तस्वीर से बुत परस्ती का आग़ाज़ || Aala Hazrat Ka Fatwa Shariat Me Photograghy Haram Hai

Islamic Shariat Me Photograghy Kyu Haram Hai ?


तस्वीर से बुत परस्ती का आग़ाज़

अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल' , इब्लीस के मक्र से पनाह दे दुनिया में बुत परस्ती यूं ही हुई कि सालेहीन की मुहब्बत में उनकी तस्वीरें बना कर घरों और मस्जिदों में तबर्रुकन रखें और उन से लज्ज़ते इबादत की ताईद समझी धीरे धीरे वही मअबूद हो गईं।

📕फतावा रज़विया


But Parsati Ki Shuruat Kaise Hui :

👉वद, सुवा, यग़ूस, यऊक़, और नस्र क़ौमे नूह के सालेहीन के नाम थे जब यह लोग इंतिक़ाल कर गये तो शैतान ने लोगों को वर्ग़लाया कि उन लोगों की जाये नशिस्त में कुछ तसावीर और मुजस्समे नसब किये जायें और इन सालेहीन के नाम पर इन तस्वीर और मुजस्समों के नाम रखे जायें ताकि उनकी याद बाकी रहे, तो लोगों ने ऐसा ही किया लेकिन उनकी अभी परस्तिश नहीं हुई मगर जब यह लोग मर गये और बाद के लोगों को हकीक़ते हाल का इल्म न रहा तो उन मुजस्समों की पूजा होने लगी।

📕 बुखारी व मुस्लिम शरीफ़

📗फ़ैज़ाने आला हज़रत' पेज़ नं 247

📚गलत फहमियां और उनकी इस्लाह' पेज 94


बुत परस्ती की शुरुआत :-

फाकही, अब्दुल्लाह बिन उबैद बिन उमैर से रावी, बुत परस्ती की इब्तिदा हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के ज़माना में हुई चूंकि बेटे बाप के पैरू होते हैं, उन में से एक आदमी मर गया उसके बेटे ने उस पर आह व फुग़ां किया और उस पर सब्र नहीं कर पाया तो उसने अपने बाप का एक मुजस्समा बना लिया।

जब उसके देखने का शौक़ होता तो उसे देख लेता, फिर वह जब मर गया तो उसके बेटे ने भी वैसा ही किया कि अपने बाप का मुजस्समा बना लिया यहाँ तक कि लोग इसी पर काइम रहे उसके बाप दादा मर गये तो उनके बेटों ने कहा कि हमारे बाप दादा ने यह पूजने के लिए बनाया था लिहाज़ा उनके बेटे उन तसावीर और मुजस्समों की पूजा करने लगे।

📗फतावा रज़्वीया' जिल्द-9, स०: 64)

📚फ़ैज़ाने आला हज़रत' पेज़ नं 248)

👉अब्द बिन हुमैद अपनी तफ़सीर में अबू जाफर बिन अल-मुहलिब से रिवायत करते हैं: *वद,* एक मुसलमान शख्स का नाम था वह अपनी क़ौम में महबूब व हर दिल अज़ीज़ था जब उसकी वफ़ात हो गई तो सरज़मीने बाबुल में उसकी क़ब्र के इर्द-गिर्द लोग जमा हो गये और उस पर गिरिया व ज़ारी करने लगे जब इब्लीस लाईन ने उस पर लोगों का रोना चिल्लाना देखा तो उसने उसी के मिस्ल एक इंसान की तस्वीर बनाई और कहा कि मैंने उस शख़्स पर तुम्हारा रोना चिल्लाना देखा क्या मैं तुम्हारे लिए उसी के मिस्ल एक तस्वीर बना दूँ, वह तुम्हारी मज्लिस में रहेगी उस से तुम उस शख़्स को याद करते रहोगे सबने कहा कि हाँ ठीक है ऐसा कर दो तो इब्लीसे लईन ने उसी के मिस्ल एक तस्वीर बनाई जिसे लोगों ने अपनी मज्लिस में रख लिया और उसकी याद मनाने लगे फिर जब इब्लीस ने देखा कि लोग उसे बड़ी दिलचस्पी व रग़बत से याद कर रहे हैं तो इब्लीस ने कहा क्या मैं ऐसा करूं कि तुम में से हर एक के घर में इस मोहतरम शख्स का एक-एक मुजस्समा बना दूं वह हर एक के घर में रहेगा और तुम इसे याद करोगे सबने कहा हाँ ठीक है ऐसा मुजस्समा बना दो उसके बाद इब्लीसे लईन ने हर घर के लिए उसी शख्स के मिस्ल एक मुजस्समा बनाया जिसे लोगों ने बखुशी क़बूल कर लिया और उसको याद करने लगे।

फिर यही मंजर उनके बेटों ने देखा तो वह भी अपने बाप दादाओ की तरफ उसकी यादगार मनाते रहे, कुछ पुश्तों तक यह बात रही फिर उस यादगार का मुआमला खत्म हो गया, यहाँ तक कि लोगों ने उसे माबूद बना लिया और उसकी पूजा करने लगे।

सबसे पहले ग़ैरुल्लाह की परस्तिश का यही वाकिया है और सबसे पहले जिस बुत की पूजा हुई उसका नाम *“वद”* था।

📗 तफ़्सीर अब्द बिन हुमैद)

📕फतावा रज़्वीया' जिल्द-9, स०: 311)

📚फ़ैज़ाने आला हज़रत' पेज़ नं 248)

👆इन रिवायात से मालूम हुआ कि बुत परस्ती की इब्तिदा तस्वीर की शक्ल में हुई फिर मुजस्समा तैयार हुआ और पूजा होने लगी, इसलिए तस्वीर बनाने वालों पर लानत की गई है। ✒️मुरत्तिब)

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👉आजकल बुजुर्गाने दीन की तस्वीरें और उनकी फोटो घरो दुकानों में रखने का भी रिवाज़ हो गया है । यहां तक कि कुछ लोग पीरों , वलियों की तस्वीरें फ्रेम में लगाकर घरों में सजा लेते हैं और उन पर मालाये डालते अगरबत्तियां सुलगाते यहां तक कि कुछ जाहिल अनपढ़ उनके सामने मुशरिकों, काफिरों ,बुतपरस्तो की तरह हाथ बांध कर खड़े हो जाते हैं । यह बातें सख्त तरीन हराम , यहां तक कि कुफ्र अंजाम है बल्कि यह हाथ बांधकर सामने खड़ा होना उन पर फूल मालाएं डालना है यह काफिरों का काम है।

✒️हज़रत मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी)

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