इस्तांबुल पर मुसलमानों की शानदार फ़तेह, जिसे यूरोप कभी नहीं भूल सका



🔸फतह_कुस्तुनतुनिया🔸



USMANI KHILAFAT

29 मई 1453 को ख़िलाफ़ते उस्मानियां के महान योद्धा सुलतान मेहमद द्वारा कुस्तुनतुनिया (इस्तांबुल) फतह किया गया II 



"सुल्तान महमद और उनकी इस फतह की पेशनगोइ पैगम्बर अलैहि सलाम ने अपनी एक हदीस में काफी पहले कर दी थी :- "निश्चित ही तुम कुस्तुनतुनिया फतह करोगे वो एक बहुत अज़ीम सिपह सालार होगा और उसकी बहुत अज़ीम सेना होगी.
(📚मसनद अहमद )

ये फ़तह 53 दिन की उतार चढ़ाओ कि जँग के बाद नसीब होती है.. इसके बाद जो हुआ वो तारीख़ है 1500 साल से चली आ रही बाइजेण्टाइन साम्राज्य (रोमन साम्राज्य) हमेशा के लिए ख़त्म हो जाती है.


इस जंग मे एक बहुत मज़बुत और बहादुर सिपाही और भी था जिसे दुनिया बहुत कम जानती है , जो के सुल्तान महमद की परछाई था और इसी सिपाही को क़ुस्तुन्तुनिया के क़िले पर सबसे पहले इस्लामी झण्डा फहराने का शर्फ़ हासिल हुआ , इस सिपाही का नाम था "उलुबातली हसन" जो के क़ुस्तुन्तुनिया को फ़तह करने के बाद 25 साल की उमर मे शहीद हो गया था. बसरा के उलुबात नाम के गांव मे पैदा हुआ ये नौजवान कम उम्र मे ही उस्मानी फ़ौज मे शामिल हो जाता है.


क़ुस्तुन्तुनिया को फ़तह करने के लिए 53 दिन (April 6, 1453 – May 29, 1453) तक चली जंग मे ये हमेशा मैदान मे डटे रहे और आख़िर मे वो दिन आया जब क़ुस्तुन्तुनिया फ़तह हुआ और क़ुस्तुन्तुनिया पर इस्लामी झण्डा फहरा और इसे को फहराने के वास्ते उलुबातली हसन तीर बरछे व भाले का परवाह किये बगैर दीवार पर चढ़ गए और इस्लामी झण्डा फहरा कर शहीद हो गए :)


उनके बदन से 27 तीर निकाली गई थीं जो उन्हे जंग के दौरान लगी.


"फ़तह क़ुस्तुन्तुनिया के बाद ख़िलाफ़ते उस्मानीया की राजधानी एदिर्न (Edirne) से हटाकर क़ुस्तुन्तुनिया ला दी गयी और इस जगह को आज दुनिया इंस्तांबुल के नाम से जानती है।"