इमाम का मुक़तदियों से ऊँची जगह खड़ा होना
इमाम का मुक़तदियों से ऊँची जगह खड़ा होना :
कई जगह देखा गया है कि नमाज़ में इमाम मुक़तदियों से ऊंची जगह खड़ा होता है, मसलन मस्जिद में अंदर की कुर्सी ऊंची है और बाहर के हिस्से की नीची है,, और इमाम का मुसल्ला अंदर के फर्श पर है और मुक़तदी बाहर, या दोनों अंदर हैं लेकिन इमाम के मुसल्ले के लिए फर्श ऊंचा कर दिया गया है, तो यह मकरूह है, और इस तरह नमाज़ पढ़ने से नमाज़ में कमी आती है।
मस्अला यह है कि...... इमाम का अकेले बुलंद और ऊंची जगह खड़ा होना मकरूह है,, और ऊंचाई का मतलब यह है कि देखने से अंदाज़ा हो जाए कि इमाम ऊंचा है और मुक़तदी नीचे, और यह फ़र्क़ मामूली हो तो मकरूहे तंज़ीही, और अगर ज़्यादा हो तो तहरीमी है.
हां अगर पहली सफ़ इमाम के साथ और बराबर में हो बाक़ी सफें नीची हों तो कुछ हर्ज नहीं यह जाइज़ है।_
नोट:- इस मस्अले की तफ़सील जानने के लिए "फ़तावा रज़विया, जिल्द नंबर 3, सफ़ह नंबर 415, देखना चाहिए".
इस मस्अले का ख़ास ध्यान रखना चाहिए क्योंकि खुद हदीस शरीफ़ में भी इस से मुताअल्लिक़ मरवी है.
हदीस: 👉🏻 हज़रत हुज़ैफ़ा रदियल्लाहु तआ़ला अन्हु से मरवी है कि, "रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम" ने फ़रमाया कि जब इमाम नमाज़ पढ़ाए तो मुक़तदियों से ऊंची जगह खड़ा ना हो"
📙(अबु दाऊद, जिल्द नंबर 1, सफ़ह 88)
📚(ग़लत फ़हमियां औरब उनकी इस्लाह, सफ़ह- 41/42)
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