क्या औरतों का ज़ेवरात पहनकर नमाज़ पढ़ना जायज़ है? (Kya Ladies Zewarat Pahankar Namaz Padh Sakti Hai ?)



क्या फ़रमाते हैं उलमा ए किराम व मुफ़्तीयाने एज़ाम इस मसले में कि क्या औरत गहना (जे़वरात) पहन कर नमाज़ पढ़ सकती है?


औरतों को सोने चांदी के जे़वरात पहन कर नमाज़ पढ़ना बिलएतेफाक़ जायज़ है। Aurto ladies ka Gold aur Silwar ke Zewarat pahankar Namaz padhna Jaiz Hai.

हदीस शरीफ़ में है:-

 قال النبی صلی الله تعالى عليه وسلم الذهب و الحرير حل لاناث امتى و حرام على ذكورها ، رواه ابو بكر بن ابى شيبه عن زيد بن ارقم والطبرانى فى الكبير عنه-

तर्जमा- नबी ए करीम “ﷺ” ने फ़रमाया कि सोना और रेशम मेरी उम्मत की औरतों को हलाल है और मर्दों पर हराम है।
(इसको अबुबक्र बिन अबी शैबा ने ज़ैद बिन अरक़म से रिवायत है और तिबरानी ने कबीर में उन से)

📚अल मुअज्जमुल कबीर अल तिबरानी, जिल्द 5, सफ़ा 211
📚फ़तावा रज़वीया, जिल्द 22, सफ़ा 126

बल्कि बअ्ज रिवायतों में ज़ेवर पहन कर नमाज़ पढ़ने का हुक़्म दिया गया है।

➤हदीस शरीफ : रसूलल्लाह “ﷺ” ने हज़रते अली رضی الله تعالیٰ عنه‎‎ से फ़रमाया "یا علی مر نساںٔک لا یصلین عطلا" رواہ ابن اثیر فی النھایۃ-
यानि ऐ अली अपनी मख़दीरात को हुक्म दो कि बे गहने नमाज़ न पढ़ें।
 इसको इमाम इब्ने असीर ने निहाया में रिवायत फ़रमाया।

📚निहाया, जिल्द 3, सफ़ा 257

➤ हत्ता के उम्मुल मोमिनीन हज़रते आईशा सिद्दीक़ा ताहिरा رضی اللہ تعالٰی عنہا फ़रमाती हैं कि औरतों को बे ज़ेवर नमाज़ पढ़ना मकरुह है।

📚  मजमुआ अनवारुल बहार, जिल्द 3, सफ़ा 622 पर है:

عاںٔشة رضى الله عنها كرهت ان تصلى المرأة عطلا و لو ان تعلق فى عنقها خيطا-

तर्जमा:-  हज़रत आईशा सिद्दीक़ा ताहिरा رضی اللہ تعالٰی عنہا औरतों के बग़ैर ज़ेवर नमाज़ पढ़ने को मकरुह जानतीं और फ़रमाया करतीं कि अगर कुछ न हो तो गले में एक डोरा ही लटका ले।

इन सब बयानात से मालूम हुआ कि औरतों को सोने चांदी के जे़वरात पहन कर नमाज़ पढ़ना बेला कराहत जायज़ है।

अब रही बात यह कि सोने चांदी के अलावा दिगर धातुओं से बने हुए ज़ेवरात का क्या हुक़्म है?―–– तो सब से पहले यह जान लें कि इस में उलमा ए मुतक़द्दमिन व मुताख़िरीन का कदरे इख़्तेलाफ़ है


पहले में सरकार ए आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां رضی الله تعالیٰ عنه‎‎ का क़ौल नक़ल करता हूँ, आप तहरीर फ़रमाते हैं.

तांबा, पीतल, कांसा, लोहा तो औरत को भी पहनना ममनू है और इस से नमाज़ उन की भी मकरुह है। और चांदी का छल्ला ख़ास लिबास जनान है मर्दों को मकरुह। और मकरुह चीज़ पहन कर नमाज़ भी मकरुह।

📚फ़तावा रज़वीया, जिल्द 22, सफ़ा 230

➤दूसरी जगह रक़मतराज हैं:

चांदी सोने के सिवा लोहे पीतल रांग का ज़ेवर औरतों को भी मुबाह नहीं चे जायका मर्दों के लिए।
📚एज़न, सफ़ा 153

➤ हुज़ूर सदरुश्शरियह علیہ الرحمہ तहरीर फ़रमाते हैं कि
सोने चांदी के सिवा दूसरी धातुओं के ज़ेवर मर्द औरत दोनों के लिए नाजायज़ हैं यह मस्नूई सोना भी इसी के हुक़्म में है।

📚फ़तावा अमजदिया, जिल्द 4, सफ़ा 278

➤मगर मुफ़्ती उबैद रज़ा मदनी साहब ने अपने एक फ़तवा में अमूम बलवी को दलील बनाते हुए तहरीर किया है कि:-

अमूम बलवी कि वजह से औरतों के लिए आर्टिफिशल ज्वेलरी ARTIFICIAL JEWELLERY (लोहा पीतल तांबा कांसा वगैरह) का इस्तेमाल जायज़ है, इस पर फ़तावा आलमगिरी का एक जुज़िया भी मौजूद है जिस में इस के जायज़ होने की सराहत मौजूद है।

" لا بأس للنساء بتعلیق الخرز فی شعورھن من صفراء او نحاس او شبه أو حديد او نحوها للزينة او سوار منها"

 यानि औरत का ज़ीनत की वजह से पीतल ताँबे या लोहा वगैरह की चुटिया बना कर बालों में लटकाना या उन की कंगन बना कर पहनना, इस में कोई हर्ज़ नहीं है।

📚फ़तावा आलमगिरी, जिल्द 5, सफ़ा 439

➤इसी फ़तवे की इब्तेदाई सतूर में लिखते हैं कि

फ़ी ज़माना अमूम बलवी की वजह से सोने चांदी के अलावा दीगर धातुओं के ज़ेवरात यानि आर्टिफ़िशल ज्वेलरी औरतों के लिए पहनना जायज़ है और उन को पहन कर नमाज़ पढ़ना भी जायज़ है मगर बेहतर है कि उनको उतार कर नमाज़ पढ़ी जाए।

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