अल्लाह तआला की बारगाह में उसके महबूब बन्दों को वसीला बनाना




अल्लाह तआला की बारगाह में उसके महबूब बन्दों को वसीला बनाना :

अल्लाह जल्लशानहू का कुर्ब उसकी रज़ा हासिल करने और अपने गुनाहों की मगफ़िरत कराने के लिए अल्लाह वालों उसके नेक बन्दों को वसीला बनाना उम्मते मुस्लिमा में हमेशा से रायज रहा है। खुद अल्लाह तआला इसका हुक़्म फरमाता है।


कन्ज़ुल ईमान:-  और जब वो अपनी जानो पर ज़ुल्म कर लें तो ऐ महबूब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों फिर अल्लाह से माफी चाहें और रसूल उनकी शफ़ाअत फ़रमायें तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पायें ।

📚 पारा 5,सूरह निसा,आयत 64

इस आयत करीमा में खुदाये तआला ने बराहे रास्त अपनी तरफ रुजू करने का हुक़्म न देकर रसूलुल्लाहﷺ की बारगाह में हाज़िरी देने का हुक़्म दिया है और हुज़ूरﷺ के लिए हुक़्म दिया है कि वह भी इन गुनाहगारों की शिफ़ारिश फ़रमायें और एक आयत में तो साफ इरशाद फ़रमाया जाता है जिसका तर्ज़ुमा यह है।

कंज़ुल ईमान:- ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो और उसकी तरफ वसीला ढूंढो।

📚 पारा 6,सूरह मायदा,आयत 35

इस आयत की तफ़सीर में हाशियए सावी अलल जलालैन में है- यानी आयत में मज़कूर वसीले के माइने में अम्बिया व औलिया की मोहब्बत भी दाखिल है आयते करीमा की इस तफ़्सीर से उन लोगों की ग़लत फ़हमी भी दूर हो गयी जो कहते हैं कि वसीला सिर्फ आमाले स्वालेहा और नमाज़ रोज़ा वगैरह अहकाम शरआ हैं इनके ज़रिये से क़ुर्बे  इलाही हासिल होता है सही बात यह कि नेक काम नमाज़ रोज़ा वगैरह भी वसीला हैं और जिनके ज़रिये अल्लाह तआला ने हम तक नमाज़ रोज़ा पहुँचाया है वह सबसे बढ़ कर वसीला हैं इनसे मोहब्बत व अक़ीदत न रखने वाले और इनको वसीला न बनाने वालों के नमाज़ और रोज़े भी नाकाबिल क़ुबूल हैं और कुरआन अज़ीम में दूसरी जगह अललाह तआला इरशाद फ़रमाता है।

कन्ज़ुल ईमान:- और हम तुम्हें न भेजा मगर रहमत सारे जहाँ के लिए।

📚 पारा 17, सूरह अम्बिया, आयत 107


इस आयत का साफ और वाजेह मतलब यही है कि अल्लाह तआला जिस को भी काएनात में जो कुछ अता फ़रमाता है, वह सब हुज़ूर ﷺ का सदक़ा और वसीला है क्योंकि आप हर शय के लिए अल्लाह की रहमत हैं। एक और फ़रमाने खुदा बन्दी है.

कन्ज़ुल ईमान:- वह मकबूल बन्दे जिन्हें काफिर पूजते हैं वह आप ही अपने रब की तरफ वसीताह ढूंढते हैं कि इनमें कौन ज़्यादा मुकरर्ब है इसकी रहमत से उम्मीद रखते हैं और उस के अज़ाब से डरते हैं।

📚 पारा 15, सूरह बनी इस्राईल, आयत 57

Note:-

हां यह अक़ीदा रखना भी निहायत ज़रूरी है कि अल्लाह तआला मआजल्लाह वसीले का मोहताज नहीं है बल्कि वह किसी बात में हरगिज़ किसी का मोहताज नहीं है न उसे किसी की ज़रूरत बल्कि हर एक को उसकी ज़रूरत है बात सिर्फ यह है कि अल्लाह तआला हर बात पर क़ादिर है बगैर वसीले के भी दे सकता है लेकिन वसीला उसको पसन्द है और अपने महबूबों के ज़रिये अता फ़रमाना उसकी मर्ज़ी है।

खुलासए कलाम यह कि जिस तरह परवरदिगारे आलम बादलों के वसीले से बारिश सूरज के वसीले से धूप और चाँद के वसीले से चाँन्दनी अता फ़रमाता है बच्चों को माँ बाप के ज़रिये पैदा फ़रमाता है और उन्हीं के ज़रिये उन्हें पालता है और रोटी रोज़ी अता फ़रमाता है और इससे उसकी ज़ात में कोई नुक्स नहीं आता न इसकी शान में कोई फ़र्क आता है बस यूँ ही समझाइये कि उसकी मर्ज़ी है कि काएनात आलम के खज़ाने ज़ाहिर और बातिनी नेमतें जिसको भी मिलें वह बारगाहे हबीबे खुदा मोहम्मद मुस्तफ़ाﷺ से मिलें और उन्हीं के गुलामों नेक बन्दों के वसीले से बटें इससे उसकी शान में कोई फ़र्क और कोई ऐब नहीं आता और इसकी शान और परवर दिगारी में हरगिज़ हरगिज़ कोई कमी नहीं आती और ऐसा अक़ीदा तौहीद के मुखालिफ नहीं।


यह ख़्याल अजीब है कि नमाज़ रोज़ा तो अल्लाह तक पहुँचने का वसीला हो और जो नमाज़ रोज़े और अहकामे इलहिया का भी वसीला है वह वसीला न हो जबके नमाज़ रोज़ा वगैरह नेक काम जो हम करते हैं हमें पता नहीं यह क़ुबूल भी होते हैं या नहीं लेकिन जो अल्लाह के रसूल हैं जिनको अल्लाह ही ने नमाज़ रोज़ा अहकाम शरअ सिखाने के लिए भेजा है वह यक़ीनन अल्लाह के यहाँ मक़बूल है बल्कि उसके महबूब हैं इनके वसीले को शिर्क कहना हरगिज़ इस्लामी अक़ीदा नहीं है और यह मुसलमानों की बोली नहीं है।


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