रमज़ान के रोज़ों की अहमियत , रोज़ा तोड़ने की सज़ा और उसका कफ्फारा...





Ramzan Ke Roza Ki Ahmiyat :

रमज़ान के रोज़े इस्लाम की पाँच बुनियादों में से एक बुनियाद और सबसे ज्यादा अहम व ज़रूरी अहकाम में से एक हुक्म है, जान बूझकर रमज़ान के रोज़े न रखने वाला सही मआना में मुसलमान नहीं है।


Roza Todne Ka Kaffara:

सिर्फ़ एक रोज़ा रखकर बे वजह तोड़ देने की दुनिया में सज़ा बदला जिसे कफ्फ़ारा कहते हैं, वह यह है कि एक गुलाम आज़ाद करे या फिर साठ रोजे लगातार रखे या फिर साठ मिसकीनों को दोनो वक़्त का खाना खिलाये और तोबा करे *कुरआन करीम* में जगह जगह और सैकड़ो हदीसों में रमज़ान के रोज़ों का ज़िक्र मौजूद है अगर कोई शख़्स रमज़ान का सिर्फ़ एक रोज़ा जानबूझकर छोड़ दे और साल के 330 दिन रोजे रखे तो वह इसका बदला नहीं हो सकते, जिसके फ़राइज़ पूरे न हों उसका कोई नफ़िल कबूल नहीं है!




रमज़ान में रोजे न रखना तो बहुत बड़ा गुनाह है और सख़्त हराम है लेकिन उनकी फ़र्जियत का इनकार करना यानि यह कहना कि यह कोई ज़रूरी काम नहीं है कुफ्र है और यह कहने वाला काफ़िर हो जाता है। ऐसे ही रोज़ों की या रोज़ेदारों की रोज़े की वजह से हंसी उड़ाने मज़ाक बनाने वाला भी मुसलमान नहीं रहता जैसे कुछ लोग कह देते हैं कि रोज़ा वह रखे जिसके घर खाने को न हो ऐसा कहने वाला इस्लाम से ख़ारिज हो जाता है ऐसे ही यह मिसाल देना कि नमाज़ पढ़ने गये थे रोज़े गले पड़ गये यह भी कल्मा-ए-कुफ्र है।

📚रमज़ान का तोहफ़ा सफ़हा  3,4📚


*Note*  हज़रते सईद बिन जुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु का क़ौल है, कि हमसे पहले वाला लोगों पर इशा से लेकर दूसरी रात के आने तक रोज़ा होता था जैसा कि इब्तेदाए इस्लाम में भी यही दस्तूर था!
    


अल्लाह अल्लाह क़ुर्बान जाओ मोमिनो अपने नबी सल्लललाहु अलैहे वसल्लम पर आपकी उम्मत को इतना कम वक़्त मिला रोज़े के लिए फिर भी हम अपनी गफ़लत मे खोए रहते है, याद रखना मुसलमानों रोज़दार अगर रोज़ा रखने की नियत करले अल्लाह तआला उसको गैबी मदद फरमाता है।, माहे रमज़ान का महीना अनकरीब है रोज़दार अपने इरादो को मजबूत रखें इन्शा अल्लाह तआला चाहे कितनी भी गर्मी क्यूँ न हो रोज़े पूरे रखेगे.


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