जानिये ! इस्लाम में माँ - बाप के क्या हुक़ूक़ है? वालिदैन को तक़लीफ़ देना अजीम गुनाह है..




MA- BAAP KE HUKOOQ:

कुरआने मजीद में इरशाद है- और तुम्हारे रब का कतई फैसला है कि तुम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करो और वाल्दैन के साथ नेक सुलूक करते रहो। अगर तुम्हारे सामने उनमे से एक या दोनों बुढ़ापे पे पहुँच जाये तो उन्हें उफ़ भी न कहो और न उन्हें झिड़को और उनसे अदब से बात करो और उनके सामने शफ़क़त से आजज़ी के साथ झुके रहो और कहो की ए  मेरे रब जैसे उन्होंने मुझे बचपन में पाला है इसी तरह तू भी उनपर रहम फरमा ।
(कुरान मज़ीद)

अल्लाह तआला ने अपनी इबादत का हुक्म फ़रमाने के बाद वालिदैन के साथ भलाई करने का हुक्म दिया | इससे मालूम होता है कि माँ बाप की ख़िदमत बहुत ज़रुरी है वालिदैन के साथ भलाई के यह माना हैं कि कोई बात न कहे और कोई ऐसा काम न करे जिससे उन्हें तकलीफ़ पहुंचे और अपने बदन और माल से उनकी ख़िदमत में कोई कसर न रखे | 


जब उन्हें ज़रुरत हो उनके पास हाज़िर रहे अगर माँ बाप अपनी ख़िदमत के लिए नफ्ल इबादत (नमाज़) छोड़ने का हुक्म दें तो छोड़ दे ,उनकी ख़िदमत नफ़्ल से बढक़र है | जो काम वाजिब है वो वालिदैन के हुक्म से छोड़ नहीं जा सकते | माँ बाप के साथ एहसान के तरिक़े जो हदीसों से साबित हैं ये हैं कि दिल की गहराईयों से उनसे मुहब्बत रखे, 


बोल चाल, उठने बैठने में अदब का ख़्याल रखे, उनकी शान में आदर के ताज़ीम (आदर) के लफ्ज़ कहे उनको राज़ी करने कि कोशिश करता रहे, अपने अच्छे माल को उनसे न बचाए उनके मरने के बाद उनकी वसियतों को पूरा करे, 


उनके लिए फ़ातिहा,सदकात , तिलावते कुरआन से ईसाले सवाब करे | अल्लाह तआला से उनकी मग़फ़ेरत की दूआ करे , हफ़्तवार उनकी कब्र की जियारत करे (फत्हुल अज़ीज) मॉ बाप के साथ भलाई करने में यह भी दाख़िल है कि अगर वो गुनाहोें के आदी हो या किसी बदमज़हबी में गिरफ़्तार हों तो उनको नर्मी के साथ अच्छे रास्ते पर लाने की कोशिश करता रहे, (खाज़िन)



HADEES SHARIF:

"अल्लाह तआला अपनी मंशा से तमाम गुनाहों की मग़फ़िरत फ़र्मा देता है, मगर वालदैन की नाफ़रमानी और ईज़ा रसानी करने वाले को इसी दुनिया में मरने से पहले सज़ा भुगतनी पड़ती है...।"
   (मिश्‍क़ात शरीफ़)



इस हदीस की तशरीह में मुहद्देसीन फ़रमाते हैं कि गुनाहों की सज़ा मरने के बाद आख़िरत में मिलेगी, लेकिन माँ बाप का दिल दुखाने वाले को सज़ा इसी दुनिया में मिलती है, और उस वक़्त तक मौत नहीं आती, जब तक बदला ना मिल जाये...।


हज़रत शाह अब्‍दुल ग़नी फूलपूरी ने अपने मलफ़ूज़ात में हदीस बयान फ़रमाकर एक वाक्य का ज़िक्र किया है कि:-

एक शख़्स ने अपने बाप के गले में रस्सी बांधी और उसको घसीटता हुवा बांस के खेत के पास ले गया, जो सामने दस बीस गज़ के फ़ासले पर थे... वहाँ पहुंचकर 
बाप ने बेटे से कहा: "बेटा! अब इससे आगे मत खींचना वर्ना तू ज़ालिम हो जाएगा...।"
बेटा ताज्जुब से बोला: "मैंने जो ये बीस गज़ तक आपको खींचा है तो क्या अभी तक में ज़ालिम नहीं हुवा हूँ...?"
बाप ने कहा: "हाँ तू अभी तक ज़ालिम नहीं हुवा, क्योंकि मैंने भी अपने बाबा, यानी तेरे दादा को इसी तरह गर्दन में रस्सी बांधकर यहीं तक खींचा था...। लिहाज़ा अब तक तो मुझे अपने अमल का बदला मिला, अब इस जगह से अगर तू आगे बढ़ेगा तो ज़ालिम हो जाएगा...।