🔸Shab-E-Bar'at Me Qiyam Aur Din Ka Roza




➤मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "जब शाबान की 15वीं रात आये तो तुम लोग रात को इबादत करो और दिन को रोज़ा रखो,बेशक इस रात में खुदाये तआला आसमाने दुनिया पर तजल्ली फरमाता है और ऐलान करता है कि है कोई मगफिरत का तलबगार कि मैं उसे बख्श दूं है कोई रोज़ी मांगने वाला कि मैं उसे रोज़ी दूं है कोई बला व मुसीबत से छुटकारा मांगने वाला कि मैं उसे रिहाई दूं रात भर ये एलान होता रहता है यहां तक कि फज्र तुलु हो जाती है|

इब्ने माजा,जिल्द 1,सफह 398
मिश्कात,सफह 115
अत्तरगीब,जिल्द 2,सफह 52


उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि एक रात हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मेरे पास से अचानक उठकर चले गए,जब मैंने उन्हें ना पाया तो उनकी तलाश में निकली तो आपको जन्नतुल बक़ी के कब्रिस्तान में पाया कि आपका सर मुबारक आसमान की तरफ था,जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने मुझे देखा तो फरमाया कि ऐ आयशा क्या तुझे ये गुमान था कि अल्लाह का रसूल तुम पर जुल्म करेगा इस पर मैंने अर्ज़ की कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मैंने सोचा कि शायद आप अपनी किसी और बीवी के पास तशरीफ ले गए हैं,तो आप फरमाते हैं कि आज शाबान की 15वीं रात है आज रात मौला तआला इतने लोगों को बख्शता है जिनकी तादाद बनी क़ल्ब की बकरियों से भी ज़्यादा होती है|

तिर्मिज़ी,जिल्द 1,सफह 403
इब्ने माजा,जिल्द 1,हदीस 1389
मिश्कात,सफह 114

​सोचिये कि जब एक नबी कब्रिस्तान जा सकते हैं तो फिर उम्मती क्यों नहीं जा सकते,इस हदीस से कब्रिस्तान और मज़ारों पर जाना साबित हुआ​|


हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम रमज़ान के अलावा सबसे ज़्यादा रोज़े शाबान में रखते थे यहां तक कि कभी कभी पूरा महीना रोज़े से गुज़ार देते,सहाबिये रसूल हज़रत ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से इसकी वजह पूछी तो आप फरमाते हैं कि इस महीने में बन्दे के आमाल खुदा की तरफ उठाये जाते हैं तो मैं ये चाहता हूं कि जब मेरे आमाल खुदा की तरफ जायें तो मैं रोज़े से रहूं|

निसाई,जिल्द 3,सफह 269


 हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि बेशक इस रात अल्लाह तआला तमाम मख्लूक़ की बख्शिश फरमाता है सिवाये शिर्क करने वाले और कीना रखने वालों के|
इब्ने माजा,जिल्द 1,हदीस 1390




बाज़ रिवायतों में मुशरिक,जादूगर,काहिन,ज़िनाकार और शराबी भी आया है कि इनकी बख्शिश नहीं होगी या ये कि तौबा कर लें|
बारह माह के फज़ायल,सफह 406



 जो इस रात में 2 रकात नमाज़ पढ़ेगा तो उसे 400 साल से भी ज़्यादा का सवाब अता किया जायेगा|
नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 1,सफह 132



हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि एक नफ्ल रोज़े का सवाब इतना है कि अगर पूरी रूए ज़मीन भर सोना दिया जाए तब भी पूरा ना होगा|
बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 95

NOTE -

नफ्ल इबादतें जितनी भी हैं चाहे वो नमाज़ हो या रोज़ा उसी वक़्त क़ुबूल होगी जब कि फर्ज़ ज़िम्मे पर बाकी ना हो,लिहाज़ा जिसकी नमाज़ क़ज़ा हो वो क़ज़ाए उमरी पढ़े और जिनका रमज़ान का रोज़ा क़ज़ा हो वो इस रोज़े के बदले रमज़ान के रोज़े की क़ज़ा की नियत करे,अगर ऐसा करेगा तो इन शा अल्लाह तआला नफ्ल का भी सवाब पायेगा और उसके ज़िम्मे से क़ज़ा भी साकित होगा​|



उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को खाने में हलवा और शहद बहुत पसन्द थे|

बुखारी,जिल्द 2,हदीस 5682



शबे बरात में हलवा पकाकर ईसाले सवाब करना जायज़ और बेहतर है|

जन्नती ज़ेवर,सफह 123

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