saleh Alaihissalam:

हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम क़ौमे समूद की तरफ तशरीफ लायें और आप खुद भी क़ौमे समूद से हैं,समूद एक शख्स का नाम था जिनकी औलाद को क़ौमे समूद कहा जाता है,आपका नस्ब नामा इस तरह है सालेह बिन उबैद बिन मासिख बिन अब्द बिन जाबिर बिन समूद बिन उबैद बिन औस बिन आद बिन इरम बिन साम बिन हज़रत नूह अलैहिस्सलाम,आप हज़रत हूद अलैहिस्सलाम से तक़रीबन 100 साल बाद तशरीफ लायें 

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 182

हज़रत  सालेह अलैहिस्सलाम पर ईमान लाने वालों की तादाद 4000 थी

📕 अलकामिल फित्तारीख,जिल्द 1,सफह 36

क़ौमे आद की हलाक़त के बाद अल्लाह ने क़ौमे समूद को आबाद किया उनको लंबी उम्र अता की माली वुसअत भी खूब दी मगर जब उनकी नाफरमानियां बढ़ने लगीं तब उनकी तरफ हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को भेजा,जब उन्होंने तब्लीग की तो लोगों ने आपसे मोजज़ा तलब किया जिसका पूरा वाक़िया कुछ यूं है कि क़ौम का सरदार जिसका नाम जनदा बिन अमर था उसने एक चट्टान जिसका नाम काफिया था उसकी तरफ इशारा करते हुए बोला कि अगर आप नबी हो तो इससे एक हामिला ऊंटनी निकाल दो,आप ने रब की बारगाह में दुआ की तो फौरन चट्टान की वही हालत हो गयी जो कि एक हामिला की होती है दर्द से कराहना व इज़्तिराब वगैरह,यहां तक कि चट्टान फटी और उससे एक ऊंटनी बरामद हुई जो 10 महीने की हामिला थी और जिस्म पर ऊन भी बहुत था इसका सीना 60 गज़ लंबा था,ये मोजज़ा देखकर जनदा बिन अमर और कुछ लोग ईमान ले आये और बाकी अपने कुफ्र पर क़ायम रहे,फिर उन लोगों के सामने ही उस ऊंटनी ने बच्चा दिया जो कि 70 ऊंट के बराबर वज़न का था

क़ौम की बस्ती में पानी पीने के लिए एक ही तालाब था जिसमे कि पहाड़ों से पानी आकर जमा होता था,हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने उनसे फरमा दिया था कि एक दिन छोड़कर इस तालाब का सारा पानी इन ऊंटनी और उसके बच्चे के लिए है और दूसरे दिन पूरी क़ौम के लिए और ये भी फरमाया कि बुराई की नीयत से इस पर दस्त अंदाज़ी मत करना वरना तुम पर अज़ाब आ जायेगा,ऊंटनी अपने बच्चे के साथ जंगल में चरती जब सर्दी आती तो वो जंगल के अंदरूनी हिस्से में चली जाती जिससे कि सारे जानवर भागकर जंगल के बाहरी हिस्से में आ जाते और गर्मियों में बाहरी हिस्से में रहती तो और जानवर अन्दर की तरफ भाग जाते,तालाब में मुंह लगाती तो उस वक़्त उठाती जब कि सारा पानी खत्म हो जाता,दूध तो इतना देती थी की पूरे क़बीले को काफी हो जाता था मगर उसकी वजह से जो मुसीबत क़ौम पर आई थी जब वो उनसे बर्दाश्त ना हुई तो उन लोगों ने ऊंटनी को क़त्ल करने का मंसूबा बनाया

इस तरह कि एक काफिरा औरत ग़ैज़ा बिन्त गनम जो कि कई खूबसूरत लड़कियों की मां थी इसको हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम से दुश्मनी थी,इसने मिसदह बिन महरज और क़द्दार बिन सालिफ को इस शर्त पर ऊंटनी के क़त्ल को तैयार कर लिया कि वो जिस लड़की को चाहें अपने पास रख सकते हैं,ये दोनों अपने कई साथी लेकर तालाब पर ऊंटनी की ताक में पहुंचकर छिप गए जब वो पानी पीने को आई तो मिसदह बिन महरज ने उसकी एड़ी में तीर मारा जिससे की वो गिर गई और क़द्दार बिन सालिफ ने उसकी कोंचे काट दी और उसके बच्चे को भी क़त्ल किया,ये वाक़िया बुध के दिन पेश आया,जब हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को पता चला तो आपने फरमाया कि अब तीन दिन तुम्हारे पास हैं पहले दिन तुम्हारा चेहरा ज़र्द होगा दूसरे दिन सुर्ख और तीसरे दिन काला फिर उसके बाद अज़ाब आयेगा

होना तो ये चाहिए था कि जब हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने उनको अज़ाब की खबर दी तो वो माफी मांगते मगर उन्होंने ऐसा ना किया बल्कि हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम की क़त्ल की ही साजिश करने लगे,इस कबीले के 9 सरदार थे जिनके लड़के हमेशा हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम के खिलाफ सरगर्म रहते थे,वो सब टोलियां बनाकर तलवार लिए हुए हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम के घर के करीब जब पहुंच गए तो मौला तआला ने फरिश्तो को अपने नबी की हिफाज़त के लिए भेज दिया इस तरह कि फरिश्ते उन पर पत्थर बरसाने लगे,अब इन पर पत्थर तो पढ़ रहे थे मगर पत्थर मारने वाले नज़र ना आते इसी तरह वो हलाक़ हुए,और ये वाक़िया मोहलत की आखिरी रात में हुआ,फिर सुबह को वो अज़ाब आया जिसके बारे में आता है कि ज़मीन में सख्त ज़लज़ला आया और आसमान से एक गरज़ दार चिंघाड़ जिसकी हैबत से तमाम काफिर मर गए और उनकी इमारतें तबाहो बर्बाद हो गयी 

📕 खज़ाएनुल इरफान,सफह 190

📕 इब्ने कसीर,पारा 8,रुकू 17 

📕 रूहुल बयान,पारा 8,रुकू 17 

📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 186

बाज़ मुफस्सेरीन फरमाते हैं कि उन लोगों ने बच्चे को क़त्ल नहीं किया बल्कि अपनी मां के क़त्ल के बाद वो खुद ही चीखता हुआ पहाड़ में गायब हो गया और क़ुर्बे क़यामत यही बच्चा "दाबतुल अर्द" बनकर ज़ाहिर होगा 

📕 जलालैन,हाशिया 10,सफह 136

हज़रत  सालेह अलैहिस्सलाम की उम्र में इख्तिलाफ है बाज़ ने 58 साल बताई और बाज़ ने 280 साल 

📕 अलइतकान,जिल्द 2,सफह 177 

📕 तफसीरे सावी,जिल्द 2,सफह 73

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