MURAWIJAH TAZIYADARI HARAM HAI (मुरव्विजह ताज़ियादारी नाजायज़ों हराम है)




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मुरव्विजह ताज़ियादारी नाजायज़ों हराम है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुर्आन में इरशाद फरमाता है:


➤और छोड़ दे उनको जिन्होंने अपना दीन हंसी खेल बना लिया और उन्हें दुनिया की ज़िन्दगी ने फरेब दिया|

📕 पारा 7,सूरह इनआम,आयत 70


➤जिन्होंने अपने दीन को खेल तमाशा बना लिया और दुनिया की ज़िन्दगी ने उन्हें फरेब दिया तो आज उन्हें हम छोड़ देंगे जैसा कि उन्होंने इस दिन के मिलने का ख्याल छोड़ा था और हमारी आयतों से इनकार करते थे|

📕 पारा 8,सूरह एराफ,आयत 51



"क्या आज ताज़ियादारी के नाम पर यही खेल तमाशा नहीं किया जाता,क्या ढ़ोल ताशे नहीं बजाये जाते,क्या लाठियां नहीं नचाई जाती,क्या करतब नहीं दिखाए जाते,क्या मेले ठेले झूले नहीं लगते,क्या अलम के नाम पर नाजायज़ों खुराफात नहीं होती,क्या औरतों और मर्दों का नाजायज़ मेला नहीं लगता,उसमें हराम कारियां नहीं होती क्या इन सबको तमाशा नहीं कहेंगे,और उस पर सबसे बढ़कर ये कि लकड़ियों खपच्चियों से 2 क़ब्रें बनाकर उन पर लाल-हरा कपड़ा चढ़ाकर माज़ अल्लाह एक को हज़रत इमाम हसन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की क़ब्र और दूसरी को हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की क़ब्र समझकर उन पर फूल डालना,नाड़ा बांधना,मन्नत मांगना क्या ये सब खुली हुई जिहालत नहीं है,ऐ इमाम हुसैन के नाम निहाद शैदाईयों क्या इन्ही सब खुराफात के लिए इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने करबला में भूखे प्यासे रहकर शहादत पेश फरमाई थी,क्या यही माज़ अल्लाह मसलके इमाम हुसैन था क्या उन्होंने यही कहा था कि भले ही नमाज़ें फौत हो जाएं मगर ऐ जाहिलों तुम अपने कांधों पर से मस्नूई जनाज़ा ना उतारना,तू अपने आपको इमाम हुसैन का शैदाई तो ज़रूर कहता है मगर तू अपने दावे में बिलकुल झूठा है अगर तू सच्चा होता तो वो करता जो मेरे इमाम ने फरमाया बल्कि जो करके दिखाया क्या तुझे याद नहीं कि 3 दिन के भूखे प्यासे इमाम के जिस्म पर 72 तीर और तलवार के ज़ख्म मौजूद थे मगर जब नमाज़ का वक़्त आया तो आपने अपने दुश्मनों से नमाज़ पढ़ने की इजाज़त चाही और नमाज़ अदा की,ताज़िया बनाने उठाने वालों अगर तुम सच्चे शैदाईये हुसैन होते तो याद करते कि बैयत करना सिर्फ एक सुन्नत ही तो है अगर आप चाहते तो युंही यज़ीद की बैयत कर लेते बाद को तोड़ देते मगर आपने उस मक्कार झूठे फरेबी फासिको फाजिर ज़ालिम शराबी ज़ानी बदकार बदकिरदार यज़ीद की बैयत ना की और पूरा घर का घर लुटा दिया मगर दीने मुहम्मद पर आंच ना आने दी,क्या इमाम हुसैन की तरफ से भी ढ़ोल ताशे नगाड़े बजाए जाते थे क्या उनकी तरफ से भी नमाज़ों को फौत किया जाता था क्या उनकी तरफ से भी नाजायज़ों खुराफात हुआ करती थी माज़ अल्लाह,नहीं और हरगिज़ नहीं,वो सच्चे उनका दीन सच्चा तू झूठा,और अगर तू सच्चा है तो मान जा वो बात जो उन्होंने मना फरमाई और जो उनके नाना जान हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने मना फरमाई,आप फरमाते हैं कि"



➤ जो मय्यत के ग़म में गाल पीटे गिरेहबान फाड़े और ज़माना जाहिलियत की सी चीखों पुकार करे वो हममे से नहीं |

📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 173

➤ उम्मे अतिया रज़ियल्लाहु तआला अन्हा कहती हैं कि हुज़ूर ने हमें मय्यत पर नोहा करने से मना किया |

📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 175 

➤ लोगों में 2 बातें ज़मानये जाहिलियत यानि कुफ्र के दौर की निशानियां है एक तो किसी के नस्ब पर लअन तअन करना और दूसरा मय्यत पर मातम करना |

📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 58 

➤ हुज़ूर ने नोहा करने वाले और सुनने वाले दोनों पर लानत फरमाई |

📕 अबू दाऊद,जिल्द 2,सफह 90



"और ताज़ियादारी मातम करने का ही एक तरीक़ा है जिसे हिंदुस्तान में शिया फिर्क़े के एक शख्स तैमूर लंग जो कि 1336 ईसवी में पैदा हुआ और 68 साल की उम्र में यानि 1405 में मरा ने रायज की,ये हर साल अशरये मुहर्रम में ईरान जाया करता था मगर एक साल बीमारी के सबब ना जा सका तो उसके मानने वालों ने यहीं ताज़िये की शक्ल में एक शबीह बना दी जिससे ये बहुत खुश हुआ और धीरे धीरे यही मरदूद रस्म पूरे हिन्दुस्तान में फैल गयी जिससे आज शायद ही कोई गली मुहल्ला बचा हो,हालांकि मुरव्विजह ताज़ियादारी नाजायज़ों हराम है जिस पर आलाहज़रत के ज़माने से कई साल पहले के एक जय्यद आलिम हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि":

➤अशरये मुहर्रम में जो ताज़ियादारी होती है कि गुम्बद नुमा ताज़िये बनाये जाते हैं और तरह तरह की तस्वीरें बनायीं जाती है यह सब नाजायज़ है,और इसमें किसी तरह की मदद करना गुनाह है|

📕 फतावा अज़ीज़िया,जिल्द 1,सफह 75

 ➤सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह तआला अलैहि ने अपने ज़माने में तमाम ताज़ियों मेंहदियों और झूलों को बनाने और निकालने पर सख्ती से पाबन्दी लगाई थी |

📕 औरंगज़ेब,सफह 274


 हज़रत सुल्तान औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह तआला अलैहि और हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ये दोनो मेरे आलाहज़रत से कैई 100 साल पहले के है क्या ये दोनो हज़रात भी बरैलवी थे क्या अब इनका भी रद्द किया जायेगा,नाम निहाद इमाम हुसैन के शैदाईयों मेरे आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त ने तो सिर्फ पहले के बुज़ुर्गों का क़ौल नकल ही फरमाया है कि ताज़ियादारी नाजायज़ों हराम है तो तअस्सुब परस्त लोगों ने दीन के एहकाम को ठुकराते हुए आलाहज़रत पर ही निशाना लगाया और माज़ अल्लाह उस मुक़द्दस बन्दे पर ही लअन तअन शुरू कर दिया,मगर वली से ये दुश्मनी इन कमज़र्फों को कहां ले जायेगी शायद इस बात का इन्हें अंदाज़ा भी नहीं है जैसा कि हदीसे क़ुदसी है रब फरमाता है कि :

➤हदीस - जिसने मेरे किसी वली से दुश्मनी की मैं उससे जंग का एलान करता हूं |

📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 963


 बहरहाल कोई माने या ना माने मगर ताज़ियादारी हराम है हराम है हराम है,अहले सुन्नत व जमात के मुताअद्दद उल्माये किराम ने इसे हराम फरमाया है मसलन हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी ने फतावा अज़ीज़िया में,सरकारे आलाहज़रत ने फतावा रज़विया में,हुज़ूर मुफतिये आज़म हिन्द ने फतावा मुस्तफविया में,हुज़ूर सदरुश्शरिया ने बहारे शरीयत में,मौलाना अजमल संभली ने फतावा अजमलिया में,मौलाना हशमत अली खान ने शम्ये हिदायत में,मुफ्ती जलाल उद्दीन अहमद अमजदी ने फतावा फैज़ुर्रसूल में,इसके अलावा ताज़ियादारी के नाजायज़ों हराम होने पर 1388 हिजरी में मंज़रे इस्लाम बरैली शरीफ से एक फतवा पोस्टर की शक्ल में शाया हुआ जिस पर हिंदुस्तान व पाकिस्तान के 75 उल्माये किराम ने अपनी तसदीक़ात की जिन्हें उन सबके नाम देखना हो वो किताब खुतबाते मुहर्रम सफह 523 पर देख सकता है,एक और अहम बात ताज़ियादारी चुंकि हराम है मगर अब इसको जायज़ करने वाले हराम समझकर तो उठा नहीं सकते लिहाज़ा उसको जायज़ करने के लिए मनघडंत और झूठी रिवायतें बुज़ुर्गों या वलियों के नाम से उनकी किताबों में छाप चुके हैं,और उन्हीं किताबों को अवाम में दिखा दिखाकर मशहूर करते हैं कि देखो वारिस पाक ने ताज़ियादारी की माज़ अल्लाह,मखदूम अशरफ ने ताज़ियादारी की माज़ अल्लाह,और कोई तो आलाहज़रत का ही नाम ले बैठता है माज़ अल्लाह,ये सारी रिवायतें बे अस्ल और गढ़ी हुई हैं जिनका इन बुज़ुर्गों से कोई लेना देना नहीं है जैसा कि इसी तरह के एक सवाल के जवाब में आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त खुद इरशाद फरमाते हैं कि :

➤ ताज़ियादारों को ना तो कोई दलीले शरई मिलती है ना ही कोई मोअतमद क़ौल मजबूराना हिक़ायत बनाते फिरते हैं,इसी तरह की फर्जी रिवायतें कोई शाह अब्दुल अज़ीज़ साहब से नक़ल करता है तो कोई मौलाना अब्दुल मजीद साहब से तो कोई फज़ले रसूल साहब से तो कोई मेरे जद्दे अमजद से ही और ये सब बातें बातिल और मसनूअ हैं |

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 10,सफह 37



 हां अगर जायज़ है तो सिर्फ और सिर्फ और सिर्फ इतना कि जिस तरह काबये मुअज़्ज़मा या मदीना तय्यबह या बैतुल मुक़द्दस की हू बहू नक़्ल बनाई जाती है कि असल ही की तरह इनकी ताज़ीम है सो इस तरह बनाने में कोई हर्ज़ नहीं मगर ना तो उस पर फूल चढ़ाया जाए ना मन्नतें मांगी जाए ना कांधों पर उठाया जाए सिर्फ देखकर ही शुहदाये करबला की याद मनाई जाए,मगर ऐसा हो ही नहीं सकता कि अवाम अपनी आदत से बाज़ आ जाये क्योंकि उसको तो हर काम में entertainment चाहिए,लिहाज़ा बेहतर है कि इसकी जगह उन बातों पर अमल करें कि जिसका हुक्म उल्मा ने फरमाया है मसलन सबील लगाना रोज़ा रखना ईसाले सवाब करना एहतेराम के साथ लंगर तकसीम करना यतीमों और मिस्कीनों पर कसरत से खर्च करना कि अस्ल नेकी यही है और शुहदाये करबला की याद शरीयत के दायरे में रहकर इस तरह भी मनाई जा सकती है,मौला हम सबको बिदअतों और गुमराहियों से महफूज़ फरमाये और मसलके आलाहज़रत पर सख्ती से क़ायम रखे-आमीन आमीन आमीन या रब्बुल आलमीन बिजाहिस सय्यदिल मुरसलीन सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम |


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Murawijah taaziyadaari najayzo haraam hai ALLAH rabbul izzat quran me irshad farmata hai :


➤Aur chhod de unko jinhone apna deen hansi khel bana liya aur unhe duniya ki zindagi ne fareb diya

📕 Paara 7,surah inaam,aayat 70 

Jinhone apne deen ko khel tamasha bana liya aur duniya ki zindagi ne unhe fareb diya to aaj unhe ham chhod denge jaisa ki unhone is din ke milne ka khayal chhoda tha aur hamari aayato se inqaar karte the

📕 Paara 8,surah eraaf,aayat 51 


"Kya aaj taaziyadari ke naam par yehi khel tamashanahi kiya jata,kya dhol taashe nahi bajaye jaate,kya lathhiyan nahi nachayi jati,kya kartab nahi dikhaye jate,kya mele thele jhule nahi lagte,kya alam ke naam par najayaz khurafat nahi hota, kya aurto aur mardo ka najayaz mela nahi lagta, usme haram kariyan  nahi hoti, kya in sabko tamasha nahi kahenge aur uspar sabse badhkar ye ki lakdiyo khapachhiyon se 2 kabrein banakar un par laal hara kapda chadhhakar maaz allah ek ko hazrat imam hasan raziyallahu taala anhu ki kabr aur dusri ko hazrat imam husain raziyallahu taala anhu ki kabr samajhkar unpar phool dalna nada bandhna mannat mangna kya ye sab khuli huyi jihalat nahi hai,ai imaam husain ke naam nihad shaidaiyon kya inhi sab khurafat ke liye imaam husain raziyallahu taala anhu ne karbala me bhukhe pyase rehkar shahadat pesh farmayi thi,kya yehi maaz allah maslake imam husain tha kya unhone yehi kaha tha ki bhale hi namaze faut ho jaen magar ae jahilon tum apne kandho par se masnuyi zanaza na utarna,tu apne aapko imam husain ka shaidayi to zarur kehta hai magar tu apne daave me bilkul jhutha hai agar tu sachcha hota to wo karta jo mere imaam ne farmaya balki jo karke dikhaya kya tujhe yaad nahi ki 3 din bhukhe pyase imaam ke jism par 72 teer aur talwar ke zakhm maujood the magar jab namaz ka waqt aaya to apne dushmano se namaz padhne ki ijazat chahi aur namaz ada ki,taziya banane aur uthane walo agar tum sachche shaidayiye husain hote to yaad karte ki baiyat karna sirf ek sunnat hi to hai agar aap chahte to yunhi yazeed ki baiyat kar lete baad ko tod dete magar apne us makkar jhuthe farebi fasiko fazir zalim sharabi zaani badkaar bad kirdar yazeed ki baiyat na ki aur pura ghar ka ghar luta diya magar deene mohammad par anch na aane di kya imam husain ki tara f se bhi dhol tashe nagade bajaye jate the,kya unki taraf se bhi namazo ko faut kiya jata tha kya unki taraf se nahi najayazo khurafat hua karti thi maaz allah nahi aur hargiz nahi wo sachche unka deen sachcha tu jhutha, aur agar tu sachcha hai to maan ja wo baat jo unhone farmayi aur jo unko nana jaan huzur sallalhao taala alaihi wasallam ne mana farmayi aap farmate hain ki:"

HADEES - Jo mayyat ke gham me gaal peete girehbaan phaade aur zamana jahiliyat ki si cheekho pukar kare wo hamme se nahi.

📕 Bukhari shareef,jild 1, safah 173

HADEES - Umme atiya raziyallahu taala anha kehti hain ki huzur ne hame mayyat par noha karne se mana kiya.

📕 Bukhari shareef,jild 1, safah 175

HADEES - Logo me 2 batein zamanae jahiliyat yaani kufr ke daur ki nishaniyan hain ek to kisi le nasb par la'an ta'an karna aur dusri mayyat par matam karna. 

📕 Muslim shareef,jild 1,safah 58 

HADEES - Huzur ne noha karne wale aur sunne wale dono par laanat farmayi.

📕 Abu daood,jild 2,safah 90


" Taziyadarii maatam karne ka ek hi tareeqa hai jise hindustan me shiya firke ke ek shakhs taimoor lang jo ki 1336 iswi me paida hua aur 68 saal ki umr me yaani 1405 me mara ne rayaz ki ye har saal ashraye muharram me iraan jaya karta tha magar ek saal beemari ke sabab na ja saka to uske maanne walo ne yahin taziye ki shakl me ek shabeeh bana di jisse ye bahot khush hua aur dheere yehi mardood rasm pure hindustan me phail gayi jisse ab shayad hi koi gali mohalla bacha ho halanki murawwizah taziyadari najayazo haraam hai jis par aala hazrat ke zamane se kayi saal pehle ek jayyad aalim hazrat shah abdul azeez muhaddis dehlawi raziyallahu taala anhu farmate hain ki :"

FUQHA - Ashraye muharram me jo taziyadari hoti hai ki gumbad numa taziya banaye jate hain aur tarah tarah ki tasveere banayi jati hain yeh sab najayaz hai aur isme kisi tarah ki madad karna gunah hai.

📕 Fatawa aziziya,jild 1,safah 175

FUQHA - Sultan aurangzeb aalamgeer rahmatullah taala alaihi ne apne zamane me tamam taaziyon menhdiyon aur jhoolon ko banane aur nikaalne par sakhti se pabandi lagayi thi.

📕 Aurangzeb,safah 274



"Hazrat sultan aurangzeb aalamgeer rahmatullah taala alaihi aur hazrat shah abdul azeez muhaddis dehlawi raziyallahu taala anhu kya ye dono hazraat bhi barailvy the kya ab unka bhi radd kiya jayega,ai naam nihaad imaam husain ke shaidaiyon mere aalahazrat azeemul barkat ne to sirf pahle ke buzurgon ka qaul hi nakl farmaya tha ki taziyadari najayazo haram hai to tassub paparast logo ne deen ke ehkaam ko thukrate hue aalahazrat par hi nashana lagaya aur maaz allah aur us muqaddas bnde par hi la'an ta'an shuru kar diya magar wali se ye dushmani in kamzarfo ko kahan le jaegi shayad is baat ka inhe andaza bhi nahi hai jaisa ki hadeese kudsi hai rab farmata hai ki:"

HADEES - jisne mere kisi wali se dushmani ki main usse jang ka elaan karta hu.

📕 Bukhari,jild 2, safah 963 


"Baharhal koi maane ya na maane taziyedari haram hai ahle sunnat wa jamaat ke muta'adad ulma ikkram ne ise haram farmaya hai maslan hazrat shah abdul azeez muhaddis dehlawi ne fatawa razeeziya me,sarkare aalahazrat ne fatawa mustafiya me,huzoor muftiye aazam hind ne bahare shariyat me,maulana ajmal sanbhli ne fatawa ajmaliya me,maulana hashmat ali khan ne shamme hidayat me,mufti jalal uddin ahmad amjadi ne fatawa faizurrasul me,Iske alawa taziyadari najayazo haraam hone par 1338 hijri me manzare iske alawa taaziyadari ke najayzo haraam hone par 1388 hijri me manzare islam baraily sharif se ek fatwa poster ki shakl me shaaya hua tha jisper poore mulk ke 75 ulamye ikram ki tasdeekat maujood thi,un sabke naam ki tafseel chahiye hoi to khutbate muharram safah 523 par dekh sakta hai,ek sabse aham baat ab chunki taziyadari haraam hai to ab isko haraam samajhkar to utha nahin sakte ilhaza kuchh jaahilon ne usko jayaz karne ke liye manghadant aur jhoothi riwaytein buzurgon aur waliyon ke naam se unki kitabon me jabran thoons chuke hain aur unhi kitabon ko awaam me dikha dikhakar mashhoor karte hain ki dekho waaris paak ne taziyadari ki maaz ALLAH,makhdoom ashraf ne taziyadari ki maaz ALLAH,aur koi to aalahazrat ke khaandan waalo ka hi naam le baithta hai jaisa ki khud aalahazrat azimul barqat irshad farmate hain ki"

FUQHA - Taziyadaro ko na koi daleele sharayi milti hai aur na koi motamad qaul,majburana hikayat banate phirte hain is tarah ki farzi riwaytein koi shah abdul azeez sahab se nakal karta hai to koi koi maulana abdul majeed sahab se koi to fazle rasool sahab se to koi mere jadde amjad se hi,ye sab baatein baatil aur masnoo hain.

📕 Fatawa razviyah,jild 10,safah 37


"Haan agar jayaz hai to sirf aur sirf itna ki jis tarah kaaba muazzama ya madina tayyabah ya baitul muqaddas ki tasweer hu bahu banayi jaati hai ki asl ki hi tarah inki tazeem hai so is tarah banane me harz nahin,magar na to uspar phool chadhayein na mannate maane na kaandhon par uthayein bas sirf ziyarat ke liye banayen to harz nahin magar hasha lillah aisa karna takriban bahut mushkil hai kyunki awaam ko to har kaam me entertainment chahiye,lihaza behtar yahi hai ki wo hi kaam karen jiska hukm ulmaye kiram hame dete hain maslan sabeel lagana roza rakhna isale sawab karna ehteram ke saath langer takseem karna yateemo aur miskino par kasrat se kharch karna ki asl neki yahi hai aur yahi sahi tariqa hai shuhdaye karbala ki yaad manane ka shariyat ke daayre me rahkar,Maula hum sabko tamam bidato aur gumrahiyon se mahfooz rakhe aur sakhti se maslake aalahazrat par qaayam rakhe-aameen"