नबी ए करीम ﷺ का चेहरा मुबारक इतना नूरानी था कि जब वो नूर दीवार पर पड़ता तो दीवारें भी चमक उठतीं |





HAZRAT MOHAMMED ﷺ KA CHEHRA MUBARAK :


➤हज़रते अबु हुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैंने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से ज़्यादा हसीन किसी को नहीं देखा और जब मैं चेहरये अक़दस को देखता हूं तो ये मालूम होता है कि आफताब चेहरये मुबारक में जारी है |

तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 205




➤हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम सूरत और सीरत में तमाम लोगों से ज़्यादा हसीनो जमील हैं |

मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 258


➤हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का चेहरा मुबारक इतना नूरानी था कि जब वो नूर दीवार पर पड़ता तो दीवारें भी चमक उठतीं |

ज़रक़ानी,जिल्द 6,सफह 210


➤सय्यदना आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अंहा फरमातीं हैं कि मैं सहरी के वक़्त कुछ सी रही रही थी कि सुई गिर गई और बड़ी तलाश के बावजूद ना मिली,इतने में रसूले खुदा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम कमरे में तशरीफ लाये तो उनके चेहरे मुबारक के नूर से पूरा कमरा मुनव्वर हो गया और मैंने बा आसानी सुई ढूंढ़ ली |

खसाइसे कुबरा,जिल्द 1,सफह 156
नसीमुर्रियाज़,सफह 328
जवाहिरुल बहार,सफह 814


➤जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम खुश होते तो आपका चेहरा मिस्ल आईने के हो जाता कि दीवारें आपके चेहरे में नज़र आ जाती |

ज़रक़ानी,जिल्द 4,सफह 80


➤हज़रत अब्दुल्लाह बिन रुवाह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के वजूद में वहिये इलाही, मोजेज़ात और दीगर दलाइले नुबूवत का असर और ज़हूर ना भी होता तब भी आपका चेहरा मुबारक ही दलीले नुबूवत को काफी था |

ज़रक़ानी,जिल्द 4,सफह 72


➤हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु जो कि यहूदियों के बहुत बड़े आलिम थे फरमाते हैं कि जब मैंने पहली बार हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के चेहरये अनवर को देखा तो मैंने जान लिया कि ये चेहरा किसी झूटे का नहीं हो सकता |

अलमुस्तदरक,जिल्द 4,सफह 160


➤हज़रते रबिया बिन्त मऊज़ रज़ियल्लाहु तआला अंहा सहाबिया से किसी ने हुज़ूर के बारे में दरयाफ्त किया तो आप फरमातीं हैं कि ऐ बेटे अगर तू उनका हुस्न देखता तो यक़ीनन पुकार उठता कि सूरज तुलु हो रहा है |

 बैहक़ी,जिल्द 1,सफह 154
 दारमी,सफह 23


➤तिर्मिज़ी शरीफ की रिवायत है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को कोई नज़र भरकर देख नहीं पाता था सिवाये अबू बक्र व उमर के और उन्ही अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मेरे आक़ा फरमाते हैं कि " ऐ अबू बक्र मुझे मेरे रब के सिवा हक़ीक़तन किसी ने पहचाना ही नहीं" |

मतालेउल मिरात,सफह 129


➤अल्लाह ने अपने महबूब को हुस्ने तमाम अता फरमाया है मगर हम पर ज़ाहिर ना किया और ये अल्लाह का एहसान है वरना हमारी आंखें हुज़ूर के दीदार की ताक़त ना रखती |

ज़रक़ानी,जिल्द 5,सफह 198


​"आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हम चेहरये मुस्तफा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की तारीफ कर ही नहीं सकते बल्कि हम तो सिर्फ "वश्शम्श" और "वद्दोहा" की शरह बयान करते हैं और इश्क़ में डूबकर मेरे आलाहज़रत ने जब सूरह "वद्दोहा" की तफसीर लिखनी शुरू की तो 800 सफहात क़लम बंद कर डाले​."