क्या गैर सहाबा को रज़ियल्लाहु तआला अन्हू कह सकते हैं ?

बिलकुल गैर सहाबा के साथ भी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लगा सकते हैं,ये उन किताबों की फेहरिस्त है जिसमें हमारे उलमा गैर सहाबा को भी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लिखते हैं।

*📚दुर्रे मुख्तार जिल्द 5 सफह 480*

*📚नसीमुर रियाज़ जिल्द 3 सफह 509*

*📚अशातुल लमात जिल्द 4 सफह 743*

*📚शामी जिल्द 1 सफह 35/36/37/42/*

*📚तफसीरे कबीर जिल्द 6 सफह 382*

*📚मिरक़ात शरह मिशकात जिल्द 1 सफह 3/27*

*📚तहतावी सफह 11* 

*📚अहयाउल उलूम जिल्द 2 सफह 7*

*📚फतहुल बारी सफह 18*

*📚अखबारुल अख्यार सफह 15/16/18/21/*

*📚तफसीरे सावी जिल्द 1 सफह 3,*

ये तो बस चंद किताबें हैं वरना पूरा आलमे इस्लाम इसपर मुत्तफिक़ है कि गैर सहाबा के साथ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का सीगा लगाया जा सकता है,बल्कि जो ऐतराज़ करते हैं खुद उन बद अक़ीदों ने भी मोलवी क़ासिम नानौतवी और रशीद अहमद गंगोही को अपनी किताब में रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लिखा है।

*📚तज़किरतुर रशीद जिल्द 1 सफह 28*

हाँ चूंकि ये लफ्ज़ काफी मुअज़्ज़ज़ है लिहाज़ा हर किसी के साथ ना इस्तेमाल किया जाये सिर्फ बड़े बड़े उलमा फुक़हा वलियों के साथ ही इस्तेमाल करें.

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