इमामत व खिलाफ़त का बयान || Imamat Aur Khilafat Ka Bayan
इमामत व खिलाफ़त का बयान:
इमामत दो किस्म की है एक इमामते सुगरा दूसरी इमामते कुबरा,
इमामते सुगरा नमाज़ की इमामत है जिसका हाल नमाज के बयान में आयेगा इमामते कुबरा रसूलुल्लाह सल्लाल्लाहो अलैहे वसल्लम की नियाबते मुतलका है । यानी हुजूर की नियाबत से मुसलमानों के तमाम दीनी दुन्यवी कामों में शरीअत के मुवाफिक आम तसर्रुफ करने का इख्तियार और गैर मासियत में तमाम ज़हान के मुसलमानों से ईताअत कराने का हक , इस इमामत के लिये मुसलमान , आज़ाद , मर्द , आक़िल , बालिग , करशी क़ादिर होना शर्त है । कादिर के यह माना है कि शरई फैसला और हुदूद को जारी कर सके , ज़ालिम से मज़लूम का हक दिलाने की और मुसलमानों के जान व माल , मिल्क व अमलाक की हिफ़ाजात की ताकत हो । हाश्मी , अल्वी , मासूम होना शर्त नहीं , न यह शर्त कि अपने ज़माना में सबसे अफजल हो ।
मसअला - इमाम की इताअत मुतलकन हर मुसलमान पर फर्ज़ है जबकि इमाम का हुक्म शरीअत के खिलाफ़ न हो कि शरीअत के खिलाफ हुक्म में किसी की इताअ़त नहीं ।
मसअला - इमाम ऐसा शख्स बनाया जाये जो बहादुर सियासतदां और आलिम हो या ओलमा की मदद से काम करें ।
मसअला - औरत और नाबालिग की इमामत जाएज़ नहीं ।
मसअला - इमाम मुब्तेलाये फ़िस्त होने से माजूल नहीं हो जाता ।
📮पोस्ट जारी रहेगी इन्शा अल्लाह...
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