नमाज़ में 'नफ़िलों' को फर्ज़ व वाजिब समझना || NAMAZ ME NAFIL KO FARZ YA WAJIB SAMJHNA

NAMAZ ME NAFIL KO FARZ YA WAJIB SAMJHNA 

नमाज़ में 'नफ़िलों' को फर्ज़ व वाजिब समझना

नमाज़े ज़ोहर, नमाज़े मग़रिब और इशा के अख़ीर में, और इशा में वित्रों से पहले 2 रक़्अ़त नफ़्ल पढ़ने का रिवाज है, और उनको पढ़ने में हिकमत और सवाब है,, लिहाज़ा पढ़ लेना ही मुनासिब है, लेकिन इन नफ़िलों को फर्ज़ व वाजिब व ज़रूरी ख्याल करना, और ना पढ़ने वालों को टोकना, और उन पर मलामत करना, और बुरा भला कहना ग़लत है। इस्लाम में ज़्यादती और शरई हदों से आगे बढ़ना है। इस्लाम में नफ़्ल व मुस्तहब उसे कहते हैं जिसके करने पर सवाब हो और न करने पर कोई गुनाह व अज़ाब न हो तो आपको भी इस पर मलामत करने और बुरा भला कहने का कोई हक़ नहीं, और जब ख़ुदा ए तआ़ला नफ़्ल छोड़ने पर नाराज़ नहीं तो आप टोकने वाले कौन हुए ?

इस्लाम में अल्लाह तआ़ला ने अपने बंदों को जो रिआ़यतें और आसानियां दी हैं उन्हें लोगों तक पहुंचाना ज़रूरी है, अगर आप ऐसा नहीं कर रहे हैं तो आप इस्लाम को बजाए नफ़्अ़ के नुक़सान पहुंचा रहे हैं, और लोग यह ख़्याल कर बैठेंगे कि हम इस्लाम पर चल ही नहीं सकते क्योंकि वह एक मुश्किल मज़हब है| लिहाज़ा उसकी इशाअ़त में कमी आएगी। आज कितने ऐसे लोग हैं जो सिर्फ़ इसलिए नमाज़ नहीं पढ़ते कि वह समझते हैं, हम नमाज़ पढ़ ही नहीं सकते और मसाइले नमाज़ और तहारत, पाकी व नापाकी से पूरी तरह वाक़फ़ियत न होने और खुदा व रसूल की अता फरमाई हुई बाअज़ रिआ़यतों और आसानियों पर आगाह न होने की बिना पर नमाज़ को छोड़ना गवारा कर लेते हैं,, और इन रिआ़यतों से नफ़्अ़ (फ़ायदा) नहीं उठाते।_ *_हालांकि एक वक़्त की नमाज़ भी क़सदन (यानी जानबूझकर) छोड़ देना इस्लाम में कुफ्र व शिर्क के बाद सबसे बड़ा गुनाह है।_*

उलमा व मस्जिदों के इमामों से मेरी गुज़ारिश है कि वह अवाम का ख़ौफ़ न करके उन्हें इस्लामी अहकाम पर अमल करने में मौक़ा ब'मौक़ा जो छूट दी गई और जो आसानियां हैं उन्हें ज़रूर बताएं, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस्लाम और इस्लामियात को अपनाएं। इन्हीं नफ़्लों के बारे में देखा गया है कि अगर कोई शख़्स उन्हें न पढ़े तो_ कुछ अनपढ़ उस पर इल्ज़ाम लगाते हुए यह तक कह देते हैं कि नमाज़ पढ़े तो पूरी पढ़े, इससे तो न पढ़ना अच्छा है,, यह एक बड़ी जिहालत की बात है जो वह कहते हैं, हालांकि सही बात यह है कि नफ़्ल तो नफ़्ल अगर कोई शख़्स सुन्नतें भी छोड़ दे सिर्फ़ फ़र्ज़ पढ़ ले *तो वह नमाज़ को जानबूझकर बिल्कुल छोड़ देने वालों से बहुत बेहतर है, और उसे बे'नमाज़ी नहीं कहा जा सकता,* हां सुन्नतें छोड़ देने की वजह से गुनाहगार ज़रूर है क्यूंकि सुन्नतों को छोड़ने की इजाज़त नहीं और उन्हें जानबूझकर छोड़ देने की आदत डालना गुनाह है।_

KYA SUNNAT AUR NAFIL NAMAZ PADHNA BHI JARURI HAI YA SUNNAT NAFIL CHHODNA GUNAH HAI

हां अगर उलझन व परेशानी और जल्दी में कोई मौक़ा है कि आप सुन्नतों के साथ मुकम्मल नमाज़ नहीं पढ़ सकते तो_ *_सिर्फ़ फ़र्ज़ और वित्र पढ़ लेने में कोई हरज व गुनाह नहीं है...!_*

मसलन:- वक़्त तंग है पूरी नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती तो सिर्फ़ फ़र्ज़ पढ़ लेना काफ़ी है।_

ख़ुलासा यह कि ज़ोहर व मग़रीब व इशा में जो नफ़्ल अदा किए जाते हैं उन्हें अदा करना बहुत अच्छा है मुनासिब व बेहतर है और पढ़ना चाहिए,,_ लेकिन उन्हें फ़र्ज़ व वाजिब व ज़रूरी समझना और न अदा करने वालों को टोकना उन्हें छोड़ने पर भला बुरा कहना ग़लत है जिसकी इस्लाह ज़रूरी है।

📚(ग़लत फ़हमियां औरब उनकी इस्लाह, सफ़ह- 42/43/44)

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