फ़ातिहा में खाना पानी सामने रखने का मसअला (FATIHA ME KHANA PAANI SAMNE RAKHNE KA MASLA)

फ़ातिहा में खाना पानी सामने रखने का मसअला

FATIHA ME KHANA PAANI SAMNE RAKHNE KA MASLA:

इस बारे में दो किस्म के लोग पाए जाते हैं कुछ तो वह हैं कि अगर खाना सामने रख कर सूरह ए फातिहा वगैराह आयाते कुर्आनिया पढ़ दी जायें तो उन्हें उस खाने से चिढ़ हो जाती है और यह उस खाने के दुश्मन हो जाते हैं और उसे हराम ख्याल करते हैं। यह वह लोग हैं जिनके दिलों में बीमारी है। तो खुदाए तआला ने उनकी बीमारी को और बढ़ा दिया। कसीर अहादीस और अक़वाले अइम्मा और मामूलाते बुजुर्गाने दीन से मुंह मोड़ कर अपनी चलाते और ख़्वाह'म ख़्वाह मुसलमनो को मुशरिक और बिदअती बताते हैं।

दूसरे हमारे कुछ वह मुसलमान भाई हैं जो अपनी जिहालत और वहम परस्ती की बुनियाद पर यह समझते हैं कि जब खाना सामने न हो कुर्आन की तिलावत व ईसाले सवाब मना है।

कुछ जगह देखा गया है मीलाद शरीफ़ पढ़ने के बाद इन्तिज़ार करते हैं कि मिठाई आ जाए तब तिलावत शुरू करें यहाँ तक कि मिठाई आने में अगर देर हो तो गिलास में पानी ला कर रखा जाता है कि उनके लिए उनके जाहिलाना ख्याल में फातिहा पढ़ना जायज़ हो जाए। कभी ऐसा होता है कि इमाम साहब आकर बैठ गए हैं और मुसल्ले पर बैठे इन्तज़ार कर रहे हैं अगर खाना आए तो कुर्आन पढ़ें यह सब वहम परस्तियां हैं। हकीकत यह है कि फातिहा में खाना सामने होना जरूरी नहीं अगर आयतें और सूरतें पढ़ कर खाना या शीरीनी बगैर सामने लाए यूं ही तकसीम कर दी जाए तब भी ईसाले सवाब हो जाएगा और फातिहा में कोई कमी नहीं आएगी।

(सय्यिदी आला हज़रत मौलाना अहमद रजा खाँ बरेलवी) फ़रमाते हैं "फातिहा व ईसाले सवाब के लिए खाने का सामने होना ज़रूरी नहीं।

  📕 (फ़तावा रजविया, जिल्द 4, सफ़हा 225)

और दूसरी जगह फरमाते हैं "अगर किसी शख्स का यह एतिकाद हो कि जब तक खाना सामने न किया जाए सवाब न पहुँचेगा तो यह गुमान उसका महज़ गलत है।"

  📗 (फतावा रजविया,जिल्द 4, सफ़हा 195)

खुलासा यह कि खाने पीने की चीजें सामने रख कर फातिहा पढ़ने में कोई हर्ज नहीं बल्कि हदीसों से उसकी अस्ल साबित है और फातिहा में खाना सामने रखने को ज़रूरी ख्याल करना कि उसके बगैर फातिहा नहीं होगी यह भी इस्लाम में ज़्यादती, वहम परस्ती और ख़्याले ख़ाम है जिसको मिटाना मुसलमानों पर ज़रूरी है

हज़रत मौलाना मुफ्ती मुहम्मद खलील खाँ साहब मारहरवी फरमाते हैं।

        "तुम ने नियाज़, दुरूद व फातिहा में दिन या तारीख़ मुकर्ररा के बारे में यह समझ रखा है कि उन्हीं दिनों में सवाब मिलेगा आगे पीछे नहीं तो यह समझना हुक्मे शरई के ख़िलाफ़ है।

यूं ही फातिहा व ईसाले सवाब के लिए खाने का सामने होना कुछ ज़रूरी नहीं या हज़रते फ़ातिमा खातूने जन्नत रदीअल्लाहो तआला अन्हा की नियाज़ का खाना पर्दे में रखना और मर्दों को न खाने देना औरतों की जिहालते हैं बे सबूत और गढ़ी हुई बातें हैं मर्दों को चाहिए कि इन ख्यालात को मिटायें और औरतों को सही रास्ते और हुक्मे शरई पर चलायें।

📙 (तौजीह व तशरीह फैसला हफ़्त मसअला, सफहा 142)

📚 गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,55 56 57

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