मज़हबे इस्लाम में सुअर ख़िन्ज़ीर का नाम लेने का मसला || Islam me Suwar, khinzeer ka naam lena kaisa hai.

Islam me Suwar, khinzeer ka naam lena kaisa hai

सुअर के नाम लेने को बुरा जानना  

मज़हबे इस्लाम में सुअर खाना हराम है और उसका गोश्त पोस्त, ख़ून, हड्डी, बाल, पसीना, थूक वगै़रा पूरा बदन और उससे ख़ारिज होने वाली हर चीज़ नापाक है और इस मअ़ना कर सुअर से नफ़रत करना ईमान की पहचान और मोमिन की शान है, लेकिन कुछ लोग जिहालत की वजह से इसका नाम भी ज़बान से निकालने को बुरा जानते हैं। यहाँ तक कि बाज़ निरे अनपढ़ गंवार यह तक कह देते हैं कि जिसने अपने मुँह से सुअर का नाम लिया, 40 दिन तक उसकी ज़बान नापाक रहती है। जहालत यहाँ तक बढ़ चुकी है कि एक मरतबा एक गाँव में इमाम साहब ने मस्जिद में तक़रीर के वक़्त यह कह दिया कि शराब पीना ऐसा है जैसे सुअर खाना,

तो लोगों ने इस पर ख़ूब हंगामा किया कि इन्होंने मस्जिद में सुअर का नाम क्यूँ लिया यहाँ तक कि इस जुर्म में बेचारे इमाम साहब का हिसाब कर दिया गया।

किसी बुरी से बुरी चीज़ का भी बुराई के साथ नाम लेना बुरा नहीं है। हाँ अगर कोई किसी बुरी चीज़ को अच्छा कहे, हराम को हलाल कहे तो यह यक़ीनन ग़लत है बल्कि बुरी चीज़ की बुराई बगै़र नाम लिए हो भी नहीं सकती।

शैतान, इब्लीस, फ़िरऔन, हामान, अबूलहब और अबूजहल का नाम भी तो लिया जाता है। ये हों या और दूसरे खुदा व रसूल ﷺ के दुश्मन वह सबके सब सुअर से बदरजहा बदतर हैं, बल्कि इब्लीस, फ़िरऔन, हामान और अबूलहब का नाम तो क़ुर्आन में भी है और हर क़ुर्आन पढ़ने वाला उनका नाम लेता है। खुदाए तआ़ला और उसके महबूब ﷺ के जितने दुश्मन हैं और उनकी बारगाहों में गुस्ताख़ी और बेअदबी करने वाले हैं, ये सब सुअर से कहीं ज़्यादा बुरे हैं। ये सब जहन्नम में जायेंगे और जानवर कोई भी हो हराम हो हलाल हो वह हरगिज़ जहन्नम में नहीं जायेगा, बल्कि हिसाब व किताब के बाद फ़ना कर दिएे जाएंगे।

 ख़ुलासा:-

यह है कि सुअर का नाम लेकर उसके बारे में हुक़्मे शरअ़ से आगाह करना हरगिज़ कोई बुरा काम नहीं, ख़्वाह मस्जिद में हो या गै़रे मस्जिद में, वाज़ व तक़रीर में हो या गुफ़्तगू में। आख़िर क़ुर्आन में भी तो उसका नाम कई जगह आया है, क्यूँकि अरबी में जिसको ख़िन्ज़ीर कहते हैं उसी को हिन्दुस्तान वाले सुअर कहते हैं, तो अगर नमाज़ में वही आयतें तिलावत की गई जिनमें सुअर के हराम फ़रमाने का ज़िक्र है तो उसका नाम नमाज़ में आयेगा और मस्जिद में भी।

(ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह, सफ़ह- 154/155)

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