जुमे की दूसरी अज़ान यानि ख़ुत्बे की आज़ान मस्जिद के अंदर देना कैसा है II Jume Ki Dusri Azaan Masjid Ke Andar Dena Kaisa Hai

जुमे की दूसरी अज़ान मस्जिद के अंदर देना कैसा है  (यानि ख़ुत्बे की आज़ान) :

फिक़्हे हनफ़ी की तक़रीबन सारी किताबों में यह बात साफ़ लिखी हुई है कि, कोई अज़ान मस्जिद में ना दी जाए। खुद हदीस शरीफ़ से भी यही साबित है, और किसी हदीस और किसी इस्लामी मोअ़तबर व मुसतनद किताब में यह नहीं है कि,, कोई अज़ान मस्जिद के अंदर दी जाए। मगर फिर भी कुछ जगह कुछ लोग जुमे की दूसरी अज़ान मस्जिद के अंदर इमाम के सामने खड़े होकर पढ़ते हैं, और सुन्नत पर अमल करने से महरूम रहते हैं, और महज़ ज़िद और हटधर्मी की बुनियाद पर रसूले खुदा (सल्लल्लाहु तआ़ला अलैही वसल्लम) की प्यारी-प्यारी सुन्नत छोड़ देते हैं,

और कुछ मक़ामात पर तो लाउडस्पीकर मस्जिद के अंदर रखकर पांचों वक़्त अज़ान पढ़ते हैं, इस तरह अज़ान देने वाले और दिलवाने वाले सब गुनहगार हैं। 

फ़तावा आलमगीरी में है 👇🏻👇🏻_

 "لَا یُوذَنُ فِی المَسجِد"

तर्जुमा:👉🏻मस्जिद में कोई अज़ान न दी जाए।

(फ़तावा आलमगीरी, बाबुल अज़ान, फ़स्ल 2, सफ़ह 55)

📚 (ग़लत फ़हमियां और उनकी इस्लाह-हिन्दी, सफ़ह- 30,31)

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