सफर में नमाज़ पढ़ने के अहकाम (Safar Me Namaz Padhne Ka Masla)

  
Naav, AeroPlane, Bus, Train Me Namaz Padhne Masla :
     
दरियाई और हवाई सफर बस और दीगर सवारियो के सफर में नमाज़ पढ़ने के अहेकाम

📖मस'अला::  चलती ट्रेन बस और दीगर सवारियों में अगर खड़ा होकर नमाज़ पढना मुम्किन नही तो बैठकर नमाज़ पढले लैकिन फिर बाद में  नमाज़ का एआदा करे

(📚फतावा रजविया जिल्द 1 सफहा 627)

Sawal : जब चलती हुई कश्ती पर नमाज़ पढना जाइज़ है तो चलती हुई ट्रेन और दीगर अन्य सवारियों पर नमाज़ पढना क्यों मना है ? इस सवाल का तसल्ली बख्श जवाब और इस मस'अले की वजाहत

📃एक अहम तहकीक और जुज़या कि वजाहत कारेईन-किराम की ख़िदमत में मस'अले की इफहाम समजाने की निय्यते सालेह से अर्ज ख़िदमत है समन्दर में चलती हुई कश्ती पर नमाज़ पढना जाइज़ है जबकि चलती हुई ट्रेन में नमाज़ पढना मना है इसी तरह रेल्वे स्टेशन या किसी मकाम, पर ढहेरी हुई ट्रेन पर नमाज़ पढना जाइज़ है जबकि किनारे ( सागर का किनारा पर ढहेरी हुई कश्ती पर नमाज़ पढना जाइज़ नही

हो सकता है कि किसी के दिल मे येह शुब्ह और दिमाग़ में येह सवाल पैदा होने का इम्कान है कि

जब चलती हुई कश्ती पर नमाज़ पढना जाइज़ है तो चलती हुई ट्रेन पर भी पढना जाइज़ होना चाहिये

✨इसी तरह जब स्टेशन पर या किसी मकाम पर ढहेरी हुई ट्रेन पर नमाज़ पढना जाइज़ है तो किनारे पर ढहेरी हुई कश्ती पर भी नमाज़ पढना जाइज़ होना चाहिये।,,

↕इसका जवाब येह है कि :-

🚇चलती हुई ट्रेन पर नमाज़ पढना इस लिये जाइज़ नही कि ट्रेन जमीन पर तो जरूर है लैकिन चलने की वजह से उसका जमीन पर इस्तेकरार-बिल-कुल्लिया नहीं है लिहाज़ा नफसे इस्तेकरार नही और नमाज़ की सेहत के लिये सवारी वाहन का इस्तेकरार-अलल-अर्द यानी जमीन पर ढहेरना होना शर्त है

🛥ब खिलाफ चलती हुई कश्ती कि उससे नीचे उतरना मुम्किन ही नही अगर बिल-फर्ज मान लो कि चलती हुई कश्ती को रोक लिया जाए फिर भी उस का ढहेरना पानी पर होगा न कि जमीन पर इलावा अज़ी बीच समन्दर में कश्ती से उतर कर पानी पर नमाज़ पढना मुम्किन ही नही लिहाजा कश्ती का चलना और ढहेरना दोनों बराबर है यानी कश्ती के चलने और, ढहेरना दोनो सूरतो में कश्ती का इस्तेकरार थमना जमीन के बदले पानी पर है लैकिन अगर ट्रेन रोक ली जाए तो वोह जमीन पर ही ढहेरिगी और मिस्ले तख्त हो जाएगी और इस्तेकरार कामिल के साथ जमीन पर ढहेरगी

🏖किनारे पर ढहेरी हुई कश्ती पर नमाज़ पढना इस लिये जाइज़ नही कि किनारे पर लगी या बधी हुई कश्ती अगरचे जमीन से मुल्हीक मिली हुई है लैकिन इसके बावजूद भी वोह सिथर नही होती क्योंकि वोह पानी पर ही होती है और पानी की हरकत हिलना डुलना के साथ साथ वोह भी हरकत करती है और इस्तेकरार सिथरता नही होता पानी जमीन से मुतसिल होने की वजह से भी इस्तेकरार हासिल नही हो सकता और कश्ती से नीचे उतरना भी दुशवार कठीन-नही लिहाजा कश्ती से उतरकर जमीन पर नमाज़ पढना लाजिम है

💫इस मस'अले की तहकीक में इमामे इश्क़ मुहब्बत मुजदिदे दिनों मिल्लत आला हजरत इमाम अहमद रज़ा मुहदीश बरेलवी रदिय्यल्लाहो तआला अन्हु ने फिकह की मशहूर मारूफ किताबे मस्लन

📖दुर्रे मुख्तार - गुन्या शरहे मुन्या - रद्दुल मोहतार - बहरूर राइक - फतावा जहिरिया - फतावा हिनिदया - आलमारी - मोहित इमाम सरखसी - फ़त्हु- क़दीर वगैरह के हवालों से इल्म के दरिया बहा दीए है फतावा रजविया शरीफ की एक इबारत पेश ख़िदमत है

🚤चलती कश्ती से अगर जमीन पर उतरना मयस्सर हो तो कश्ती में पढना जाइज़ नही बल्कि इन्दत -तहीकीक अगरचे कश्ती किनारे पर ढहेरी हो मगर पानी पर हो और जमीन तक न पहुचीं हो और येह किनारे पर उतर सकता है तो कशती में नमाज़ न होगी कि उसका इस्तेकरार ढहेरना पानी पर है और पानी जमीन से मुतसिल ब इत्तेसाल क़रीब लगा हुआ होना क़रार ढहेरना नही जब इस्तेकरार की इन हालतों में नमाजे जाइज़ नही होती जब तक जमीन पर इस्तेकरार और वोह भी बिल कुल्लिया न हो तो चलने की हलातमे कैसे जाइज़ हो सकती है कि नफसे- इस्तेकरार ही नही ब खिलाफ कशती रवा चलती हुई जिस से नुज़ूल मयस्सर उतरना मुम्किन न हो कि अगर उसे रोकेंगे भी तो इस्तेकरार पानी पर होगा न कि जमीन पर लिहाज़ा सैरो-वुक़ूफ़ चलना और ढहेरना बराबर लैकिन अगर रेल ट्रेन रोक ली जाए तो जमीन पर ही ढहेरेगी और मिस्ले तख्त हो जाएगी।

(📚फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा 44 

1 comment:

  1. السلام علیکم،
    نماز میں ستر کہاں سے کہاں تک مانا جاتا ہے اور ستر کا مسلع کس حدیش میں ہے حدیش نمبر بھی بتایں؟
    محمد شفیق سدھارتھ نگر سے

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