हज़रत उमर फारूक (र.अ.) का एक ऐसा वाक्या जो आप की आँखों मे आंसू ला देगा




हज़रत उमर फारुक रजियल्लाहु अन्हु के ज़माने में इस्लामी हुदूद 23 लाख मुरब्बा मिल तक फैल गइ | हज़रत उमर जो तख्त ए हुकुमत पे बैठते थे वो तख़्त कोइ सोने चाँदी का नही था बल्के मस्जिद ए नबवी की चटाई थी|और वही बैठ कर लोगों की बाते सुनते उनकी परेशानी सुनते और जब रात होती तो भेस बदलकर मदीने की गलीयों मे गश्त करते थे |


एक रात जब हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु अपने गुलाम अस्लम के साथ हर्रा वाकिम की तरफ निकले और जब वो "सिरार" पहूँचे तो एक जगह आग जलती हूइ देखी जब  नजदीक पहँचे तो देखा की एक औरत आग पर हंडी चढाये हुए थी और उसके बच्चे रो रहे थे | हज़रत उमर ने सलाम किया और पूछा ये हंडी क्यु चढा रखी है और बच्चे क्यु रो रहै है..?  इन्हें खाना क्यु नहीं देती?  

औरत बाेली ये बच्चे भुख़ से रो रहे है 3 दिन से हमारे यहा खाने को कुछ नही है | रोज़ाना बच्चे रोते है और मैं हंडीया के अंदर पत्थर डाल के नीचे से आग दे देती हूं फिर बच्चे इंतजार कर कर के साे जाएगे! कबख़्त सो भी नही रहे ! और वो पत्थर पकेगे भी क्या....! 
" और मैं उमर की जान को रो रही हूं "
" अल्लाह हमारे और उमर के बीच फैसला करे" !
ये बात सुनकर हज़रत उमर का कलेजा दहलने लगा | और फरमाया अल्लाह रहम करे ! उमर को आप के बारे में कैसे पता होगा ?  
औरत बोली क्यु नही होगा?
वो हमारा हुक्मरान है ! वो हमसे गाफिल और बेख़बर कैसे  है ?  ये सुनकर हज़रत उमर और अस्लम फौरन पलटे  | बैतुल माल (अनाज का गौदाम)  में आये| आटे की एक बोरी ली,  घी, खजूर,  दिरहाम, और कपडे रखे , यहा तक की बोरी पूरी तरह से भर गयी | और  अपने गुलाम अस्लम से फरमाया " ये बोरी मेरी पीठ़ पर लाद दो" अस्लम बोले ये काम तो मेरा है ! मेरे आका लोओ ये बोरी मैं ऊठाउगा ! 


 हज़रत उमर की आँखों में आंसू है और फरमाया :-
" अस्लम ! कयामत के दिन मेरा बोझ उठा लोगे" ?
ये उमर का बोझ है उमर को ही उठा ने दो
ये सुनकर अस्लम ने बाेरी उनके पीठ़ पर डाल दी और वो
औरत के घर जाते है और दस्तक देते है | वो जब देखती है तो उसकी जान में जान आ जाती है | और कहा जल्दी जल्दी आटा बुंदो और हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु सब्जी काटने लग जाते है | और चूल्हे पे सब्जी पकाने रख दी जाती है  और जब जब आग बुझने लगती है हज़रत उमर झुक झुके चूल्हे के अंदर फूके मारते है | और जब खाना तैयार हो जाता है और सब खा लेते है तो हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु बच्चो को खुश करने के लिए उनके साथ खेलते है और बच्चों को हंसाते है जब बच्चे मुस्कराने लगे तो औरत बोली अल्लाह तआला आप को जजा ए खैर दे खिलाफत के हकदार आप हो उमर नही  ! 


हज़रत उमर ने कहा "आप उमर को माफ कर दे"  उसने कहा तु इतनी हमदर्दी क्यु करता है ?
कहा मेरी बहन उमर को माफ कर दे ! औरत बोली ना ना!  उमर की मेरे सामने बात ना कर!!
"कयामत का दिन होगा उमर का गिरेबान होगा और मेरा हाथ होगा"
ये सुनकर हजरत उमर बिलक बिलकर रोने लगे और कहा वो बदनसीब उमर तेरे सामने है   ! आज ही कहले जो कहना है  कयामत के दिन मुझे माफ रखना ! हजरत उमर रजियल्लाहु कहते है अगर दजला के किनारे अगर एक बकरी का बच्चा भी प्सासा मर गया तो उसका हिसाब भी उमर से लिया जायेगा |

अल्लाहु अकबर  | ये है इस्लाम और इसे कहते है हुक्मरान 
(कन्जुल उम्माल) Umar तेरी खिलाफत का जमाना याद आता हे
(बयान)

8 comments: